प्रसिद्ध देशभक्त ,राजनितज्ञ और आधुनिक उत्तर प्रदेश के निर्माण की नींव रखने वाले पंडित गोविन्द वल्लभ पंत (Govind Ballabh Pant) का जन्म 30 अगस्त 1887 ईस्वी को अल्मोड़ा (उत्तराखंड) के निकट खूंट नामक गाँव में हुआ था | उनकी आरम्भिक शिक्षा अपने नानाजी की देख-रेख में अल्मोड़ा में हुयी | बाद में छात्रवृति लेकर उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की | इलाहाबाद में आचार्य नरेंद्र देव ,डा.कैलाश नाथ काटजू आदि उनके सहपाठी थे | वही से पंत जी सार्वजनिक कार्यो में रूचि लेने लगे |
1905 की बनारस कांग्रेस में वे स्वयंसेवक के रूप में सम्मिलित हुए थे| वहा अध्यक्ष गोपाल कृष्ण गोखले के भाषण का उन पर बहुत प्रभाव पड़ा | वकालत की परीक्षा पास करने के बाद पंत जी (Govind Ballabh Pant) ने कुछ दिन अल्मोड़ा और रानीखेत में वकालत की , फिर काशीपुर (नैनीताल) आ गये | यहा उनके वकालत तो चली ही , सार्वजनिक कार्यो में भी वो अधिक सक्रिय हो गये | आपके प्रयत्न से “कुमाऊँ परिषद” की स्थापना हुयी | इसी परिषद के प्रयत्न से 1921 में कुमाऊँ म प्रचलित “कुली बेगार” की अपमानजनक प्रथा का अंत हुआ |
“रोलेट एक्ट” के विरोध में जब गांधीजी ने 1920 में असहयोग आन्दोलन आरम्भ किया तो पन्त जी ने अपनी चलती वकालत छोड़ दी | वे नैनीताल जिला बोर्ड के तथा काशीपुर नगर पालिका के अध्यक्ष चुने गये | स्वराज्य पार्टी के उम्मीदवार के रूप में 1923 में पंत जी (Govind Ballabh Pant) ने उत्तर प्रदेश विधान परिषद के चुनाव में सफल हुए और स्वराज्य पार्टी के नेता के रूप में वहा उन्होंने अपनी धाक जमा दी |
*कार्यक्षेत्र
1909 में गोविन्द बल्लभ पंत को क़ानून की परीक्षा में विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम आने पर 'लम्सडैन' स्वर्ण पदक प्रदान किया गया।
1910 में गोविन्द बल्लभ पंत ने अल्मोड़ा में वकालत आरम्भ की। अल्मोड़ा के बाद पंत जी ने कुछ महीने रानीखेत में वकालत की, फिर पंत जी वहाँ से काशीपुर आ गये। उन दिनों काशीपुर के मुक़दमें एस.डी.एम. (डिप्टी कलक्टर) की कोर्ट में पेश हुआ करते थे। यह अदालत ग्रीष्म काल में 6 महीने नैनीताल व सर्दियों के 6 महीने काशीपुर में रहती थी। इस प्रकार पंत जी का काशीपुर के बाद नैनीताल से सम्बन्ध जुड़ा।
सन 1912-13 में पंतजी काशीपुर आये उस समय उनके पिता जी 'रेवेन्यू कलक्टर' थे। श्री 'कुंजबिहारी लाल' जो काशीपुर के वयोवृद्ध प्रतिष्ठित नागरिक थे, का मुक़दमा पंत' जी द्वारा लिये गये सबसे 'पहले मुक़दमों' में से एक था। इसकी फ़ीस उन्हें 5 रु0 मिली थी।
1909 में पंतजी के पहले पुत्र की बीमारी से मृत्यु हो गयी और कुछ समय बाद पत्नी गंगादेवी की भी मृत्यु हो गयी। उस समय उनकी आयु 23 वर्ष की थी। वह गम्भीर व उदासीन रहने लगे तथा समस्त समय क़ानून व राजनीति को देने लगे। परिवार के दबाव पर 1912 में पंत जी का दूसरा विवाह अल्मोड़ा में हुआ। उसके बाद पंतजी काशीपुर आये। पंत जी काशीपुर में सबसे पहले 'नजकरी' में नमक वालों की कोठी में एक साल तक रहे।
*स्वतन्त्रता संघर्ष में
दिसम्बर 1921 में वे गान्धी जी के आह्वान पर असहयोग आन्दोलन के रास्ते खुली राजनीति में उतर आये।
9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड करके उत्तर प्रदेश के कुछ नवयुवकों ने सरकारी खजाना लूट लिया तो उनके मुकदमें की पैरवी के लिये अन्य वकीलों के साथ पन्त जी ने जी-जान से सहयोग किया। उस समय वे नैनीताल से स्वराज पार्टी के टिकट पर लेजिस्लेटिव कौन्सिल के सदस्य भी थे। 1927 में राम प्रसाद 'बिस्मिल' व उनके तीन अन्य साथियों को फाँसी के फन्दे से बचाने के लिये उन्होंने पण्डित मदन मोहन मालवीय के साथ वायसराय को पत्र भी लिखा किन्तु गान्धी जी का समर्थन न मिल पाने से वे उस मिशन में कामयाब न हो सके। 1928 के साइमन कमीशन के बहिष्कार और 1930 के नमक सत्याग्रह में भी उन्होंने भाग लिया और मई 1930 में देहरादून जेल की हवा भी खायी।
*मुख्यमन्त्री कार्यकाल
17 जुलाई 1937 से लेकर 2 नवम्बर 1939 तक वे ब्रिटिश भारत में संयुक्त प्रान्त अथवा यू0पी0 के पहले मुख्य मन्त्री बने। इसके बाद दोबारा उन्हें यही दायित्व फिर सौंपा गया और वे 1 अप्रैल 1946 से 15 अगस्त 1947 तक संयुक्त प्रान्त (यू0पी0) के मुख्य मन्त्री रहे। जब भारतवर्ष का अपना संविधान बन गया और संयुक्त प्रान्त का नाम बदल कर उत्तर प्रदेश रखा गया तो फिर से तीसरी बार उन्हें ही इस पद के लिये सर्व सम्मति से उपयुक्त पाया गया। इस प्रकार स्वतन्त्र भारत के नवनामित राज्य के भी वे 26 जनवरी 1950 से लेकर 27 दिसम्बर 1954 तक मुख्य मन्त्री रहे।
संक्षिप्त परिचय : -
दिसम्बर 1920 में 'कुमाऊं परिषद' का 'वार्षिक अधिवेशन' काशीपुर में हुआ। जहां 150 प्रतिनिधियों के ठहरने की व्यवस्था काशीपुर नरेश की कोठी में की गई। पंतजी ने बताया कि परिषद का उद्देश्य कुमाऊं के कष्टों को दूर करना है न कि सरकार से संघर्ष करना।
23 जुलाई, 1928 को पन्त जी 'नैनीताल ज़िला बोर्ड' के चैयरमैन चुने गये। 1920-21 में भी चैयरमैन रह चुके थे।
पंत जी का राजनीतिक सिद्धान्त था कि अपने क्षेत्र की राजनीति की कभी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। 1929 में गांधी जी कोसानी से रामनगर होते हुए काशीपुर भी गये। काशीपुर में गांधी जी लाला नानकचन्द खत्री के बाग़ में ठहरे थे। पंत जी ने काशीपुर में एक चरखा संघ की विधिवत स्थापना की।
10 अगस्त, 1931 को भवाली में उनके सुपुत्र श्रीकृष्ण चन्द्र पंत का जन्म हुआ।
नवम्बर, 1934 में गोविन्द बल्लभ पंत 'रुहेलखण्ड-कुमाऊं' क्षेत्र से केन्द्रीय विधान सभा के लिए निर्विरोध चुन लिये गये।
17 जुलाई, 1937 को गोविन्द बल्लभ पंत 'संयुक्त प्रान्त' के प्रथम मुख्यमंत्री बने जिसमें नारायण दत्त तिवारी संसदीय सचिव नियुक्त किये गये थे।
पन्त जी 1946 से दिसम्बर 1954 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। पंत जी को भूमि सुधारों में पर्याप्त रुचि थी। 21 मई, 1952 को जमींदारी उन्मूलन क़ानून को प्रभावी बनाया। मुख्यमंत्री के रूप में उनकी विशाल योजना नैनीताल तराई को आबाद करने की थी।
पंत जी एक विद्वान क़ानून ज्ञाता होने के साथ ही महान नेता व महान अर्थशास्त्री भी थे।I miss you
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Unki mata ka name
his date of birth is wrong
MARA NAME CEYA HA
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Ajay
Pandit govind balladh pant ka birthday Govind Ballabh Pant ka Janm Kaha hua
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Unki mata ka kya name hai
पंडित गोविंद बल्लभ पर हिंदी में निबंध
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Padit Govind balb pant ke bume ko bachne ke liye yogdan par nibndh
Hindi mein nibandh Kaise likhen
उनके मृत्यु कब हुई थी
Main om prakash apna kaam ko ker liya hai
Aadha madhyapradesh mein AVN aadat Pradesh mein banaa hua hai
Pandit govind balladh pant kahn ke rehne wale thea?
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Aap na is ma upsahar q nahi diya hai vo to jaruri tha and very nice