यह वंश राजस्थान के इतिहास में बारहवीं शताब्दी से प्रकट हुआ था। सोढदेव का बेटा दुल्हराय का विवाह राजस्थान में मोरागढ़ के शासक रालण सिंह चौहान की पुत्री से हुआ था। रालण सिंह चौहान के राज्य के पड़ौसी दौसा के बड़गुजर राजपूतों ने मोरागढ़ राज्य के पचास गांव अपने अधिकार में कर लिए थे। अत: उन्हें मुक्त कराने के लिए रालण सिंह चौहान ने दुल्हेराय को सहायता हेतु बुलाया और दोनों की संयुक्त सेना ने दौसा पर आक्रमण कर बड़गुजर शासकों को मार भगाया। दौसा विजय के बाद दौसा का राज्य दुल्हेराय के पास रहा।
दौसा का राज्य मिलने के बाद दुल्हेराय ने अपने पिता सोढदेव को नरवर से दौसा बुलालिया और अपने पिता सोढदेव जी को विधिवत दौसा का राज्याभिषेक कर दिया गया। इस प्रकार राजस्थान में दुल्हेराय जी ने सर्वप्रथम दौसा में कछवाह राज्य स्थापित कर अपनी राजधानी सर्वप्रथम दौसा स्थापित की। राजस्थान में कछवाह साम्राज्य की नींव डालने के बाद दुल्हेराय जी ने भांडारेज, मांच, गेटोर, झोटवाड़ा आदि स्थान जीत कर अपने राज्य का विस्तार किया।
दौसा से इन्होने ढूंढाड क्षेत्र में मॉच गॉव पर अपना अधिकार किया जहॉ पर मीणा जाति का कब्जा था, मॉच (या मॉची) गॉव के पास ही कछवाह राजवंश के राजा दुलहरायजी ने अपनी कुलदेवी श्री जमवाय माता जी का मंदिर बनबाया । कछवाह राजवंश के राजा दुलहराय जी ने अपने ईष्टदेव भगवान श्री रामचन्द्र जी तथा अपनी कुलदेवीश्री जमवाय माता जी के नाम पर उस मॉच (मॉची) गॉव का नाम बदल कर जमवारामगढ रखा। इस वंश के प्रारम्भिक शासकों में दुल्हराय बडे़ प्रभावशाली थे, जिन्होंने दौसा, रामगढ़, खोह, झोटवाड़ा, गेटोर तथा आमेर को अपने राज्य में सम्मिलित किया था। सोढदेवकी मृत्यु व दुल्हेराय के गद्दी पर बैठने की तिथि माघ शुक्ला सप्तमी (वि.संवत 1154) है I अधिकतर इतिहासकार दुल्हेराय जी का राजस्थान में शासन काल 1154 से 1184 वि0सं0 के मध्य मानते है I
क्षत्रियों के प्रसिद्ध 36 राजवंशों में कछवाहा(कुशवाहा) वंश के कश्मीर, राजपुताने (राजस्थान) में अलवर, जयपुर, मध्यप्रदेश में ग्वालियर, राज्य थे। मईहर, अमेठी, दार्कोटी आदि इनके अलावा राज्य, उडीसा मे मोरमंज, ढेकनाल, नीलगिरी, बऊद और महिया राज्य कछवाहो के थे। कई राज्य और एक गांव से लेकर पाँच-पाँच सौ ग्राम समुह तक के ठिकानें , जागीरे और जमींदारीयां थी राजपूताने में कछवाहो की12 कोटडीया और53 तडे प्रसिद्ध थीं।
आमेर के बाद कछवाहो ने जयपुर शहर बसाया, जयपुर शहर से 7 किमी की दूरी पर कछवाहो का किला आमेर बना है और जयपुर शहर से 32 कि.मी. की दूरी पर ऑधी जाने वाली रोड पर जमवारामगढ है। जमवारामगढ से 5 किमी की दूरी पर कछवाहो की कुलदेवी श्री जमवाय माता जी का मंदिर बना है । इस मंदिर के अंदर तीनमू र्तियॉ विराजमान है, पहली मूर्ति गाय के बछडे के रूप में विराजमान है, दूसरी मूर्ति श्री जमवाय माता जी की है, और तीसरी मूर्ति बुडवाय माता जी की है।
श्री जमवाय माता जी के बारे में कहा गया है, कि ये सतयुग में मंगलाय, त्रेता में हडवाय, द्वापर में बुडवाय तथा कलियुग में जमवाय माता जी के नाम से देवी की पूजा - अर्चना होती आ रही है।
Bakawat yah kachhvat a ki kuldevi kaun si hai
Jab bhi pooja kariye, sarv pratham kul devi ki pooja kare
कछवाहो की कुलदेवी श्री जमवाय माता जी ki kis din puja ki jati hai???
Khachwah gotti kya h
Kushwah Rajput ki Mata kab puja jati h 8tmi./ 9mi ko ye mat abhi bhi bana huaa h karpya batane ka ki karpa kare ki
Kuldevi / mata Navratri me mata ki puja kab hoti h koch 8mi ko puja karte or koch 9mi ki puja karte
Jamvayu mata
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Me Chhatarpur Madhya Pradesh me rhta hu me apni kuldevi dewtao ke bare me janna chahta hu or Puja ke bare me batane ki krpa kre