Rajasthan Ki Boliyaan राजस्थान की बोलियां

राजस्थान की बोलियां



GkExams on 24-11-2018

मारवाड़ी:-

  • कुवलयमाला में जिस भाषा को ‘मरुभाषा’ कहा गया है,वह मारवाड़ी है । इसका प्राचीन नाम मरुभाषा है जो पश्चमी राजस्थान की प्रधान बोली है । मारवाड़ी का आरम्भ काल 8 वी सदी से माना जाता है ।
  • इसका विस्तार जोधपुर, बीकानेर ,जैसलमेर, पाली ,नागौर, जालौर ,सिरोही जिलों तक है । विशुद्ध मारवाड़ी केवल जोधपुर एंव आसपास के क्षेत्र में ही बोली जाती है ।
  • मारवाड़ी के साहित्यिक रूप को डिंगल कहा जाता है ।
  • इसकी उत्पत्ति गुर्जर अपभ्रंश से हुई है तथा जैन साहित्य एंव मीरा के अधिकांश पद इसी भाषा मे लिखे गए है ।राजिया रा सोरठा,वेलि किसन रुक्मणी री ,ढोला-मरवण, मूमल आदि लोकप्रिय काव्य मारवाड़ी भाषा मे ही रचित है ।
  • मारवाड़ी की बोलियां एंव उपबोलियां:-मेवाड़ी ,बागड़ी, शेखावाटी, बीकानेरी , खेराड़ी ,नागौरी, देवड़ा वाटी गोड़वाड़ी आदि मारवाड़ी भाषा की प्रमुख बोलियां एंव उपबोलियां हैं ।

मेवाड़ी

उदयपुर एवं उसके आसपास के क्षेत्र को मेवाड़ कहा जाता है, इसलिए यहां की बोली मेवाड़ी कहलाती है । यह मारवाड़ी के बाद राजस्थान की महत्वपूर्ण बोली है । मेवाड़ी बोली के विकसित और शिष्ट रूप के दर्शन हमें 12वीं 13 वीं शताब्दी में ही मिलने लगते हैं ।मेवाड़ी का शुद्ध रूप मेवाड़ के गांव में ही देखने को मिलता है ।


मेवाड़ी में लोक साहित्य का विपुल भंडार है महाराणा कुंभा द्वारा रचित कुछ नाटक इसी भाषा में है । धावड़ी उदयपुर की एक बोली है।

बागड़ी:-

डूंगरपुर बांसवाड़ा के क्षेत्रों का प्राचीन नाम बागड़ था । अतः वहां की भाषा बागड़ी का कहलायी, जिस पर गुजराती का प्रभाव अधिक है डॉक्टर ग्रियर्सन ने इसे “भीली” भी कहते हैं ।यह भाषा मेवाड़ के दक्षिणी भाग, दक्षिणी अरावली प्रदेश तथा मालवा की पहाड़ियों तक के क्षेत्र में बोली जाती है ।भीली बोली ईसकी सहायक बोली है ।

शेखावाटी:-

मारवाड़ी की उपबोली शेखावाटी राज्य के शेखावाटी क्षेत्र ( सीकर ,झुंझुनू तथा चूरू जिले के क्षेत्र) में प्रयुक्त की जाने वाली बोली है जिस पर मारवाड़ी, ढूंढाड़ी का पर्याप्त प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।

गौड़ वाड़ी

जालौर जिले की आहोर तहसील के पूर्वी भाग से प्रारंभ होकर पाली में बोली जाने वाली यह मारवाड़ी की उपबोली है । बीसलदेव रासो इस बोली की मुख्य रचना है।

देवड़ा वाटी

देवड़ा वाटी भी मारवाड़ी की उपबोली है जो सिरोही क्षेत्र में बोली जाती है इसका दूसरा नाम सिरोही है।

ढाटी

मारवाड़ी की उपबोली है जो बाड़मेर में बोली जाती है ।

2. पूर्वी राजस्थानी की मुख्य बोलियां

ढूंढाड़ी

उत्तरी जयपुर को छोड़कर शेष जयपुर, किशनगढ़ ,टोंक ,लावा तथा अजमेर मेरवाड़ा की पूर्वी अंचलों में प्रयुक्त की जाने वाली बोली ढूंढाड़ी कहलाती है। इस पर गुजराती ,मारवाड़ी एवं ब्रज भाषा का प्रभाव समान रूप से मिलता है ढूंढाड़ी में गद्य एवं पद्य दोनों में प्रचुर साहित्य रचा गया । संत दादू एवं उनके शिष्यों ने इसी भाषा में रचनाएं की । इसे जयपुरी या झाड़शाही भी कहते है । इस बोली का प्राचीनतम उल्लेख 18 वीं सदी में “आठ देश गुजरी” पुस्तक में हुआ है।

तोरावाटी

झुंझुनू जिले का दक्षिण भाग, सीकर जिले का पूर्वी एवं दक्षिणी पूर्वी भाग तथा जयपुर जिले के कुछ उत्तरी भाग को “तोरावाटी” कहा जाता था अतः यहां की बोली तोरावाटी कहलाई । काठेड़ी बोली जयपुर राज्य के दक्षिणी भाग में प्रचलित है जबकि चौरासी जयपुर जिले के दक्षिण पश्चिम, टोंक जिले के पश्चिम भाग में प्रचलित है । नागरचोल सवाई माधोपुर जिले के पश्चिमी भाग, टोंक जिले के दक्षिण-पूर्वी भाग में बोली जाती है । पचवारी लालसोट से सवाई माधोपुर के मध्य बोली जाती है । जयपुर जिले के पूर्वी भाग में राजा वाटी बोली प्रचलित है । जगरोति करौली की प्रमुख बोली है ।

हाड़ोती

हाड़ा राजपूतों द्वारा शासित होने के कारण कोटा, बूंदी ,बारां एंव झालावाड़ का क्षेत्र हाड़ोती कहलाई और यहां की बोली ” हाडोती” कहलाई ।यह ढूंढाड़ी की उपबोली है ।हाडोती का भाषा के अर्थ में प्रयोग ,सर्वप्रथम केलॉग के हिंदी ग्रामर में सन 1875 ई. में किया गया । वर्तनी की दृष्टि से हाड़ोती राजस्थान की सभी बोलीयों में सबसे कठिन समझी जाती है । कवि सूर्यमल्ल मिश्रण की रचनाएं इसी बोली में है । इसका विस्तार ग्वालियर तक है ।हूणो एंव गुर्जरों की भाषा का प्रभाव इस पर है ।

मेवाती

अलवर एवं भरतपर जिलों का क्षेत्र मेव जाति की बहुलता के कारण मेवात के नाम से जाना जाता है । अतः यहां की बोली मेवाती कहलाती है । चरणदास की शिष्याएं दयाबाई ,सहजोबाई की रचनाएं इसी बोली में है।

अहीर वाटी

अहीर जाती के क्षेत्र की बोली होने के कारण इसे ‘हीरवाटी’ या “हीरवाल”भी कहा जाता है ।इस बोली के क्षेत्र को “राठ”कहा जाता है इसलिए इसे राठी भी कहते हैं ।यह मुख्यत: अलवर की बहरोड व मुंडावर तहसील भाग में बोली जाती है ।

मालवी

यह मालवा क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाली बोली है । यह झालावाड़ , प्रतापगढ़ एंव कोटा के मालवा क्षेत्र में प्रयुक्त की जाती है। इस बोली में मारवाड़ी एवं ढूंढाड़ी दोनों की कुछ विशेषताएं पाई जाती है । मालवी एक कर्णप्रिय कोमल बोली है।इस बोली में चंद्र सखी व नटनागर की रचनाएं प्रमुख है।

रांगड़ी

मालवी बोली का रागड़ी रूप कुछ कर्कश है ,जो मालवा क्षेत्र के राजपूतों की बोली है । मालवा के राजपूतों में मालवी एंव मारवाड़ी के मिश्रण से बनी बोली रांगड़ी है ।

निमाड़ी

इसे मालवी की उपबोली माना जाता है निमाड़ी को “दक्षिणी राजस्थानी”भी कहा जाता है इस पर गुजराती ,भीली एवं खानदेशी का प्रभाव है ।

खेराड़ी

(शाहपुरा )भीलवाड़ा बुंदि आदि के कुछ इलाकों में बोले जाने वाली बोली ,जो मेवाड़ी, ढूंढाड़ी एंव हाड़ोती का मिश्रण है ।


1.कौनसी बोली पश्चिमी हिन्दी एवं राजस्थानी के बीच समन्वय का कार्य करती है?
उत्तर-मेवाती


2.ढूढाड़ी बोली कहां बोली जाती है?
उत्तर-जयपुर, दौसा, टोंक

3.पश्चिमी राजस्थान में कौन कौनसी बोलियाँ बोली जाती है?
उत्तर- मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढारकी, बीकानेरी, बाँगड़ी, शेखावटी, खेराड़ी, मोड़वाडी, देवड़ावाटी आदि।


4.ढूंढाड़ी की प्रमुख बोलीयां कौनसी है?
उत्तर-तोरावाटी, राजावाटी, चैरासी(शाहपुरा), नागरचोल, किशनगढ़ी, अजमेर, काठेड़ी, हाड़ौती।


5.जाॅर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने राजस्थानी बोलियों को कितने भागों में बांटा?
उत्तर- जाॅर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने राजस्थानी बोलियों को पांच भागों में बांटा।

  1. पिश्चिमी राजस्थानी – मारवाड़ी तथा उसकी उपबोलियां
  2. उत्तरी पूर्वी राजस्थानी – मेवाती तथा अहीरवाटी।
  3. मध्य पूर्वी राजस्थानी – ढुढाड़ी तथा इसकी उप बोलियां
  4. दक्षिणी पूर्वी राजस्थानी – मालवी तथा रांगड़ी
  5. राजस्थानी – निमाड़ी बोली।

6.राजस्थानी भाषा की लिपि महाजनी की उतपत्ति कहा से मानी जाती है
उत्तर–:डॉ ग्रियर्सन ने नागर अपभ्रंश से मानी है


7.राजस्थान में सर्वाधिक भाषा बोली जाती है
उत्तर–:मारवाड़ी


8.राजस्थानि साहित्य का सुवर्ण काल कब से कब माना जाता है
उत्तर–:1700-1900ई.


9.राजस्थान में प्रथम भाषा सर्वेक्षक किसे कहा गया
उत्तर–:जॉर्ज मेकलिस्टर

10.राजस्थानि भाषा का मानक रूप किस बोली को कहा गया है
उत्तर–:मारवाड़ी बोली को


11.राजस्थान के भीलो की बोली कोण कोण सी है
उत्तर–:भीली/वागड़ी/बागड़ी


12.सन्1961 की जनगणना रिपोर्ट में डॉ आर सी निगम के अनुसार राजस्थान की कितनी बोलिया मानी है
उत्तर-:73बोलियां


13. झड़शाली बोलीं किन क्षेत्रो में बोली जाती है
उत्तर–:जयपुर,किशनगढ़, टोंक, लावा में है


14.सूर्यमल्ल मिश्रण की रचनाये किस बोली में है
उत्तर -:हाडौती बोली में


15.उधोतनसुरि ने कुवलयमाला में कितनी देशी भाषाओं का वर्णन किया है
उत्तर–:18 देशी भाषा


16. मरुभाषा का सयुंक्त क्षेत्र बताये
उत्तर–:शेखावाटी तथा सिरोही क्षेत्र है


17.सन्त दादु ने अपने साहित्य की रचना किस भाषा में की है
उत्तर–:ढूँढाड़ी/झड़शाली में


18. राजस्थान की बोलियों का वैज्ञानिक अध्ययन करने वाला पहला विधान था
?जी.ए.ग्रियर्सन


19. आठवीं शताब्दी के कुवलयमाला नामक ग्रंथ मे भारत की देसी भाषाओं में मारवाड़ की भाषा का नाम है
? मरुवाणी


20. राज्य की वह बोली जिसमें सिंधी भाषा के शब्दों का मिश्रण देखने को मिलता है
?थली


21. सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने लिग्वस्टिक सर्वे आफ इण्डिया मैं राजस्थानी भाषा की कितनी बोलियां बताई है
?5


22. देवड़ा वटी जोकि मारवाड़ी बोली की एक शाखा है जिस-जिस का संबंध किस जिले से है
? सिरोही

23. क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान की सबसे बड़ी बोली और जनसंख्या की दृष्टि से राजस्थान की सबसे बड़ी बोली है
? क्षेत्रफल की दृष्टि से- मारवाड़ी
?जनसंख्या की दृष्टि से-ढूढाड़ी


24. मारवाड़ी भाषा की उपबोलियाँ बताइये ?
उत्तर- थली, ढ़टकी, माहेश्वरी, ओसवाली, बीकानेरी, नागौरी, गोड़वाड़ी आदि।


25. राजस्थानी भाषा का उद्भव कब हुआ ?
उत्तर- 9वी सदी से 13वी सदी के बीच।


26. मारवाड़ी बोली का उल्लेख कोनसे ग्रन्थ में हुआ है?
उत्तर- मारवाड़ी बोली का उल्लेख कुवलयमाला (778ई.) में मरुभाषा के नाम से हुआ है। जिसके रचियता उद्योतन सूरी है। इस ग्रन्थ में भारत की 18 भाषाओं में मरुभाषा का भी उल्लेख है।


27. नरोत्तम स्वामी द्वारा राजस्थानी बोली का वर्गीकरण बताइये ?
उत्तर- राजस्थान की बोली को चार भागों में विभाजित किया है।
(1.) पश्चिमी राजस्थानी या मारवाड़ी
(2.) पूर्वी राजस्थानी या ढूंढाड़ी
(3.)उत्तरी राजस्थानी
(4.)दक्षिणी राजस्थानी या मालवी


28. पं. मोतीलाल जी मेनारिया के अनुसार राजस्थान की बोलिया बताइये ?
उत्तर- मारवाड़ी- इसका प्राचीन नाम मरुभाषा है।


मेवाड़ी- यह मारवाड़ी बोली कि उपबोली है चित्तौड़गढ़ के कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति में लिखा है कि महाराणा कुम्भा (सं. 1490-1525)ने चार नाटक बनाये, जिनमे मारवाड़ी का भी प्रयोग किया है।


ढूंढाड़ी- सन्त दादू और उनके शिष्यों की रचनायें ढूंढाड़ी में ही है।
हाड़ौती, बागड़ी, मालवी, मेवाती, रांगड़ी, ब्रज।


29. मालवी बोली की उपबोली कौन-कौन सी है
उतर मावली बोली की उपबोली रागडी व निमाड़ी आदी है निमाड़ी को दक्षिणी राजस्थान के नाम से जाना जाता है


30. ढूंढाड़ी बोली कहां पर बोली जाती है
उतर ढूंढाड़ी बोली जयपुर तथा उसके आसपास क्षेत्र में बोली जाती है ढूंढाडी बोली के साहित्य स्वरूप को पिंगल कहा जाता है


31. ढूंढाड़ी बोली की उपबोली कौन-कौन सी हैं
उतर ढुढाडी की उप बोलियां राजावाटी तोरावाटी काठेडी चौरासी नागचोर हाडोती आती है

32. मेवाती बोली के बारे में समझाइए
उतर मेवाती बोली अलवर भरतपुर धौलपुर के कुछ क्षेत्रों में बोली जाती है यह बोली हिंदी तथा राजस्थानी के मध्य पुल का काम करती है चरण दाशी संप्रदाय की दयाबाई (दया बोध) सहजोबाई (सहज प्रकाश) की रचनाएं मेवाती बोली में की गई इस बोली का प्रमुख क्षेत्र अलवर भरतपुर को माना जाता है


33. मारवाड़ी बोली को समझाइए
उतर मारवाड़ी बोली का साहित्यक स्वरूप डिंगल कहलाता है यह बोली अरावली के पश्चिमी क्षेत्र में बोली जाती है साहित्य विस्तार की दृष्टि से सबसे समर्थ बोली है मारवाड़ी बोली कि कुछ उप बोलियां है


1 देवड़ा वाटी यह बोली सिरोही क्षेत्र में बोली जाती है
2 खेरवाड़ी यह बोली शाहपुरा भीलवाड़ा में बोली जाती है
3 गॉडवाड़ी बोली जालौर की आहोर तहसील वह बाली पाली में बोली जाती है
4 मेवाड़ी बोली उदयपुर चित्तौड़ राजसमंद नागौर में बोली जाती है
5 बागड़ी बोली डूंगरपुर बांसवाड़ा क्षेत्र में बोली जाती है*


जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने इसे भीली बोली कहा है अधिकांश राजस्थान में मारवाड़ी बोली बोली जाती है





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