Godan Ke Stree Patra गोदान के स्त्री पात्र

गोदान के स्त्री पात्र



Pradeep Chawla on 14-10-2018


हर बड़े रचनाकार के साथ मुख्यत: उसकी एक कृति का नाम जुड़ा होता है। वह कृति एक तरह से उस रचनाकार की, उसकी संवेदना, उसके विचार, उसके सम्पूर्ण कृतित्व की प्रतिनिधि, या यूँ कहें, पर्याय हो जाती है। तुलसीदास के साथ ‘रामचरितमानस’, कालिदास के साथ ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’, शेक्सपियर के साथ ‘हैमलेट’, टॉलस्टॉय के साथ ‘कामायनी’, टैगोर के साथ ‘गीतांजली’, प्रसाद के साथ ‘कामायनी’ और प्रेमचंद के साथ ‘गोदान’ का नाम इसी तरह से जुड़ा है। ‘गोदान’ प्रेमचंद की सर्वोत्तम कृति और हिन्दी के उपन्यास-साहित्य के विकास का उज्जवलतम प्रकाश-स्तंभ है। सच्चे अर्थों में यह उपन्यास भारतीय ग्राम्यजीवन और कृषि संस्कृति का ‘महाकाव्य’ है जिसका नायक है होरी और धनिया इसकी नायिका।



इसमें कोई दो राय नहीं कि होरी ‘गोदान’ की ‘आत्मा’ है लेकिन प्रेमचंद ने उस ‘आत्मा’ की ‘काया’ धनिया के सहारे ही गढ़ी है। ‘गोदान’ में प्रेमचंद जो होरी के माध्यम से नहीं कह पाए उसे उन्होंने धनिया के द्वारा अभिव्यक्ति दी है। अगर कहा जाय कि धनिया गोदान की ‘पूर्णता’ है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। स्वयं होरी के शब्दों में “धनिया सेवा और त्याग की देवी जबान की तेज पर मोम जैसा हृदय पैसे-पैसे के पीछे प्राण देने वाली, पर मर्यादारक्षा के लिए अपना सर्वस्व होम कर देने को तैयार” रहने वाली नारी है।



धनिया सच्चे अर्थों में ‘अर्द्धांगिनी’ है। चाहे जो कुछ हो जाय, वह होरी का साथ छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। उसमें ना तो होरी जैसी व्यवहारकुशलता है और ना वह लल्लो-चप्पो ही करना जानती है, पर अपने संकल्पित आचरण द्वारा वह होरी की सहायता करती है, उसे डगमगाने से बचाती है, ढाढ़स देती है। हाँ, सुनाती भी खूब है। आवेग में वह कभी-कभी अदूरदर्शितापूर्ण कार्य कर जाती है, पर तत्कालीन सामंती परिवेश में भी वह निर्भीक और निडर है, ये बड़ी बात है। उसमें प्रतिशोध-भावना है, जो होरी में नहीं है, पर कोमल भी वह उतनी ही है। तभी तो किसी की पीड़ा देख उसका आक्रोश दब जाता है।



‘गोदान’ में भारतीय किसान के संपूर्ण जीवन का जीता-जागता चित्र उपस्थित किया गया है। उसकी गर्दन जिस पैर के नीचे दबी है उसे सहलाता, क्लेश और वेदना को झुठलाता, ‘मरजाद’ की झूठी भावना पर गर्व करता, ऋणग्रस्तता के अभिशाप में पिसता, तिल-तिल शूलों भरे पथ पर आगे बढ़ता, भारतीय समाज का मेरुदंड यह किसान कितना विवश और जर्जर हो चुका है, यह गोदान में प्रत्यक्ष देखने को मिलता है। होरी उसी भारतीय किसान का प्रतिनिधि चरित्र है। उसे हम पग-पग पर परिस्थितियों से दबते और समझौतों में ढलते देख सकते हैं लेकिन धनिया ऐसी कतई नहीं। वह जिस बात को ठीक समझती है, उसे जात-बिरादरी, समाज, कानून आदि की परवाह किए बिना करती है। कभी-कभी तो वह अपने आचरण द्वारा गाँव की ‘नाक’ तक रख लेती है।



एक नारी की भाँति धनिया मातृ-भावना और स्नेह से परिपूर्ण है। वह होरी की ऐसी ‘परछाई’ है जो उसकी ‘रिक्तता’ को भर देती है। होरी अगर भारतीय किसान का प्रतीक है तो धनिया कृषक-पत्नी की प्रतिनिधि। सच तो ये है कि धनिया के बिना ना तो किसी ‘होरी’ की परिकल्पना की जा सकती है, ना किसी किसान के घर की और ना ही भारत के ग्रामीण जीवन की। कुल मिलाकर, अगर धनिया नहीं होती तो प्रेमचंद को पूर्णता देनेवाला ‘गोदान’ भी ना होता। अगर होता भी तो वो नहीं होता जो अब है। इस तरह कहना गलत ना होगा कि प्रेमचंद, गोदान और होरी – तीनों की ‘पूर्णता’ है धनिया।




सम्बन्धित प्रश्न



Comments



नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें Culture Current affairs International Relations Security and Defence Social Issues English Antonyms English Language English Related Words English Vocabulary Ethics and Values Geography Geography - india Geography -physical Geography-world River Gk GK in Hindi (Samanya Gyan) Hindi language History History - ancient History - medieval History - modern History-world Age Aptitude- Ratio Aptitude-hindi Aptitude-Number System Aptitude-speed and distance Aptitude-Time and works Area Art and Culture Average Decimal Geometry Interest L.C.M.and H.C.F Mixture Number systems Partnership Percentage Pipe and Tanki Profit and loss Ratio Series Simplification Time and distance Train Trigonometry Volume Work and time Biology Chemistry Science Science and Technology Chattishgarh Delhi Gujarat Haryana Jharkhand Jharkhand GK Madhya Pradesh Maharashtra Rajasthan States Uttar Pradesh Uttarakhand Bihar Computer Knowledge Economy Indian culture Physics Polity

Labels: , , , , ,
अपना सवाल पूछेंं या जवाब दें।






Register to Comment