वातावरण के कुछ महत्वपूर्ण प्रभाव
शारीरिक अन्तर का प्रभाव
व्यक्ति के शारीरिक लक्षण वैसे तो वंशानुगत होतेहैं, किन्तु इस पर वातावरण का प्रभाव स्पष्ट रूप सेदेखा जा सकता है पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का कद छोटा होता है जबकिमैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोगो का शरीर लम्बा एवं गठीला होता है। अनेकपीढ़ीयों से निवासस्थल में परिवर्तन करने के बाद उपरोक्त लोगों के कद एवं रंग में अन्तर वातावरण केप्रभाव के कारण देखा गया है।
प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव
कुछ प्रजातियों की बौद्धिक श्रेष्ठता का कारणवंशानुगत न होकर वातावरण होता है। वे लोग इसलिए अधिक विकास कर पाते हैं, क्योंकि उनके पास श्रेष्ठ शैक्षिक,सांस्कृतिकएवं सामाजिक वातावरण उपलब्ध होता है। यदि एक महान् व्यक्ति के पुत्र को ऐसी जगह परछोड़ दिया जाए, जहाँ शैक्षिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक वातावरण उपलब्ध न हो, तो उसका अपने पिता की तरह महान् बनना सम्भव नहीं हो सकता।
व्यक्तित्व पर प्रभाव
व्यक्तित्व के निर्माण में वंशानुक्रम की अपेक्षावातावरण का अधिक प्रभाव पड़ता है। कोई भी व्यक्ति उपयुक्त वातावरण में रहकर अपनेव्यक्तित्व का निर्माण करके महान् बन सकता है। ऐसे कई उदाहरण हमारे आस-पास देखनेको मिलते हैं जिनमें निर्धन परिवारों में जन्मे व्यक्ति भी अपने परिश्रम एवं लगनसे श्रेष्ठ सफलताएँ प्राप्त करने में सक्षम हो जाते हैं। न्यूमैन, फ्रीमैन और होलजिंगर ने इस बात को साबित करने के लिए 20 जोड़े जुड़वाँ बच्चों को अलग-अलग वातावरण में रखकर उनका अध्ययन किया।उन्होंने एक जोड़े के एक बच्चे को गाँव के फार्म पर और दूसरे को नगर में रखा। बड़ेहोने पर दोनों बच्चों में पर्याप्त अन्तर पाया गया। फार्म का बच्चा अशिष्ट, चिन्ताग्रस्त और बुद्धिमान था। उसके विपरीत, नगर का बच्चा, शिष्ट, चिन्तामुक्त और अधिक बुद्धिमान था।
मानसिक विकास पर प्रभाव
गोर्डन नामक मनोवैज्ञानिक का मत है कि उचितसामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण मिलने पर मानसिक विकास की : गति धीमी हो जाती है।उसने यह बात नदियों के किनारे रहने वाले बच्चों का अध्ययन करके सिद्ध की। इनबच्चों का वातावरण गन्दा और समाज के अच्छे प्रभावों से दूर था। अध्ययन में पायागया कि गन्दे एवं समाज के अच्छे प्रभावों से दूर रहने के कारण बच्चों के मानसिकविकास पर भी प्रतिकूल असर पड़ता था|
बालक पर बहुमुखी प्रभाव
वातावरण, बालक के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक आदि सभी अंगों पर प्रभाव डालता है। इसकी पुष्टि एवेराम्नका जंगली बालक के उदाहरण से की जा सकती है। इस बालक को जन्म के बाद एक भेडिया उठाले गया था और उसका पालन पोषण जंगली पशुओं के बीच में हुआ था। कुछ शिकारियों ने उसे1799 ई. में पकड़ लिया। उस समय उसकी आयु 11 अथवा 12 वर्ष की थी। उसकी आकृतिपशुओं-सी हो गई थी। वह उनके समान ही हाथों-पैरों से चलता था। वह कच्चा माँस खाताथा। उसमें मनुष्य के समान बोलने और विचार करने की शक्ति नहीं थी। उसको मनुष्य केसमान सभ्य और शिक्षित बनाने के सब प्रयास विफल हुए।
आनुवंशिकता एवं वातावरण के बाल विकास पर भावों के शैक्षिक महत्व
विकास की वर्तमान विचारधारा में प्रकृति और पालन-पोषण दोनों को महत्वदिया गया है। आनुवंशिकता और परिवेश परस्पर इस प्रकार गुंथे हुए हैं कि इन्हेंपृथक् करना असम्भव है और बच्चे पर प्रत्येक परस्पर अपना प्रभाव डालता है। इसलिएव्यक्ति के विकास की कुछ सार्वभौमिक विशेषताएँ होती हैं और कुछ निजी विशेषताएँ होतीहैं। आनुवंशिकता की भूमिका को समझना बहुत महत्वपूर्ण है और इससे भी अधिक लाभकारीहै कि हम समझे कि परिवेश में कैसे सुधार किया जा सकता है? ताकि बच्चे की आनुवंशिकता द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतरसर्वोत्तम सम्भावित विकास के लिए सहायता की जा सके। हमें साधारणतया यह प्रश्नसुनने को मिलता है कि बालक की शिक्षा और विकास में वंशानुक्रम अधिक महत्वपूर्ण हैया वातावरण? यह प्रश्न पूछना यह पूछने के समान है किमोटरकार के लिए इंजन अधिक महत्वपूर्ण है या पेट्रोल। जिस प्रकार मोटरकार के लिएइंजन और पेट्रोल का समान महत्च है, उसी प्रकारबालक के विकास के लिए वंशानुक्रम तथा वातावरण का समान महत्व है। वंशानुक्रम औरवातावरण में पारस्परिक निर्भरता है। ये एक-दूसरे के पूरक, सहायक और सहयोगी हैं। बालक को जो मूल प्रवृतियाँ वंशानुक्रम सेप्राप्त होती हैं, उनका विकासवातावरण में होता है, उदाहरण केलिए, यदि बालक में बौद्धिक शक्ति नहीं है, तो उत्तम-से-उत्तम वातावरण भी उसका मानसिक विकास नहीं कर सकताहै। इसी प्रकार बौद्धिक शक्ति वाला बालक प्रतिकूल वातावरण में अपना मानसिक विकासनहीं कर सकता है। वस्तुत: बालक के सम्पूर्ण व्यवहार की सृष्टि, वंशानुक्रम और वातावरण की अन्तःक्रिया द्वारा होती है। शिक्षा कीकिसी भी योजना में वंशानुक्रम और वातावरण को एक-दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकताहै। जिस प्रकार आत्मा और शरीर का सम्बन्ध है, उसी प्रकारवंशानुक्रम और वातावरण का भी सम्बन्ध है। अतः बालक के सम्यक् विकास के लिएवंशानुक्रम और वातावरण का संयोग अनिवार्य है।
बालक क्या है? वह क्या करसकता है? उसका पर्याप्त विकास क्यों नहीं हो रहाहै? आदि प्रश्नों का उत्तर आनुवंशिकता एवंवातावरण के प्रभावों में निहित है। इनकी जानकारी का प्रयोग कर शिक्षक बालक केसर्वागीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक, सभी प्रकारके विकासों पर आनुवंशिकता एवं वातावरण का प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि बालक कीशिक्षा भी इससे प्रभावित होती है। अत: बच्चे के बारे में इस प्रकार की जानकारियाँउसकी समस्याओं के समाधान में शिक्षक की सहायता करती हैं। बालक को समझकर ही उसेदिशा-निर्देश दिया जा सकता है। एक कक्षा में पढ़ने वाले सभी बालकों का शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य एक जैसा नहीं होता है। शारीरिक विकास मानसिकविकास से जुड़ा है और जिसका मानसिक विकास अच्छा होता है, उसकी शिक्षा भी अच्छी होती है। वंशानुक्रम से व्यक्ति शरीर काआकार-प्रकार प्राप्त करता है। वातावरण शरीर को पुष्ट करता है। यदि परिवार मेंपौष्टिक भोजन बच्चे को दिया जाता है, तो उसकीमाँसपेशियाँ, हड्डियाँ तथा अन्य प्रकार की शारीरिकक्षमताएँ बढ़ती हैं। बौद्धिक क्षमता के लिए सामान्यतः वंशानुक्रम ही जिम्मेदारहोता है। इसलिए बालक को समझने के लिए इन दोनों कारकों को समझना आवश्यक है।
Vanshanukarm का अर्थ परिभाषा