रिपोर्ट के अनुसार बिहार में प्रारंभिक स्कूली शिक्षा की दिशा तो ठीक हुई है, लेकिन दशा अभी भी अच्छी नहीं है।
रिपोर्ट कहती है कि वहां शिक्षकों और स्कूल-भवन संबंधी बुनियादी जरूरतों का अभाव सबसे बड़ी रुकावट है। इस सर्वेक्षण रिपोर्ट को नॉबेल पुरस्कार प्राप्त अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने पटना में जारी किया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के स्कूलों में शिक्षकों के पढ़ाने और छात्रों के सीखने का स्तर अभी भी नीचे है, लेकिन कुछ सरकारी योजनाओं के कारण आरंभिक शिक्षा के प्रति रुझान बढ़ा है।
सर्वेक्षण : अमर्त्य सेन की ओर से स्थापित गैर सरकारी संस्था प्रतीचि (इंडिया) ट्रस्ट और पटना की संस्था 'आद्री ' ने संयुक्त रूप से पिछले साल राज्य के पांच जिलों में कुल तीस गांवों में एक सर्वेक्षण किया।
मंगलवार को जारी 76 पृष्ठों की इस रिपोर्ट में आंकड़ों की भरमार है, लेकिन निष्कर्ष में चार मुख्य बातें कही गईं हैं।
पहली ये कि सरकारी प्राइमरी स्कूलों में इन्फ्रास्ट्रकचर यानी बुनियादी जरूरतों वाले ढांचे का घोर अभाव यहां स्कूली शिक्षा की स्थिति को कमजोर बनाए हुए है। दूसरी बात ये कि शिक्षकों और खासकर योग्य शिक्षकों की अभी भी भारी कमी है।
रिपोर्ट के अनुसार जो शिक्षक हैं भी, उनमें से अधिकांश स्कूल से अक्सर अनुपस्थित पाए जाते हैं। निरीक्षण करने वाले सरकारी तंत्र और निगरानी करने वाली विद्यालय शिक्षा समिति के निष्क्रिय रहने को इस बदहाल शिक्षा-व्यवस्था का तीसरा कारण माना गया है।
रिपोर्ट का एक निष्कर्ष ये भी है कि बिहार के स्कूलों में शिक्षकों के पढ़ाने और बच्चों के सीखने का स्तर, गुणवत्ता के लिहाज से बहुत नीचे है।
अमर्त्य सेन ने अपने भाषण में भी इस स्थिति पर चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा, 'एक तरफ बिहार का गौरवशाली शैक्षणिक अतीत है और दूसरी तरफ आज इस राज्य का शैक्षणिक पिछड़ापन। ये सचमुच बहुत कचोटने वाला विरोधाभास है।'
रुझान बढ़ा : मौजूदा राज्य सरकार के उन प्रयासों को अमर्त्य सेन ने सराहनीय बताया, जिनकी वजह से बच्चों में स्कूल जाने के प्रति रुझान बढ़ा है। इसके लिए उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल को पिछली राज्य सरकारों से कुछ अलग और उपयोगी बताया।
पिछले एक दशक में बिहार में साक्षरता वृद्धि की दर 17 प्रतिशत होने को रिपोर्ट में शुभ संकेत माना गया है। लेकिन इस साक्षरता वृद्धि के बावजूद बिहार में साक्षरता का प्रतिशत 63.8 तक ही पहुंच पाया है, जो देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे कम है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार सरकार वयस्क साक्षरता, खासकर स्त्री-साक्षरता बढ़ाकर प्राथमिक शिक्षा के प्रति ग्रामीण जनमानस में ललक पैदा कर सकती है।
विश्लेषक मानते हैं कि राज्य में प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता पर जाली या परीक्षा में नकल से प्राप्त डिग्री-सर्टिफिकेट वाले अयोग्य शिक्षकों की नियुक्ति का ग्रहण लग चुका है।
Bihar me ECCE se realated chunautiya kya hai
Sarkari school teacher ki kami kyo hai?
Bihar me शिक्षा की चुनौती
बिहार में शिक्षा की चुनौती
Bihar Mai Balyabastha sicha ki chunauti kya hai
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प्राथमिक शिक्षा के विभिन्न समस्याओं की विवेचना कीजिए
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