Maithilisharan Gupt Ki Rachnayein मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ

मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ



GkExams on 21-11-2018

गुप्त जी ने लगभग चालीस काव्य ग्रंथों की
रचना की। उनका वर्ण्य - विषय
चाहे पौराणिक हो
( जैसे- 'शकुन्तला, ' पंचवटी ,
'शकित , 'साकेत , ' द्वापर , ' नहुष,
'जयभारत आदि) चाहे
ऐतिहासिक ( जैसे-'रंग में
भंग , ' सिद्धराज , 'कुणाल गीत
आदि) अथवा सामयिक (जैसे-' भारत-
भारती , ' किसान , ' अंजलि ,
'अध्र्य , ' स्वदेश- संगीत , ' अजित ,
आदि) उपर्युक्त तीनों गुण उनकी
काव्य रचनाओं में सदा विद्यमान
रहे , और यही तीनों गुण उनके
व्यक्तित्व के आधार - स्तम्भ बने।
आरम्भ में गुप्त जी ' रसिकेश तथा
'रसिकेन्द्र नाम से ब्रजभाषा में
कविता लिखा करते थे। आचार्य
महावीर प्रसाद द्विवेदी ने उन्हें
खड़ीबोली में कविताएँ लिखने के
लिए प्रेरित एवं उत्साहित
किया। उन्होंने गुप्त जी की अनेक
रचनाएँ ' सरस्वती में प्रकाशित
की। गुप्त जी को अपने महाकाव्य
'साकेत की सृजन - प्रेरणा भी
आचार्य द्विवेदी के एक लेख
'कवियों की उर्मिला विषयक
उदासीनता से ही प्राप्त हुई।
समाज और राष्ट्र ने मैथिलीशरण
गुप्त का समुचित सत्कार किया।
हिन्दी जगत के प्रिय ' भारत
के ' राष्ट्रकवि माने गए। 1937 ई. में
उन्हें ' साकेत महाकाव्य पर
हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर
से मंगलाप्रसाद पारितोषिक
प्राप्त हुआ और 1946 ई. में हिन्दी
साहित्य - सम्मेलन ने गुप्त जी को
'साहित्य वाचस्पति की
उपाधि से विभूषित किया। 1948
ई. में आपको आगरा
विश्वविधालय ने डी . लिट की
उपाधि देकर सम्मानित किया।
और 1952 ई. से लेकर देहावसान
( 1964) तक वह राज्यसभा के
मनोनीत सदस्य रहे।
अध्ययन की सुविधा के लिए श्री
मैथिलीशरण की रचनाओं को दो
भागों में विभक्त किया जा
सकता है।
अनूदित और मौलिक रचनाएँ-
~मौलिक रचनाओं को
चार भागों में उपविभाजित
किया जा सकता है : नाटक ,
मुक्तक काव्य , प्रबन्धात्मक मुक्तक
और प्रबन्ध काव्य।
गुप्त जी की अनुदित रचनाओं के
नाम हैं : 'विरहिणी ब्रजांगना ,
'मेघनाध वध , ' प्लासी का युद्ध ,
'स्वप्नवासवदत्ता और 'उमर
खय्याम की रूबाइयाँ। इसमें से
पहली दो रचनाएं बंगाल के
सुप्रसिद्ध कवि मधुसूदन
दत्त की बंगला कृतियों का
हिन्दी अनुवाद है। 'प्लासी का
युद्ध बाबू नवीनचन्द्र सेन की
बंगला कृति 'प्लासी युद्ध का
'स्वप्नवासवदत्ता भास के
प्रसिद्ध संस्कृत नाटक का, 'उमर
खयाम की रूबाइयाँ फारसी के
प्रसिद्ध कवि उमर खय्याम की
रूबाइयों का एडवर्ड फिटजरेल्ड
द्वारा किये गये अंग्रेजी रूपान्तर
का हिन्दी काव्यानुवाद है। इन
अनुवादों में गुप्त जी ने मूल ग्रन्थों
के भावों को अत्यन्त
कुशलतापूर्वक व्यक्त करके अपने
अनुवाद - कौशल का परिचय
दिया है।
~गुप्त जी के तीन प्रकाशित नाटक
हैं-' तिलोत्तमा , 'चन्द्रहास और
'अनघ। इनमें से प्रथम दो
पौराणिक हैं और 'अनघ' एक
नाटयरूपक है जिसकी कथा
कलिपत तथा समसामयिक है।
मूलत: कवि और प्रधानत:
प्रबन्धकार होने के कारण गुप्त जी
को अपने नाटकों में उल्लेखनीय
सफलता प्राप्त नहीं हुर्इ है।
श्री मैथिलीशरण गुप्त की मुक्तक
कविताएं गीतिकाव्य के विविध
गुणों-संगीतात्मकता,
रागात्मकता और लयात्मकता
आदि से अलंकृत हैं। इन कविताओं के
संग्रह ' पध- प्रबन्ध, ' पत्राावली,
'स्वदेश - संगीत' , 'झंकार' और 'मंगलघट'
के नाम से प्रकाशित हुए। ' पध-
प्रबन्ध में विभिन्न मनोभावों के
साथ - साथ प्रकृति- वर्णन
सम्बन्धी अनेक कविताएं भी
संग्रहित हैं और कुछ छोटे- छोटे
उपदेशात्मक आख्यान हैं।
'पत्राावली' में ऐतिहासिक
आधार पर लिखे गए पधात्मक पत्रा
हैं। 'स्वदेश - संगीत' में संकलित
कविताओं में कवि की सामयिक
राजनीतिक तथा समकालीन
आंदोलनों से प्रेरित - प्रभावित
विचार तथा उदगार व्यक्त हुए हैं।
'झंकार' कवि की नवीन शैली
तथा भावनाओं से परिपूर्ण
कविताओं का संग्रह है। इस संग्रह
की अनेक कविताओं पर
छायावाद का स्पष्ट प्रभाव
देखा जा सकता है। 'मंगलघट' नाम
से प्रकाशित कविता - संग्रह में कुछ
पूर्व प्रकाशित तथा बासठ नई
कविताएँ हैं।
प्रबन्धात्मक- मुक्तक शीर्षक के
अन्र्तगत गुप्त जी की उन कृतियों
का समावेश किया जाता है ,
जिनमें कोई शृंखलाबद्ध इतिवृत्त
या किसी चरित्र का
सांगोपांग निरूपण न होने पर भी
विचारों की एकता तथा भावों
की क्रमबद्धता हो। देखने पर मुक्तक
तुल्य जान पड़ने पर भी इनमें आंतरिक
प्रबंधात्मकता विद्यमान है।
'भारती - भारती, ' वैतालिक ,
'हिन्दू , 'कुणाल - गीत ,
'विश्ववेदना , ' अंजलि और अर्घ्य',
'राजा और प्रजा गुप्त जी की
ऐसी ही रचनाएं हैं। 'भारत-
भारती अपने युग की सर्वाधिक
लोकप्रिय रचना रही है।




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Comments Mohan Singh on 21-11-2021

Sakuntla





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