गढ़बोर Charbhuja Ji Mandir garhbor rajasthan
उदयपुर से 112 और कुम्भलगढ़ से 32 कि.मी. की दूरी के लिए मेवाड़ का जाना – माना तीर्थ स्थल हैं, जहां चारभुजा जी की बड़ी ही पौराणिक चमत्कारी प्रतिमा हैं | मेवाड़ के चार प्रमुख स्थल केसरियाजी, कैलाशपुरीजी और नाथद्वारा के साथ गडबोर की गिनती भी हैं |
इस चमत्कारी प्रतिमा के संबंध में जनश्रुति हैं कि श्री कृष्ण भगवान को उद्धव को हिमाचल में तपस्या कर सदगति प्राप्त करने के आदेश देते हुए स्वयं गौलोक जाने की इच्छा जाहिर की तब उद्धव ने कहा की मेरा तो उद्धार हो जाएगा, परन्तु आपके परम भक्त पाण्डव और सुदामा नाम के गौप आपके गौलोक पधारने की खबर सुनकर प्राण त्याग देंगे | ऐसे में श्री कृष्ण ने विश्वकर्मा से स्वयं की एवं बलराम महाराज की दो मूर्तिया बनवाई, जिसे राजा इन्द्र को देकर कहा की ये मूर्तिया पाण्डव युधिष्ठिर व सुदामा के नाम के गौप को सुपूर्द कर उनसे कहना की ये दोनों मूर्तिया मेरी हैं और मै ही इनमे हूँ | प्रेम से मूर्तियों का पूजन करते रहे, कलयुग में मेरे दर्शन व पूजा करते रहने से मैं मनुष्यों की इच्छा पूर्ण करूँगा और सुदामा का वंश बढ़ाऊंगा |
इन्द्र ने आदेशानुसार श्री कृष्ण की मूर्ति पाण्डव युधिष्ठिर को और बलदेव भगवान की मूर्ति सुदामा गौप को दे दी | पाण्डव और सुदामा दोनों उन मूर्तियों की पूजा करने लगे | वर्तमान में गडबोर में चारभुजाजी के नाम से स्थित प्रतिमा पाण्डवो द्वारा पूजी जाने वाली मूर्ति श्री सत्यनारायण के नाम से सेवन्त्री गॉव में स्थित हैं | किदवंती है कि जब पाण्डव जाने लगे तो श्री कृष्ण की मूर्ति को पानी में छिपा गए ताकि कोई इसकी पवित्रता को खंडित नहीं कर सके |
ऐसी स्थिति में मेवाड़ राजवंश ने बार-बार इस प्रतिमा की सुध ली और इसे बचाने के लिए सब कुछ दाव पर लगा दिया | महाराणा संग्रामसिह, जवानसिह, स्वरुपसिह ने तो मंदिर की सुव्यवस्था के साथ-साथ जागीरे भी प्रदान की | यहाँ वर्ष में दो बार होली एवं देवझूलनी एकादश पर मेले भरते है, मंदिर के पास ही गोमती नदी बहती है|
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