Operin Theory In Hindi ओपेरिन थ्योरी इन हिंदी

ओपेरिन थ्योरी इन हिंदी



GkExams on 12-11-2018




विज्ञान के अब तक के सभी प्रयासों के बावजूद पृथ्वी के बाहर किसी स्थान पर जीवन होने की पुष्टि अभी तक नहीं हो पाई है। पृथ्वी पर एक कोशिकीय, बहुकोशिकीय, कवक, पादप, जंतु आदि लाखों प्रकार के जीव पाए जाते हैं मगर वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि इन सब का प्रथम पूर्वज एक ही था। आज भी इस प्रश्न का उत्तर जानना शेष है कि सभी जीवों का प्रथम पूर्वज पृथ्वी पर ही जन्मा था या किसी अन्य खगोलीय पिण्ड से पृथ्वी पर आया? प्रथम जीव उत्पत्ति में ईश्वर जैसी किसी शक्ति की कोई भूमिका रही है या यह मात्र प्राकृतिक संयोग की देन है? प्रथम जीव के अजीवातजनन को समझाने वाले ओपेरिन व हाल्डेन के विचारों को भी जोरदार चुनौती दी जा रही है।

लगभग सभी धर्मों में विशिष्ट सृजन की बात कही गई है। इस मान्यता के अनुसार पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीवों को ईश्वर ने ठीक वैसा ही बनाया जैसे वे वर्तमान में पाए जाते हैं। मनुष्य को सबसे बाद में बनाया गया। इस मान्यता में विश्वास करने वाले इसाई धर्म गुरु आर्चबिसप उसर ने सन 1650 में अपनी गणना के आधार पर बताया था कि ईश्वर ने विश्व सृजन का कार्य एक अक्टूबर 4004 ईसापूर्व को प्रारंभ कर 23 अक्टूबर 4004 ईसापूर्व को पूरा किया। इस मान्यता के पक्ष में किसी प्रकार के प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। अपने अवलोकनों के आधार पर अरस्तू जैसे दार्शनिकों ने निर्जीव पदार्थों से जीवों की उत्पत्ति को समझाने का प्रयास किया।

इस मान्यता के अनुसार प्रकृति में निर्जीव पदार्थों जैसे कीचड़ से मेढ़क, सड़ते माँस से मक्खियाँ आदि सजीवों की उत्पत्ति होती रहती है। वान हेल्मोन्ट जैसे वैज्ञानिक ने प्रयोग द्वारा पुराने कपड़ों व अनाज द्वारा चूहे जैसे जीव पैदा होने की बात प्रयोग द्वारा सिद्ध करने का प्रयास भी किया था। निर्जीव पदार्थों से सजीव उत्पन्न होने की मान्यता उन्नीसवीं शताब्दी तक चलती रही जब तक लुई पाश्चर ने अपने प्रयोगों के बल पर निर्विवाद रूप से इसका अंत नहीं कर दिया। आज सभी यह जानते हैं कि कोई भी जीव पहले से उपस्थित अपने जैसे जीव से ही उत्पन्न हो सकता है मगर यह प्रश्न अभी भी महत्त्वपूर्ण है कि सबसे पहला जीव कहाँ से आया?

प्रथम जीव का अजैविक जनन


जीव की उत्पत्ति में ईश्वर की भूमिका को नकारकर प्राकृतिक नियमों के अनुरूप जीव की उत्पत्ति की सर्वप्रथम विवेचना करने का श्रेय चार्ल्स डार्विन को जाता है। अपनी पुस्तक ओरिजन आॅफ स्पेसीज में पृथ्वी पर पाए जाने वाले विभिन्न जीवों की उत्पत्ति को जैव विकास के सिद्धांत से समझाते हुए चार्ल्स डार्विन को यह कहना पड़ा कि ईश्वर ने सभी जीवों को अलग-अलग नहीं बनाकर एक सरल जीव बनाया तथा वर्तमान सभी जीवों की उत्पत्ति उस एक पूर्वज से, जैव विकास की विधि द्वारा हुई है। अपने मित्रों तथा अन्य जिज्ञासुओं से डार्विन ने अपने विचार की असलियत को नहीं छुपाया। डार्विन ने जीव की उत्पत्ति में ईश्वर की भूमिका को नकारते हुए कहा था कि प्रथम जीव की उत्पत्ति निर्जीव पदार्थों से हुई। एक फरवरी 1871 को जोसेफ डाल्टन हूकर को लिखे पत्र में चार्ल्स डार्विन ने संभावना प्रकट की कि अमोनिया, फास्फोरस आदि लवण घुले गर्म पानी के किसी गड्ढे में, प्रकाश, ऊष्मा, विद्युत आदि के प्रभाव से, निर्जीव पदार्थों से पहले जीव की उत्पत्ति हुई होगी।

रूसी वैज्ञानिक अलेक्जेंडर इवानोविच ओपेरिन ने 1924 में जीव की उत्पत्ति नाम से निर्जीव पदार्थों से जीवन की उत्पत्ति का सर्व प्रथम सिद्धांत प्रतिपादित किया था। ओपेरिन ने कहा कि लुई पाश्चर का यह कथन सच है कि जीव की उत्पत्ति जीव से ही होती है मगर प्रथम जीव पर यह सिद्धांत लागू नहीं होता। प्रथम जीव की उत्पत्ति तो निर्जीव पदार्थों से ही हुई होगी। ओपेरिन ने कहा कि सजीव व निर्जीव में कोई मूलभूत अंतर नहीं होता। रासायनिक पदार्थों के जटिल संयोजन से ही जीवन का विकास हुआ है। विभिन्न खगोलीय पिंडों पर मीथेन की उपस्थिति इस बात का संकेत है कि पृथ्वी का प्रारंभिक वायुमंडल मीथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन तथा जलवाष्प से बना होने के कारण अत्यंत अपचायक रहा होगा। इन तत्वों के संयोग से बने यौगिकों ने आगे संयोग कर और जटिल यौगिकों का निर्माण किया होगा। इन जटिल यौगिकों के विभिन्न विन्यासों के फलस्वरूप उत्पन्न नए गुणों ने जीवन की नियमितता की नींव रखी होगी। एक बार प्रारंभ हुए जैविक लक्षण ने स्पर्धा व संघर्ष पर चलकर वर्तमान सजीव सृष्टि का निर्माण किया होगा।

अपने सिद्धांत के पक्ष में ओपेरिन ने कुछ कार्बनिक पदार्थों के व्यवस्थित होकर कोशिका के सूक्ष्म तंत्रों में बदलने के उदाहरण दिए। बाद में डच वैज्ञानिक जोंग के द्वारा किए गए प्रयोगों में बहुत से कार्बनिक अणुओं के आपस में जुड़कर विलयन से भरे पात्र जैसी सूक्ष्म रचनाओं के बनने से ओपेरिन के सिद्धांत को बल मिला। कार्बनिक अणुओं की पर्त से बने सूक्ष्म पात्रों को ही डी जुंग ने कोअसरवेट नाम दिया था। कोअसरवेट द्वारा परासरण जैसी क्रियाओं के प्रदर्शन के कारण इन्हें उपापचयी क्रियाओं का आधार मानते हुए जीवन के प्रथम घटक के रूप में देखा गया। ओपेरिन का मानना था कि खाद्य समुद्र में अनेकानेक कोअसरवेट बने होंगे तथा उनके जटिल संयोजन से ही अचानक प्रथम जीव की उत्पत्ति हुई होगी।

सन 1929 में जेबीएस हाल्डेन ने ओपेरिन के विचारों को और विस्तार दिया। हाल्डेन ने पृथ्वी की उत्पत्ति से लेकर सुकेंद्रकीय कोशिका की उत्पत्ति तक की घटनाओं को आठ चरणों में बाँटकर समझाया। हाल्डेन ने कहा कि सूर्य से अलग होकर पृथ्वी धीरे-धीरे ठंडी हुई तो उस पर कई प्रकार के तत्व बन गए। भारी तत्व पृथ्वी के केंद्र की ओर गए तथा हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, आर्गन से प्रारंभिक वायुमंडल बना। वायुमंडल के इन तत्वों के आपसी संयोग से अमोनिया व जलवाष्प बने। इस क्रिया में पूरी ऑक्सीजन काम आ जाने के कारण वायुमंडल अपचायक हो गया था। सूर्य के प्रकाश व विद्युत विसर्जन के प्रभाव से रासायनिक क्रियाओं का दौरा चलता रहा और कालांतर में अमीनो अम्ल, शर्करा, ग्लिसरोल आदि अनेकानेक प्रकार के यौगिक बनते गए। इन यौगिकों के जल में विलेय होने से पृथ्वी पर पूर्वजीवी गर्म सूप बना।

सूप का घनत्व बढ़ता गया तथा उसमें कोलायडी कण बनने लगे। जल की सतह पर तैरते इन कणों ने आपस में जुड़कर झिल्ली का रूप लिया होगा। इस झिल्ली ने बाद में सूक्ष्म पात्रों का निर्माण कर लिया जिन्हें कोअसरवेट नाम दिया था। इस प्रकार जीवनपूर्व रचनाओं का उदय हुआ होगा। एन्जाइम जैसे उत्प्रेरकों के प्रभाव के कारण कोअसरवेट में भरे रसायनों में संश्लेषण विश्लेषण जैसी क्रियाएँ होने लगी होंगी। धीरे-धीरे अवायु श्वसन होने लगा। कोअसरवेट में कोई रसायन कम होता तो बाह्य वातावरण से अवशोषण कर उसकी पूर्ति कर ली जाती। चिपचिपेपन के कारण कोअसरवेट का आकार बढ़ता रहता तथा अधिकतम आकार हो जाने पर वह स्वत: विभाजित हो जाता था। बाद में नाभिकीय अम्लों के रूप में कार्बनिक नियंत्रक-तंत्र विकसित हुए जो वृद्धि व जनन जैसी जैविक क्रियाओं को नियंत्रित करने लगे। प्रारंभिक कोशिका परपोषी प्रकार की रही होगी। बाद में पर्णहरित यौगिक तथा हरितलवक कोशिकांग के कोशिका में प्रवेश करने से पहली स्वपोषित कोशिका बनी होगी। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के प्रारंभ होने पर जल का विघटन होने लगा जिससे ऑक्सीजन उत्पन्न होने लगी। वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा साम्य स्थापित होने तक बढ़ती रही होगी।




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