Dvitiya Aangal Burma Yudhh द्वितीय आंग्ल बर्मा युद्ध

द्वितीय आंग्ल बर्मा युद्ध



GkExams on 13-01-2023


द्वितीय आंग्ल बर्मा युद्ध (About Second Anglo-Burmese War In Hindi) : यह युद्द 1852 ईसवी में हुआ था। आपको बता दे की इससे पहले बर्मा के प्रथम युद्ध का अंत याण्डबू की संधि से हुआ था परंतु यह संधि बर्मा के इतिहास में ज्यादा कारगर सिद्ध नहीं हुई और यह संधि समाप्त हो गई।


Dvitiya-Aangal-Burma-Yudhh


इतिहास के अनुसार प्रथम बर्मा युद्ध में विजय के पश्चात अंग्रेजों का लालच और बढ़ गया अतः वे म्यांमार के अन्य हिस्सों पर कब्जा करने की ओर अग्रसर हुए। द्वितीय बर्मा युद्ध 1824 के युद्ध के अपेक्षा कम समय तक चला और अंग्रेजों की विजय महत्वपूर्ण रही।


इस युद्द के बाद दक्षिणी बर्मा को एक नवीन प्रान्त बनाया गया जिसकी राजधानी रंगून बनायी गयी। बर्मा के समस्त समुद्र तट पर अंग्रजों का अधिकार हो जाने से उत्तरी बर्मा को समुद्र तट तक पहुँचने के लिए कोई रास्ता नहीं रहा। दक्षिण बर्मा की विजय से अंतत: उत्तरी बर्मा को जीतने का भी मार्ग अंग्रेजों के लिए प्रशस्त हो गया था।


द्वितीय आंग्ल बर्मा युद्ध के कारण :




यहाँ हम आपको निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध के कारणों (causes of anglo-burmese war) से अवगत करा रहे है, जो इस प्रकार है...


  • बर्मा का शासक का यान्दबू की संधि को स्वीकार नहीं करना।
  • दक्षिणी बर्मा में अंग्रेज व्यापारीयों मनमानी किये जाना।
  • डलहौजी की साम्राजयवादी नीति।



  • आंग्ल बर्मा युद्ध की सूची :




    आपको बता दे की ब्रिटिश शासकों और बर्मी साम्राज्य के मध्य तीन युद्ध (anglo-burmese war list) हुए थे, जो इस प्रकार है...


    1. प्रथम आंग्ल-बर्मी युद्ध - 1824-1826


    2. दूसरा आंग्ल-बर्मी युद्ध - 1852


    3. तीसरा आंग्ल-बर्मी युद्ध - 1885


    प्रथम आंग्ल बर्मा युद्ध (About First Anglo-Burmese War In Hindi) :




    यह युद्द 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश शासकों और बर्मी साम्राज्य के मध्य हुए तीन युद्धों में से प्रथम युद्ध था। जो 5 मार्च 1824 से लेकर 24 फ़रवरी 1826 तक चला था। इस युद्द के बाद यंदाबू संधि हुई थी जिस पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद आंग्ल-बर्मी युद्ध रुक गया।


    यंदाबू संधि में निम्नलिखित प्रावधान थे, जिनमे निम्नलिखित बिंदु शामिल थे...


  • युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में एक करोड़ रुपये का भुगतान करे।
  • अराकान और तेनास्सेरिम प्रांतों को ब्रिटिश को सौंपे।
  • ब्रिटेन के साथ वाणिज्यिक संधि करे।
  • ब्रिटिश रेजीडेंट को रखने की अनुमति दे।



  • वैसे यान्दबू की संधि से बर्मी-अंग्रेज शत्रुता का अंत नहीं हुआ था। बर्मा के नये राजा ने संधि को मानने से इंकार कर दिया। दूसरी ओर, अंग्रेजों को केवल तात्कालिक लाभ प्राप्त हुए थे लेकिन वे बर्मा पर प्रभावपूर्ण नियंत्रण चाहते थे। अत: द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध अवश्यम्भावी था।


    प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध के कारण :




    यहाँ हम आपको निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध के कारणों (causes of anglo-burmese war) से अवगत करा रहे है, जो इस प्रकार है...


  • बंगाल की पूर्वी सीमा पर बर्मी साम्राज्य विस्तार।
  • प्रवासियों द्वारा अराकान में लूट-मार।
  • आसाम और मणिपुर वापस लेने के प्रयत्न।
  • सीमा संबंधी झगड़े।
  • कचार में बर्मी सेना का प्रवेश।



  • तृतीय आंग्ल बर्मी युद्ध (Third Anglo-Burmese War) :




    यह युद्ध 14-27 नवम्बर 1885 के बीच हुआ संघर्ष था, इसके बाद 1887 तक छिट-पुट प्रतिरोध तथा विद्रोह चलते रहे थे। जानकारी रहे की यह 19वीं सदी में बर्मन तथा ब्रिटिश लोगों के बीच लड़े गए तीन युद्धों में से अंतिम था।


    दरअसल हुआ यूँ की पहले और दुसरे बर्मा युद्ध में विजय के पश्चात अंग्रेजों ने बर्मा के तटीय प्रांतों पर अधिकार कर लिया था और अब वह आगे बर्मा (third anglo-burmese war upsc) के उत्तरी हिस्सों पर भी अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते थे। अंग्रेजों को यह लालच था कि उत्तरी बर्मा पर अधिकार करके उनका चीन से व्यापार आसान हो जाता।


    इसके बाद 13 नवंबर 1885 को अंग्रेजों ने बर्मा (3rd anglo-burmese war governor general) पर आक्रमण कर दिया और 28 नवंबर 1885 को बर्मा के सम्राट थिबाऊ ने आत्मसमर्पण कर दिया। अंततः 1885 में बर्मा को पूर्ण रूप से भारतीय साम्राज्य में मिला लिया गया।


    फिर अंतत: 1935 के भारत सरकार अधिनियम के द्वारा बर्मा (third anglo-burmese war treaty) को भारत से अलग कर दिया गया। और भारत की आजादी के बाद बर्मा को भी अंततः 4 जनवरी 1948 को स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी।




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