किसी स्थान के वायुमण्डलीय दाव, तापमान, आर्द्रता, वायुदाब, मेघ, वर्षा, पवन प्रवाह, पवन दिशा आदि की औसत दशा को जलवायु तथा मौसम के तत्व कहते हैं।
मौसम और जलवायु Weather And Climate
फिन्च और ट्रिवार्या ने अपनी पुस्तक Elements Geography में मौसम और जलवायु के अन्तर को स्पष्ट किया है। उनके अनुसार थोड़े समय के लिए किसी स्थान की वायुमण्डल की अवस्थाओं (तापमान, वायुदाब, आर्द्रता, वर्षा एवं हवाओं) के कुल योग को मौसम (weather) कहा जाता है। मौसम निरन्तर व प्रतिदिन परिवर्तनशील रहता है। इन बदलती हुई मौसम की अवस्थाओं की औसत दशा को जलवायु के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है। वर्ष भर के मौसम की अलग-अलग अवस्थाओं के औसत निकालने और वर्षों के औसत से जलवायु का पता चलता है एक लम्बे समय तक मौसम के तत्वों का अध्ययन जलवायु के अन्तर्गत किया जाता है। मोंकहाऊस ने भी मौसम और जलवायु के अन्तर को निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किया है, “जलवायु वस्तुतः किसी स्थान विशेष की दीर्घकालीन मौसमी दशाओं के विवरण को सम्मिलित करती है”।
जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक Factors Affecting The climate
अक्षांश Latitude- धरातल पर ताप का वितरण अक्षांश के अनुसार होता है। पृथ्वी पर प्राप्त सूर्य ताप की मात्रा सूर्य की किरणों के कोण पर निर्भर करती है। सूर्य ताप की मात्रा किरणों के अनुसार बदलती रहती है। विषुवत् रेखा पर सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं, अतः इन क्षेत्रों में तापमान अधिक रहते हैं तथा ध्रुवों की ओर किरणें तिरछी होती हैं अतः किरणों को धरातल तक पहुँचने के लिए वायुमण्डल के अधिक भाग को पार करना पड़ता है, अतः ध्रुवों की ओर के भागों में सूर्यताप की कम प्राप्ति के कारण तापमान कम रहते हैं।
समुद्रतल से ऊँचाई Height from Sea Level- किसी स्थान की समुद्रतल से ऊँचाई जलवायु को प्रभावित करती है, धरातल से अधिक ऊंचे भाग तापमान और वर्षा को प्रभावित करते हैं। समुद्रतल से ऊँचाई के साथ-साथ तापमान घटता जाता है, क्योंकि जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती जाती है, वायु हल्की होती जाती है। ऊपर की वायु के दाब के कारण नीचे की वायु ऊपर की वायु से अधिक घनी होती है तथा धरातल के निकट की वायु का ताप ऊपर की वायु के ताप से अधिक रहता है। अत: जो स्थान समुद्रतल से जितना अधिक ऊँचा होगा वह उतना ही ठण्डा होगा। इसी कारण अधिक ऊंचाई के पर्वतीय भागों में सदा हिम जर्मी रहती है।
पर्वतों की दिशा Direction Mountains- पर्वतों की दिशा का हवाओं पर प्रभाव पड़ता है, हवाएँ तापमान एवं वृष्टि को प्रभावित करती हैं। इस प्रकार पर्वतों की दिशा तापमान को प्रभावित कर जलवायु को प्रभावित करती है। हिमालय पर्वत शीत ऋतु में मध्य एशिया की ओर से आने वाली शीत हवाओं को भारत में प्रवेश करने से रोकता है, अतः भारत के तापमान शीत में अधिक नहीं गिर पाते हैं। हिमालय एवं पश्चिमी घाट के कारण ही भारत आर्द्र जलवायु वाला देश बना हुआ है।
समुद्री प्रभाव Marine Oceanic Influence- समुद्रों की निकटता और दूरी जलवायु को प्रभावित करती है। जो स्थान समुद्रों के निकट होते हैं, उनकी जलवायु सम रहती है तथा जो स्थान दूर होते हैं, वहाँ तापमान विषम पाए जाते हैं। सागरीय धाराएँ भी निकटवर्ती स्थानीय भागों को प्रभावित करती हैं। ठण्डी धाराओं के निकट के क्षेत्र अधिक ठण्डे और गर्म जलधारा के निकटवर्ती तट उष्ण रहते हैं, अतः समुद्रों का प्रभाव जलवायु को विशेष प्रभावित करता है।
पवनों की दिशा Wind Directions- पवनों की दिशा जलवायु को प्रभावित करती है। ठण्डे स्थानों की ओर से आने वाली हवाएं ठण्डी होती हैं और तापमान को घटा देती हैं। इस प्रकार हवाएँ जलवायु को प्रभावित करती हैं।
जलवायु का वर्गीकरण Classification Of Climates
“धरातल के उस प्रदेश को जहां कि वर्ष प्रतिवर्ष ऋतु विशेष की औसत दशाएँ समान रहती हों जलवायु क्षेत्र कहते हैं।” जलवायु का सर्वप्रथम वर्गीकरण यूनानी विद्वानों ने तथा बाद में सूपन महोदय ने किया था। यह वर्गीकरण तापमान के आधार पर किया गया था, अत: इन्हें ताप कटिबन्धों के नाम से जाना जाता है-
उष्ण कटिबन्घ Torrid or Tropical zone- विषुवत् रेखा से उत्तर में कर्क रेखा (23½° उ.) तथा दक्षिण में मकर रेखा (23½° द.) तक के क्षेत्र को उष्ण कटिबन्ध के नाम से सम्बोधित किया गया। इस क्षेत्र में औसत तापमान 20° से. रहता है।
शीतोष्ण कटिबंध Temperate Zone- उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में 23½° से 66½° अक्षांशों के मध्य शीतोष्ण कटिबन्ध स्थित है, यहां 8 महीने तापमान 20° से. से कम रहता है तथा शीतप्रधान होती है।
शीत कटिबंध Cold or Frigid zone- पृथ्वी के दोनों गोलाद्धों में 66½° अक्षांशों से उत्तर में उत्तरी ध्रुव तक तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में 66½° दक्षिण से दक्षिणी ध्रुव तक विस्तार पाया जाता है। यहाँ कठोर शीत-ऋतु रहती है तथा ग्रीष्म-ऋतु का अभाव पाया जाता है। आठ महीने तापमान 10° सेण्टीग्रेड से नीचे पाए जाते हैं। ध्रुवों पर सदा हिम जमी रहती है। यहाँ ध्रुवों पर 6 महीने का दिन तथा 6 महीने की रात रहती है।
कोपेन के अनुसार जलवायु का वर्गीकरण W. Koppens Classification of Climate
परन्तु बीसवीं सदी के प्रारम्भ से ही जलवायु प्रदेशों का वर्गीकरण का आधार तापमान और वर्षा रहा। तापमान, वर्षा के वितरण और वनस्पतियों के आधार पर कोपेन ने (1918 से 1936 के मध्य) विश्व के जलवायु प्रदेशों को 6 प्राथमिक या प्रमुख भागों में विभाजित किया। इसके बाद इन्हें उपविभागों तथा फिर लघु विभागों में बांटा है तथा इन्हें सूत्रों में व्यक्त किया है। इनमें मुख्य विभाग निम्नवत् हैं-
थोर्नथ्वेट का वर्गीकरण Classification of Thornthwaite
प्रसिद्ध अमरीकी ऋतु वैज्ञानिक थोर्नथ्वेट ने 1931 एवं 1933 में जलवायु क्षेत्रों का वर्गीकरण वर्षा एवं प्राकृतिक वनस्पति को ध्यान में रखकर किया। थोर्नथ्वेट ने वाष्पीकरण की अधिकता और न्यूनता के आधार पर जलवायु क्षेत्रों का वर्गीकरण किया। 1955 में उसने अपने वर्गीकरण में संशोधन किया। थोर्नथ्वेट ने आर्द्रता प्रभावशीलता के आधार पर विश्व को 5 जलवायु प्रदेशों में विभाजित किया है-
क्रम | आर्द्रता का विभाजन | वनस्पति | वर्षा, वाष्पीकरण का सूत्र P/E |
A | अधिक तर | अधिक वर्षा करने वाले वन | 320 सेमीं से अधिक |
B | आर्द्र | वन | 160 से 318 सेमीं |
C | कम आर्द्र | घास के जंगल | 80 से 157 सेमी |
D | अर्द्ध-शुष्क | स्टेपी जंगल | 40 से 78 सेमीं |
E | शुष्क | मरुस्थली | 40 सेमी से कम |
तापीय दक्षता Thermal Effeciency
जलवायु वर्गीकरण में तापीय दक्षता का विशेष महत्व होता है। तापीय दक्षता ज्ञात करने के लिए औसत मासिक तापमान को मासिक वाष्पीकरण से विभाजित किया जाता है। तापीय दक्षता को सूत्र T/E सूत्र द्वाराप्रदर्शित किया गया है। इस सूत्र को इस प्रकार से हल करते हैं-
तापीय दक्षता अनुपात = T/E Ratio = S-32 / 4
तापीय दक्षता सूत्र T/E Formula = ∑12 (S – 32 / 4)
इनके अतिरिक्त थोर्नथ्वेट ने तापीय क्षमता के अनुसार
क्रम | तापीय क्षेत्र | तापीय क्षमता सूचकांक |
A’ | उष्ण कटिबंधीय Tropical | 320 से अधिक |
B’ | मध्य तापीय Mesothermal | 160-318 |
C’ | न्यून तापीय Microthermal | 80-157 |
D’ | टैगा Taiga | 40-78 |
E’ | टुन्ड्रा Tundra | 3-37 |
F’ | हिमाच्छादित Frost | 0 से कम |
इनके अतिरिक्त वर्षा के मौसमी वितरण के आधार पर थोर्नथ्वेट ने निम्नलिखित अक्षरों का प्रयोग किया-
उन्होंने जलवायु को 32 विभागों में बांटा है।
फिंच एवं ट्रेवार्था का जलवायु विभाजन Finch and Trewartha’s Classification of Climate
फिन्च एवं ट्रिवार्या ने विश्व की जलवायु को निम्नांकित 5 समूहों में विभाजित कर 15 प्रकार के जलवायु प्रदेशों में विभाजित किया है। इन्होंने अपने वर्गीकरण का आधार कोपेन के वर्गीकरण को माना है। इन्होंने तापमान, आर्द्रता, वर्षा, उच्चावच तथा वनस्पतियों को वर्गीकरण का आधार माना है। इन्होंने भी कोपेन की तरह जलवायु प्रदेशों को सूत्रों में व्यक्त किया है। इनके द्वारा वर्णित जलवायु प्रदेश इस प्रकार हैं-
उष्ण कटिबंधीय वर्षा वाले जलवायु विभाग Tropical Rainy Climates [A]
शुष्क जलवायु वाले भाग Dry Climates [B]
शीतोष्ण आर्द्र जलवायु वाले भाग [C]
शीतल आर्द्र जलवायु वाले भाग [D]
ध्रुवीय जलवायु वाले भाग [E]
Sum jalvayu kise kahte hai
Samjalvayu avm vismjalvayu me antar
उग्र जलवायु किसे कहते हैं?
Sm aur visham jalbyu me antar bataye class 9
Sam Jalvayu AVN visam
Jalvayu Mein antar
सम जलवायु और विषम जलवायु में अंतर
Sam jalvayu or ugra jalvayu ke bich untar
बाताबरण के अनुशार या मौसम के अनुशार बदलने बाली जलवायु को सम जलवायु कहते है और बातावरण या मौसम के विपरित बदलने वाली जलवायु को विषम जलवायु कहते है
सम और विषम जलवायु में क्या अंतर ?
Sam jal vayou visham jal yayou me antare
Im porten Koshchan hap yerli me
Sam Jalvayu kya hai
Sam and visam jalvaue main antar ।
Sam aur visham jalvayu kise kahate Hain
Vishm jalwayu
Vishm jalvayu kise kahate hai
Sum or visham jal vaavu me antar bataao?
Same jalvau aur bi same jalvau me antra
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Sam jalvayu kisa kehra ha