इस वंश की उत्पत्ति का उल्लेख कई लेखों में है। प्रारंभिक लेखों में इसे "चंद्रात्रेय" वंश कहा गया है पर यशोवर्मन् के पौत्र देवलब्धि के दुदही लेख में इस वंश को "चंद्रल्लावय" कहा है। कीर्तिवर्मन् के देवगढ़ शिलालेख में और चाहमान पृथ्वीराज तृतीय के लेख में "चंद्रमा से मानी जाती है इसीलिये "चंद्रात्रेयनरेंद्राणां वंश" के आदिनिर्माता चंद्र की स्तुति पहले लेखों में की गई है। धंग के विक्रम सं. 1011 (954 ई.) के खजुराहो वाले लेखों में जो वंशावली दी गई है, उसके अनुसार विश्वशृक पुराणपुरुष, जगन्निर्माता, ऋषि मरीचि, अत्रि, मुनि चंद्रात्रेय भूमिजाम के वंश में नृप नंनुक हुआ जिसके पुत्र वा पति और पौत्र जयशक्ति तथा विजयशक्ति थे। विजय के बाद क्रमश: राहिल, हर्ष, यशोवर्मन् और धंग राजा हुए। वास्तव में नंनुक से ही इस वंश का आरंभ होता है और अभिलेख तथा किंवदंतियों से प्राप्त विवरणों के आधार पर उनका संबंध आरंभ से ही गुर्जर खजुराहो से रहा। अरब इतिहास के लेखक कामिल ने भी इनको "कजुराह" में रखा है। धंग से इस वंश के संस्थापक नंनुक की तिथि निकालने के लिय यदि हम प्रत्येक पीढ़ी के लिये 20-25 वर्ष का काल रखें तो धंग से छह पीढ़ी पहले नंनुक की तिथि से लगभग 120 वर्ष पूर्व अर्थात् 954 ई. - 120 = 834 ई. (लगभग 830 ई.) के निकट रखी जा सकती है। "महोबा खंड" में चंद्रवर्मा के अभिषेक की तिथि 225 सं. रखी गई है। यदि "चंद्रवर्मा" का नंनुक का विरुद अथवा दूसरा नाम मान लिया जाय और इस तिथि को हर्ष संवत् में मानें तो नंनुक की तिथि (606 + 225) अथवा 831 ई. आती है। अत: दोनों अनुमानों से नंनुक का समय 831 ई. माना जा सकता है।
इस जेजाकभुक्ति किया। कदाचित् यह गुर्जर प्रतिहार सम्राट् भोज का सामंत राजा था और यही स्थिति उसके भाई विजयशक्ति तथा पुत्र राहिल की भी थी। हर्ष और उसके पुत्र यशोवर्मन् के समय परिस्थिति बदल गई। गुर्जरों और राष्ट्रकूटों के बीच निरंतर युद्ध से अन्य शक्तियाँ भी ऊपर उठने लगीं। इसके अतिरिक्त महेंद्रपाल के बाद यशोवर्मन् भी जीता। प्रशस्तिकार ने उसकी प्रशंसा बढ़ा चढ़ाकर की हो तब भी इसमें संदेह नहीं कि चंदेल राज्य धीरे धीरे शक्तिशाली बन रहा था। नाम मात्र के लिये इस वंश के राजा गुर्जर प्रतिहार राजाओं का आधिपत्य माने हुए थे। धंग के खजुराहों लेख में अंतिम बार सम्राट् विनायकपालदेव का उल्लेख हुआ है। धंगदेव वैधानिक रूप से और वस्तुत: स्वतंत्र हो गया था। यशोवर्मन् के समय खजुराहों के विष्णुमंदिर में बैकुंठ की मूर्तिस्थापना का लेख है जिसे कैलास से भोटनाथ से प्राप्त की थी। मित्र रूप में वह केर राजा शाहि के पास आई और उसमें हयपति देवपाल के पुत्र हेरंबपाल ने लड़कर प्राप्त की। देवपाल से यह मूर्ति यशोवर्मन् को मिली। कुछ विद्वान् इससे चंदेलों की प्रतिहार राजा पर विजय का संकेत मानते हैं, पर यथार्थ तो यह है कि "हयपति" उपाधि का प्रतिहार सम्राट् से संबंध ही था। कदाचित् वह कोई स्थानीय राजा रहा होगा।
चंदेलों में कालिंजर का राजा बताया है। कीर्तिवर्मन् ने चंदेलों की खोई हुई शक्ति और कलचुरियों द्वारा राज्य के जीते हुए भाग को पुन: लौटाकर अपने वंश की लुप्त प्रतिष्ठा स्थापित की। उसने सोने के सिक्के भी चलाए जिसमें कलचुरि आंगदेव के सिक्कों का अनुकरण किया गया है। केदार मिश्र द्वारा रचित "प्रबोधचंद्रोदय" (1065 ई.) इसी चंदेल सम्राट् के दरबार में खेला गया था। इसमें वेदांतदर्शन के तत्वों का प्रदर्शन है। यह कला का भी प्रेमी था और खजुराहों के कुछ मंदिर इसके शासनकाल में बने। कीर्तिवर्मन् के बाद सल्लक्षण बर्मन् या हल्लक्षण वर्मन्, जयवर्मनदेव तथा पृथ्वीवर्मनदेव ने राज्य किया। अंतिम सम्राट्, जिसका वृत्तांत "चंदरासो" में उल्लिखित है, परमर्दिदेव अथवा परमाल (1165-1203) था। इसका चौहान सम्राट् पृथ्वीराज चौहान से संघर्ष हुआ और 1208 में कुतबुद्दीन ने कालिंजर का गढ़ इससे जीत लिया, जिसका उल्लेख मुसलमान इतिहासकारों ने किया है। चंदेल राज्य की सत्ता समाप्त हो गई पर शसक के रूप में इस वंश का अस्तित्व कायम रहा। 16वीं शताब्दी में स्थानीय शासक के रूप में चंदेल राजा बुंदेलखंड में राज करते रहे पर उनका कोई राजनीतिक प्रभुत्व न रहा।
What Veda does Chandrayaan gotra belong to?
Bihar Bhojpur mei Chandel Rajput kaunse raja ke vanshaj se
Mohankheda
Gahlod ki up jati ke name
चंदेल राजपूतों की कुलदेवी हिमाचल में को से जिले में स्थित है।
Chandel vnash ki uttpatti kahan se hui
Chandel vansh ki uttpatti kahan se hui h
Kya Tanwar chandel nai vivah ho sakti hai
Chandresh gotr kaun sey thakur likhtey hain
Chandel RAJPUT ka gotra kya hai?
Chandel ka goter
Chandel ka goutra kya h
Chandel rajput kaise thakur hote hai
चंदेल राजपूत का गोत्र चंद्रयान होता है, चंदेल उच्च कुलीन चंद्रवंशी क्षत्रिय राजपूत है, चंद्रयान गोत्र ऋषि चंद्रात्रेय से प्राप्त हुआ है। अत्रि मुनि के पुत्र सोम यानी चंद्र से चंदेलो का उद्गम या उनका गुरु होने से उन्हें या गोत्र चंद्रात्रेय प्राप्त हुआ है जो पश्चात चंद्रयान के रूप में प्रचारित हुआ है। कहीं-कहीं चंदेल अपना गोत्र अत्रेय भी लिखते हैं इस तरह चंदेल क्षत्रियों का मूल गोत्र चंद्रयान(चंद्रात्रेय) है, वर्तमान में चंदेल क्षत्रिय हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, में फैले हुए हैं।
Keroliya kis vansh ka gotra hai
Chandel surname also used by some non-Rajpit clans....I think Khatik and Jats..?
Is there any connection to them.
....?
Chandel gotr atr chandrayn
Who is the kuldevi of Chandels?
Kya upmanu ya ukman koi gotta h
Chandelo ka aur unki kuldevi kon si h
Bilaspur me chandelo ki satia kha h
Chandel rajpoot ka gotra chandrayan hai ya atri
Chandelo ki kuldevi Shri shri 1008 shri aadishakti durgamaharani lahar ki deviManiya devi hai for more information con 8982748729 9300316258
chandel konsa thakur hota hai
Chandel ki gotr kya h
Kheda Samaj
Chandel wansh me kya sarnem lagta h
Chandel bans ka gotra
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चंदेल वंश खटीक समाज में भी होता है लेकिन इनकी कुलदेवी किसको माना जाता है ?