PathyPustak Ka Parichay पाठ्यपुस्तक का परिचय

पाठ्यपुस्तक का परिचय



Pradeep Chawla on 10-09-2018


पाठ्यपुस्तक में जकड़ी हमारी शिक्षा, एक अदद निर्धरित पुस्तक के अभाव से प्रभावित होती है? दरअसलहोती है, क्योंकि हमारी शिक्षा प्रणाली पर पाठ्यपुस्तकों का वर्चस्व बहुत गहरा है।



सारी दुनिया में शिक्षा में पाठ्यपुस्तकों की भूमिका और उनके इस्तेमाल करने का ढंग एक-सा नहीं है। कुछ देशों में सरकार ही पाठ्यपुस्तकें छापती है, तो कुछ देशों में सरकारी शिक्षा विभाग केवल सुझाव देते हैं कि बाजार में उपलब्ध् पाठ्यपुस्तकों में से कौन-सी किताबें उपयुक्त हैं। कई देशों में शिक्षकों को पाठ्यपुस्तक चुनने की छूट होती है या फ़िर शिक्षक केवल एक पाठ्यपुस्तक की मदद से नहीं पढ़ाते।



हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी अप्रैल के महीने में सरकारी पाठ्यपुस्तकों के बाजार में उपलब्ध् न होने की खबरें इलैक्ट्रॉनिक मीडिया और अखबारों में उछलती रहेंगी । ऐसी खबरों को छापने से पहले मीडिया किस सीमा तक इनकी तह में जाने और छानबीन करने की कोशिश करता है, यह बहस का एक अलग मुद्दा है। पर पाठ्यपुस्तकों के अभाव में शिक्षकों, स्कूली प्रशासन, मीडिया और अभिभावकों की जैसी प्रतिक्रियाएँ उभरकर आती हैं, उनको देखते हुए ऐसा लगता है,जैसे स्कूली शिक्षण प्रक्रिया पर संकट छा गया है।







क्या वास्तव में पाठ्यपुस्तकों का संकट शिक्षा पर संकट होता है? क्या वास्तव में हमारी शिक्षा प्रणाली पर पाठय् पुस्तकों का वर्चस्व बहुत गहरा है लेख एक ही पाठ्यपुस्तक से नियंत्रित शिक्षा शास्त्र और उसी पर आधारितछात्राओं , शिक्षक और अंतत: समाजके लिए हितकारी नहीं है। ऐसी शिक्षा प्रणाली न केवलसीखने की अवधारणा के प्रतिकूल है बल्कि सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में छात्र-छात्राओं की भूमिका को नकारती है और शिक्षकों के अशक्तिकरण को बढ़ावा देती है।







कई देशों में शिक्षक एक ही पुस्तक के विपरीत कई पुस्तकों और शिक्षण-सामग्री का इस्तेमाल करते हैं। वे स्वयं तय करते हैं कि कब किस किताब और शिक्षण सामग्री का इस्तेमाल किया जाए। कुछ देशों में सरकारी बोर्ड व इस्तेमाल किए जाने की बाध्यता होती है। भारत भी कमोबेश इस अंतिम श्रेणी के देशों में से है।



हमारी शिक्षा प्रणाली पर पाठ्यपुस्तकें इस कदर हावी हैं कि न केवल अभिभावकों व आम जनों के बीच बल्कि स्कूल प्रणाली से जुड़े अधिकांश अध्यापकों और प्रशासन के लिए भी किताबें पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या का पर्यायके मानस में यह बात गहरे पैठ चुकी है कि एक अदद निर्धारित को आद्योपांत पूरा करवा देने से और उसके प्रश्नों के उत्तर रटवा देने से किसी विषय की समझ बन जाती है और `पढ़ाई पूरी´ हो जाती है। आखिर पाठ्यपुस्तक केंद्रित शिक्षा हमें इतनी अनिवार्य क्यों लगती है?



इस सोच का संबंध् कुछ हद तक स्कूल के अंतिम वर्षों की मूल्यांकन पद्दति से है। दसवीं और बारहवीं की परीक्षाओं में जिस किस्म के प्रश्न पूछे जाने की परंपरा बनी हुई है, वह बच्चों से केवल इतनी ही अपेक्षा करती है कि वे बंधे-बंधाये ढर्रे के प्रश्नों के बने-बनाए उत्तर लिख दें। ऐसे प्रश्नों में छात्र -छात्राओं की समझ को आँकने की कोई खास गुंजाइश नहीं होती। इन परीक्षाओं का इतना ज्यादा हौवा है कि बाकी स्कूली वर्षों की पढ़ाई भी इनसे प्रभावित और इनके अनुरूप होती है।







चूँकि विभिन्न राज्य बोर्डों का भौगोलिक दायरा काफी विस्तृत होता है, इसलिए समान पाठ्यक्रम और समान पाठ्यपुस्तक को लागू करने के अलावा और किसी विकल्प की कल्पना भी नहीं की जाती। फलस्वरूप पहली कक्षा से ही पढ़ाने के तौर-तरीकों , पाठ्यपुस्तक का स्वरूप और मूल्यांकन पद्दति बोर्ड की परीक्षाओं के अनुरूप ढलने लगते हैं। यहाँ तक कि निजी प्रकाशनों से छपने वाली पाठ्यपुस्तकों का भी एन.सी.ई.आर. टी. के पाठ्यक्रम पर आधरित होना भी आवश्यक हो जाता है और यही इन किताबों के `वैध´होने और स्कूलों द्वारा स्वीकृत किए जाने की पहली शर्त होती है।




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Comments Pradnya on 31-07-2020

पाठ्यपुस्तक चे विश्लेषण अंतरंग बहिरंग

Amrita kumari on 12-05-2019

Pathya pustak kya hai?

Amlesh on 15-01-2019

Pathay pustak kyon essential h


Anil senwrite on 02-01-2019

Write the description of type of text books





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