Jansankhya Visfot Ka Paryavaran Par Prabhav जनसंख्या विस्फोट का पर्यावरण पर प्रभाव

जनसंख्या विस्फोट का पर्यावरण पर प्रभाव



Pradeep Chawla on 12-05-2019

बढ़ती जनसंख्या की विकरालता का सीधा प्रभाव प्रकृति पर पड़ता है जो जनसंख्या के आधिक्य से अपना संतुलन बैठाती है और फिर प्रारम्भ होता है असंतुलित प्रकृति का क्रूरतम तांडव जिससे हमारा समस्त जैव मण्डल प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। इस बात की चेतावनी आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व माल्थस नामक अर्थशास्त्री ने अपने एक लेख में दी थी। इस लेख में माल्थस ने लिखा है कि यदि आत्मसंयम और कृत्रिम साधनों से बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित नहीं किया गया तो प्रकृति अपने क्रूर हाथों से इसे नियंत्रित करने का प्रयास करेगी।



यदि आज हम अपने चारों ओर के वातावरण के संदर्भ में विचार करें तो पाएँगे कि प्रकृति ने अपना क्रोध प्रकट करना प्रारम्भ कर दिया है। आज सबसे बड़ा संकट ग्रीन हाउस प्रभाव से उत्पन्न हुआ है, जिसके प्रभाव से वातावरण के प्रदूषण के साथ पृथ्वी का ताप बढ़ने और समुद्र जल स्तर के ऊपर उठने की भयावह स्थिति उत्पन्न हो रही है। ग्रीन हाउस प्रभाव वायुमण्डल में कार्बन डाईऑक्साइड, मीथेन, क्लोरोफ्लोरो कार्बन (सी.एफ.सी.) आदि गैसों की मात्रा बढ़ जाने से उत्पन्न होता है। ये गैस पृथ्वी द्वारा अवशोषित सूर्य ऊष्मा के पुनः विकरण के समय ऊष्मा का बहुत बड़ा भाग स्वयं शोषित करके पुनः भूसतह को वापस कर देती है जिससे पृथ्वी के निचले वायुमण्डल में अतिरिक्त ऊष्मा के जमाव के कारण पृथ्वी का तापक्रम बढ़ जाता है। तापक्रम के लगातार बढ़ते जाने के कारण आर्कटिक समुद्र और अंटार्कटिका महाद्वीप के विशाल हिमखण्डों के पिघलने के कारण समुद्र के जलस्तर में वृद्धि हो रही है जिससे समुद्र तटों से घिरे कई राष्ट्रों के अस्तित्व को संकट उत्पन्न हो गया है। हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार आज से पचास वर्ष के बाद मालद्वीप देश समुद्र में डूब जाएगा। भारत के समुद्रतटीय क्षेत्रों के सम्बंध में भी ऐसी ही आशंका व्यक्त की जा रही है।



वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसों की वृद्धि का कारण बढ़ती हुई जनसंख्या की निरंतर बढ़ रही आवश्यकताओं से जुड़ा हुआ है। जब एक देश की जनसंख्या बढ़ती है तो वहाँ की आवश्यकताओं के अनुरूप उद्योगों की संख्या बढ़ जाती है। आवास समस्या के निराकरण के रूप में शहरों का फैलाव बढ़ जाता है जिससे वनों की अंधाधुंध कटाई होती है। दूर-दूर बस रहे शहरों के बीच सामंजस्य स्थापित करने के बहाने वाहनों का प्रयोग बहुत अधिक बढ़ जाता है जिससे वायु प्रदूषण की समस्या भी उतनी ही अधिक बढ़ जाती है। इस तरह बढ़ती जनसंख्या हमारे पर्यावरण को तीन प्रमुख प्रकारों से प्रभावित करती है।



उद्योगों की बढ़ती संख्या



बढ़ती जनसंख्या की बढ़ती आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए आज ईंधनों, कोयला और पेट्रोलियम जनित उद्योगों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है। अनुमानतः विश्व में प्रतिवर्ष लगभग 4.5 अरब टन जीवश्म ईंधन की खपत हो रही है। जिसके फलस्वरूप कार्बन डाईऑक्साइड सहित सभी ग्रीन हाउस गैसें वायुमण्डल में पहुँच रही हैं। क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैस, जिसे वर्तमान में सबसे अधिक हानिकारक गैस माना जा रहा है, आजकल उद्योगों में बहुतायत से प्रयोग में लाई जा रही है। यहाँ तक कि एअर कंडीशनिंग व रेफ्रीजरेशन प्रक्रियाओं, औषधि निर्माण, इलेक्ट्रानिक उद्योग तथा फोम उद्योग आदि में इस गैस का प्रयोग इधर कुछ वर्षों में बहुत बढ़ गया है। ओजोन परत के क्षरण के लिये उत्तरदायी मानी जा रही इस गैस के कारण त्वचीय कैंसर जैसे घातक रोग उत्पन्न करने वाली अल्ट्रावायलेट किरणों के पृथ्वी पर पहुँचने की आशंका बढ़ गयी है।



ग्रीन हाउस प्रभाव के अतिरिक्त औद्योगीकरण का एक और हानिकारक परिणाम सामने आया है, वह है अम्ल वर्षा। कुछ उद्योगों के कारण वातावरण में सल्फर डाईऑक्साइड गैसें पहुँचती हैं जो वायुमण्डलीय गैसों से संयोग करके अम्ल में परिवर्तित हो जाती हैं और फिर वर्षा के साथ पृथ्वी पर पहुँचकर कई जैविकीय व्याधियों को जन्म देती हैं।



वनों की अत्यधिक हानि



बढ़ती जनसंख्या का सबसे प्रत्यक्ष प्रमाण जो देखने को मिलता है वह है ‘शहरीकरण’। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती जाती है, आवास की समस्या भी बढ़ती जाती है और परिणाम स्वरूप शहर अनियमित रूप से फैलने लगते हैं। इस प्रक्रिया में सर्वाधिक हानि वनों की होती है। अकेले भारत में ही प्रतिवर्ष 16 लाख हेक्टेयर वन उजड़ रहे हैं। यद्यपि सरकारी नीति के अनुसार देश में कुल भूभाग का 33 प्रतिशत भाग वन होना आवश्यक है लेकिन फिर भी कुल 21 प्रतिशत भाग ही वनों से आच्छादित है। राजस्थान में तो केवल 9 प्रतिशत भू-भाग पर ही वन बचे रह गये हैं।



पेड़-पौधे अपना भोजन बनाने की प्रक्रिया ‘प्रकाश संशलेषण’ में कार्बन डाईऑक्साइड को ग्रहण कर लेते हैं और बदले में ऑक्सीजन गैस उत्पन्न करके छोड़ते हैं यही ऑक्सीजन गैस वायुमण्डल को शुद्ध करती है तथा इसी को जीव जाति अपनी सांस लेने की प्रक्रिया में ग्रहण करते हैं। यही नहीं पेड़-पौधे कुछ औद्योगिक अवशेष जैसे सीसा, पारा, निकिल इत्यादि कणों को छानने का कार्य भी करते हैं इसके अतिरिक्त वनों द्वारा ही हमारी पृथ्वी पर जलीय संतुलन बना रह पाया है।



वनों के कटने से जहाँ एक ओर वृक्षों द्वारा प्रकाश संश्लेषण के लिये कार्बन डाईऑक्साइड का उपयोग कम हो जाता है वहीं दूसरी ओर जब वन कटते हैं तो पृथ्वी के भीतर कुछ कार्बन ऑक्सीकृत होकर वायु मण्डल में प्रवेश कर जाता है, जिससे वायुमण्डल में कार्बनडाईऑक्साइड की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है और वातावरण का ताप बढ़ जाता है।



वाहनों का बढ़ता प्रयोग



आज जिस गति से जनसंख्या बढ़ रही है उससे कहीं अधिक तेजी से स्वचालित वाहनों की संख्या बढ़ रही है। फलस्वरूप जो ऑक्सीजन जीवधारियों के प्रयोग में आनी चाहिए वह स्वचालित वाहनों द्वारा प्रयोग में लायी जा रही है और बदले में जीवधारियों को मिल रहा है इन वाहनों द्वारा वायुमण्डलों में छोड़ा गया जहरला धुँआ जो विभिन्न प्रकार की मानव व्याधियों को जन्म दे रहा है।



वाहनों द्वारा प्रदूषित किए जा रहे वायुमण्डल से उपज रही परेशानियों को देखते हुए भारत सरकार ने 1988 में नया मोटर वाहन कानून देश में लागू किया। इसमें प्रदूषण फैलाने वालों के मालिकों को सजा देने का प्रावधान किया है। लेकिन फिर भी दिन पर दिन स्थिति भयावह रूप लेती जा रही है। आज भारत के लगभग सभी छोटे-छोटे शहर वाहन जनित वायु प्रदूषण की चपेट में हैं जिसमें बम्बई, कलकत्ता और दिल्ली का तो बहुत ही बुरा हाल है। बम्बई का सबसे अधिक विकसित क्षेत्र चेम्बूर प्रायः अम्ल युक्त वायु से घिरा रहता है। दिल्ली आदि बड़े शहरों की सड़कों पर चलने वाले लोगों के शरीर पर काले रंग की कार्बनयुक्त धूल जम जाती है। यही धूल सांस के द्वारा शरीर के भीतर पहुँचकर नेत्र रोग, चर्मरोग तथा श्वास रोगों को जन्म देती है।



आज आवश्यकता है कि बढ़ती जनसंख्या पर कारगर रोक लगायी जाए ताकि वर्तमान एवं भविष्य में आने वाली मानव पीढ़ियों को स्वस्थ पर्यावरण में जीवन व्यतीत करने का अवसर मिल सके।




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Comments Ankita Singh on 03-03-2024

जनसंख्या विस्फोट के क्या कारण हैं इसका पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

Divya sa on 01-02-2023

जनसंख्या विस्फोट का पर्यावरण पर प्रभाव पर्यावरणीय अध्ययन

Nikhil on 30-01-2023

Who are google mini?


Nikhil on 30-01-2023

Where are gogle mini?

sachin rawat on 12-05-2019

jansankhya visfpt ke prbhav





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