पोलोनियम परमाणु रिएक्टर में रेडियोएक्टिव पदार्थ जैसे रेडियम, यूरेनियम या प्लूटोनियम के विखंडन के फलस्वरूप बनता है। यह बहुत ही जहरीला होता है।
पोलोनियम की खोज
पोलोनियम को शुरुआत में ‘रेडियम एफ’ नाम दिया गया था और इसकी खोज मशहूर वैज्ञानिक और नोबल पुरस्कार विजेता दंपति मैरी क्यूरी और उनके पति पियरे क्यूरी ने सन् 1898 में की थी। मैरी क्यूरी मूलतः पोलैंड की निवासी थीं और जब पोलोनियम की खोज हुई थी तो उस समय पोलैंड, रूस, पुरुशियाई, और आस्ट्रिया के कब्ज़े में था। इसलिए मैरी क्यूरी ने सोचा कि अगर इस तत्व का नाम उनके देश पोलैंड के नाम पर रख दिया जाएगा तो शायद दुनिया का ध्यान पोलैंड की गुलामी की ओर जाएगा। इस कारण इस नए खोजे गए तत्व का नाम ‘रेडियम एफ’ से बदलकर पोलैंड के सम्मान में ‘पोलोनियम’ रखा और प्रथम विश्व युद्ध के बाद सन् 1918 में पोलैंड एक आजाद देश बन गया।
इस तत्व की खोज तब हुई, जब क्यूरी दंपति पिचब्लेंड (खोदने पर मिली पथरीली सामग्री) की रेडियोएक्टिविटी (रेडियोधर्मिता) पर शोध कर रहे थे। उन्होंने पाया कि पिचब्लेंड में से दोनों रेडियोएक्टिव पदार्थ यानी यूरेनियम और थोरियम, अलग करने के बावजूद भी पिचब्लेंड, यूरेनियम और थोरियम से ज्यादा रेडियोएक्टिव था। इस नतीजे ने क्यूरी दंपति को और रेडियोएक्टिव तत्वों की खोज करने के लिए प्रेरित किया और इन्होंने पिचब्लेंड से पहले पोलोनियम और इसके कुछ वर्ष बाद रेडियम पृथक किया।
अल्फा एवं बीटा विकिरण
अल्फा विकिरण एक उच्च आयनीकृत कणों का विकिरण होता है, जिसकी भेदने की क्षमता सबसे कम होती है। अल्फा कणों में दो प्रोटोन और दो न्यूट्रॉन होते हैं, जो हीलियम के नाभिक जैसे कण में आपस में जुड़े होते हैं, इसलिए इन्हें He2+ लिखा जाता है। परमाणु की परमाणविक संख्या 2 के अनुसार कम हो जाती है क्योंकि परमाणु से 2 प्रोटोन निकल जाते हैं और नए तत्व का निर्माण होता है, उदाहरण के लिए अल्फा विघटन के कारण रेडियम, रोडोन गैस बन जाता है। अल्फा कणों की गति ज्यादा नहीं होती बल्कि सभी सामान्य प्रकार के विकरण में सबसे कम होती है क्योंकि इनका द्रव्यमान ज्यादा होता है यानी ज्यादा ऊर्जा अपने चार्ज (आवेश) और बड़े द्रव्यमान के कारण इन्हें एक पतला टिशू पेपर या फिर मानव शरीर की बाह्य त्वचा भी आसानी से अवशोषित कर सकते हैं। इसीलिए अल्फा उत्सर्जकों का फेफड़ों या शरीर में अवशोषित होना या खाने के साथ शरीर में जाना काफी खतरनाक होता है। बीटा विकिरण में इलेक्ट्रॉन होते हैं, जो एल्यूमीनियम प्लेट से रोके जा सकते हैं। गामा विकिरण और अंदर तक भेद सकते हैं। बीटा कण, पोटैशियम-40 जैसे कुछ रेडियोएक्टिव नाभिक से उत्सर्जित होते हैं जो उच्च ऊर्जा, उच्च गति वाले इलेक्ट्रॉन या पोजीट्रॉन होते हैं।
कितना है पोलोनियम?
पोलोनियम प्रकृति में पाया जाने वाला एक दुर्लभ एवं अत्यधिक रेडियोएक्टिव (रेडियोधर्मी) रासायनिक तत्व है जो Po के चिन्ह द्वारा दर्शाया जाता है और इसकी परमाणु संख्या 34 है। पोलोनियम की विरलता का पता इसी से लगाया जा सकता है कि यूरेनियम अयस्क के प्रति मीट्रिक टन में इसकी मात्रा करीब 100 ग्राम होती है। प्रकृति में जितनी रेडियम की मात्रा होती है, उसकी लगभग 0.2 प्रतिशत मात्रा पोलोनियम की होती है।
किसी भी ज्ञात तत्व में सर्वाधिक आइसोटोप यानी समस्थानिक, पोलोनियम के हैं और पोलोनियम के सभी आइसोटोप रेडियोएक्टिव हैं। पोलोनियम के 25 ज्ञात आइसोटोप हैं। इनमें 210Po यानी पोलोनियम 210, सबसे ज्यादा उपलब्ध है।
पोलोनियम 210 की हाफ लाइफ यानी अर्ध आयु (वह अवधि, जिसमें तत्व अपनी रेडियोधर्मिता की आधी क्षमता खो देता है), लगभग 138 दिनों की होती है। इसी तरह, पोलोनियम 209 (209Po) की अर्ध आयु 103 वर्ष तथा पोलोनियम 208 (208Po) की अर्ध आयु 2.9 वर्षों की होती है। पोलोनियम 209 और 208 को सीसे (Pb) या बिस्मथ (Bi) पर अल्फा, प्रोटॉन या ड्यूट्रॉन की साइक्लोट्रॉन में बारिश द्वारा भी बनाया जा सकता है। साइक्लोट्रॉन एक ऐसा उपकरण है जो परमाणविक कणों की गति बढ़ा सकता है यानी साइक्लोट्रॉन के उपयोग द्वारा बिस्मथ पर प्रोटॉन की बारिश करवा कर ज्यादा आयु वाले पोलोनियम के आइसोटोप बनाए जा सकते हैं।
1934 में अमेरिका में किए गए एक प्रयोग से यह सामने आया कि जब प्राकृतिक बिस्मथ (209Bi) पर न्यूट्रॉन की बारिश की जाती है तो 210Bi यानी बिस्मथ 210 बन जाता है, जो बीटा क्षय के कारण 210Po यानी पोलोनियम 210 में परिवर्तित हो जाता है। इस विधि द्वारा भी ‘न्यूक्लियर रिएक्टरों’ में पाए जाने वाले न्यूट्रॉन प्रवाह से भी कुछ मि.ग्रा. मात्रा में ही पोलोनियम तैयार किया जाने लगा है। हर वर्ष करीब 100 ग्राम पोलोनियम का उत्पादन किया जाता है, जिस कारण बहुत ही दुर्लभ तत्वों में इसकी गिनती होती है।
पोलोनियम 210 से असंख्य अल्फा कण निकलते हैं, जो किसी भी गाढ़े माध्यम में थोड़ी ही दूरी तक जा पाते हैं और रुकते ही यह अल्फा कण अपने में समाई ऊर्जा छोड़ देते हैं। पोलोनियम 210 के क्षय से इतनी ज्यादा ऊष्मा निकलती है (140 वाट प्रति ग्राम) की एक साधारण से दवाई वाले कैप्सूल में अगर आधा ग्राम पोलोनियम 210 भर दिया जाए तो इसका तापमान 500 डिग्री सेंटीग्रेड से भी ज्यादा पहुंच जाएगा। अपने इसी गुण के कारण पोलोनियम 210 का उपयोग एक हल्के ऊष्मा के स्रोत के रूप में कृत्रिम उपग्रह के ताप विद्युतीय सैलों में किया जाता है। चंद्रमा की सतह पर गए प्रत्येक लूनोखोड रोवर में पोलोनियम 210 को ऊष्मा के स्रोत के रूप में रखा गया था, जिसका काम चंद्रमा की ठंडी रातों में रोवर के अंदरूनी उपकरणों को गर्म रखना था। क्योंकि अल्फा कण पॉजिटिव चार्ज कण होते हैं, इसलिए पोलोनियम 210 का उपयोग विद्युत स्थैतिक (इलैक्ट्रो स्टेटिक) को निष्क्रिय करने के लिए किया जाता है। कुछ प्रति-स्थैतिक ब्रशों में पोलोनियम 210 की मात्रा 500 माइक्रोक्यूरी तक होती है। उदाहरण के लिए फोटोग्राफिक फिल्मों को डेवलप करने वाली लैब में इन ब्रशों का उपयोग किया जाता है। इसी तरह कपड़ा उद्योग, स्टील रोलिंग मिल्स आदि में भी पोलोनियम का उपयोग प्रति-स्थैतिक के रूप में किया जाता है।
Mujhe bhi polonium 210 chahiye kaha milega
madam curi and Meri curi ek hi hai ya nahin
Polonium kaha mile ga Punjab mein kis lab mein mil sakta hai
पोलोनियम कहा मिलेगा
Ye jo poloniam hai ye kaise banta hai
Aur ise banane ki vidhi kya hai
इसके निर्माण की तकनीकी विधि की जानकारी दी जाए ताकि इसका उपयोग ऊष्मा उत्पादन में किया जाए
इसको कैसे बनाया जाता है
Is jahar ko kaise banate h pls find
पोलोनियम कैसे बनता है
polonium 210 kese banta h
Ish poison se me kuch experiment karna chata hu ye kha millega
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