M N Raay Ke Nav ManavtaWad Par Charcha एम एन राय के नव मानवतावाद पर चर्चा

एम एन राय के नव मानवतावाद पर चर्चा



Pradeep Chawla on 12-09-2018


मानवेन्द्र नाथ राय (अंग्रेज़ी: Manavendra Nath Roy, जन्म- 21 मार्च, 1887 ई., पश्चिम बंगाल; मृत्यु- 26 जनवरी, 1954ई.) वर्तमान शताब्दी के भारतीय दार्शनिकों में क्रान्तिकारी विचारक तथा मानवतावाद के प्रबल समर्थक थे। इनका भारतीय दर्शनशास्त्र में भी बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। मानवेन्द्र नाथ राय ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारी संगठनों को विदेशों से धन व हथियारों की तस्करी में सहयोग दिया था। सन 1912 ई. में वे 'हावड़ा षड़यंत्र केस' में गिरफतार भी कर लिये गए थे। इन्होंने भारत में 'कम्युनिस्ट पार्टी' की स्थापना में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। सन 1922 ई. में बर्लिन से 'द लैंगार्ड ऑफ़ इण्डियन इण्डिपेंडेंन्स' नामक समाचार पत्र भी इन्होंने निकाला। 'कानपुर षड़यंत्र केस' में उन्हें छह वर्ष की सज़ा हुई थी।

परिचय

मानवेन्द्र नाथ राय का जन्म 21 मार्च, 1887 को पश्चिम बंगाल के एक छोटे-से गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता धर्मपरायण व्यक्ति थे और धर्मप्रचार के द्वारा जीविकोपार्जन करते थे। राय का बाल्यकालीन नाम 'नरेन्द्र नाथ भट्टाचार्य' था, जिसे बाद में बदलकर उन्होंने 'मानवेन्द्र नाथ राय' कर लिया और इसी नाम से उन्होंने दर्शन तथा राजनीति के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त की। यद्यपि उनका पालन पोषण धर्मपरायण परिवार में हुआ था, फिर भी बाल्यकाल से ही धर्म में उनकी आस्था नहीं थी।

क्रांतिकारी गतिविधियाँ

14 वर्ष की अल्पायु में ही वे भारत की स्वतंत्रता के लिये होने वाले क्रान्तिकारी आन्दोलनों में सम्मिलित हो गए थे। 1905 ई. में बंगाल विभाजन के विरुद्ध हुए आन्दोलन में उन्होंने सक्रिय भाग लिया था। वे सशक्त संघर्ष के द्वारा भारत को विदेशी शासन से स्वतंत्र कराना चाहते थे और इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने अनेक वर्षों तक जर्मनी, रूस, चीन, अमेरिका, मैक्सिको आदि देशों की यात्राएं भी कीं। इन देशों में वे अनेक महान् विचारकों तथा साम्यवादी नेताओं के सम्पर्क में आये। जिनके क्रान्तिकारी विचारों का उनके दर्शन पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा। राय के दर्शन में भौतिकवाद, निरीश्वरवाद, व्यक्ति की स्वतंत्रता, लोकतंत्र, अंतर्राष्ट्रीयता और मानवतावाद का विशेष महत्त्व है।

भौतिक वस्तुवाद

अधिकतर भारतीय दार्शनिकों के विपरीत राय पूर्णत: भौतिकवादी तथा निरीश्वरवादी दार्शनिक थे। उनका यह दृढ़ विश्वास था कि सम्पूर्ण जगत् की व्याख्या भौतिकवाद के आधार पर ही की जा सकती है। इसके लिए ईश्वर जैसी किसी इन्द्रियातीत शक्ति के अस्तित्व को स्वीकार करने की कोई आवश्यकता नहीं है। प्राकृतिक घटनाओं के समुचित प्रेक्षण तथा सूक्ष्म विश्लेषण द्वारा ही उनके वास्वतिक स्वरूप और कारणों को समझा जा सकता है। विश्व का मूल तत्व भौतिक द्रव्य अथवा पुद्गल है और सभी वस्तुएँ इसी पुद्गल के विभिन्न रूपांतरण हैं, जो निश्चित प्राकृतिक नियमों के द्वारा नियंत्रित होते हैं। जगत् के मूल आधार इस पुद्गल के अतिरिक्त अन्य किसी वस्तु की अंतिम सत्ता नहीं है। अपने दर्शन को परम्परागत भौतिकवाद से पृथक् करने के लिए राय उसे भौतिकवाद के स्थान पर 'भौतिक वस्तुवाद' की संज्ञा देते हैं। वे मानवीय प्रत्यक्ष को ही सम्पूर्ण ज्ञान का मूल आधार मानते हैं। इस सम्बन्ध में उनका स्पष्ट कथन है कि 'मनुष्य द्वारा जिस वस्तु का प्रत्यय सम्भव है, वास्तव में उसी का अस्तित्व है और मानव के लिए जिस वस्तु का प्रत्यक्ष ज्ञान सम्भव नहीं है उसका अस्तित्व भी नहीं है।'

विचारधारा

अपनी इसी भौतिकवादी विचारधारा के आधार पर राय ईश्वर तथा दर्शन का अंतिम तत्व पुद्गल ही है। वर्तमान युग में स्वयं वैज्ञानिक भी आत्मा की सत्ता तथा पुनर्जन्म के सिद्धांत को अस्वीकार करते हैं। ऐसी स्थिति में यह समझना कठिन नहीं है कि उनके भौतिकवादी दर्शन में धर्म के लिए कोई स्थान नहीं है। एक ऐतिहासिक तथ्य के रूप में उन्होंने यह अवश्य स्वीकार किया है कि प्राचीन काल से ही मानव समाज पर धर्म का व्यापक प्रभाव रहा है। राय के मतानुसार यह एक दु:खद तथ्य है कि मनुष्य अपने सामाजिक सम्बन्धों की अपेक्षा ईश्वर के साथ अपने सम्बन्ध के विषय में तथा अपने वर्तमान जीवन की अपेक्षा मृत्यु के पश्चात् अपने पारलौकिक जीवन के विषय में ही अधिक चिंतित रहा है। अधिकतर धार्मिक मान्यताएं तथा सिद्धांत केवल आस्था पर ही आधारित है, जिनके विषय में तर्क करना अनुचित है, अत: धर्म के फलस्वरूप मनुष्य का स्वतंत्र बौद्धिक चिंतन प्राय: कुंठित हो जाता है।

व्यक्तिगत स्वतंत्रता

राय मनुष्य की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को विशेष महत्त्व देते हैं, क्योंकि उनके विचार में इस स्वतंत्रता के बिना व्यक्ति वास्तव में सुखी नहीं हो सकता। उनके राजनीतिक दर्शन का मूल आधार मनुष्य की व्यक्तिगत स्वतंत्रता ही है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता से उनका तात्पर्य यह है कि मनुष्य के कार्यों तथा विचाराभिव्यक्ति पर राज्य एवं समाज द्वारा अनुचित तथा अनावश्यक प्रतिबंध न लगाये जाएं और समाज को उन्नति का साधन मात्र न मानकर उसके विशेष महत्त्व को स्वीकार किया जाये। इस सम्बन्ध में राय का मार्क्सवादियों से तीव मतभेद है, क्योंकि मार्क्सवाद में मनुष्य की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का कोई स्थान नहीं है। अपनी युवावस्था में वे मार्क्सवाद से बहुत प्रभावित हुए थे, किन्तु बाद में उनके विचारों में परिवर्तन हुआ और वे इस विचारधारा को एकांगी तथा दोषपूर्ण मानने लगे।

मार्क्सवाद प्रणाली

रूस, चीन तथा अन्य साम्यवादी देशों में मार्क्सवाद पर आधारित शासन प्रणाली का विकास हुआ है। उसे राय समाज के लिए उपादेय नहीं मानते, क्योंकि इसमें व्यक्ति राज्य की प्रगति का साधान मात्र माना जाता है। और इस प्रकार उनकी महत्ता एवं स्वतंत्रता को स्वीकार नहीं किया जाता है। साम्यवादियों के विपरीत राय के सामाजिक तथा राजनीतिक दर्शन का केन्द्र व्यक्ति है, जिसकी स्वतंत्रता के लिए वे सदैव उन अधिनायकवादी शक्तियों के विरुद्ध संघर्ष करते रहे जो मनुष्य को उस की व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करती है। उनका विचार है कि स्वतंत्रताकांक्षी सभी व्यक्तियों को इन शक्तियों के विरुद्ध संगठित रूप से निरन्तर संघर्ष करना होगा, अन्यथा व्यक्ति की स्वतंत्रता सुरक्षित नहीं रह सकती। परन्तु यहीं यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि राय व्यक्ति की स्वतंत्रता को असीमित न मानकर सामाजिक हित द्वारा मर्यादित ही मानते हैं। समाज में रहते हुए प्रत्येक व्यक्ति को अपनी स्वतंत्रता के साथ-साथ दूसरों की स्वतंत्रता का भी सम्मान करना होगा, अत: किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से व्यवहार करने की स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती। ऐसी असीमित स्वतंत्रता वास्तव में व्यक्ति की स्वतंत्रता का निषेध करती है।

अंतर्राष्ट्रीयतावाद और मानवतावाद

राय मनुष्य की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ-साथ अतर्राष्ट्रीयतावाद के भी प्रबल समर्थक हैं। उनका विचार है कि वर्तमान युग में मानव समाज के समक्ष सबसे बड़ी समस्या विभिन्न राष्ट्रों के नागरिकों में संकुचित राष्ट्रीयता की तीव्र भावना है, जो उन्हें सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए सोचने तथा प्रयास करने से रोकती है। प्रत्येक देश के नेता दूसरे देशों के हित की चिंता किये बिना केवल अपने देश की प्रगति के लिए ही प्रयत्न करते हैं। फलत: मानव समाज भिन्न-भिन्न टुकड़ों में विभक्त हो गया है, जो प्राय: एक दूसरे के विरुद्ध कार्य करते हैं। आज विश्व में जो संघर्ष, निर्धनता, बेरोज़गारी तथा पारस्परिक अविश्वास है, उसका मुख्य कारण यह संकुचित राष्ट्रीयता की भावना ही है। राय का मत है कि जब तक मानव जाति इस संकुचित राष्ट्रवाद से मुक्त नहीं होती तब तक इन समस्याओं का समाधान सम्भव नहीं है। विश्व में एकता और शांति तभी स्थापित हो सकती है। जब हम केवल अपने देश के हित की दृष्टि से नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण की दृष्टि से सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक समस्याओं पर विचार करें। राय यह मानते हैं कि वर्तमान वैज्ञानिक युग में संकुचित, राष्ट्रवाद के लिए कोई स्थान नहीं है, क्योंकि इसके अनुसार आचरण करना अंतत: मानव जाति के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। यही कारण है कि मानव समाज में अंतर्राष्ट्रीयता की भावना के विकास को विशेष महत्त्व देते हैं।


अंत में यहाँ 'नव मानवतावद' के विषय में भी राय के विचारों का उल्लेख है, जो उनके दर्शन की प्रमुख विशेषता है। राय ने अपने मानवतावादी दर्शन को 'नव मानवतावाद' अथवा 'वैज्ञानिक मानवतावाद' की संज्ञा दी है, क्योंकि वह मनुष्य के स्वरूप तथा विकास के सम्बन्ध में विज्ञान द्वारा उपलब्ध नवीन ज्ञान पर आधारित है।

राय के इस विज्ञानसम्मत नव मानवतावाद में ईश्वर अथवा किसी अन्य दैवी शक्ति के लिए कोई स्थान नहीं है। मनुष्य के लिए यह समझ लेना बहुत आवश्यक है कि वह स्वयं ही अपने सुख-दु:ख के लिए उत्तरदायी है और वही अपने भाग्य का निर्माता है, इसमें कोई दैवी शक्ति उसकी सहायता नहीं कर सकती। इस संसार में मनुष्य के जीवन की कहानी उसके शरीर के साथ ही समाप्त हो जाती है, अत: मोक्ष की परम्परागत अवधारणा मिथ्या एवं भ्रामक है। राय के मत के अनुसार हमें कल्पित पारलौकिक जीवन की चिंता किये बिना इसी संसार में मनुष्य की वर्तमान समस्याओं के समाधान के लिए वैज्ञानिक ढंग से प्रयास करना चाहिए। अंतत: इसी में सम्पूर्ण मानव जाति का कल्याण निहित है और मनुष्य के लिए यह व्यावहारिक मानवतावादी दर्शन ही वास्तव में सार्थक हो सकता है।




सम्बन्धित प्रश्न



Comments Rekha ahir on 07-04-2023

Rekha ahir

Ranu kahar on 01-12-2022

एमएन रॉय का मानव मानवता का विचार लिखिए

Political science on 15-03-2022

9 molikvaad pr vichar


Tamnna ansari on 02-10-2021

M.n.roy ke ugr manavtawad ke bicharo ko likhe

Aditya yadav on 04-03-2021

M.n.roy ki navmanvtavad aur rajnaitik vichar ki vivechna kijiye

Navmanavbaad ko anya kin do namo s Jana jata h on 29-01-2020

Navmanavbaad ko anya kin do namo s Jana jata h

manvendra nath ray on 12-05-2019

manvedra nath ray ko 1930 m kiss kesh m girftar kiya gya h


Priya nirmal on 12-05-2019

Nav manvvad ko anya kin 2 naamo se jana jata h



manvendra nath ray on 12-05-2019

manvedra nath ray ko 1930 m kiss kesh m girftar kiya gya h

Priya nirmal on 12-05-2019

Nav manvvad ko anya kin 2 naamo se jana jata h

Ranbir singh on 12-05-2019

नवमानववाद



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