Bharat Me Maurya Sankhya भारत में मौर्य संख्या

भारत में मौर्य संख्या



GkExams on 12-05-2019

कुशवाहा जाति खुद को चन्द्रगुप्त मौर्य का वंशज मानती है, तो उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया। उन्होंने यह भी कहा कि चन्द्रगुप्त मौर्य के बचपन और पूवर्जों के सम्बन्ध में बहुत कम जानकारी हमें उपलब्ध है। चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहण की तिथि को लेकर भी विवाद है। इसी लेख में पटना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एस.एस.सिंह को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि चन्द्रगुप्त मौर्य किस जाति के थे, इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। केवल यह जानकारी मिली है कि वे निम्न जाति में जन्मे थे।



उपर्युक्त दोनों इतिहासकारों के विचारों को पढऩे से प्रतीत होता है कि उन्हें जानकारियों की कमी है। इस दिशा में पर्याप्त शोध नहीं हुए हैं। चन्द्रगुप्त मौर्य के पूर्वज कौन थे तथा उनके बाद की पीढिय़ाँ कौन थीं, यह शोध का विषय है। यदि शोध के द्वारा किसी ने यह प्रमाणित किया है कि कुशवाहा जाति के पूर्वज मौर्य वंश के शासक थे तो उसे प्रकाशित किया जाना चाहिए। यदि पर्याप्त शोध नहीं हुआ है, तो इस जाति के इतिहासकारों का कर्तव्य है कि इस विषय में शोध करें तथा प्रमाण के साथ तथ्य प्रस्तुत करें। इतिहास का विद्यार्थी न होने के बावजूद, सतही तौर पर मुझे जो दिखाई देता है उससे यही प्रतीत होता है कि कुशवाहा जाति के इस दावे को सिरे से ख़ारिज नहीं किया जा सकता। क्षेत्र-अध्ययन किसी भी परिकल्पना को सिद्ध करने की सटीक एवं वैज्ञानिक पद्धति है। यदि हम मौर्य साम्राज्य से जुड़े या बुद्धकाल के प्रमुख स्थलों का अवलोकन करें तो पायेगें कि इन क्षेत्रों में कुशवाहा जाति की खासी आबादी है। 1908 में किये गए एक सर्वेक्षण में भी यह बात सामने आई थी कि कुम्हरार (पाटलिपुत्र), जहाँ मौर्य साम्राज्य के राजप्रासाद थे, उससे सटे क्षेत्र में कुशवाहों के अनेक गाँव ,यथा कुम्हरार खास, संदलपुर, तुलसीमंडीए रानीपुर आदि हैं, तथा तब इन गाँवों में 70 से 80 प्रतिशत जनसँख्या कुशवाहा जाति की थी। प्राचीन साम्राज्यों की राजधानियों के आसपास इस जाति का जनसंख्या घनत्व अधिक रहा है। उदन्तपुरी (वर्तमान बिहारशरीफ शहर एवं उससे सटे विभिन्न गाँव) में सर्वाधिक जनसंख्या इसी जाति की है। राजगीर के आसपास कई गाँव (यथा राजगीर खास, पिलकी महदेवा, सकरी, बरनौसा, लोदीपुर आदि) भी इस जाति से संबंधित हैं। प्राचीन वैशाली गणराज्य की परिसीमा में भी इस जाति की जनसंख्या अधिक है। बुद्ध से जुड़े स्थलों पर इस जाति का आधिक्य है यथा कुशीनगर, बोधगया, सारनाथ आदि। नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों के आसपास भी इस जाति के अनेक गाँव हैं यथा कपटिया, जुआफर, कपटसरी, बडगाँव, मोहनबिगहा आदि। उपर्युक्त उदाहरणों से यह प्रतीत होता है कि यह जाति प्राचीनकाल में शासक वर्ग से संबंधित थी तथा नगरों में रहती थी। इनके खेत प्राय: नगरों के नज़दीक थे अत: नगरीय आवश्यकता की पूर्ति हेतु ये कालांतर में साग-सब्जी एवं फलों की खेती करने लग। आज भी इस जाति का मुख्य पेशा साग-सब्जी एवं फलोत्पादन माना जाता है। इस जाति की आर्थिक-सामाजिक परिस्थिति में कब और कैसे गिरावट आई, यह भी शोध का विषय है। राजपूत और कायस्थ जातियों का उदय 1000 ई. के आसपास माना जाता है। राजपूत, मध्यकाल में शासक वर्ग के रूप में स्थापित हुए तथा क्षत्रिय कहलाए। प्रश्न उठता है राजपूतों के उदय से पूर्व और विशेषकर ईसा पूर्व काल में क्षत्रिय कौन थे? स्पष्ट है वर्तमान दलित या पिछड़ी जातियाँ ही तब क्षत्रिय रहीं होंगी। इतिहास बताता है कि जिस शासक वर्ग ने ब्राह्मणों को सम्मान दिया तथा उन्हें आर्थिक लाभ पहुँचाया, वे क्षत्रिय कहलाए तथा जिसने उनकी अवहेलना की या विरोध किया, शूद्र कहलाये। यदि आज इन जातियों द्वारा अपनी क्षत्रिय विरासत पर दावा किया जा रहा है तो तथाकथित उच्च जातियों के लोगों को आश्चर्य क्यों होना चाहिए?



जातिगत पहचान और आत्मगौरव







इस लेख में पिछड़ी या दलित जातियों को क्षत्रिय साबित करने का यह अर्थ नहीं है कि मैं हिन्दू धर्म की वर्णाश्रम व्यवस्था में विश्वास रखता हूँ तथा किसी जाति को क्षत्रिय साबित कर उसे ‘ऊंचा दर्जा’ देना चाहता हूँ। मेरा उद्देश्य यह स्पष्ट करना है कि कोई भी जाति या वर्ण जन्म से आज तक शूद्र के रूप में मौजूद नहीं है। आर्थिक एवं राजनैतिक स्थिति में बदलाव के साथ उसकी सामाजिक हैसियत में भी बदलाव हुए हैं। ऐसी स्थिति में आज हम जिस भी जाति या वर्ण में पैदा हुए हैं, उसके लिए हममें हीनताबोध क्यों पैदा किया जाता है? जाति को आधार बनाकर हमारे आत्मगौरव एवं आत्मसम्मान को कुचलने की कोशिश क्यों की जाती है? यदि ऐसा किया जाता है तो हम दो तरीकों से उसका जबाव दे सकते हैं। एक तो ‘संस्कृतिकरण’ के जरिए अर्थात खुद को अपनी प्राचीन संस्कृति के उज्ज्वलतम अंश से जोड़कर। दूसरा,अपनी वर्तमान पहचान पर गर्व करके। दूसरे तरीके का बड़ा अच्छा उदाहरण चमार जाति के द्वारा न सिर्फ आधुनिक काल में वरन् मध्यकाल में भी पेश किया गया है। पंजाब में अनेक युवक, जो इस जाति से सम्बद्ध हैं, आज गर्वपूर्वक अपने मोटरबाइक पर अपनी जाति का इजहार करते हुए लिख रहे हैं ‘हैण्डसम चमार’ या ‘चमरा दा पुत्तर’। मध्यकाल में रैदास अपनी जातिगत पहचान के प्रति न सिर्फ मुखर रहे (कह रैदास खलास चमारा) वरन् उसे आत्मगौरव का विषय भी बनाया।



यह आलेखए कुशवाहा जाति के मौर्यवंशीय दावे पर जो प्रश्न खड़े किये गए हैं, उन पर विचार करते हुए मूलत: यह स्पष्ट करने का प्रयास है कि हम चाहे जिस भी जाति में जन्म लें, आत्मगौरव का भाव बनायें रखें, उसके लिए अपने भीतर या बाहर चाहे जैसे भी तर्क गढऩे पड़ें। जाति भले न बदली जा सके, विश्वास बदला जा सकता है।




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Comments Arti devi on 18-07-2023

Mourya log kis kast me aatye hai aur unka vaid kaun sa hota hai

Ramu maurya on 07-08-2022

Mauryavanshi kon se kast me ate ha

Anutesh maurya on 13-10-2021

Ma hi to pichala janam ma chandragupt maurya ta


RITIRANJAN MOURYA on 24-02-2021

KUSHWAHA JATI KE ALL TITLE.

Ram Bhajan Maurya on 12-05-2019

Bharat desh men Maurya ki jansnkhya kitni had? Aur maurya kaun kaun se desh men had?

vimlesh maurya on 07-09-2018

maurya ka gotra kya hai





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