Kavi Dev Ki Bhasha Shaili कवि देव की भाषा शैली

कवि देव की भाषा शैली



Pradeep Chawla on 14-10-2018


देव की बहुसंख्यक रचनाओं का उल्लेख किया जाता है। कुछ लोग इनके ग्रंथों की संख्या 72 और कुछ लोग 52 कहते हैं। परंतु इनके प्रामाणिक ग्रंथ, जो प्राप्त होते हैं, 18 हैं। अन्य नौ ग्रंथ भी इनके नाम से उल्लिखित हैं और इस प्रकार कुल 27 ग्रंथ इनके नाम से मिलते हैं। निर्विवाद रूप से जिन 18 ग्रंथों को देवकृत स्वीकार किया जा सकता है वे इस प्रकार हैं-

(1) भावविलास (2) अष्टयाम (3) भवानीविलास (4) रसविलास (5) प्रेमचंद्रिका (6) राग रत्नाकर (7) सुजानविनोद (8) जगद्दर्शन पचीसी (9) आत्मदर्शन पचीसी
(10) तत्वदर्शन पचीसी (11) प्रेम पचीसी (इन चारों पचीसियों का नाम देवशतक भी है।) (12) शब्दरसायन (13) सुखसागर तरंग (इतने ग्रंथ प्रकाशित हैं)

हस्तलिखित ग्रंथ हैं -

(14) प्रेमतरंग (15) कुसलविलास (16) जातिविलास (17) देवचरित्र (18) देवमायाप्रपंच।

देवकृत एक संस्कृत ग्रंथ भी 'शृंगांर विलासिनी' नाम से भरतपुर से प्रकाशित हुआ था। इसका विषय भी श्रृगांर और नायिकाभेद है और हिंदी छंदों की रचना इस ग्रंथ में संस्कृत भाषा में की गई है। यद्यपि इसकी रचना शुद्ध संस्कृत में है, फिर भी देव की वास्तविक प्रतिभा के दर्शन इसमें नहीं होते।


देव के इन बहुसंख्यक ग्रंथों से यह निष्कर्ष निकालना कि सभी ग्रंथ एक दूसरे से भिन्न हैं, भ्रमात्मक है। इनके एक ग्रंथ के अनेक छंद दूसरे ग्रंथों में मिलते हैं और प्राय: इन्होंने अपने किसी पूर्ववर्ती ग्रंथ को आश्रयदाता का नाम बदलकर दूसरा नाम दे दिया है। देव का अधिकांश वर्ण्य विषय प्रेम और शृंगार है, परंतु प्रेम और शृंगार के सबंध में उनकी धारणा अत्यंत उच्च है और उनकी भावना उदात्त और उज्वल रूप में प्रकट हुई है। देव का काव्यशास्त्रीय विवेचन भी, जो इनके ग्रंथों में लक्षण अंशों में प्राप्त होता है, अपनी मौलिक विशेषता रखता है। परंतु देव की अधिक प्रसिद्धि उनके लक्षणों में न होकर उदाहरणों में समाहित है।


देव के सवैया और घनाक्षरी दोनों ही अपनी छाप रखते हैं और देव की सुंदर रचनाओं को किसी दूसरे कवि की रचनाओं से मिलाकर छिपा रखना संभव न होगा। देव की रचनाओं में जितना व्यापक अनुभव मिलता है उतनी ही गहरी भावुकता भी प्राप्त होती है। किसी भी भाव का देव जैसा सजीव और मर्मस्पर्शी वर्णन असाधारण वस्तु है। देव की कल्पना केवल ऊहात्मक विशेषता ही नहीं रखती, वरन् वह अनुभूति के रस से सिंचित होकर सरसता संपन्न होती है। इसी प्रकार देव की शब्दावली भी अपनी है। देव की शब्दावली में संगीतमय प्रवाहयुक्त शब्दचयन, छंद को सहज स्मरणीय बना देता है और रूप, सौंदर्य, वस्तु, चरित्र के चित्रण में देव को अप्रतिम सफलता प्राप्त हुई है। देव अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण हिंदी साहित्य में अत्यंत उत्कृष्ट स्थान के अधिकारी हुए हैं, यद्यपि समसामयिक राज्य सम्मान इन्हें वैसा प्राप्त नहीं हुआ था जैसा इन्हें मिलना चाहिए था।




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Comments Khushi on 26-07-2022

Kavi dev ki rachna shaili ki visheshtaayein spasht kijiye

Kamal on 03-05-2022

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Kavi dev k done


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Kavi dev ki rachnaye





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