Chauhan Vansh Ki Utpatti चौहान वंश की उत्पत्ति

चौहान वंश की उत्पत्ति



GkExams on 23-12-2018

राजपूतों के 36 राजवंश में चौहानों का भारतीय इतिहास में विशेष महत्व रहा है | इन्होने 7वीं शताब्दी से लेकर देश की स्वतंत्रता तक राजस्थान में विभिन्न क्षेत्रों पर शासन किया है तथा दिल्ली पर शासन का सम्राट का पद भी प्राप्त किया है | पराक्रमी चौहानों के इतिहास लिखन से पूर्व इनकी उत्पति के सन्दर्भ में विचार किया करते है | इनकी उत्पति के सन्दर्भ में विभिन्न उल्लेख मिलते है | प्रथमतः हम उन उल्लेखों का वर्णन करते है तत्वपश्चात् उन पर विचार |
भविष्य पुराण में लिखा है :-
विंदसारस्ततोअभवत |
पितुस्तुल्यं कृतं राज्यमशोकस्तनयोअभवत || 44 ||
एतेसिम्न्नेव काले तु कान्यकुब्जो द्विजोतम: |
अर्बुदं सिखरं प्राप्य ब्रहाहोममथोकरोत || 45 ||
वेदमन्त्रप्रभावच्च जताश्चत्वारिक्षत्रिया: |
प्रमरस्सामवेदी च चपहानिर्यजुविर्द : |
त्रिवेदी चू तथा शूक्लोथरवा सं परिहारक : |
ऐरावतकुले जातान्गजानारूह्ते प्रथक ||47 ||

( भविष्य पुराण के इस कथन से स्पष्ट है की अशोक के पुत्रों के समय आबू पर कन्नोज के ब्राह्मणों द्वारा ब्रह्होम हुआ और उसमे वेद मन्त्रों के प्रभाव से चार क्षत्रिय उत्पन्न हुए | इनमे चौहान भी ऐक था |)
चंद्रवरदाई भी प्रथ्विराजरासो में चौहानों की उत्पत्ति आबू के यज्ञ से बताते है |
विदेशी विद्वान् कुक यज्ञ से उत्पन्न होने का तात्पर्य लेते है की यज्ञ से विदेशियों को सुध्द कर हिन्दू बनाया | अतः ये विदेशी भी हो सकते है | प्राचीनकाल में भारतीय संस्कृति के अनुसार यज्ञ किये जाते थे और यज्ञ के रक्षक क्षत्रिय नियत किये जाते थे | अतः संभव लगता है आबू परवत पर जो अशोक के पुत्रों के समय यग्य किया गया उनमे चार क्षत्रिय वीरों की रक्षा के लिए तेनात किया गया ताकि यज्ञ में विध्न न हो या वैदिक धर्म के अनुसार ने चलने वाले क्षत्रिय या बोद्ध धर्म मानने वाले चार क्षत्रियों को यज्ञ द्वारा वैदिक धर्म का संकल्प कराया होगा | इन क्षत्रियों के वंशज आगे चलकर उन्ही के नाम से चौहान ,परमार प्रतिहार व् चालुक्य हुए | कुक आदी का विचार की विदेशी लोगो को शुद्ध किया गया आधारहीन है | अतः इस विचार को स्वीकृत नहीं किया जा सकता है |

भविष्य पुराण के बाद चौहान वंश का उल्लेख हाँसोट ( भड़ूच -गुजरात )के शासक राजा भतर्वढढ के वि.सं.813 के दान पत्र में मिलता है जिसमे लिखा है की चवहान भत्रवद्ध द्वतीय नागावलोक का सामंत था | ( ई.1935 ) इसके बाद धवलपुरी ( धोलपुर ) क्षेत्र के शासक चौहान महाचंडसेन के वि.सं.848 के शिलालेख में चाहवाण वंश का उल्लेख मिलता है -
आईये देखते है की चौहानों की उत्पति के सन्दर्भ में उनके शिलालेखों व् साहित्य में क्या लिखा है |
बिजोलिया शिलालेख (वि.1226 ) में लिखा है |
विप्र श्री वत्सगोत्रेअभूदहिच्छत्रपुरेपूरा |
सामंतोअनन्त सामंत पूर्णतल्लो नृपस्तत: || श्लोक 12 सुधा और अचलेश्वर शिलालेख में भी चौहानों का वत्स गोत्रीय बताया गया है | चौहान वत्सगोत्री ब्राह्मण थे | परन्तु डाक्टर सत्यप्रकाश लिखते है की क्षत्रिय आपने पुरोहित का गोत्र धारण कर लेते थे | अतः इससे भी स्थति स्पष्ट नहीं होती | कहा ज सकता है चौहान ब्राह्मणों के वत्स गोत्र में थे | अतः केवल ब्राह्मणों का गोत्र होने से ब्राह्मण नहीं हो सकते | क्यूँ की राजपूतों में गुरुगोत्र और पुरोहितअपनाने की परम्परा रही है |
हरपालिया (बाड़मेर ) के कीर्तिस्तम्भ शिलालेख 1346 वि. में चौहानों के प्रसंग में लिखा गया है -
(संवत 13 (0)|46 (श्री सूर्य )बड़षोप (वंशे ) (र:श्रीमा) चाहमा (रास्त्व ) पर श्री (वि)जयसिं |
अर्थात सुर्यवंश के उपवंश चौहानवंश में राजा विजयसिंह हुए डा.परमेश्वर solanki का हरपालीया कीर्तिस्तम्भ का मूल शिलालेख सम्बन्धी लेख (मरु भारती पिलानी ) अचलेश्वर शिलालेख (विक्रमी 1377 )चौहान आसराज के प्रसंग में लिखा है -
राघयर्था वंश करोहीवंशे सूर्यस्यशूरोभुतीमंडलेअग्रे |
तथा बभुवत्र पराक्रमेणा स्वानामसिद्ध : प्रभुरामसराज :|| 16 ||
अर्थात प्रथ्वी तल पर जिस प्रकार पहले सुर्यवंश में प्रकारमी (राजा ) रघु हुआ ,उसी प्रकार यहाँ पर (इस वंश ) में आपने पराक्रम से प्रसिद्ध कीर्तिवाला आसराज (नामक ) राजा हुआ | राव गणपतसिंह चितवाला के सोजन्य से |
इन शेलालेखों व् साहित्य से मालूम होता हे की चौहान रघुवंशी रघु के कुल से थे | हमीर महाकाव्य ,हमीर महाकाव्य सर्ग | अजमेर के शिलालेख आदी भी चौहानों को सूर्यवंशी सिद्ध करते है | परन्तु अचलेश्वर 1377 वि.के चौहान लूम्भा के शिलालेख में यह भी लिखा है -
ऋषि वत्स के ध्यान से और चन्द्रमा के योग से ऐक पुरुष उत्पन्न हुआ | इसके वंशधर चंद्रवंशी थे | इस आधार पर कई विद्वानों ने चौहानों को चंद्रवंशी बताने की चेष्टा की है | प्रथम तो अनेक प्रमाणों के सम्मुक कोई ऐक विरोधी प्रमाण है तो वः अधिक वजनदर नही होता | दुसरे यह आलंकरिक भाषा है |
सामन्त चौहान के उतराधिकार चन्द्र नाम के तीन शासक हुए है | उनमे से किसी भी चन्द्र नामक शासन के संतान नहीं होगी | उसने ऋषि वत्स से संतान की इच्छा प्रकट की होगी तब वत्स के वरदान से चन्द्र के संतान हुयी होगी | ध्यान रहे की लूम्भा के पूरवजों में चन्द्र नामक तीन व्यक्ति थे | इस कारण संभवतः लूम्भा ने अपने शिलालेख में चन्द्र चौहान के वंश होने के कारन चंद्रवंशी लिखाया होगा | पर साधिकार नही कहा जा सकता है | अगर यह बात नहीं भी हो तो भी चौहानों को प्राचीन चन्द्र वंश का नहीं माना जा सकता क्यूँ की उनके सूर्य वंश होने के अनेक प्रमाण ऊपर लिखे गए है |
अब प्रश्न यह य=उठता है की सुर्यवंश से चौहानों का सम्बन्ध कहाँ से जुड़ता है |
सरसव्ती मंदिर (अजमेर ) के शिलालेख में लिखा गया है |
सप्तद्वीप्भुजो नृप : सम्भवन्निक्ष्वाकू रामादय: |
त्सिमत्रयारिवीजयेन विराजमानो राजानुरंजित जनोजनी चाहमान | 37 |
इससे संकेत मिलता है की चौहान राम के कुल में होने चाहिए | अगर चौहान राम के कुल में है तो चौहानों का सम्बन्ध कोन से क्षत्रिय कुल से होना चाहिए ? इस पर विचार किया जाये | देखते हे की चौहानों का उत्कृष्ट राजस्थान में हुआ | बिजोलिया शिलालेख इनका मूल स्थान अहिसछत्रपुर अंकित करता है | प्रथ्विराज विजय हमीर महाकव्य तथा सुरजन चरित्र इनका मूल स्थान पुष्कर अंकित करते है | चौहानों के बहीभाट नर्मदा के उतर में स्थ्ति महीश्मती ग्राम को बताते है | कुछ इतिहासकारों ने इनका मूल स्थान चितोड़ गढ़ बताया है
चौहानों के बहीभाट मोर्यों को चौहान बतलाते है परन्तु मोर्य का उल्लेख से पूर्व चौहान कुल का उल्लेख नहीं मिलता है | लगता है की चौहानों में मोर्य नहीं ,मोर्यों में चौहान हो सकते है | मोर्य भी राम के वंशज थे | संभवतः चौहान भी राम के वंशज है | राजस्थान में भी मोर्यों का शासन था | जैसा भविष्य पुराण में लिखा है की अशोक के बाद आबू के होम में चार क्षत्रिय में ऐक चौहान था | संभवतः राजस्थान में रहने वाले मोर्यों में से या उज्जेन के मोर्य में से कोई चौहान नामक मोर्य आबू होम में सम्मिलित हुआ होगा तब से सूर्यवंशी मोर्य चौहान नामक व्यक्ति के वंशज होम की घटना के कारण अग्निवंशी भी कहे जाने लगे है | इतिहास के द्रष्टि से ऐसा हि लगता है परसाधिकार नहीं कहा जा सकता परन्तु यह सही लगता है की चौहान सूर्य वंशी है और होम की घटना के कारन बाद में अग्निवंशी कहे जाने लगे |

चौहानों का प्राचीन इतिहास :-
सूर्यवंशी वीर पुरुष चौहान संभवतः राम का वंशज था | संभवतः सम्राट अशोक के बाद उनके वंशजों के समय आबू पर्वत पर कान्यकुब्ज (कन्नोज ) के ब्राह्मणों ने होम किया | माउन्ट आबू के इस होम की रक्षा करने में परमार ,चालुक्य और प्रतिहार के साथ चौहान भी था | इस चौहान के वंशज ख्याति प्राप्त पूरवज चौहान हि कहलाये | चौहान के वंशधरों का लम्बे समय तक कुछ भी मालूम नहीं पड़ता है | कयाम खां रासा संकेत देता है की बहुत समय बाद चौहान वंश में मुनि ,अरिमुनी ,मानिक व् जयपाल चार भाई थे | मुनि अरिमुनी के वंशज कुचेरा ( चुरू -राजस्थान ) में शासन करते रहे ,मानिक के वंश में प्रथ्विराज हुआ | दूसरी और शिलालेखों में सामंत नाम से व्यक्ति से साम्भर के चौहानों का वंशक्रम शुरू होता है | सामंत से पहले भी ऐक नाम वासुदेव और मिलता है | जिससे जाना जा सकता है की चौहान के वंश में मानिक के वंश में वासुदेव और इसके बाद सामंत हुआ और इसके बाद इसी वंश में प्रथ्विराज चौहान हुआ | सामंत का स्थान अहिक्षत्रपुर ( सपललक्ष ) था इस क्षेत्र में सांभर था | सामंत का समय विक्रम की 8वीं शताब्दी था |
सामंत के बाद सांभर के क्रमश जयराज ,विग्रहराज प्रथम ,श्रीचाँद ( चन्द्रराज ) प्रथम और गोपेंद्रराज हुए | गोपेन्द्र के पुत्र दुर्लभराज ने गोड़ देश पर अधिकार कर चौहानों के गौरव को बढाया | इसका पुत्र गुहक प्रतिहास नागभट्ट | का सामंत था | उसने हर्षनाथ का मंदिर निर्माण करवाया | उसका उतराधिकारी चन्द्र (चन्द्रराज 11)|
इसके पुत्र चन्दन (चन्द्रराज ) ने तोमर शासक रुद्राण शिवभक्त थी | वह प्रतिदिन पुष्कर में कई हजार दीपक अपने ईष्टदेव महादेव के सम्मुख जलाती थी | इसका पुत्र वाक्पतिराज प्रथम था | इसमें हर्ष शिलालेख वि,सं. 1030 में महाराज को उपाधि से विभूषित किया गया है |
चौहान राजवंश गोपाल शर्मा -;
इसने प्रतिहारों की शक्ति को तोडा वाकपति प्रथम के तीन पुत्रों विन्ध्य्राज ,सिंहराज व् लाखण हुए | इनमे सिंहासन गद्धी पर बेठा | सिंहराज ने तोमरों को पराजीत किया और प्रतिहारों को दण्डित किया | सिंहराज का पुत्र विग्रहराज | इसने चालुक्य मूलराज को पराजीत किया तब मूलराज को बाध्य होकर चौहान राजा को कर देना पड़ा विग्रह्राज 2 के तीन पुत्र वाकपति 2 दुर्लभराज और वीर्यराज हुए | विग्रहराज के उतराधिकारी दुर्लभराज 2 प्रतापी राजा हुए | उन्होंने नाडोल के शासक महेंद्र को पराजीत किया | इसके उतराधिकारी गोविन्द त्रित्या हुए | उन्होंने गजनी शासकों को आगे नहीं बढ़ने दिया | इसके उतराधिकार वाकपति द्वित्य ने मेवाड़ के शासक अम्बाप्रसाद को युद्ध में मारकर ख्याति प्राप्त की इसके बाद क्रमशः वीर्यराज चामुंडाराज प्रथम हुए | जिन्होने पुष्कर में 700 चालुक्यों का वध किया जो ब्राह्मणों को लुटने के लिए आये थे |




सम्बन्धित प्रश्न



Comments Rahul jagot on 05-09-2022

किस शिलालेख के अनुसार चौहान राजवंश की उत्पक्ति चंद्रवंशी से बताई गई है

Ghewar Singh on 13-04-2022

Chouhan vans ki talwar ka name





नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें Culture Current affairs International Relations Security and Defence Social Issues English Antonyms English Language English Related Words English Vocabulary Ethics and Values Geography Geography - india Geography -physical Geography-world River Gk GK in Hindi (Samanya Gyan) Hindi language History History - ancient History - medieval History - modern History-world Age Aptitude- Ratio Aptitude-hindi Aptitude-Number System Aptitude-speed and distance Aptitude-Time and works Area Art and Culture Average Decimal Geometry Interest L.C.M.and H.C.F Mixture Number systems Partnership Percentage Pipe and Tanki Profit and loss Ratio Series Simplification Time and distance Train Trigonometry Volume Work and time Biology Chemistry Science Science and Technology Chattishgarh Delhi Gujarat Haryana Jharkhand Jharkhand GK Madhya Pradesh Maharashtra Rajasthan States Uttar Pradesh Uttarakhand Bihar Computer Knowledge Economy Indian culture Physics Polity

Labels: , , , , ,
अपना सवाल पूछेंं या जवाब दें।






Register to Comment