Parmar Rajput Itihas परमार राजपूत इतिहास

परमार राजपूत इतिहास



GkExams on 08-01-2019

परमार पँवार एक राजवंश का नाम है, जो मध्ययुग के प्रारंभिक काल में महत्वपूर्ण हुआ। चारण कथाओं में इसका उल्लेख राजपूत जाति के एक गोत्र रूप में मिलता है। परमार सिंधुराज के दरबारी कवि पद्मगुप्त परिमल ने अपनी पुस्तक 'नवसाहसांकचरित' में एक कथा का वर्णन किया है। ऋषि वशिष्ठ ने ऋषि विश्वामित्र के विरुद्ध युद्ध में सहायता प्राप्त करने के लिये भाबू पर्वत के अग्निकुंड से एक वीर पुरुष का निर्माण किया जिनके पूर्वज अग्निवंश के क्षत्रिय थे।। इस वीर पुरुष का नाम परमार रखा गया, जो इस वंश का संस्थापक हुआ और उसी के नाम पर वंश का नाम पड़ा। परमार के अभिलेखों में बाद को भी इस कहानी का पुनरुल्लेख हुआ है। इससे कुछ लोग यों समझने लगे कि परमारों का मूल निवासस्थान आबू पर्वत पर था, जहाँ से वे पड़ोस के देशों में जा जाकर बस गए। किंतु इस वंश के एक प्राचीन अभिलेख से यह पता चलता है कि परमार दक्षिण के राष्ट्रकूटों के उत्तराधिकारी थे।


परमार परिवार की मुख्य शाखा आठवीं शताब्दी के प्रारंभिक काल से मालवा में धारा को राजधानी बनाकर राज्य करती थी और इसका प्राचीनतम ज्ञात सदस्य उपेंद्र कृष्णराज था। इस वंश के प्रारंभिक शासक दक्षिण के राष्ट्रकूटों के सामंत थे। राष्ट्रकूटों के पतन के बाद सिंपाक द्वितीय के नेतृत्व में यह परिवार स्वतंत्र हो गया। सिपाक द्वितीय का पुत्र वाक्पति मुंज, जो 10वीं शताब्दी के अंतिम चतुर्थांश में हुआ, अपने परिवार की महानता का संस्थापक था। उसने केवल अपनी स्थिति ही सुदृढ़ नहीं की वरन्‌ दक्षिण राजपूताना का भी एक भाग जीत लिया और वहाँ महत्वपूर्ण पदों पर अपने वंश के राजकुमारों को नियुक्त कर दिया। उसका भतीजा भोज, जिसने सन्‌ 1000 से 1055 तक राज्य किया और जो सर्वतोमुखी प्रतिभा का शासक था, मध्युगीन सर्वश्रेष्ठ शासकों में गिना जाता था। भोज ने अपने समय के चौलुभ्य, चंदेल, कालचूरी और चालुक्य इत्यादि सभी शक्तिशाली राज्यों से युद्ध किया। बहुत बड़ी संख्या में विद्वान्‌ इसके दरबार में दयापूर्ण आश्रय पाकर रहते थे। वह स्वयं भी महान्‌ लेखक था और इसने विभिन्न विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखी थीं, ऐसा माना जाता है। उसने अपने राज्य के विभिन्न भागों में बड़ी संख्या में मंदिर बनवाए।


राजा भोज की मृत्यु के पश्चात्‌ चोलुक्य कर्ण और कर्णाटों ने मालव को जीत लिया, किंतु भोज के एक संबंधी उदयादित्य ने शत्रुओं को बुरी तरह पराजित करके अपना प्रभुत्व पुन: स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। उदयादित्य ने मध्यप्रदेश के उदयपुर नामक स्थान में नीलकंठ शिव के विशाल मंदिर का निर्माण कराया था। उदयादित्य का पुत्र जगद्देव बहुत प्रतिष्ठित सम्राट् था। वह मृत्यु के बहुत काल बाद तक पश्चिमी भारत के लोगों में अपनी गौरवपूर्ण उपलब्धियों के लिय प्रसिद्ध रहा। मालव में परमार वंश के अंत अलाउद्दीन खिलजी द्वारा 1305 ई. में कर दिया गया।


परमार वंश की एक शाखा आबू पर्वत पर चंद्रावती को राजधानी बनाकर, 10वीं शताब्दी के अंत में 13वीं शताब्दी के अंत तक राज्य करती रही। इस वंश की दूसरी शाखा वगद (वर्तमान बाँसवाड़ा) और डूंगरपुर रियासतों में उट्ठतुक बाँसवाड़ा राज्य में वर्त्तमान अर्थुना की राजधानी पर 10वीं शताब्दी के मध्यकाल से 12वीं शताब्दी के मध्यकाल तक शासन करती रही। वंश की दो शाखाएँ और ज्ञात हैं। एक ने जालोर में, दूसरी ने बिनमाल में 10वीं शताब्दी के अंतिम भाग से 12वीं शताब्दी के अंतिम भाग तक राज्य किया। वर्तमान में परमार वंश की एक शाखा उज्जैन के गांव नंदवासला,खाताखेडी तथा नरसिंहगढ एवं इन्दौर के गांव बेंगन्दा में निवास करते हैं।धारविया परमार तलावली में भी निवास करते हैं।11वी से 17 वी शताब्दी तक पंवारो का प्रदेशान्तर सतपुड़ा और विदर्भ में हुआ, जहा भोयर पंवार और पोवार की शाखा निवास करती हैं जो कि राजा भोज को अपना आराध्या मानते हैं जो धार पँवार वंश की शाखा हैं, कालिका माता के भक्त होने के कारण ये परमार कलौता के नाम से भी जाने जाते हैं।धारविया भोजवंश के परमार में एक शाखा के धार ही की सरदारपुर तहसील में परमार रहते है। इनके ईष्टदेव श्री हनुमान जी तथा कुलदेवी माँ कालिका(धार)है|ये अपने यहाँ पैदा होने वाले हर लड़के का मुंडन राजस्थान के पाली जिला के बूसी में स्थित श्री हनुमान जी के मंदिर में करते हैं। इनकी तीन शाखा और है;एक बूसी गाँव में,एक मालपुरिया राजस्थान में तथा एक निमच में निवासरत् है।

राजा

  • महान चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य परमार (ईसा. पूर्व. 700 से 800 साल पहले हुए होगे । यह सत्य हे कि विक्रम संवत के प्रवर्तक उज्जैनी के सम्राट विक्रमादित्य ही हे । किंतु राजा विक्रमादित्य के बाद कहि सारे राजाओने विक्रमादित्य कि उपाधी धारण की थी ,जैसे चंद्रगुप्त विक्रमादित्य, हेमचंद्र विक्रमादित्य एसे कइ राजाओने विक्रमादित्य कि उपाधि धारण कि थी इसिलिये इतिहास मे मतभेद हुआ होगा कि विक्रम संवत कब शुरु हुआ होगा। कइ इतिहासकारों का मानना हे कि चंद्रगुप्त मौर्य, और सम्राट अशोक ईसा. पूर्व. 350 साल पहले हुए यानी चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य चंद्रगुप्त मौर्य के बाद हुए । पर राजा विक्रम के समय चमत्कार था जब कि चंद्रगुप्त मौर्य के समय कोइ चमत्कार नही था। इसिलिये हय बात सिद्ध होती हे कि राजा विक्रम बहुत साल ‌पहले हो चुके हे। उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य माँ हरसिध्धि भवानी को गुजरात से उज्जैनी लाये थे और कुलदेवी माँ हरसिद्धि भवानीको 11 बार शीश काटकर अर्पण किया था। सिंहासन बत्तीसी पर बिराजमान होते थे।जो 32 गुणो के दाता थे।जिन्होंने महान भुतनाथ बेत‍ाल को अपने वश में किया था।जो महापराक्रमी थे त्याग,न्याय और उदारशिलता के लिये जाने जाते थे।और उस समय केवल महाराजा विक्रमादित्य ही सह शरीर स्वर्ग में जा सकते थे| राजा गंधर्वसेन का पुत्र विक्रमादित्य हुए।
  • विक्रमादित्य के बड़े भाई राजा भर्तृहरि थे।
  • राजा शालिनीवाहन जो विक्रमादित्य का प्रपौत्र था। जो भविष्यपुराण मे वर्णित हे।
  • उपेन्द्र (800 – 818)
  • वैरीसिंह प्रथम (818 – 843)
  • सियक प्रथम (843 – 893)
  • वाकपति (893 – 918)
  • वैरीसिंह द्वितीय (918 – 948)
  • सियक द्वितीय (948 – 974)
  • वाकपतिराज (974 – 995)
  • सिंधुराज (995 – 1010)
  • भोज प्रथम (1010 – 1055), समरांगण सूत्रधार के रचयिता
  • जयसिंह प्रथम (1055 – 1060)
  • उदयादित्य (1060 – 1087) जयसिंह के बाद राजधानी से मालवा पर राज किया। चालुक्यों से संघर्ष पहले से ही चल रहा था और उसके आधिपत्य से मालवा अभी हाल ही अलग हुआ था जब उदयादित्य लगभग 1059 ई. में गद्दी पर बैठा। मालवा की शक्ति को पुन: स्थापित करने का संकल्प कर उसने चालुक्यराज कर्ण पर सफल चढ़ाई की। कुछ लोग इस कर्ण को चालुक्य न मानकर कलचुरि लक्ष्मीकर्ण मानते हैं। इस संबंध में कुछ निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। इसमें संदेह है कि उदयादित्य ने कर्ण को परास्त कर दिया। उदयादित्य का यह प्रयास परमारों का अंतिम प्रयास था और ल. 1088 ई. में उसकी मृत्यु के बाद परमार वंश की शक्ति उत्तरोत्तर क्षीण होती गई। उदयादित्य. भी शक्तिशाली था।
  • लक्ष्मणदेव (1087 – 1097)
  • नरवर्मन (1097 – 1134)
  • यशोवर्मन (1134 – 1142)
  • जयवर्मन प्रथम (1142 – 1160)
  • विंध्यवर्मन (1160 – 1193)
  • सुभातवर्मन (1193 – 1210)
  • अर्जुनवर्मन I (1210 – 1218)
  • देवपाल (1218 – 1239)
  • जयतुगीदेव (1239 – 1256)
  • जयवर्मन द्वितीय (1256 – 1269)
  • जयसिंह द्वितीय (1269 – 1274)
  • अर्जुनवर्मन द्वितीय (1274 – 1283)
  • भोज द्वितीय (1283 – ?)
  • महालकदेव (? – 1305)
  • संजीव सिंह परमार (1305 - 1327)
    • 1300 ई. की साल में गुजरात के भरुचा रक्षक वीर मेहुरजी परमार हुए। जिन्होंने अपनी माँ,बहेन और बेटियों कि लाज बचाने के लिये युद्ध किया और उनका शर कट गया फिर भी 35 कि.मि. तक धड़ लडता रहा।
    • गुजरात के रापर(वागड) कच्छ में विर वरणेश्र्वर दादा परमार हुए जिन्होंने ने गौ रक्षा के लिये युद्ध किया। उनका भी

शर कटा फिर भी धड़ लडता रहा उनका भी मंदिर हें।

    • गुजरात में सुरेन्द्रनगरमे मुली तालुका हे वहाँ के राजवी थे लखधिर जि परमार. उन्होंने एक तेतर नामक पक्षी के प्राण बचाने ने के लिये युद्ध छिड दिया था। जिसमे उन्होंने जित प्राप्त की।
    • लखधिर के वंशज साचोसिंह परमार हुए जिन्होंने एक चारण, (बारोट,गढवी )के जिंदा शेर मांगने पर जिंदा शेरका दान दया था।
    • एक वीर हुए पीर पिथोराजी परमार जिनका मंदिर हे थरपारकर मे हाल पाकिस्तान मे आया हे।जो हिंदवा पिर के नाम से जाने जाते हे।





सम्बन्धित प्रश्न



Comments राजेश on 05-01-2022

राजा भोज के परिवार तो जाट बन गया तो तो पीछे कहां से रहे गया हमारे राव कि मेरी भेई।1000 साल पहले

What is the gotra of parmar on 09-11-2021

What is the gotra of parmar

Dev on 10-01-2020

क्षत्रिय परमार राजपूत .धारगढ उजैणी से नीकले राजा वीर विक्रम साखे राजपूत परमार के कुल के हे,गोत्र वशिष्ठ पाराशर गोत्र कुल देवी मां हरसीध भवानी प्रसंन देवी मां महाकाली थरा मे वीर बैताल की पूजा होती ओर तलवार की धार केल का पूजन होता ,त्रीप्रवर वंश वेद यजुर्वेद कहलाता ,असल गढ आबू गढ अर्बुद गढ वहासे उज्जैण से धार गढ वहासे नीकले गढ पाटण आऐ पाटण में सोलंकी सीद्धराज के राज में काल भैरव आता उसका दुःख दुर कीया ओर , जगदेव परमार ने मस्तक दांन कीया वहासे नीकलके गढ मुली मे बसे वहासे मुली गढ के परमार का ऐक वंश नीकलके गढ पावागढ बसे ओर मुस्लमान ने पावागढ कबजे करलीया चैहाण पताई राजा के राज मे उसदीन नर्मदा तट पे आके बसे ओर आदिबासी के घर का पाणी पीया ओर तदवी साखे लगी अगले जमाने मे आदिबासी, तदवी ,वलवी,कठारीया,तेटरीया,धाणका,नाम के आदिबासी के घर का पाणी पीया ओर तदवी परमार साखा लगी, असल में साखा राजपुत परमार कुल उचा से उचा कुल है मुली गढ के परमार राजपूत (साखा तदवी परमार)
( बारोटजी भीखाभाई लक्ष्मणभाई )






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