Aadhunik Itihas Lekhan आधुनिक इतिहास लेखन

आधुनिक इतिहास लेखन



GkExams on 18-11-2018

इतिहास लेखन या इतिहास-शास्त्र (Historiography) से दो चीजों का बोध होता है- (1) इतिहास के विकास एवं क्रियापद्धति का अध्यन तथा (2) किसी विषय के इतिहास से सम्बन्धित एकत्रित सामग्री। इतिहासकार इतिहासशास्त्र का अध्ययन विषयवार करते हैं, जैसे- भारत का इतिहास, जापानी साम्राज्य का इतिहास आदि।

परिचय

इतिहास के मुख्य आधार युगविशेष और घटनास्थल के वे अवशेष हैं जो किसी न किसी रूप में प्राप्त होते हैं। जीवन की बहुमुखी व्यापकता के कारण स्वल्प सामग्री के सहारे विगत युग अथवा समाज का चित्रनिर्माण करना दु:साध्य है। सामग्री जितनी ही अधिक होती जाती है उसी अनुपात से बीते युग तथा समाज की रूपरेखा प्रस्तुत करना साध्य होता जाता है। पर्याप्त साधनों के होते हुए भी यह नहीं कहा जा सकता कि कल्पनामिश्रित चित्र निश्चित रूप से शुद्ध या सत्य ही होगा। इसलिए उपयुक्त कमी का ध्यान रखकर कुछ विद्वान् कहते हैं कि इतिहास की संपूर्णता असाध्य सी है, फिर भी यदि हमारा अनुभव और ज्ञान प्रचुर हो, ऐतिहासिक सामग्री की जाँच-पड़ताल को हमारी कला तर्कप्रतिष्ठत हो तथा कल्पना संयत और विकसित हो तो अतीत का हमारा चित्र अधिक मानवीय और प्रामाणिक हो सकता है। सारांश यह है कि इतिहास की रचना में पर्याप्त सामग्री, वैज्ञानिक ढंग से उसकी जाँच, उससे प्राप्त ज्ञान का महत्व समझने के विवेक के साथ ही साथ ऐतिहासक कल्पना की शक्ति तथा सजीव चित्रण की क्षमता की आवश्यकता है। स्मरण रखना चाहिए कि इतिहास न तो साधारण परिभाषा के अनुसार विज्ञान है और न केवल काल्पनिक दर्शन अथवा साहित्यिक रचना है। इन सबके यथोचित संमिश्रण से इतिहास का स्वरूप रचा जाता है।


इतिहास न्यूनाधिक उसी प्रकार का सत्य है जैसा विज्ञान और दर्शनों का होता है। जिस प्रकार विज्ञान और दर्शनों में हेरफेर होते हैं उसी प्रकार इतिहास के चित्रण में भी होते रहते हैं। मनुष्य के बढ़ते हुए ज्ञान और साधनों की सहायता से इतिहास के चित्रों का संस्कार, उनकी पुरावृत्ति और संस्कृति होती रहती है। प्रत्येक युग अपने-अपने प्रश्न उठाता है और इतिहास से उनका समाधान ढूंढ़ता रहता है। इसीलिए प्रत्येक युग, समाज अथवा व्यक्ति इतिहास का दर्शन अपने प्रश्नों के दृष्टिबिंदुओं से करता रहता है। यह सब होते हुए भी साधनों का वैज्ञानिक अन्वेषण तथा निरीक्षण, कालक्रम का विचार, परिस्थिति की आवश्यकताओं तथा घटनाओं के प्रवाह की बारीकी से छानबीन और उनसे परिणाम निकालने में सर्तकता और संयम की अनिवार्यता अत्यंत आवश्यक है। उनके बिना ऐतिहासिक कल्पना और कपोलकल्पना में कोई भेद नहीं रहेगा।


इतिहास की रचना में यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि उससे जो चित्र बनाया जाए वह निश्चित घटनाओं और परिस्थितियों पर दृढ़ता से आधारित हो। मानसिक, काल्पनिक अथवा मनमाने स्वरूप को खड़ा कर ऐतिहासिक घटनाओं द्वारा उसके समर्थन का प्रयत्न करना अक्षम्य दोष होने के कारण सर्वथा वर्जित है। यह भी स्मरण रखना आवश्यक है कि इतिहास का निर्माण बौद्धिक रचनात्मक कार्य है अतएव अस्वाभाविक और असंभाव्य को प्रमाणकोटि में स्थान नहीं दिया जा सकता। इसके सिवा इतिहास का ध्येयविशेष यथावत् ज्ञान प्राप्त करना है। किसी विशेष सिद्धांत या मत की प्रतिष्ठा, प्रचार या निराकरण अथवा उसे किसी प्रकार का आंदोलन चलाने का साधन बनाना इतिहास का दुरुपयोग करना है। ऐसा करने से इतिहास का महत्व ही नहीं नष्ट हो जाता, वरन् उपकार के बदले उससे अपकार होने लगता है जिसका परिणाम अंततोगत्वा भयावह होता है।






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Comments Huda on 29-06-2022

Aadhunik itihas lekhan kis Siddhant pr aadharit h





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