Makhanlal Chaturvedi Ke Kavya Ki Visheshta माखनलाल चतुर्वेदी के काव्य की विशेषता

माखनलाल चतुर्वेदी के काव्य की विशेषता



Pradeep Chawla on 30-09-2018

चतुर्वेदी जी की रचनाओं को प्रकाशन की दृष्टि से इस क्रम में रखा जा सकता है। 'कृष्णार्जुन युद्ध' ( 1918 ई.), 'हिमकिरीटिनी' ( 1941 ई.), 'साहित्य देवता' ( 1942 ई.), 'हिमतरंगिनी' ( 1949 ई.- साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत), 'माता' ( 1952 ई.)। 'युगचरण', 'समर्पण' और 'वेणु लो गूँजे धरा' उनकी कहानियों का संग्रह 'अमीर इरादे, ग़रीब इरादे' नाम से छपा है।

दो श्रेणियों में रचनाएँ

कवि के क्रमिक विकास को दृष्टि में रखकर माखनलाल चतुर्वेदी की रचनाओं को दो श्रेणी में रख सकते हैं।

  1. आरम्भिक काव्य- 1920 ई. के पहले की रचनाएँ
  2. परिणति काव्य- 1920 ई. से बाद की काव्य- सृष्टि


चतुर्वेदी जी की रचनाओं की प्रवृत्तियाँ प्रायः स्पष्ट और निश्चित हैं। राष्ट्रीयता उनके काव्य का कलेवर है तो भक्ति और रहस्यात्मक प्रेम उनकी रचनाओं की आत्मा। आरम्भिक रचनाओं में भी वे प्रवृत्तियाँ स्पष्टता परिलक्षित होती हैं। प्रभा के प्रवेशांक में प्रकाशित उनकी कविता 'नीति-निवेदन' शायद उनके मन की तात्कालीन स्थिति का पूरा परिचय देती है। इसमें कवि 'श्रेष्ठता सोपानगामी उदार छात्रवृन्द' से एक आत्म-निवेदन करता है। उन्हें पूर्वजों का स्मरण दिलाकर रत्नगर्भा मातृभूमि की रंकतापर तरस खाने को कहता है। उसी समय प्रभा भाग 1, संख्या 6 में प्रकाशित 'प्रेम' शीर्षक कविताओं से सबसे सावित्य प्रेम व्याप्त हो, इसके लिए सन्देश दिया है क्योंकि इस प्रेम के बिना 'बेड़ा पार' होने वाला नहीं है। माखनलाल जी की राष्ट्रीय कविताओं में आदर्श की थोथी उड़ाने भर नहीं है। उन्होंने खुद राष्ट्रीय संग्राम में अपना सब कुछ बलिदान किया है, इसी कारण उनके स्वरों में 'बलिपंथी' की सच्चाई, निर्भीकता और कष्टों के झेलने की अदम्य लालसा की झंकार है। यह सच है कि उनकी रचनाओं में कहीं-कहीं 'हिन्दू राष्ट्रीयता' का स्वर ज़्यादा प्रबल हो उठा है किंतु हम इसे साम्प्रदायिकता नहीं कह सकते, क्योंकि दूसरे सम्प्रदाय अहित की आकांक्षा इनमें रंचमात्र भी दिखाई न पड़ेगी। 'विजयदशमी' और प्रवासी भारतीय वृन्द' अथवा 'हिन्दुओं का रणगीत', 'मंजुमाधवी वृत्त' ऐसी ही रचनाएँ हैं। उन्होंने सामयिक राजनीतिक विषमों को भी दृष्टि में रखकर लिखा और ऐसे जलते प्रश्नों को काव्य का विषय बनाया।

कविता लेखन

20वीं शती के प्रथम दशक में ही चतुर्वेदी जी ने कविता लिखना आरंभ कर दिया था, पर आज़ादी के संघर्ष में सक्रियता का आवेश शनै:-शनै: उम्र के चढ़ाव के साथ परवान चढ़ा, जब वे बाल गंगाधर तिलक के क्रांतिकारी क्रिया-कलापों से प्रभावित होने के बावजूद महात्मा गाँधी के भी अनुयाई बने। आपने राष्ट्रीय चेतना को राजनैतिक वक्तव्यों से बाहर निकाला। राजनीति को साहित्य सृजन की टंकार से राष्ट्रीय रंगत बख्शी और जनसाधारण को जतलाया कि यह राष्ट्रीयता गहरे मानवीय सरोकारों से उपजती है, जिसका अपना एक संवेदनशील एवं उदात्त मानवीय स्तर होता है। अपनी रचनाओं में एक भारतीय आत्मा ने बलिपंथी के भाव को उद्घाटित किया है।


चतुर्वेदी जी राजनीति और रचना को साथ-साथ निभाते चलते थे। ऐसे श्रेष्ठ मुद्दे राजनीति में विलयित नहीं होने पाते। निज रचना-कर्म के विषय में, आत्म-विज्ञापन से दूर रहते हुए तनिक हल्के विनोद के साथ दादा (चतुर्वेदी जी) निज व्यथा इस तरह व्यक्त कर गए हैं। अपने दूसरे काव्य-संकलन ‘हिम तरंगिणी’ की भूमिका में उल्लेख है- ’कविता की धर्मशाला में, जहां कुछ लोग कमरे पा गए थे, कुछ दूसरे लोग फर्श पर बिस्तर डाले बैठे थे और कुछ अन्य पूरी धर्मशाला पर ही एकाधिकार किए थे… कई एक धर्मशाला की दीवारों पर हाथ की खड़िया मिट्टी से लिख रहे थे… वहीं सबसे सुरक्षित और श्रेष्ठ स्थान मेरा है।’ यह समय आज से 70-75 वर्ष पूर्व ' द्विवेदी युग' की शाकाहारी रूढ़िवादी चेतना से प्रभावित दृष्टि के संकुचित होते जाने का समय था। इस जड़वादिता के साथ छायावादी रोमानी चेतना से एक तरह की टकराहट चालू थी। दादाजी ने इनसे हटकर अपनी मौलिक चेतना का परिचय पाठकों को दिया।

आरम्भिक काव्य

माखनलाल जी की आरम्भिक रचनाओं में भक्तिपरक अथवा आध्यात्मिक विचारप्रेरित कविताओं का भी काफ़ी महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह सही है कि इन रचनाओं में इस तरह की सूक्ष्मता अथवा आध्यात्मिक रहस्य का अतीन्द्रिय स्पर्श नहीं है, जैसा छायावादी कवियों में है अथवा कवि की परिणत काव्यश्रेणीगत आने वाली कुछ रचनाओं में है। भक्ति का रूप यहाँ काफ़ी स्वस्थ है किंतु साथ ही स्थूल भी। कारण शायद यह रहा है कि इनमें कवि की निजी व्यक्तिगत अनुभूतियों का उतना योग नहीं है, जितना एक व्यापक नैतिक धरातल का, जिसे हम 'समूह- प्रार्थना कोटि' का काव्य कह सकते हैं। इसमें स्तुति या स्तोत्र शैली की झलक भी मिल जाती है। जैसा पहले ही कहा गया, कवि के ऊपर वैष्णव परम्परा का घना प्रभाव दिखायी पड़ता है। भक्तिपरक कविताओं को किसी विशेष सम्प्रदाय के अंतर्गत रखकर देखना ठीक न होगा, क्योंकि इन कविताओं में किसी सम्प्रदायगत मान्यता का निर्वाह नहीं किया गया है। इनमें वैष्णव, निर्गुण, सूफ़ी, सभी, तरह की विचारधाराओं का समंवय-सा दिखाई पड़ता है। कहीं देश प्रणय-निवेदन है, कहीं सर्म्पण, कहीं उलाहना और कहीं देश-प्रेम के तकाजे के कारण स्वाधीनता-प्राप्ति का वरदान भी माँगा गया है। 'रामनवमी' जैसी रचनाओं में देश-प्रेम और भगवत्प्रेम को समान धरातल पर उतारने का प्रयत्न स्पष्ट है।

परिणत काव्य

परिणत काव्य-सृष्टि में उपर्युक्त मुख्य प्रवृत्तियों का और भी अधिक विकास दिखाई पड़ता है। क्षोभ, उच्छ्वास के स्थान पर पीड़ा को सहने और उसे एक मार्मिक अभिव्यक्ति देने का प्रयत्न दिखाई पड़ता है। 'कैदी और कोकिला' के पीछे जो राष्ट्रीयता का रूप है, वह आरम्भिक अभिधात्मक काव्य-कृतियों से स्पष्ट ही भिन्न है। उसी प्रकार 'झरना' और 'आँसू' में भावों की गहराई और अनुभूतियों की योग्यता का स्वर प्रबल है, किंतु इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि इस दौरान उन्होंने उद्बोधन-काव्य लिखा ही नहीं। 'युग तरुण से', 'प्रवेश', 'सेनानी' आदि रचनाएँ उद्बोधन काव्य के अंतर्गत ही रखी जायेंगी। उन्होंने राजनीतिक घटनाओं को दृष्टि में रखकर श्रद्धांजलिमूलक काव्य भी लिखा। 'संतोष' 'नटोरियस वीर', 'बन्धन सुख' आदि में गणेशशंकर विद्यार्थी की मधुर स्मृतियाँ हैं तो राष्ट्रीय झण्डे की भेंट में हरदेवनारायण सिंह के प्रति श्रद्धा का निवेदन है।

माखन लाल चतुर्वेदी का डाक टिकट

छायावाद

परवर्ती काव्य में आध्यात्मिक रहस्य की धारा स्तुति और प्रार्थना के आध्यात्मिक धरातल के उतर कर सूक्ष्म रहस्य और भक्ति की अपेक्षाकृत अधिक स्वाभाविक भूमि पर बहती दिखाई पड़ती है। छायावादी व्यक्तित्व में विराट् की भावना का परिपारक है तो आध्यात्मिक रहस्य की धारा में किसी अज्ञात असीम प्रियतम के साथ समीप आत्मा का प्रणय-निवेदन। प्रकृति और आध्यात्मिक रहस्य का यह नया आलोक छायावादी कवि की जीवन दृष्टि का आधार है। माखनलाल जी की रचनाओं में भी यह आलोक है किंतु इसका रूप थोड़ा भिन्न है। भिन्न इस अर्थ में कि वे 'श्याम' या 'कृष्ण' की जिस रूपमाधुरी से आकृष्ट थे, उसको सुरक्षित रखते हुए रहस्य के इस क्षेत्र में प्रवेश करना चाहते हैं। अव्यक्त लोक में भी उन्हें 'बाँसुरी' भूल नहीं पाती है। इसी कारण माखनलाल की कविताओं में छायावादी रहस्य भावना का सगुण मधुरा भक्ति के साथ एक अजीब समन्वय दिखाई पड़ता है। उनका ईश्वर (निराकार) इतना निराकार नहीं है कि उसे वे नाना नाम रूप देकर उपलब्ध न कर सकें। वे खुदी को मिटाकर खुदा देखते है इसी कारण उनकी रचनाओं में छायावादी वैयक्तिकता का ऐकांतिक स्वर तीव्र नहीं सुनाई पड़ता है। रवीन्द्रनाथ की रहस्यवादी भावना का प्रभाव उन पर स्पष्ट है- 'चला तू अपने नभ को छोड़, पा गया मुझमें तव आकार।' अथवा 'अरे अशेष शेष की गोद, या मेरे 'मैं' ही में तो उदार तेरी अपनी है छुपी हार' आदि कृतियों में अज्ञात के प्रति निवेदन का स्वर स्पष्ट है, किंतु राधा के मुरलीधर को अपना नटवर कहने में वे कभी नहीं हिचकते। उनका मन जैसे सगुण रूप में ज़्यादा रमा है वैसे ही छायावादी शैली अपनाने पर भी वे आनन्द को व्यक्त करते समय 'नटवर' के प्रेम-आतंक से अपने को मुक्त न कर सके।

विशेष महत्त्व

छायावादी काव्य में प्रकृति एक अभिनव जीवंत रूप में चित्रित की गयी है। माखनलाल जी की कविताओं में प्रकृति चित्रण का भी एक विशेष महत्त्व है। मध्य प्रदेश की धरती का उनके मन में एक विशेष आकर्षण है। यह सही है कि कवि प्रकृति के रूप आकृष्ट करते हैं किंतु उसका मन दूसरी समस्याओं में इतना उलझा है कि उन्हें प्रकृति में रमने का अवकाश नहीं है। इस कारण प्रकृति उनके काव्य में उद्दीपन बनकर ही रह गयी है, चाहे राष्ट्रीय अध: पतन से उत्पन्न ग्लानि में शस्य-श्यामला भूमिकी दुरवस्था को सोचते समय, चाहे बन्दीखाने के सीकचों से जन्मभूमि को याद करते समय। छायावादी कवियों की तरह प्रकृति में सब कुछ खोजने का इन्हें अवकाश ही न था।

कृष्णार्जुन युद्ध और साहित्य देवता

गद्य रचनाओं में 'कृष्णार्जुन युद्ध' और 'साहित्य देवता' का विशेष महत्त्व है। 'कृष्णार्जुन युद्ध' अपने समय की बहुत लोकप्रिय रचना रही है। पारसी नाटक कम्पनियों ने जिस ढंग से हमारी संस्कृति को विकृत करने का प्रयत्न किया, वह किसी प्रबुद्ध पाठक से छिपा नहीं है। 'कृष्णार्जुन युद्ध' शायद ऐसे नाट्य प्रदर्शनों का मुहतोड़ जवाब था। गन्धर्व चित्रसेन अपने प्रमादजन्य कुकृत्य के कारण कृष्ण के क्रोध का पात्र बना। कृष्ण ने दूसरी सन्ध्या तक क्षमा न माँगने पर उसके वध की प्रतिज्ञा की। नारद को चित्रसेन का अपराध छोटा लगा, दण्ड भारी। उन्होंने प्रयत्नपूर्वक सुभद्रा के माध्यम से अर्जुन द्वारा चित्रसेन की रक्षा का प्रण करा लिया। अर्जुन और कृष्ण के युद्ध से सृष्टि का विनाश निकट आया जान ब्रह्मा आदि ने दौड़-धूप करके शांति की स्थापना की। इस पौराणिक नाटक को भारतीय नाटय परम्परा के अनुसार उपस्थित किया गया है। यह अभिनेयता की दृष्टि से काफ़ी सुलझी हुई रचना कही जा सकती है। 'साहित्य देवता' माखनलाल जी के भावात्मक निबन्धों का संग्रह है।

भाषा और शैली

भाषा और शैली की दृष्टि से माखनलाल पर आरोप किया जाता है कि उनकी भाषा बड़ी बेड़ौल है। उसमें कहीं-कहीं व्याकरण की अवेहना की गयी है। कहीं अर्थ निकालने के लिए दूरांवय करना पड़ता है, कहीं भाषा में कठोर संस्कृत शब्द हैं तो कहीं बुन्देलखण्डी के ग्राम्य प्रयोग। किंतु भाषा- शैली के ये सारे दोष सिर्फ एक बात की सूचना देते हैं कि कवि अपनी अभिव्यक्ति को इतना महत्त्वपूर्ण समझा है कि उसे नियमों में हमेशा आबद्ध रखना उन्हें स्वीकार नहीं हुआ है। भाषा- शिल्प के प्रति माखनलाल जी बहुत सचेष्ट रहे हैं। उनके प्रयोग सामान्य स्वीकरण भले ही न पायें,उनकी मौलिकता में सन्देह नहीं किया जा सकता।






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Comments Prince choudhary on 09-01-2024

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माखनलाल चतुर्वेदी को निबंध के लिए किस अखबार ने ईनाम दिया

Priyanka on 13-03-2023

हमारा प्रश्न के सवाल नही दे रहे है


संजय झा on 15-04-2022

माखनलाल चतुर्वेदी के काव्य की मूल संवेदना को स्पष्ट कीजिए

Choudhar singh on 06-03-2022

माखनलाल चतुर्वेदी की काव्यगत विशेषताएं

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Makhanlal chaturvedi ke kala pakch ki do visheshtay likhiye

Kavi pradeep ki wisheshta on 04-01-2022

Kavi pradeep ki wishes hta in hindi


Dec singh on 27-12-2021

माखन् लाल् चतुर्वेदी के काव्य की विशेषताएं



Khushbu patel Khushbu patel on 12-10-2018

VisestYe

Bhuvi on 15-11-2018

Maakhanlal chaturvedi ki rachnaon ki visheshtaen

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Makhanlal chaturvedi ke kavya ki visheshtayen

Priya patel on 12-05-2019

Kya hota hai is Universitye


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Makhan lal chaturvedi ka kavy gat vishestay

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Makhonlal chaturbedi ki kabyagot bisesota

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Makhanlala chaturvedi k kavya ki visheshtaye

Abdulwamish on 25-01-2021

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Guddi sharma on 27-02-2021

Chaturvedi ke kavya ki visheshta

Keshav yadav on 06-06-2021

Makhanlal chaturvedi Ka vishetaye


Shital jatav on 24-06-2021

मखंलाल चतुर्वेदी की काव्यगत विशेषताएँ पर प्रकाश डालिए

Om narayan on 13-07-2021

Makan Lal chaturvedi Kavita Ka mu sawar desh prem aur rashtriy jagran he viwechna kijiye

Ankushkumar Suryawanshi on 13-07-2021

पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के काव्य की विशेषताओं की विवेचना कीजिए

Renu Prajapati on 20-07-2021

Makanlal chaturvedi ke kalapach ki samiksha kijeye

Pawan on 04-12-2021

Makhnlal ke kavya ki visheshtaye



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