Jarasandh Kis Jati Ka Tha जरासंध किस जाति का था

जरासंध किस जाति का था



GkExams on 12-05-2019

जरासंध के वंशजों ने लगभग एक हज़ार वर्ष तक मगध में एकछत्र शासन किया थाजरासंध शैव था और असुर उसकी जाति थी। के. के. ल्युबा का कथन है कि झारखण्ड में रहने वाले वर्तमान असुर महाभारत कालीन असुरों के ही वंशज हैं।




सम्बन्धित प्रश्न



Comments Rahil Chandravanshi on 22-09-2023

Are bhai sab suno Chandravanshi Raja the aur hai aur rahenge king of Chandravanshi

Sanu on 04-11-2022

Jarasandh bhuiya tha jo suar charata tha

Miyush chandrawansi on 21-08-2022

Chandrawansi aur yaduwansi dono mamere fhufher bhai ahain


Pankaj mishra je on 23-07-2022

Bahu jarasandh yadav kab se ho gaya kyu ki yadavo ka sabse bade dushman the

Pankaj mishra on 23-07-2022

Faltu ka gyan kaha se laate ho papa se jarasandh kon tha jarasandh rawani ek chhatriye veer thaa kyu tum log kisi ko history badal dete ho

sanjit ravani on 18-05-2022

kya kaha jarasangh yaduvanshi the kya baat he haha haaa yaduvanshi nahi the puru vanshi the iska varnan hume brahmvaivart puran me milta he vahi nagvanshoi kshtriya uttrabharat ke kashmir kshetra me raj karte the bihar me unka koi bhi shashan nahi tha vahi brahgman videshi nahi the ye sab hamare itihas ke sath khela gaya tha hum sabh hindu he aur hum sabhi yaha ke native hi he aur jarasngh pichhle janm me asur tha na ki dwapar yug me rahi baat asur jati ke hone ki to vishnu ke parshad jay vijay dev hi the lekin shrap ke karan asur me janm lena pada aur ant me manushya me, chandra vansh ka matlab sirf kahar nahi hota aur na hi chandravansh koi shudra jatiyo ka channle he chandra vansh me ate he yaduvanshi,puruvanshi ,kuru vanshi ityadi ,mahabharat kaal me kaurav aur pandav kuru kul ke the ,shri krishna yadav kul ke aur jarasangh ji purukul ke , aur jis pandit ko uske dadaji ne kaha he ki jarasangh bhi yadav tha to unke dada ji ko shayad lagta ho ga ki chnadravansh matlab sirf yadav are murkho kya brahman ke nam par kalank ho murko apne itihas ko jano itihas me to yah bhi lika he ki valmiki ek shudra the lekin unhone apne uch vidhya ke dam par brahmantava parpat kiya tha kya keh k=rahe ho ki brahman videshi the hinduo ki koi bhi jati videshi nahi thi hindu desh myanmar se lekar iran tak fela tha aur isme sabhi hindu bahulya the , vahi brahmano ki bat karu to har cast me ek kala dhbaba hota hi jese ki hmane udaharan dekha ki jarasnagh yadav the vo kans ke sasur the to murkho pehle ke jamane me apni kanyao ka vivah dusri jatiyo me hi hota tha jese ki sita mata ka kul alag tha aur ramji ka ,

alag ,shri krishna chandravnahsi the aur rukmini vaidarbhi thi aur unki baki ki 7 raniya bhi alag alg vansho se thi to kya vo sabhi ek hi kul ke the are murkho humne kahar jati me majburan sharan li thi lekin humare purvajo ne kaha tha ki jab sab shant ho jayeg a to ghar vapsi karenge lekin shudra jati me reh kar humae malum chal gaya ki uchi jati kehne vale log asal me kitne gire hue he aur yaha par maujud kuch dalit bhi bhtke hue he unhe ghrina he kshstriyo se to me unhe keh du ki sahbari bhil thi to kya ramji ne unke juthe bair nahi khaye the ,kya nsihad raj unke mitra nahi the agar chuchut hota to ramji ke pair kevat kese dhota agar shudra jati aur uchh jati ka bhedbhav tha to valmiki ji ko brahmantav ki upadhi kese mil gayi thi vahi raja dhi raj kaushik bhi tab aur apne stakarmo se brahmarishi bane the bhrata vishuddh parampara ka kendra tha aur ladane vale ye yavanai(muslim) the ,vaidik kal me log apne karm se jati ki upadhi prapt krte the rajao ki sena me shudra jati ke log bhi the aur apni verta se sena pati aur fir up raja ki upadhi prapt krte the naki jhuthe knowledge se jese ki upar kisi brahman nam rakh kar kehne vale ne kaha ki jarasangh yaduvanshi the are paglte bokachod kahike ,galat disha me pravah ko mat modo tumko abhi apni pichli 7 pidhiyo ke dada pardada ka nam nahi malum aur chale dusre logo ki vanshavali tay karne sharm kro aur dub maro chulubhar pani me taki pani bhi bachta rahe bakre kahi ke .


R singh on 19-11-2021

महान क्षत्रिय सम्राट जरासंध का इतिहास महाभारत कालीन है प्राचीन काल में उपरिचरबसु के पुत्र महाराज बृहद्रथ द्वारा यह मगध क्षत्रिय जनपद की स्थापना हुई थी उन्हीं के पुत्र महान क्षत्रिय सम्राट जरासंध हुए इनके बाद 25 राजा हुए जिनका महाभारत कालीन राज चलता रहा बाद में शूद्र धनानंद के अधर्म अत्याचार और चंद्रवंशी क्षत्रिय बच ना जाए अन्यथा पुनः शासन स्थापित कर लेगा इस डर से सभी को मारना शुरू किया बहुत लोग कहार के उप जातियों में घुस गए और सेवक कहार खुद को कह कर अंगीकृत कर लिए वहीं आज रवानी कहार है जो अंगीकृत नहीं किया वह रवानी / रामानी जो बृहद्रथ कुल का नए नाम पहचान है वह अपने को चंद्रवंशी क्षत्रिय कहते हैं और स्वाभिमान के साथ रहते हैं जिसमें बहुत सारे लोग आरक्षण तक नहीं लेते यह स्वाभिमान की यथास्थिति बनी हुई है उस समय रामानी नाम इसलिए प्रसिद्ध हुए थे क्योंकि यह एक स्थान पर एक नाम से नहीं जाने जाते जिस प्रकार घुमंतू भुटिया था उसी प्रकार रमानी एक शुद्ध रक्त चंद्रवंशी क्षत्रिय अपने को रमानी रमानी कह कर संबोधन कराते थे खुद को इस तरह छिपाना शुरू किया गोत्र कुल खाप में अपने ही में शादी करने लगे ताकि रक्त शुद्धता बनी रहे आगे चलकर इसी रामानी को एकत्रित किया गया और एक संगठन जिसका नाम अखिल भारतवर्षीय चंद्रवंशी क्षत्रिय रवानी महासभा था जिसे नथनी बाबू ने बनवाया था जिसका विलय 1937 में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा में हो चुका था कुछ लोगों के पास है संदेश पहुंचा तो कुछ के पास नहीं पहुंच पाया संचार सुविधा का अभाव था बाद में 1950 के बाद उसी रजिस्ट्रेशन को रिन्यूअल करवाना था परंतु वह नहीं हुआ क्योंकि उसमें राजनीति स्वार्थ आ गया और दूषित हो गया उसमें अनेक उपजातियां उसके प्रभारी और सदस्य बन गए फलत: वह केवल रवानी का नहीं रहा परिणाम यह हुआ कि रवानी शब्द को वहां से विलुप्त कर दिया गया और अब केवल अखिल भारतवर्षीय चंद्रवंशी क्षत्रिय महासभा के नाम से संगठन चलाने लगा वह संगठन का रजिस्ट्रेशन भी अभी इल्लीगल है केवल कमेटी के आधार पर मन मुखी अनेक उप जातियों के एक समूह बनाकर राजनीति परिपेक्ष को आगे बढ़ाने का काम आज भी किया जा रहा है परंतु 1906 से 1912 तक सारे प्रमाण अंग्रेजी सरकार ने न्याय पूर्ण तरीके से पाया अनेक राजा महाराजा और 36 संगठनों ने इसे अंगीकृत किया पुण: 1937 में इसका प्रमाण अनेक पक्ष्यों को रखा गया कई क्षत्रिय सम्मेलन हुए अंतत: रवानी को ब्रिटिश गवर्नमेंट के दौरान संपूर्ण भारत में चंद्रवंश क्षत्रिय राजपूत का गौरव सम्मान कानूनी साक्ष के आधार पर पाया। जिसका रिकॉर्ड आज भी सेंट्रल गवर्नमेंट में है अतः रवानी/ रामानी हींं केवल एकमात्र जरासंध का वंशज सिद्ध हुआ है अन्य कोई जातियां नहीं शुद्र कहार अपने को रवानी का उपजाति बताकर जरासंध का वंशज होने का कहता है तो वह नितांत भूल है भ्रम है बहुत बैंकिंग है क्योंकि क्षत्रिय में उपजातियां और कुड़ी नहीं होती बल्कि कुल होता है जिसके खतियान में 1937 से पहले से लेकर आज तक रामानी ही रहा केवल वही रामानी अर्थात रवानी हीं केवल ओरिजिनल जरासंध का वंशज है इसके पहचानने के लिए अनेक उपाय हैं जो गुप्त रखा गया है ताकि अन्य उपजातियां उसे जान न सके रक्त शुद्धता बनी रहे और इसी डर से अपने ही परिवार लोगों में कहीं ना कहीं दूर से रिश्ता जोड़ने पर ही शादी विवाह होती है 1990 में रवानी को खतियान इसे मिटाने के लिए चंद्रवंशी शब्द का प्रयोग कर एक लहर चलाया गया था जिससे रवानी/ रामाणी चंद्रवंशी कहार सिद्ध हो जाए जिसका विरोध भी हुआ परंतु उस समय संचार सुविधा का अभाव था जो इसमें बहुत सारे लोग रमानी से चंद्रवंशी कहार का सर्टिफिकेट आरक्षण लाभ लेने के लिए भी ले रहे हैं इसी कारण दिग्भ्रमित रमानी अपने को निर्णायक स्थिति में आने के लिए अपने इतिहास और भूगोल और खतियान को अच्छी तरह पर रखने पर जोर देते हैं अन्यथा गर्व से रवानी क्षत्रिय राजपूत दूसरी ओर आरक्षण भोगी चंद्रवंशी कहार की जय घोष लगाते हैं अनेक प्राचीन साक्ष्य जनपद से संबंध एवं भौगोलिक पुरातात्विक ऐतिहासिक वंशावली अनेक प्रमाण जैसे इसके सिक्के ऐतिहासिक एवं भौगोलिक अनेक घटनाएं एवं साक्ष केवल और केवल रवानी को संबोधित करता है अन्य कोई उपजाति का नहीं जिसका संबंध महाभारत काल क्षत्रिय वंशांवरण और अनेक क्षत्रिय वंशावली के साथ ब्रिटिश गवर्नमेंट के समय का अधिकारिक गवर्नर का अप्रूवल एवं ऑर्डर ऑफ प्रिंसेस रिकॉर्ड मौजूद है
सिद्ध होता है कि क्षत्रिय सम्राट महाराज जरासंध एक क्षत्रिय थे उन्हें किसी भी जाति से जोड़ना उनके महान पहचान को सीमित करना है परंतु यदि उनके आज कोई वंशज मौजूद हैं तो क्षत्रिय वंशावली से लेकर ब्रिटिश गवर्नमेंट के टाइम से ही केवल और केवल रवानी/ रामानी को ही उनका वंशज होने का डिक्लेरेशन मिलता है


Thakur R. Singh on 19-11-2021

महाभारत में जिसका और पुराणों में जिसका वर्णन मिलता है तथा बृहद्रथ राजवंश जिसे आज रवानी क्षत्रिय राजपूत कहते हैं इसका संबंध जरासंध से है हां वही क्षत्रिय महाराज जरासंध जिन्होंने भगवान श्री कृष्ण को 17 बार रणछोड़ बनाया तथा जो मल्ली युद्ध में भीम के साथ 30 दिनों तक युद्ध करता हुआ छल से छिन्न-भिन्न किया गया वही दानी वीर भगवान शिव का भक्त यज्ञ आदि करने वाले महान जिन का परिचय ईश्वर ना मानने वाले नास्तिक ने महाभारत नस सिद्ध हो जाए इसके लिए षड्यंत्र रचा था आज भी वह विरोधाभास में अपने अस्तित्व को महाभारत सिद्ध न हो जाए इसके लिए बृहद्रथ वंश को ही जिसका परावर्तित नाम आज रवानी है उसे प्रकाश में लाने की और इतिहास बनाने की नहीं ठानी दूसरी ओर क्षत्रिय समाज में एक ही कुल वंश के होने के कारण कृष्ण को हीरो और जरासंध को विलेन बनाया गया था धर्म श्रेष्ठ क्षत्रिय का स्वभाव होता है महान क्षत्रिय सम्राट जरासंध का इतिहास महाभारत कालीन है प्राचीन काल में उपरिचरबसु के पुत्र महाराज बृहद्रथ द्वारा यह मगध क्षत्रिय जनपद की स्थापना हुई थी उन्हीं के पुत्र महान क्षत्रिय सम्राट जरासंध हुए इनके बाद 25 राजा हुए जिनका महाभारत कालीन राज चलता रहा बाद में शूद्र धनानंद के अधर्म अत्याचार और चंद्रवंशी क्षत्रिय बच ना जाए अन्यथा पुनः शासन स्थापित कर लेगा इस डर से सभी को मारना शुरू किया बहुत लोग कहार के उप जातियों में घुस गए और सेवक कहार खुद को कह कर अंगीकृत कर लिए वहीं आज रवानी कहार है जो अंगीकृत नहीं किया वह रवानी / रामानी जो बृहद्रथ कुल का नए नाम पहचान है वह अपने को चंद्रवंशी क्षत्रिय कहते हैं और स्वाभिमान के साथ रहते हैं जिसमें बहुत सारे लोग आरक्षण नहीं लेते यह स्वाभिमान की यथास्थिति बनी हुई है उस समय रामानी नाम इसलिए प्रसिद्ध हुए थे क्योंकि यह एक स्थान पर एक नाम से नहीं जाने जाते जिस प्रकार घुमंतू भुटिया था उसी प्रकार रमानी एक शुद्ध रक्त चंद्रवंशी क्षत्रिय अपने को रमानी रमानी कह कर संबोधन कराते थे खुद को इस तरह छिपाना शुरू किया गोत्र कुल खाप में अपने ही में शादी करने लगे ताकि रक्त शुद्धता बनी रहे आगे चलकर इसी रामानी को एकत्रित किया गया और एक संगठन जिसका नाम अखिल भारतवर्षीय चंद्रवंशी क्षत्रिय रवानी महासभा था जिसे नथनी बाबू ने बनवाया था जिसका विलय 1937 में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा में हो चुका था कुछ लोगों के पास है संदेश पहुंचा तो कुछ के पास नहीं पहुंच पाया संचार सुविधा का अभाव था बाद में 1950 के बाद उसी रजिस्ट्रेशन को रिन्यूअल करवाना था परंतु वह नहीं हुआ क्योंकि उसमें राजनीति स्वार्थ आ गया और दूषित हो गया उसमें अनेक उपजातियां उसके प्रभारी और सदस्य बन गए फलत: वह केवल रवानी का नहीं रहा परिणाम यह हुआ कि रवानी शब्द को वहां से विलुप्त कर दिया गया और अब केवल अखिल भारतवर्षीय चंद्रवंशी क्षत्रिय महासभा के नाम से संगठन चलाने लगा वह संगठन का रजिस्ट्रेशन भी अभी इल्लीगल है केवल कमेटी के आधार पर मन मुखी अनेक उप जातियों के एक समूह बनाकर राजनीति परिपेक्ष को आगे बढ़ाने का काम आज भी किया जा रहा है परंतु 1906 से 1912 तक सारे प्रमाण अंग्रेजी सरकार ने न्याय पूर्ण तरीके से पाया अनेक राजा महाराजा और 36. क्षत्रिय संगठनों ने इसे अंगीकृत किया पुण: 1937 में इसका प्रमाण अनेक पक्ष्यों को रखा गया कई क्षत्रिय सम्मेलन हुए अंतत: रवानी को ब्रिटिश गवर्नमेंट के दौरान संपूर्ण भारत में चंद्रवंश क्षत्रिय रवानी कुल के राजपूत का गौरव सम्मान पुण: कानूनी साक्ष के आधार पर जनगणना के लिए स्वीकृत हुआ जिसका रिकॉर्ड आज भी सेंट्रल गवर्नमेंट में है अतः रवानी/ रामानी हींं केवल एकमात्र जरासंध का वंशज सिद्ध हुआ है अन्य कोई जातियां नहीं शुद्र कहार अपने को रवानी का उपजाति बताकर जरासंध का वंशज होने का कहता है तो वह नितांत भूल है भ्रम है बहुत बैंकिंग है क्योंकि क्षत्रिय में उपजातियां और कुड़ी नहीं होती बल्कि कुल होता है जिसके खतियान में 1937 से पहले से लेकर आज तक रामानी ही रहा केवल वही रामानी अर्थात रवानी हीं केवल ओरिजिनल जरासंध का वंशज है इसके पहचानने के लिए अनेक उपाय हैं जो गुप्त रखा गया है ताकि अन्य उपजातियां उसे जान न सके रक्त शुद्धता बनी रहे और इसी डर से अपने ही परिवार लोगों में कहीं ना कहीं दूर से रिश्ता जोड़ने पर ही शादी विवाह होती है 1990 में रवानी को खतियान से मिटाने के लिए चंद्रवंशी शब्द का प्रयोग कर राजनीति भ्रम षड्यंत्र का एक लहर चलाया गया था जिससे रवानी/ रामाणी चंद्रवंशी कहार सिद्ध हो जाए जिसका विरोध भी हुआ परंतु उस समय संचार सुविधा का अभाव था जो इसमें बहुत सारे लोग रमानी से चंद्रवंशी कहार का सर्टिफिकेट आरक्षण लाभ लेने के लिए भी ले रहे हैं इसी कारण दिग्भ्रमित शुद्ध रक्त क्षत्रिय रमानी अपने को निर्णायक स्थिति में आने के लिए अपने इतिहास और भूगोल और खतियान को अच्छी तरह परखने पर रखने पर जोर देते हैं और शादी विवाह करते हैं अतः गर्व से रवानी क्षत्रिय राजपूत दूसरी ओर आरक्षण भोगी चंद्रवंशी कहार की जय घोष लगाते हैं अनेक प्राचीन साक्ष्य जनपद से संबंध एवं भौगोलिक पुरातात्विक ऐतिहासिक वंशावली अनेक प्रमाण जैसे इसके सिक्के ऐतिहासिक एवं भौगोलिक अनेक घटनाएं एवं साक्ष केवल और केवल रवानी को संबोधित करता है अन्य कोई उपजाति का नहीं जिसका संबंध महाभारत काल क्षत्रिय वंशांवरण और अनेक क्षत्रिय वंशावली के साथ ब्रिटिश गवर्नमेंट के समय का अधिकारिक गवर्नर का अप्रूवल एवं ऑर्डर ऑफ प्रिंसेस रिकॉर्ड मौजूद है
सिद्ध होता है कि क्षत्रिय सम्राट महाराज जरासंध एक क्षत्रिय थे उन्हें किसी भी जाति से जोड़ना उनके महान पहचान को सीमित करना है परंतु यदि उनके आज कोई वंशज मौजूद हैं तो क्षत्रिय वंशावली से लेकर ब्रिटिश गवर्नमेंट के टाइम से ही केवल और केवल रवानी/ रामानी को ही उनका वंशज होने का डिक्लेरेशन मिलता है




chandarvanshi ki utpati kab huaa on 02-09-2018

Chadravanshi ka utpati kab hua

Sumit kasyap on 12-05-2019

Jarasandh kahar tha

रणछोङ लाल बोङाना on 23-09-2019

Chandawanshi

Amit Kumar on 23-04-2020

Chandravanshi jati ka


M K Gaur on 29-04-2020

Kahar cost Ka tha jarasandh

MK Gaur on 29-04-2020

Chandrawanshi kis cost ko kahte hai

What is your name on 06-05-2020

Good

M.K M.K on 06-05-2020

Kachcha kitne Prakar ke Hote Hain

Vijay kumar on 07-05-2020

Chandra vanshi yani kahar jati ke the jarasandh

Baba on 10-06-2020

बिहार में चंद्रवंशी क्षत्रिय का सबसे पुराने नाम रवानी के रूप में जाना जाता है। जिसकी पुष्टि जरासंध वंशज के रूप में की गई थी, अनेक राजा महाराजा एवं केंद्र के द्वारा एवं भारत के सेंसस कमिशन के जनरल सेक्रेटरी के द्वारा अधिकृत पत्र से पता चलता है एवं बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल 3 राज्यों के सेंसर सुपरिटेंडेंट अथवा डिप्टी सेक्रेटरी के पत्र द्वारा भी पता चलता है कि बिहार में 1911 में पटना में क्षत्रिय अधिवेशन हुआ। 24 जून 1912 को भी एक पत्र लिखा गया था जिसमे "रवानी" को राजपूत राजा जरासंध के संतान होने की बात कही गई थी। जैसा कि आधिकारिक पत्र बलिया 24 जून 1912 से ज्ञात होता है। यहां तक कि जिला गया 2,6,03 और 19,2,03 राजा देव डिस्ट्रिक्ट गया , 1933 बारिश हुसैन 39 डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट गया एंड कलेक्टर एचडी मुख 1941, 29 मई 1951, 5 सितंबर 1952, क्षत्रिय पत्रिका 1931 के प्रकाशन 37 वां अधिवेशन रांची के सभापति श्रीमान हिज फाइनेंस महाराजा श्री राजेंद्र सिंह बहादुर झालावाड़ नरेश राजपूताना के सभा में उपस्थित थे जिसमे उन्होने सूर्यवंशी, चंद्रवंशी एवं नागवंशी क्षत्रियों को आपस मे मिल झूल कर रहने पर ज़ोर दिया। सन् 1935 के अधिवेशन, 7 अप्रैल 1939 के पत्र से, जिला मैनपुरी पृष्ठ 12,24, 33 को द शिवमंगल सिंह के द्वारा कोलकाता से 27 अगस्त 1940 के पत्र से जिसमे सनसन सुपरीटेंडेंट डब्ल्यू जीआरजी स्पष्ट किया जो सेंसस सुपरिटेंडेंट बिहार के हजारीबाग से लेटर नंबर 1167 बिहार सरकार के द्वारा एवं अनेक प्रमाणों से भी पता चलता है ,एवं अनेक पत्रिकाएं देश को प्रमाण देते हैं जो अखिल भारतवर्षीय चंद्रवंशी क्षत्रिय( रवानी )महासभा का गठन हुआ। कुछ इसी जाति के लोग दबे कुचले और गरीब होने के कारण लोग सुविधा


Sudeep singh chandravanshi on 17-06-2020

Raja jarasandh rawani Rajput hai

Rakesh Kumar on 13-07-2020

Jarasandh chandravanshi h

Hari kumar chandravanshi on 26-07-2020

chandravanshi rabbani ko khar bnaya gya bihar government ki ghinoni poltice ke karan 1978 me kahar me dal diya gya chandravanshi rabbani na khar tha or na hi kahar rhega 1935 me rabbani ko British ne rajpoot me jangana kiya tha

Pankaj on 14-08-2020

Jarasandh yadu kool ke the durbhag hai use na Jane kaun kaun se jatiya apna vansh ke mante Sara Sara ye galat hai mahabhrat me na to rAmani jikar hai na kahar kahar Sabse nich jati ka hota hai jach to ye hai jarasand yaduvanshi se Jarasandh Kans ka sarurthe

Pankaj mishra on 14-08-2020

Hamare yeha kahar jise bolta hai use hamare yeha patal khichba bolte hai Sach ye hai Jarasandh kahar ramani nhi Mahabharat me jikar bhi nhi hai kahar or ramani Mai ek pandit hu Jarasandh yadu kool ke the yani yaduvanshi the mere dada ji bolte hai Mahabharata me jitne bhi Raja parani Kans se Lekar kaurab tak Yadav ahir the uska ulekh bhi Mahabharata me milta 34 adhay me


Amit Singh Rajput on 01-09-2020

Jarasandhh ek Chandravanshi Kshatriya the aur Magadh Samrat the aur Raja Brihadrath ke putra the.. Jarasandhh jee ke mrityu ke baad bhagwan Shri Krishna ne unke bete Sahdev ko unki rajgaddi sop di..

Idhar sabka knowledge zero hai , tumlog sirf Ghar baithke shaktimaan aur chhota bheem dekho

Spc on 01-09-2020

बेटा तुमको मालूम नहीं है।महाराज जरासंध जी के बारे में सुन लो हम तुमको बताते हैं। वह चंद्रवंशी क्षत्रिय रवानी राजपूत थे। और उन्हीं के वंशज हम लोग भी हैं। और चंद्रवंशी क्षत्रिय 1 वैदिक क्षत्रिय है। मुझे जिसकी इतिहास कोई नहीं मिटा सकता है। ना भूगोल। तुम मिट जाओगे साले समझे तुमको पता नहीं है जब पता नहीं है तो यह सब फालतू चीज मत लिखा करो।


Pankaj mishra on 13-11-2020

Jarasand chandravansi tha. Mahabharat me sare chandravansi king auur kucch yaduvansi king the.Yadav vansh bhi chandravansi ke ek part hai.king yayati ke five son me sabse elder yadu the liken pita se matbhed ke karan puru ko chandravansi king banaya gaya and king yadu alag vans chalaye jo baad me yaduvansi kahlaye jisme vasudev,nand,lors krisna ka janm hua. Chandravansh me puru ke baad bahut sare king jaise Santanu,king Bharat jiske naam se Bharat desh para etc aaye. King kuru bhi chandravansi king the jisme aage chal kar Bhism pitamah , Dhirstrasta,pandu hua jo kuruvansh yani karav kahlaye.pandu ke paan putra the jo pandav kahlaye. Jarasansha mahabharat kal ke sabse powerful king the aurr apni beti ka vivah apne dost yaduvansi king Kasha se kiye the . Jaise vasudev ki bahen aur lord krisna ki bua kunti ka vivah chandravansi king pandu se huwa tha. Pandav chandravansi raja the aur krisna yaduvansi jo riste me saage mamare,fufere bhai the. Liken krisna ne apni bahen subhadra ka vivah apne fufere bhai Aurjun se karwaya tha kyu ki wo riste me bahi bahen the liken kul aur gotra alag tha Aurjun aur subhdra ka putra Abhimanyu the. King jarasandha chandravans ke sabse powerful raja the jinka vansh mahabharat ke baad1000yrs tak raj kiya tha baad me raj patan ke baad chandravansi log kandhe par bhar uthane ka kaam karne lage jo kandha bhaar ka pesa ho gaya aur baas me kandha bhaar se KAHAR ho gya baad ke Magadh raja se paresaan ho chandravansi magadh se ravanaa ho gaye jo RAVANI Rajput bhi kahlaye. .Auur last me pankaj mishra tumhara dada ko gayan galat hai dhongi hai. Hamare taraf bhi kanyakubji brahaman ko uyych brahaman mana jata hai baki Biksha brahaman yani bhikmangwa brahman ya patalchat brahaman kaha jata hai. Ek khantaha brahman bhi hota hai yani marni bhoj brahman jisko edhar din me koi dhekna pasand nahi karta wo saam me bhiksha yani bheek magte hai.


Samjha re pankaj mishra on 13-12-2020

Are pankaj mishra brahman ke naam pe thoo hai jakr google pe dekh raja jrasandh chandravanshi kshatriya hai wala bhikh mange wala brahman hai tu

Kundan Singh on 13-02-2021

Mahraj jarashand chandravanshi kshatriya Rawani Rajput the pagal

Sumit kumar on 19-02-2021

जरासंध ब्राह्मण धर्म एवं ग्रंथों के अनुसार नीच और शूद्र कहार जातियों के राजा थे। आप लोग कहार जाति के बारे में नहीं जानते हैं। जब विदेशी ब्राह्मणों ने भारत के मूलनिवासी लड़ाकू नागवंशी राजाओं के साथ छल पूर्वक बलपूर्वक युद्ध से परास्त किया तो उसी क्रम में यहां उन महान नागवंशी राजाओं की प्रजा को उन ब्राह्मणों ने यहां गुलाम बना लिया और विभिन्न प्रकार के सेवा कार्यों में लगा दिया ।कालांतर में इन्हीं ब्राह्मणों ने इन पर शासन करना आरंभ कर दिया और इन्हें तरह-तरह के कठोर वैवाहिक, सामाजिक ,आर्थिक कानूनों में बांध दिया गया। विवाह प्रणाली ऐसी थी कि जो जिस कार्य को करता है वह वही कार्य करने वाले से शादी करेगा। मनुस्मृति के बाद इस गुलाम प्रजा को ब्राह्मणों ने शिक्षा लेने से भी वंचित कर दिया।ब्राह्मणों ने जिन लोगों को पत्तलटटवा, पानी ढोनेवाले, शादी में डोली उठाने वाले, ब्राह्मणों क्षत्रिय एवं वैश्य जातियों के यहां खाना बनाने वाली , ब्राह्मणों का बिस्तर गर्म करने वाली आदि कार्यों पर रखा उन्हीं लोगों को कहार कहा जाता है।
बाद में इन्हीं ब्राह्मणों ने जब अपनी पोल खुलते देखी तो इन कहार जातियों को अपनी ग्रंथों के माध्यम से चंद्रवंशी कहना शुरू कर दिया।
आज ये कहार लोग अपने को चंद्रवंशी क्षत्रिय कहकर बहुत गौरवान्वित महसूस करते हैं और झूठी प्रशंसा करते हैं।
आज ये कहार लोग यह भी नहीं जानते की ब्राह्मणों ने छल कपट करके इनके लड़ाकू नागवंशी राजा महा प्रतापी जरासंध को चंद्रवंशी घोषित करके कहार जाति के मूल इतिहास को दफनाने का काम किया।
मेरे कहने का पूर्ण सारांश यह है कहार वस्तुतः मूलनिवासी लड़ाकू नागवंशी जाति के लोग थे। लेकिन ब्राह्मणों के ब्राह्मण जाल में फस कर यह अपने आप को चंद्रवंशी क्षत्रिय कहने लगे हैं।
राजगीर में नागों के अनेक अवशेष है ।जहां जरासंध का अखाड़ा था ।वहां मनियार नाम का नाग मंदिर भी है। लेकिन ब्राह्मणों ने छल प्रपंच से मनियार मंदिर में शिव जी की मूर्ति लगा दी है जो वस्तुतः अशोक का स्तंभ है।
आज भी कहार जाति के लोग अपने असली इतिहास को नहीं जान पाए हैं। और जो जाती है अपने इतिहास को नहीं जानता वह नया इतिहास नहीं लिख सकता।
जय भीम जय संविधान जय भारत


Aditya on 10-03-2021

Agar Kahar jarasandh ke vansaj nahi hai. To phir ye kaun si jaati hai aur iski utpatti kaha se aur kaise hui.
Koi jaankar facts par baate bataae
Hawa me baate naa kare.


Lavkush chandravanshi on 25-04-2021

Kahar jati ka utpati kaha se huaa

Rahul Ranjan on 02-05-2021

Sumeet kumar pehle kuruvansh ka pura vansavali dekh lena phir bolna jarasandh ke baare mein, rajpoot ko aise hi mat karo.khud Sudra hai rajpoot ko nicha dikha raha hain.

Rahul Ranjan on 02-05-2021

Kahar pehle koi jaati nahi thi, kahari ek pesa tha.pehle Doli jayadatar nisadh(bind,mallah,machhuara, dhimar, beldaar)aur kai anya jaati Doli uthate the, jab chor , daku ke dwara dulhan jewar ,gehna loot liya jaata tha,aur dulhan , Dulho aur kaharo ko maar diya jaata tha,tab Ravani(bridhrathvansh) kshatriyo chunav hua tha.iska matlab ye nahi sabhi Ravani kahar dhone lage ,kuchh log jo dhananand ke atyachaar apne jamin ,jaydaad chhor kar idhar udhar bhage Bo kahar uthate the.kahar koi jaati nahi pesa tha ,jaise driver gadi chalata hai , passenger gadi me baitha kar paisa kamane ke liye,usi parkar kahar ek pesa tha.


Rahul Ranjan on 02-05-2021

Jarasandh bridhrathvansh ka pratapi Raja tha,inka vansavali Raja yayati ke puta puru se chala hain,kisi ko koi dikkat hai to ved,purano me vansavali dekh lena.inhi ke bansaj aaj Ravani rajpoot,aur Chandel rajpoot kehlaata hain jo 36 vans me se hain.

Thakur Akshay Chandel on 06-08-2021

Chandravansh aur suryavansh 2 Kshatriya hote hain bharat ke kayi putra the unmen se brihdath yadu puru unme se puru ke kuruvansh brihdath ke rawani fir chandel yadu ke Yaduvanshi Fir jadeja bhati jadoan baat khatm gawaro

Jacarandh kis jaati ka tha on 28-08-2021

B

Yaduwansham. on 20-10-2021

Bhai lagta hai pankaj mishra ke dada ne gaanja phook kar kahani sunaai hai. Abe laure kahar ka koi history nahi hai. Aur jab kisi caste ka history he nahi hai to wo aaya kaha se. Chandrawanshi ka itihaas dekh lo. Chandrawanshi kal bhi tha aaj bhi hai aur aane wala kal ko bhi rahega. Apne dada ke grantho aur puraano par mat chalo bete. Jo hindu puraan hai unko ek baar khol ke dekh lo pata chal jaayega. Main brahman ka izaat karta hu. Kyuki wo hame siksha dete hai.Aur her ek teacher mere liye brahman he hai. Par lauru mishra to to ka jhaat hai.


Anand on 31-10-2021

Jo ke keh rha hai ki, jarasandh chandravanshi kahar nhi tha wo, wo padosi ka aulad hai, jara sandh chandravanshi kahar tha, Or kahar jati hi rawani hai, pura mahabharat chandravanshi rajao ka tha, surayabanshi rajput hote hai, Or chandravanshi kahar hote hai, Or chandravanshi kahar ne hi bhumihar jati ko banaya hai, pandav kaurav, raja jarasandh, sb chandravanshi kahar the, or brahmn inke rakhel(bistar garm krne wale) jese the ,


Anand on 31-10-2021

जरा संध, पांडव, kaurav shri कृष्ण सब चंद्र बंशी कहर थे, कृष्ण पैदा चंदवंशी कहर हुए थे और पाले थे यादव बंश मे, जो कुत्ता का बच्चा जासंश् को कहर नही बोल रहा वो दोगला परोसी का औलाद है, जरासंध कहर ने ही भूमिहार जाती को बनाया है, और जासंश् असुर थे इसलिए ब्रहमंN उनके यह रखेल रहते थे, ब्रहमन उनके बिस्तर गरम करते थे, उनके लिए नाचते थे गाते थे


Vaibhavkashyap on 10-11-2021

Jay chandravanshi Jay Bhawani
Jay rajputana jay jarasandh


Ak Singh on 18-11-2021

Are Bhsk page owner Jarasandh maharaj Tmhare baap they wo chndravanshi Kshtriya they aur tmhari maa phne aati thi kilo par hmari bc jab jankari puri na ho to gyan nhi pelte samjha mc kahar ki ma ki hmare purwajo ne tm kaharo ki ma bhano ko rkhel kya bna diya tm hmko apna papa smjhne lage ke aulad

Ak Singh on 18-11-2021

Page owner ke aulad is article ko hta vrna teri maa dunga smjha bhan ki teri nich jati ka tu tm jaiso ki maa bhan hmare yha aakar chudwati thi re apne maa ke yar ko madar apni jati ka mat btao re randivaale hm ravani rajput jarasansh maharaj ke vanshaj tumhari maiya ke bhiniya ke yaar bhatar hai smjha mc page owner hta vrna mc share krke bhut gali dilwaunga smjha ke


Amar Kumar Singh on 18-11-2021

रवानी वंश के क्षत्रिय राजपूतों ने 2800 वर्ष वैदक काल से लेकर कलियुग तक मगध पर शासन किया। रवानीवंश मगध (बिहार) को स्थापित एवं शासन करने वाला प्रथम एवं प्राचीनतम क्षत्रिय राजवंश है। रवानी वंश बृहद्रथ वंश का ही परिवर्तित नाम है। रवानी वंश की उत्पत्ति चंद्रवंश से है, व इनकी वंश श्रंखला पुरुकुल की है। सबसे पहले यह कुल पुरुवंश कहलाया, फिर भरतवंश, फिर कुरुवंश, फिर बृहद्रथवंश कालांतर में इसी वंश को रवानी क्षत्रिय बोला जाता है। परंतु यह वही प्राचीन कुल पुरुकुल है, जो क्षत्रिय राजा पूरू से चला एवं प्रथम कुल कहलाया। शासन स्थापित करने एवं निवास क्षेत्र में अपना मजबूत अस्तित्व रखने के कारण रवानी राजपूतों को उनका विरुद रमण खड्ग खंडार प्राप्त हुआ,जिसका अर्थ होता है, मूल स्थान छोड़ कर रवाना हुए अलग अलग स्थानों पर खंडित हुए एवं जहां जहां खंडित हुए खड्ग (तलवार) के दम पर वही शासन स्थापित किया एवं अपनी तलवार के दाम पर अपना अस्तित्व कायम रखा। इस वंश के नामकरण की मान्यता यह है कि मगध की जब मगध की सत्ता पलटी एवं 344 ई.पु ने शुद्र शासक महापद्म नंद मगध की गद्दी पर बैठा फिर उसके बाद जब उसका पुत्र धनानंद गद्दी पर आसीन हुए तो वह मगध की प्रजा पर अत्याचार करने लगा तथा अपनी शक्ति का दुरूपियोग करने लगा यह सब देख इन क्षत्रियों को यह अपने पूर्वजों द्वारा बसाई एवं सदियों शासित पवित्र भूमि का आपमान समझा एवं प्रतिशोध लेने की ठान ली इसका अवसर इन्हे चंद्रगुप्त द्वारा नंद पर युद्ध के प्रयोजन में मिला इन क्षत्रियों ने चंद्रगुप्त का साथ नंद के खिलाफ युद्ध में दिया एवं वीरता के साथ लड़े परन्तु नंद की विशाल सेना होने के कारण चंद्रगुप्त युद्ध हार गया एवं पंजाब चला गया तथा नंद मगध के क्षत्रियों पर अत्याचार करने लगा तथा विशेषकर इन रवानीवंश क्षत्रियों पर इस जिस कारण यह क्षत्रिय पाटलिपुत्र से बाहर निकल कर अपनी पूर्वजों की भूमि पर रमण करने लगे जिस कारण यह अपने आपको रमण क्षत्रिय कह कर पुकारने लगे रमण शब्द का अपभ्रंश ही रवानी हुआ एवं रवानी का अर्थ होता है प्रवाह, तीक्ष्णता, धार, तेज, बीना रुकावट चलने वाला, इस कारण इन्होने यह शब्द अपने लिए उपयुक्त समझा एवं रवानी क्षत्रिय कहलाए। तत् पश्चात पांचवी या छठी शातबदी तक जाति व्यवस्था ढलने के कारण रवानी कुल के राजपूत कहलाए जाने लगे। अतः 328 ई.पु से मगध के क्षत्रिय राजवंश बृहद्रथवंश का परिवर्तित नाम रवानीवंश हुआ। तथा यह रवानी क्षत्रिय राजपूत कहलाए। इस वंश की 30 से अधिक शाखाएं बिहार में निवास करती है। कुंवर सिंह के सेनापति मैकू सिंह भी रवानी वंश की आरण्य शाखा के राजपूत थे।
रवानी राजपूत
गढ़वाल के शक्तिशाली 52 गढ़ो में एक रवानी राजपूतो का गढ़ रवाणगढ़ भी है।
रवानी राजपूत राज वंशावली=
१.ब्रह्म
२.अत्रि
३.चंद्र
४.बुद्ध
५.पुरुरवा
६.आयु
७.नहुष
८.ययाति
९.पुरु (पुरुवंश के संस्थापक)
१०.जनमेजय
११.प्राचीन्वान
१२.संयाति
१३.अहंयाति
१४.सार्वभौम
१५.जयत्सेन
१६.अवाचीन
१७.अरिह
१८.महाभौम
१९.अयुतनायी
२०.अक्रोधन
२१.देवातिथी
२२.अरिह
२३.ऋक्ष
२४.मतिनार
२५.तंसु
२६.ईलिन
२७.दुष्यंत
२८.भरत (भरतवंश तथा भारतवर्ष के संस्थापक)
२९.भुमन्यु
३०.सुहोत्र
३१.हस्ती (हस्तिनापुर के संस्थापक)
३२.विकुण्ठन
३३.अजमीढ़
३४.ऋक्ष
३५.संवरण
३६.कुरु (कुरुवंश तथा कुरुक्षेत्र के संस्थापक)
३७.सुधनु
३८.सुहोत्र
३९.च्यवन
४०.कृतक
४१.उपरीचर वसु
४२.बृहद्रथ (बृहद्रथ वंश तथा मगध के संस्थापक)
४३.जरासंध
४४.सहदेव
४५.सोमापी
४६.श्रुतश्रवा
४७.आयुतायु
४८.निरामित्र
४९.सुनेत्र
५०.वृहत्कर्मा
५१.सेनजीत
५२.श्रुतंजय
५३.विपत्र
५४.मुचि सुचि
५५.क्षमय
५६.सुवत
५७.धर्म
५८.सुश्रवा
५९.दृढ़सेन
६०.सुमित
६१.सुबल
६२.सुनीत
६३.सत्यजीत
६४.विश्वजीत
६५.रिपुंजय (मगध के अंतिम शासक) 543 ई.पु
६६.समरंजय




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