Mere Poorvaj Mujhe Kasht Kyon Dena Chahenge मेरे पूर्वज मुझे कष्ट क्यों देना चाहेंगे

मेरे पूर्वज मुझे कष्ट क्यों देना चाहेंगे



GkExams on 06-02-2019

सामान्यतः यह प्रश्‍न अनेक बार पूछा जाता है । जिनकी मृत्यु हुई है, ऐसे अपने निकटवर्ती और प्रिय लोगों के बारे में लोग सोचते हैं और उन्हें यह अनाकलनीय लगता है कि वे उनके जीवन में हेतुतः समस्याएं क्यों लाते हैं । पूर्वज अपने वंशजों को यातना क्यों देते हैं, इसके निम्नांकित दो कारण हैं ।

  • अतृप्त वासनाएं और
  • मृत्योपरांत के जीवन में प्रगति कर उच्च लोक अथवा उपलोक में जा न पाना

अतृप्त वासनाओं के कारण होने वाले कष्ट

ऐसी स्थिति में पूर्वज उनकी अतृप्त वासनाओं के कारण हमें कष्ट देते हैं । ये वासनाएं इस प्रकार हो सकती हैं । :

  • पूर्वजों की इच्छानुसार उनकी परंपराओं का पालन न करने वाले वंशजों के प्रति क्रोध
  • परिवार के प्रति आज भी आसक्ति रखने वाले पूर्वज, जो कोई भी कृत्य उनकी इच्छानुसार होना चाहते हैं ।
  • सिगरेट, नशीली औषधियां, लैंगिकता, खाना-पीना आदि स्थूल वासनाओं से पीडित पूर्वज । उनमें और उनके वंशजों में बचे शेष लेन-देन का लाभ उठाकर, वे अपने ही वंशजों को आवेशित कर वासनाएं तृप्त करते हैं । आप्तजनों के साथ के संबंध (रक्त के संबंध) अधिक दृढ होने के कारण अन्य किसी के साथ लेन-देन होने की संभावना होने पर भी पूर्वज उनके वंशजों को कष्ट देते हैं ।

पूर्वजों द्वारा सहायता मांगने पर होने वाले कष्ट




जब किसी की मृत्यु होती है, प्राणशक्ति ब्रह्मांड में मुक्त होती है । स्थूल देह पृथ्वी पर रहती है, जब कि सूक्ष्म देह उसके अवगुण अथवा पाप कर्मों के तथा आध्यात्मिक स्तरानुसार सूक्ष्म लोकों में चली जाती है । पृथ्वी की तुलना में मृत्योपरांत के जीवन में सूक्ष्म देह के केवल आध्यात्मिक स्तर अथवा आध्यात्मिक शुद्धि का मापदंड होता है । स्थूल देह तथा धन, प्रतिष्ठा, व्यवसाय-नौकरी, सामजिक स्तर आदि विविध सांसारिक पहलुओं का आध्यात्मिक विश्‍व में अथवा सूक्ष्म विश्‍व में कोई महत्त्व नहीं होता ।




आकृति में दिखाए अनुसार पाप और तीव्र अहं के कारण सूक्ष्म देह भारी हो जाती है । परिणामस्वरूप, वह निम्न स्तर के भुवर्लोक जैसे लोक में चिपक जाती है । यदि अवगुण अथवा पाप कर्म तीव्र होंगे, तो सूक्ष्म देह पाताल में चली जाती है । दूसरी ओर अच्छे कर्मों के (गुण) तथा तीव्र आध्यात्मिक साधना के कारण सूक्ष्म देह हल्की हो जाती है । आध्यात्मिक स्तर जितना अधिक, उतनी ही सूक्ष्म देह हल्की होती है और ब्रह्मांड के अधिकाधिक उच्च सूक्ष्म लोकों में जानेकी उसकी गति तीव्र होती जाती है ।

समष्टि आध्यात्मिक स्तरका अर्थ है, समाजके हितके लिए आध्यात्मिक साधना (समष्टि साधना) करनेपर प्राप्त हुआ आध्यात्मिक स्तर; जब कि व्यष्टि आध्यात्मिक साधनाका अर्थ है, व्यक्तिगत आध्यात्मिक साधना (व्यष्टि साधना) करनेपर प्राप्त आध्यात्मिक स्तर । वर्तमान समयमें समाजके हितके लिए आध्यात्मिक साधना (प्रगति) करनेका महत्त्व 70% है, जब कि व्यक्तिगत आध्यात्मिक साधनाका महत्त्व 30% है ।

आध्यात्मिक साधना के कारण प्रगत साधक की सूक्ष्म देह भुवर्लोक को तुरंत पार कर स्वर्गलोक जैसे उच्च सूक्ष्म लोकों में जाती है । केवल 50% समष्टि स्तर के अथवा 60% व्यष्टि स्तर के आगे के आध्यात्मिक स्तर के पूर्वज ही स्वर्गलोक जैसे उच्च सूक्ष्म लोकों में जाते हैं और अनिष्ट शक्तियों द्वारा (भूत, प्रेत, पिशाच इ) होने वाले आक्रमण को लौटाने के लिए ईश्‍वर द्वारा आवश्यक मात्रा में सुरक्षा प्राप्त करने में सफल होते हैं । विश्‍व की 5% से भी अल्प जनसंख्या इस गुट में आती है ।


विश्‍व की जनसंख्या का आध्यात्मिक स्तरानुसार वर्गीकरण निम्न प्रकार से है :


.. 2013 की विश्व की जनसंख्या का आध्यात्मिक स्तर

आध्यात्मिक स्तरविश्व की जनसंख्याकुल जनसंख्या1
20-29%63%446 करोड
30-39%33%234 करोड
40-49%4%28.3 करोड
50-59%उपेक्षणीय15,000
60-69%उपेक्षणीय5,000
70-79% 2उपेक्षणीय100
80-89%उपेक्षणीय20
80-89%उपेक्षणीय20
90-100%उपेक्षणीय10

1 16 मई 2013 के census.gov के अनुसार विश्व की जनगणनापर आधारित 708.6 करोड
2 70% और उससे अधिक आध्यात्मिक स्तर को संत कहते हैं ।


इसका अर्थ यह है कि हमारे अधिकतर पूर्वज (95%से भी अधिक) स्वर्गलोक के नीचे के भुवर्लोक में अथवा पाताल के किसी एक विभाग में चले जाते हैं । विश्‍व की अधिकतर जनसंख्या का आध्यात्मिक स्तर 30% से निम्न है । मृत्यु के उपरांत उनके पास निम्न स्तर के सूक्ष्म लोकों द्वारा सहायता हाने के लिए बहुत ही अल्प आध्यात्मिक बल होता है । यहां सहायता का अर्थ है, आध्यात्मिक दृष्टि से उच्च सूक्ष्म लोकों में जाने के लिए आवश्यक सहायता ।


निम्न स्तर के सूक्ष्म लोकों में, उन्हें अवगुणों के कारण यातनाएं होती है और समझ में नहीं आता कि अपने आप की सहायता कैसे करे । विविध उद्देश्यों के लिए नियंत्रण में लेकर बलवान अनिष्ट शक्तियां उन पर आक्रमण कर उन्हें यातनाएं देती हैं । इससे अधिक उच्च स्तर के लोकों में तथा उपलोकों में जाने का वे प्रयत्न करते हैं; किंतु आध्यात्मिक सहायता के अभाव में वैसा नहीं कर पाते हैं ।


30% स्तर से अधिक आध्यात्मिक स्तर के सूक्ष्म देह, आध्यात्मिक साधना कर अपनी सहायता कर सकते हैं; परंतु आध्यात्मिक साधना के मूलभूत छः सिद्धांतों के अनुसार साधना करने के तीव्र संस्कार के अभाव में यह भी अधिकतर नहीं हो पाता । साधना के अन्य मार्गों में न्यूनता होने के कारण इन मार्गों से की साधना प्रत्यक्ष में पूर्वजों के सूक्ष्म देहों को किसी प्रकार की आध्यात्मिक सहायता नहीं कर सकती ।


ब्रह्मांड के निम्न स्तर के लोकों में पूर्वजों द्वारा सही गई यातनाएं उनके द्वारा प्रक्षेपित होकर कष्टप्रद कंपन / स्पंदनों के रूप में भूलोक के साथ विविध सूक्ष्म लोकों से पार होती हैं । उनके आप्तजनों अथवा वंशजों के स्पंदन अत्यधिक समान कंपन संख्या के होने से, उन्हें ग्रहण करने के लिए आप्तजन अच्छे माध्यम होते हैं ।


केवल भूलोक में ही हम अपने मृत पूर्वजों के लिए कुछ कर सकते हैं । विविध सूक्ष्म लोकों में होने वाले उनके आप्तजन एक ही नाव के यात्री होने से उनकी सहायता नहीं कर सकते । वर्तमान समय में अधिकतर वंशजों का आध्यात्मिक स्तर अधिक न होने के कारण वे सूक्ष्म से उन्हें इन कष्टदायी स्पंदनों का ज्ञान नहीं होता है, इसलिए पूर्वज आध्यात्मिक शक्ति का उपयोग कर उनके वंशजों के जीवन में कष्ट निर्माण करते हैं, जिससे कि वंशज उनकी आवश्यकताओं की ओर ध्यान देने लगते हैं । पूर्वजों द्वारा कष्ट देने का यह दुष्कृत्य, उनकी यातनाओं को वंशजों तक पहुंचाने का एक माध्यम होता है । जब वंशजों के समझमें आता है कि बहुत प्रयत्न करने पर भी समस्या सुलझने वाली नहीं है, तब वे कभी-कभी आध्यात्मिक मार्गदर्शन लेते हैं । उचित मार्गदर्शन मिलने से और उसे कृति में लाने से वंशजों को उनके पूर्वजों से आवश्यक सुरक्षा मिलने के साथ पूर्वजों को भी आध्यात्मिक विश्‍व में उनकी आगे की यात्राके लिए ऊर्जा प्राप्त होती है ।


पूर्वजों के स्वभाव (प्रकृति) और आध्यात्मिक स्तर के अनुसार कष्ट की तीव्रता निश्‍चित होती है । अच्छा पूर्वज वंशजों को केवल उनकी आवश्यकता का भान कराने तक ही कष्ट देगा । दूसरी ओर प्रतिशोध लेने की वृत्ति से प्रेरित पूर्वज, कदाचित उसके वंशजों को गंभीर स्वरूप के कष्ट देगा ।

  • अपनी वासनाओं की पूर्ति करने की इच्छा रखने वाला पूर्वज उसके वंशज को इसी वासनाओं से पीडित करेगा ।
  • उच्च सूक्ष्म लोक में जाने की इच्छा रखने वाला पूर्वज अपने साधना करने वाले वंशज को कष्ट देता है ।




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