Rajasthan Diwas Kavita राजस्थान दिवस कविता

राजस्थान दिवस कविता



GkExams on 12-05-2019

हल्दी घाटी में समर लड़यो,

वो चेतक रो असवार कठे?

मायड़ थारो वो पुत कठे?

वो एकलिंग दीवान कठे?

वो मेवाड़ी सिरमौर कठे?

वो महाराणा प्रताप कठे?





मैं बाचों है इतिहासां में,

मायड़ थे एड़ा पुत जण्या,

अन-बान लजायो नी थारो,

रणधीरा वी सरदार बण्या,

बेरीया रा वरसु बादिळा,

सारा पड ग्या ऊण रे आगे,

वो झुक्यो नही नर नाहरियो,

हिन्दवा सुरज मेवाड़ रतन

वो महाराणा प्रताप कठे?

मायड़ थारो वो पुत कठे?

वो एकलिंग दीवान कठे?

वो मेवाड़ी सिरमौर कठे?

वो महाराणा प्रताप कठे?





ये माटी हळदीघाटी री,

लागे केसर और चंदन है,

माथा पर तिलक करो इण रो,

इण माटी ने निज वंदन है.

या रणभूमि तीरथ भूमि, द

र्शन करवा मन ललचावे,

उण वीर-सुरमा री यादा,

हिवड़ा में जोश जगा जावे,

उण स्वामी भक्त चेतक री टापा,

टप-टप री आवाज कठे?

मायड़ थारो वो पुत कठे?

वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर

कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?





संकट रा दन देख्या जतरा,

वे आज कुण देख पावेला,

राणा रा बेटा-बेटी न,

रोटी घास री खावेला

ले संकट ने वरदान समझ,

वो आजादी को रखवारो,

मेवाड़ भौम री पति राखण ने,

कदै भले झुकवारो,

चरणा में धन रो ढेर कियो,

दानी भामाशाह आज कठे?

मायड़ थारो वो पुत कठे?

वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर

कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?





भाई शक्ति बेरिया सूं मिल,

भाई सूं लड़वा ने आयो,

राणा रो भायड़ प्रेम देख,

शक्ति सिंग भी हे शरमायों,

औ नीला घोड़ा रा असवार,

थे रुक जावो-थे रुक जावो

चरणा में आई प़डियो शक्ति,

बोल्यो मैं होकर पछतायो,

वो गळे मिल्या भाई-भाई,

जूं राम-भरत रो मिलन अठे,

मायड़ थारो वो पुत कठे?

वो एकलिंग दीवान कठे? वो महाराणा

प्रताप कठे?, वो मेवाड़ी सिरमौर कठे?





वट-वृक्ष पुराणॊं बोल्यो यो,

सुण लो जावा वारा भाई

राणा रा किमज धरया तन पे,

झाला मन्ना री नरवारी,

भाळो राणा रो काहे चमक्यो,

आँखां में बिजली कड़काई,

ई रगत-खळगता नाळा सूं,

या धरती रगत री कहळाई,

यो दरश देख अभिमानी रो,

जगती में अस्यों मनख कठे?

मायड़ थारो वो पुत कठे?

वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर

कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?





हळदीघाटी रे किला सूं,

शिव-पार्वती रण देख रिया,

मेवाड़ी वीरा री ताकत,

अपनी निजरिया में तौल रिया,

बोल्या शिवजी-सुण पार्वती,

मेवाड़ भौम री बलिहारी,

जो आछा करम करे जग में,

वो अठे जनम ले नर नारी,

मूं श्याम एकलिंग रूप धरी,

सदियां सूं बैठो भला अठे

मायड़ थारो वो पुत कठे?

वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर

कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?





मानवता रो धरम निभायो है,

भैदभाव नी जाण्यो है,

सेनानायक सूरी हकीम यू,

राणा रो चुकायो हे

अरे जात-पात और ऊंच-नीच री,

बात अया ने नी भायी ही,

अणी वास्ते राणा री प्रभुता,

जग ने दरशाई ही,

वो सम्प्रदाय सदभाव री,

मिले है मिसाल आज अठे,

मायड़ थारो वो पुत कठे?

वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर

कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?





कुम्भलगढ़, गोगुन्दा, चावण्ड,

हळदीघाटी ओर कोल्यारी

मेवाड़ भौम रा तीरथ है,

राणा प्रताप री बलिहारी,

हे हरिद्वार, काशी, मथुरा, पुष्कर,

गलता में स्नान करा,

सब तीरथा रा फल मिल जावे,

मेवाड़ भौम में जद विचरां,

कवि “माधव” नमन करे शत-शत,

मोती मगरी पर आज अठे,

मायड़ थारो वो पुत कठे?

वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर

कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?





अरे आज देश री सीमा पर,

संकट रा बादळ मंडराया,

ये पाकिस्तानी घुसपेठीया,

भारत सीमा में घुस आया,

भारत रा वीर जवाना थे,

याने यो सबक सिखा दिजो,

थे हो प्रताप रा ही वंशज,

याने यो आज बता दिजो,

यो कशमीर भारत रो है,

कुण आंख दिखावे आज अठे

मायड़ थारो वो पुत कठे?

वो एकलिंग दीवान कठे? वो मेवाड़ी सिरमौर

कठे? वो महाराणा प्रताप कठे?





हल्दी घाटी में समर लड़यो,

वो चेतक रो असवार कठे?

मायड़ थारो वो पुत कठे?

वो एकलिंग दीवान कठे?

वो मेवाड़ी सिरमौर कठे?

वो महाराणा प्रताप कठे?


GkExams on 12-05-2019

अखी रैवो रजथान



कलम कीरती के करै ? गा’य गळो के गान ?

अणभै आणंद आतमा , रमी जकी रजथान



पून झुलावै पालणै , सुख संचारै रात

धोरां बोलै मोरिया , अर मुळकै परभात



भोर उगेरै भजन अर दादी पीसै धान

पणघट पूगी गोरड़्यां जाग उठ्यो रजथान



पांवधोक जी’ता रैवो खम्मा रामीराम

बंतळ कितरी फूठरी वाणी रा चितराम



रीतां-रितुवां मोवणी , सो’णा तीज-तिंवार

हेज हेत हिंवळास सूं भींज्योड़ो व्यौहार



घूंघट-झाका घालती , गा’य गोरड़्यां गीत

धुरपद गा’य बथूळिया , पून सजै संगीत



धरा पसेवो सींचता , करषा नद बैवाय

रजथानी अभिमान सूं , इंदरदे’ शरमाय



काचर-फळी-मतीरिया, कैर-सांगरी, फोग

राब, ढोकळा, चूरमो-बाटी राजसभोग



हींडा, मेळा-मगरिया, पणघट, हाट-बजार

म्हांरै राजस्थान रा सुरग जिस्या सिणगार



गोबर-नीप्या झूंपड़ा सुरगलोक शरमाय

मिनख-लुगाई मोवणा ,देवी-देव लजाय



धोरां सागै कामणी-कुदरत राचै रास

रसमस राजस्थान में जीवण रौ मधुमास



खींप खेजड़ी भुरट अर सेवण फोग ’र जाळ

कुदरत मा रजथान री माटी करी निहाल



फुठरापो हद-मोवणो , भांत-भांत रस-रूप

रेत रजत रजथान री , भाषा अमी सरूप





निसरै हुय रजथान सूं देव जणै भरमाय

बिरमाजी कद औ सुरग बीजो दियो बणाय



दूधां न्हा , पूतां फळो अखी रैवो रजथान

राजिंद री अरदास है… बधै सवायो मान

-राजेन्द्र स्वर्णकार


GkExams on 12-05-2019

निराला राजस्थान (राजस्थानी कविता)

त्याग, प्रेम सौन्दर्य,शौर्य की,



जिसका कण-कण एक कहानी |

आओ पूजे शीश झुकाएं,

मिल हम,माटी राजस्थानी ||

सुबह सूर्य सिंदूर लुटाए,

संध्या का भी रूप सवारे |

इस धरती पर हम जन्मे हैं,

पूर्व जन्म के पुण्य हमारे ||

सघन वनों की धरा पूर्व की,

झरे कही झरनों से पानी |

बोले मोर पपैया कोयल,

खड़ी खेत में फसले धानी ||

गोडावण के जोड़ो के घर,

पश्चिम के रेतीले टीले |

ऊंट,भेड़, बकरी मस्ती से,

जहां पालते लोग छबीले ||

बंशी एकतारे, अलगोजे,

कोई ढोलक-चंग बजाए |

कही तीज, गणगौर, रंगीली,

गोरी फाग बधावे गाए ||



कहीं गूंजे भजन मीरा के

और कहीं, अजमल अवतारी |

दादू और रैदास सरीखे,

यह धरती ही तो महतारी ||

स्वामी भक्त हुए इसमे ही,

पीथल,भामाशाह,मन्ना से ||

दुर्ग-दुर्ग में शिल्प सलोना ,

दुर्गा जैसी हैं, हर नारी |

हैं हर पुरुष प्रताप यहाँ का,

आजादी का परम पुजारी ||

यहाँ भाखड़ा-चम्बल बांटे ,

खुशहाली का नया उजाला |

भारत की पावन धरती पर,

अपना राजस्थान निराला ||




सम्बन्धित प्रश्न



Comments राजेश गोदारा on 11-01-2019

मारवाड़ी कविता





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