Karnat Vansh Ka Antim Shashak कर्नाट वंश का अन्तिम शासक

कर्नाट वंश का अन्तिम शासक



GkExams on 11-02-2019

844 ई. में ही तिरहुत में कर्नाट राज्य का उदय हो गया। कर्नाट राज्य का संस्थापक नान्यदेव था। नन्यदेव एक महान शासक था। उनका पुत्र गंगदेव एक योग्य शासक बना।


नान्यदेव ने कर्नाट की राजधानी सिमरावगढ़ बनाई। कर्नाट शासकों का इस वंश का मिथिला का स्वर्ण युग भी कहा जाता है।


वैन वार वंश के शासन तक मिथिला में स्थिरता और प्रगति हुई। नान्यदेव के साथ सेन वंश राजाओं से युद्ध होता रहता था।


सामन्त सेन सेन वंश का संस्थापक था। विजय सेन, बल्लाल्सेन, लक्ष्मण सेन आदि शासक बने। सेन वंश के शासकों ने बंगाल और बिहार पर शासन किया। विजय सेन शैव धर्मानुयायी था। उसने बंगाल के देवपाड़ा में एक झील का निर्माण करवाया। वह एक लेखक भी थे जिसने ‘दान सागर’ और ‘अद्‍भुत सागर’ दो ग्रन्थों की रचना की।


लक्ष्मण सेन सेन वंश का अन्तिम शासक था। हल्लायुद्ध इसका प्रसिद्ध मन्त्री एवं न्यायाधीश था। गीत गोविन्द के रचयिता जयदेव भी लक्ष्मण सेन शासक के दरबारी कवि थे। लक्ष्मण सेन वैष्णव धर्मानुयायी था।

  • जयचन्द्र ने 1175-76 ई. में पटना और 1183 ई. के मध्य गया को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया।
  • कर्नाट वंश के शासक नरसिंह देव बंगाल के शासक से परेशान होकर उसने तुर्की का सहयोग लिया।
  • उसी समय बख्तियार खिलजी भी बिहार आया और नरदेव सिंह को धन देकर उसे सन्तुष्ट कर लिया और नरदेव सिंह का साम्राज्य तिरहुत से दरभंगा क्षेत्र तक फैल गया।
  • कर्नाट वंश के शासक ने सामान्य रूप से दिल्ली सल्तनत के प्रान्तपति नियुक्‍त किये गये

बिहार और बंगाल पर गयासुद्दीन तुगलक ने 1324-25 ई. में आधिपत्य कर लिया। उस समय तिरहुत का शासक हरिसिंह देव थे। उन्होंने अपने योग्य मंत्री कामेश्वर झा को अगला राजा नियुक्त किया। इस प्रकार उत्तरी और पूर्व मध्य बिहार से कर्नाट वंश 1326 ई. में समाप्त हो गया और मिथिला में नविन राजवंश का शासन शुरू कर दिया जो बाद में ओईनवार वंश के नाम से जाना जाता है ।


आदित्य सेन- माधवगुप्त की मृत्यु 650 ई. के बाद उसका पुत्र आदित्य सेन मगध की गद्दी पर बैठा। वह एक वीर योद्धा और कुशल प्रशासक था।

  • अफसढ़ और शाहपुर के लेखों से मगध पर उसका आधिपत्य प्रंआनित होता है।
  • मंदार पर्वत में लेख के अंग राज्य पर आदित्य सेन के अधिकार का उल्लेख है। उसने तीन अश्‍वमेध यज्ञ किये थे।
  • मंदार पर्वत पर स्थित शिलालेख से पता चलता है कि चोल राज्य की विजय की थी।
  • आदित्य सेन के राज्य में उत्तर प्रदेश के आगरा और अवध के अन्तर्गत एक विस्तृत साम्राज्य स्थापित करने वाला प्रथम शासक था।
  • उसने अपने पूर्वगामी गुप्त सम्राटों की परम्परा का पुनरूज्जीवन किया। उसके शासनकाल में चीनी राजदूत वांग यूएन त्से ने दो बार भारत की यात्रा की।
  • कोरियन बौद्ध यात्री के अनुसार उसने बोधगया में एक बौद्ध मन्दिर बनवाया था।
  • आदित्य सेन ने 675 ई. तक शासन किया था।
आदित्य सेन के उत्तराधिकारी तथा उत्तर गुप्तों का विनाश-

आदित्य सेन की 675 ई. में मृत्यु के बाद उसका पुत्र देवगुप्त द्वितीय हुआ। उसने भी परम भट्टारक महाधिराज की उपाधि धारण की। चालुक्य लेखों के अनुसार उसे सकलोत्तर पथनाथ कहा गया है।

  • इसके बाद विष्णुगुप्त तथा फिर जीवितगुप्त द्वितीय राजा बने।
  • जीवितगुप्त द्वितीय का काल लगभग 725 ई. माना जाता है। जीवितगुप्त द्वितीय का वध कन्‍नौज नरेश यशोवर्मन ने किया।
  • जीवितगुप्त की मृत्यु के बाद उत्तर गुप्तों के मगध साम्राज्य का अन्त हो गया।





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Comments Ssp on 27-01-2020

Sen vansh ka antim shashak kaun tha





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