Bhopal Gas ट्रेजेडी Case Study भोपाल गैस ट्रेजेडी केस स्टडी

भोपाल गैस ट्रेजेडी केस स्टडी



GkExams on 22-11-2018

ठीक 31 साल पहले दो-तीन दिसंबर 1984 की दरमियानी रात भोपाल में मौत का कहर बरसाने वाली रात थी। तब से लेकर अब तक इस भीषण भोपाल गैस त्रासदी को गुजरे हुए 31 वर्ष हो गए हैं, लेकिन आज भी इस इलाके में जाने पर लगता है मानों कल की ही बात हो. आज 31 साल बाद भी हर सुबह दुर्घटना वाले दिन की अगली सुबह ही नजर आती है. यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से ज़हरीले गैस रिसाव और रसायनिक कचरे के कहर का प्रभाव आज भी बना हुआ है. बच्चे अपंग होते रहे, मां के दूध में ज़हरीले रसायन पाये जाने की बात भी सामने आई, चर्म रोग, दमा, कैंसर और न जाने कितनी बीमारियां धीमा ज़हर बनकर आज भी गैस प्रभावितों को अपनी चपेट में ले रही हैं. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आज से 31 वर्ष पहले हुए दुनिया के सबसे बड़े औद्योगिक हादसे को लोग अभी तक नहीं भूल पाए हैं.
क्या थी त्रासदी :- मध्य प्रदेश के भोपाल शहर मे 2-3 दिसम्बर सन् 1984 की रात भोपाल वासियों के लिए काल की रात बनकर सामने आई। इस दिन एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड, या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है. 2-3 दिसम्बर 1984 को युनियन कार्बाइड कारखाने से अकस्मात मिथाइल आइसोसायनाईट अन्य रसायनों के रिसाव होने से कई जाने गईं थी. इस त्रासदी को 31 साल पूरे होने आए हैं, उस त्रासदी के वक्त जो जख्म यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकली जहरीली हत्यारी गैस ने दिए थे वह आज भी ताजा हैं. हजारों लोगों को आधी रात हत्यारी गैस ने मौत की नींद सुला दिया, सैंकड़ो को जानलेवा बीमारी के आगोश में छोड़ गई यह जहरीली गैस. आज भी गैस के प्रभाव उन लोगों में साफ देखे और महसूस किए जा सकते हैं. उनकी यादों में वह आधी रात दहशत और दर्द की काली स्याही से इतिहास बनकर अंकित हो गई है. उसे न अब कोई बदल सकता है और न ही मिटा सकता.
पीछा छोड़ रहा जहर :- भोपाल गैस त्रासदी के 2 साल बाद भी यूनियन कार्बाइड का जहरीला प्रदूषण पीछा नहीं छोड़ रहा है। सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरंमेंट द्वारा किए गए परीक्षण में इस बात की पुष्टि हुई है कि फैक्ट्री और इसके आसपास के 3 किमी क्षेत्र के भूजल में निर्धारित मानकों से 40 गुना अधिक जहरीले तत्व मौजूद हैं। मध्य प्रदेश प्रदूषण बोर्ड के अलावा कई सरकारी और ग़ैरसरकारी एजेंसियों ने पाया है कि फैक्ट्री के अंदर पड़े रसायन के लगातार ज़मीन में रिसते रहने के कारण इलाक़े का भूजल प्रदूषित हो गया है. कारखाने के आस-पास बसी लगभग 17 बस्तियों के ज़्यादातर लोग आज भी इसी पानी के इस्तेमाल को मजबूर हैं. एक सर्वेक्षण के मुताबिक़ इसी इलाक़े में रहने वाले कई लोग शारीरिक और मानसिक कमजोरी से पीड़ित है. गैस पीड़ितों के इलाज और उन पर शोध करने वाली संस्थाओं के मुताबिक़ लगभग तीन हज़ार परिवारों के बीच करवाए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि इस तरह के 141 बच्चे हैं जो या तो शारीरिक, मानसिक या दोनों तरह की कमजोरियों के शिकार हैं कई के होंठ कटे हैं, कुछ के तालू नहीं हैं या फिर दिल में सुराख हैं, इनमें से काफ़ी सांस की बीमारियों के शिकार हैं. दूसरी और इसे एक विडम्बना ही कहेंगे कि अब तक किसी सरकारी संस्था ने कोई अध्ययन भी शुरू नहीं किया है या न ये जानने की कोशिश की है कि क्या जन्मजात विकृतियों या गंभीर बीमारियों के साथ पैदा हो रही ये पीढियां गैस कांड से जुड़े किन्ही कारणों का नतीजा हैं या कुछ और. और ना ही शासन ने अब तक इस तरह के बच्चों को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की है. इन बस्तियों में नज़र दौडाने पर अधूरा पडा सरकारी काम अपने ढुलमुल रवैये की कहानी खुद बताता है.
कितने हुए प्रभावित :- जिस वख्त यह हादसा हुआ उस समय भोपाल की आबादी कुल 9 लाख के आसपास थी और उस समय लगभग 6 लाख के आसपास लोग युनियन कार्बाइड कारखाने की जहरीली गैस से प्रभावित हुए थे सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ लगभग 3000 लोग मारे गए थे. खैर ये थे सरकारी आंकड़े लेकिन यदि गैर सरकारी आंकड़ों की बात की जाए तो अब तक इस त्रासदी में मरने वालों की संख्या 20 हज़ार से भी ज़्यादा है. और लगभग 6 लाख लोग आज भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं.
क्या है सरकारी क़वायद :- 2-3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात हुई गैस के रिसाव के बाद 1985 में भारत सरकार ने भोपाल गैस विभीषिका अधिनियम पारित कर जिसके बाद अमेरिका में यूनियन कार्बाइड के खिलाफ अदालती कार्यवाही शुरू हुई. लेकिन इससे पूर्व ही यूनियन कार्बाइड के मुखिया वारेन एंडरसन को 5 दिसंबर 1984 को ही भोपाल आने पर ज़मानत दे दी गई थी साथ देश से बाहर जाने अनुमति भी. अमेरिकी अदालत ने इसे क्षेत्राधिकार की बात करते हुए अदालती कार्यवाही भारत में ही चलाने के बात कही. जिसके पश्चात भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर फरवरी 1989 को यूनियन कार्बाइड से 470 मिलियन डालर यानि उस वख्त के हिसाब से लगभग सात सौ दस करोड़ इक्कीस लाख रूपए लेना स्वीकार कर लिया. उसमें से मवेशियों के लिए 113 करोड़ और बाकी की राशी लगभग 1 लाख 5 लज़ार पीडितो के लिए अनुमानित थी जिनको 1989 के आदेशों के मुताबिक़ 57 हज़ार रुपये प्रति व्यक्ति मिलाने वाले थे. जबकि उस दौरान तक पीड़ितों की संख्या बढाकर 5 लाख पहुँच गई थी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 31 अक्टूबर 2009 तक पांच हज़ार चौहत्तर हज़ार तीन सौ बहत्तर गई पीड़ितों को मुआवजा दिया जा चुका है वह भी सिर्फ 200 रुपये प्रतिमाह अंतरिम राहत के तौर पर. कुछ लोगों का यह कहना है कि गैस पीड़ितों को मुआवजे में कम राशि दी गई है मृतकों के परिवार को महज़ 1 लाख रुपये की दो किस्त देकर मामला दबा दिया गया. तो कुछ पीड़ितों को मात्र 25 हज़ार रुपये दे दिए गए.
न्याय को तरस रहे हैं पीड़ित :- सदी की सबसे बडी औद्योगिक त्रासदी 'भोपाल गैस कांड' के मामले में सीजेएम कोर्ट ने आखिरकार 25 साल बाद सभी आठ दोषियों को दो साल की कैद की सजा सुनाई. सभी दोषियों पर एक-एक लाख रूपए और यूनियन कार्बाइड इंडिया पर पांच लाख रूपए का जुर्माना ठोका गया. इतना ही नहीं सजा का ऎलान होने के बाद ही सभी दोषियों को 25-25 हजार रूपए के मुचलके पर जमानत भी दे दी गई. अब इसे अंधे क़ानून का अधुरा इंसाफ न कहें तो और क्या कहें. क्योंकि न्याय का इन्तेज़ार कर रहे गैस पीड़ितों को फिर निराशा ही हाथ लगी है. ये वही गैस पीड़ित हैं जो पिछले 28 सालों से जांच एजेंसियों, सरकार और राजनीतिक दलों द्वारा ठगते आ रहे हैं. आज उन्हें न्याय की उम्मीद थी लेकिन वो भी पूरा नहीं मिला. त्रासदी का मुख्य गुनहगार वारेन एंडरसन अभी भी फरार है. सरकार एंडरसन के प्रत्यर्पण में सफल नहीं हो पाई है. अदालत ने आठों आरोपियों को धारा 304 ए के तहत लापरवाही का दोषी करार दिया था. कोर्ट के फैसले पर गैस पीड़ितों में जमकर रोष है. गैस पीड़ितों ने दोषियों के लियी फांसी की सज़ा की मांग की है. आश्चर्य जनक तथ्य यह है कि गैस त्रासदी में 25000 से ज़्यादा लोग मारे गए थे. और उनके दोषियों को महज़ 2 साल की सज़ा दी गई. जबकि कंपनी पर 5 लाख का जुर्माना लगाया गया. क्या 25000 लोगों की मौत के जिम्मेदारों के लिए यह सज़ा काफी है. 25 साल पहले 2/3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात को भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कारखाने से रिसी जहरीली मिथाइल आइसोसायनेट गैस के कारण 25000 से ज़्यादा लोग मारे गए थे. और अनेक लोग स्थायी रूप से विकलांग हो गए थे. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर तीन हज़ार लोग मारे गए थे. अब एक अहम सवाल यह उठता है कि क्या इस फैसले से पीड़ितों को न्याय मिला है ? फैसले के बाद चारों तरफ से तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. लोग इसे अंधे क़ानून का अधूरा इंसाफ कह रहे हैं. जब छह दिसंबर 1984 को यह मामला सीबीआई को जांच के मिला था. तब गैस त्रासदी की जांच कर रही सीबीआई ने विवेचना पूरी कर एक दिसंबर 1987 को यूनियन कार्बाइड के खिलाफ यहां जिला अदालत में आरोप पत्र पेश किया था, जिसके आधार पर सीजेएम ने भारतीय दंड संहिता की धारा 304 एवं 326 तथा अन्य संबंधित धाराओं में आरोप तय किए थे. इन आरोपों के खिलाफ कार्बाइड ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और शीर्ष अदालत ने 13 सितंबर 1996 को धारा 304, 326 के तहत दर्ज आरोपों को कम करके 304 (ए), 336, 337 एवं अन्य धाराओं में तब्दील कर दिया. जिससे केस कमज़ोर हो गया. एक अहम सवाल यह भी है कि क्या जान बूझकर केस को कमज़ोर करने के कोशिश की गई. धारा 304 (ए) के तहत अधिकतम दो वर्ष के कारावास का ही प्रावधान है. 25 बरस न्याय का इन्तेज़ार करने वाले गैस पीड़ित छले गए हैं. 25 बरस राजनीतिक दांवपेंच का शिकार होते रहे. अफसोस की बात तो यह है कि इतना बड़ा हादसा होने के बाद इसके ज़िम्मेदारों को कड़े से कड़ी सजा मिले इसके लिए पीड़ितों को न्याय के लिए 25 बरस का इन्तेज़ार करना पड़ा. इस हादसे में सबसे ज़्यादा प्रभावित ऐसे लोग थे जो रोज़ कुआ खोदने और रोज़ पानी पीने का काम किया करते थे. आज 25 साल बाद जब कोर्ट ने फैसला दिया तो दोषियों को 25 हज़ार के मुचलके पर ज़मानत भी दे दी गई. और न्याय को तरसते पीड़ित अपनी विवशता और लाचारी दोहराने को मजबूर दिखाई दिए. इसे हमारे देश की विडम्बना कहें या फिर इस देश के निवासियों का दुर्भाग्य, सरकार 11 करोड़ रुपये खर्च कर स्मारक बनाने की बात तो करती है लेकिन भ्रष्टाचार में डूबे सरकारी तंत्र और न्याय प्रक्रिया में सुधार लाकर वास्तविक गैस पीड़ितों न्याय दिलाने की दिशा में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठा सकती.
केंद्र नहीं दे रहा मदद :- नगरिय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर का कहना है कि गैस त्रासदी एक्ट 1985 के अंतर्गत केंद्र सरकार ने गैस पीड़ितों को मदद देने की पूरी जिम्मेदारी ली थी. इसके बावजूद 1999 से अब तक कोई राशि केंद्र सरकार ने नहीं दी है. राज्य सरकार गैस पीड़ितों पर 250 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है. राज्य सरकार ने 982 करोड़ रुपए की कार्य योजना केंद्र को भेजी है जो मंजूर की जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार एक स्मारक भी बनाना चाहती है. इसके लिए राज्य सरकार ने 11 करोड़ रुपए भी मंजूर किए हैं.
बहरहाल अफसोस की बात तो यह है कि इतना बड़ा हादसा होने के बाद इसके ज़िम्मेदारों को कोई सजा नहीं मिली सज़ा तो दूर इस हादसे से प्रभावित हुए लोगों की सही न्याय भी नहीं मिला. जबकि इस हादसे में सबसे ज़्यादा प्रभावित ऐसे लोग थे जो रोज़ कुआ खोदने और रोज़ पानी पीने का काम किया करते थे. काफ़ी विरोध के बाद 1992 में भोपाल की एक अदालत ने वारेन एंडरसन के खिलाफ वारंट जारी कर सीबीआई से इस मामले में कार्यवाही करने को कहा था. 2001 से यूनियन कार्बाइड पर मालिकाना डाओ केमिकल्स अमेरिका का है जिसने अभी तक कारखाना परिसर से जहरीला रासायनिक कचरा हटाने में भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. और आज भी 31 वर्षों से गैस पीड़ित इस ज़ख्म के साथ दर्द भरा जीवन जीने को मजबूर है और मरहम को तरस रहे हैं इसे हमारे देश की विडम्बना कहें या फिर इस देश के निवासियों का दुर्भाग्य, की सरकार भ्रष्टाचार में डूबे सरकारी तंत्र में सुधार लाकर वास्तविक गैस पीड़ितों न्याय दिलाने की दिशा में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठा सकती



Comments Harshita tiwary on 12-05-2019

Bhopal gas tarashde kab huwa tha





नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें Culture Current affairs International Relations Security and Defence Social Issues English Antonyms English Language English Related Words English Vocabulary Ethics and Values Geography Geography - india Geography -physical Geography-world River Gk GK in Hindi (Samanya Gyan) Hindi language History History - ancient History - medieval History - modern History-world Age Aptitude- Ratio Aptitude-hindi Aptitude-Number System Aptitude-speed and distance Aptitude-Time and works Area Art and Culture Average Decimal Geometry Interest L.C.M.and H.C.F Mixture Number systems Partnership Percentage Pipe and Tanki Profit and loss Ratio Series Simplification Time and distance Train Trigonometry Volume Work and time Biology Chemistry Science Science and Technology Chattishgarh Delhi Gujarat Haryana Jharkhand Jharkhand GK Madhya Pradesh Maharashtra Rajasthan States Uttar Pradesh Uttarakhand Bihar Computer Knowledge Economy Indian culture Physics Polity

Labels: , , , , ,
अपना सवाल पूछेंं या जवाब दें।






Register to Comment