Vyaktitv Ko Prabhavit Karne Wale Kaarak व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले कारक

व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले कारक



Pradeep Chawla on 16-10-2018


व्यक्तित्व के निर्धारक
व्यक्तित्व के निर्धारक से तात्पर्य कुछ वैसे कारकों (factors) से होता है जिनसे व्यक्ति का विकास प्रभावित होता है। मनोवैज्ञानिकों ने इस तरह के कारकों को दो भागों में बाँटा है। कुछ कारक ऐसे हैं जिनका संबंध व्यक्ति की आनुवंशिकता या जैविक प्रक्रियाओं से होता है। कुछ कारक ऐसे हैं जिनका संबंध व्यक्ति के वातावरण से होता है। जन्म के बाद व्यक्ति किसी समाज या संस्कृति के वातावरण में पाला-पोसा जाता है। अत:, वातावरण से संबंधित भी कुछ ऐसे कारक होते हैं जो व्यक्ति के विकास को प्रभावित करते हैं। इन दोनों कारक है -
(अ) जैविक या आनुवंशिक कारक—
(ब) पर्यावरणीय कारक—
(अ) जैविक या आनुवंशिक कारक—
जैविक कारक से तात्पर्य वैसे कारकों से होता है जो आनुवंशिक होते हैं तथा जन्म से पहले से ही व्यक्ति में मौजूद होते हैं, और व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करते हैं। ऐसे प्रमुख कारक निम्न हैं—
1. शारीरिक संरचना—
व्यक्तित्व का बाहरी स्वरूप व्यक्तित्व विकास पर प्रभाव डालता है।
जैसे—एक आकर्षक व्यक्तित्व रखने वाले व्यक्ति अपने आस-पास के लोगों में आकर्षण का केन्द्र होता है।
एक प्रतिभासम्पन्न विभिन्न गुणों से युक्त छोटे कद के दूबले-पतले व्यक्ति को (उसकी शारीरिक संरचना बनावट आकर्षण न होने के कारण) अनदेखी की जाती है।
2. रासायनिक ग्रन्थि के आधार पर—
हमारा नाडि तंत्र ग्रन्थियाँ, रक्त, रसायन आदि हमारे व्यवहार के तरीकों एवं विशेषताओं को बहुत धीमा या अधिक प्रभावित करती है, जिसका प्रभाव व्यक्ति के व्यक्तित्व पर पड़ता है। व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाली प्रमुख ग्रन्थियां निम्न है→
पीयूष ग्रन्थिइस ग्रन्थि का स्थान मस्तिष्क होता है। इस ग्रन्थि के अग्रवर्ती भाग से सोमैटोट्रोपीन या विकास हारमोन्स निकलते है, लम्बाई, मांसपेशियों को प्रभावित करते है। पीयूष ग्रन्थि अन्य अन्त:स्रावी ग्रन्थियों, जैसे एड्रीनल ग्रन्थि, कण्ठ ग्रन्थि तथा यौन ग्रन्थि के कार्यों पर हारमोन्स के द्वारा अपना नियंत्रण रखती है, इसलिये पीयूष ग्रन्थि को 'मास्टर ग्रन्थि' भी कहा जाता है।
एड्रीनल ग्रन्थि इस ग्रन्थि का स्थान वृक्क होता है। इस ग्रन्थि के दो भाग हैं-बाहरी भाग जिसे कार्टेक्स कहते है तथा भीतरी भाग जिसे एड्रीनल मेडुला कहते है। एड्रीनल कार्टेक्स के हारमोन्स को कार्टिन कहते है, जो कार्बोहाइड्रेट तथा नमक चयापचय का नियंत्रण करते है। कार्टेक्स द्वारा सही तरह कार्य नहीं करने पर व्यक्ति में थकान व आलस्य बढ़ जाता है। एड्रीनल मेडुला द्वारा दो तरह के हारमोन्स निकलते है→इपाईनफ्राइन या एड्रीनालीन तथा नारइपाईनफ्राईन या नारएड्रीनालीन। इन दोनों को एक साथ केटकोल हारमोन्स कहते है। एड्रीनालीन को इमरजेन्सी हारमोन्स या आपातकालीन हारमोन्स भी कहते है, क्योंकि यह संवेगों पर नियंत्रण रखता है।
कण्ठ ग्रन्थि (Thyroid gland) → इसका स्थान शरीर के कण्ठ के पास होता है। इस गन्थि से निकलने वाले हारमोन्स को थायराक्सीन कहा जाता है,जिसका प्रभाव पूरे शरीर की चयापचय प्रक्रियाओं पर पड़ता है। इसकी कमी से बच्चों में बौनापन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसके अन्य प्रभाव हृदय गति, श्वसन गति, रक्तचाप आदि पर होता है।
उपकण्ठ ग्रन्थि इसका स्थान गण्ठ ग्रन्थि के बगल में होता है और आकार में यह बहुत ही छोटी होती है, जिसका वजन 0.1 ग्राम के करीब होता है। इससे निकले हारमोन्स को पाराथोरमोन कहते है, जो खून में कैलसियम तथा फॉस्फेट की मात्रा का निर्धारक होता है। इसकी कमी से व्यक्ति में शिथिलता बढ़ जाती है। यह तंत्रिका-तंत्र को भी प्रभावित करता है।
पैंक्रिआज ग्रन्थि इसका स्थान आमाशय के नीचे होता है। इससे दो तरह के हारमोन्स निकलते है — इनसुलिन तथा ग्लूकागोन। इनसुलिन रक्त में चीनी की मात्रा को नियंत्रित करता है। इन्सुलिन की कमी से व्यक्ति में शुगर की बिमारी होने का खतरा अधिक रहता है।
यौन ग्रन्थि महिलाओं में यौन ग्रन्थि को ओभरी तथा पुरुष की यौन ग्रन्थि को टेस्टीक्ल कहते है। टेस्टीज से निकले वाले हारमोन्स को एण्ड्रोजन कहा जाता है। इससे पुरुषों में प्राथमिक तथा गौण यौन गुणों का विकास होता है। ओभरी से निकलने वाले हारमोन्स को एस्ट्रोजन्स तथा प्रोजेस्ट्रोन कहा जाता है। इससे लड़कियों में गौण यौन गुणों का विकास होता है, जैसे आवाज का महीन हो जाना, शारी के खास अंगों पर घने बाल उग आना, स्तन बढ़ जाना आदि।
3. स्नायुमण्डल (Nervous System) — व्यक्तित्व के जैविक निर्धारकों में स्नायुमण्डल का भी प्रमुख स्थान होता है। जिन व्यक्तियों में स्नायुमंडल का अधिक विकास होता है, उनकी बुद्धि तेज होती है तथा वे विपरीत परिस्थितियों में भी समायोजन करने की क्षमता रखते है। जिन व्यक्तियों में स्नायुमण्डल विकसित नहीं हो पाता वे मंद बुद्धि, असामाजिक तथा चरित्र विकृति वाले हो जाते है।
(ब) पर्यावरणी कारक →
पर्यावरणीय कारकों को तीन भागों में बांटा गया है—
1. सामाजिक कारक
2. सांस्कृतिक कारक
3. आर्थिक कारक
1. सामाजिक कारक → सामाजिक कारकों में निम्न को सम्मिलित किया जाता है—
माता तथा पिता
परिवार के सदस्यों का आपसी संबंध
जन्मक्रम
स्कूली प्रभाव
आस-पड़ोस
सामाजिक स्वीकृति
2. सांस्कृतिक कारक → व्यक्तित्व के विकास में संस्कृति का भी योगदान होता है। संस्कृति का एक व्यापक शब्द है जिसका अर्थ समाज के रीति-रीवाज,आदतें, परम्पराओं, रहन-सहन, तौर-तरीके आदि होता है। प्रत्येक समाज की एक विशेष संस्कृति होती है, जो व्यक्ति को किसी न किसी रूप से प्रभावित करती है। संस्कृति से व्यक्ति के व्यवहार एवं व्यक्तित्व में प्रभाव-पूर्ण परिवर्तन होते है।
3. आर्थिक कारक → व्यक्तित्व के शीलगुणों के निर्माण में परिवार की आर्थिक स्थिति का काफी प्रभाव पड़ता है। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने से व्यक्तित्व के विकास तथा शीलगुणों के निर्माण पर बुरा प्रभाव पड़ता है तथा व्यक्तित्व में कुसामायोजन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तथा आर्थिक स्थिति अनुकूल व सुदृढ़ होने पर व्यक्तित्व के गुणों का विकास आसानी से होता है। परन्तु हर बार ऐसा नहीं होता कई बार इसके उलट परिणाम भी देखे जाते है।



Comments Nayana on 12-03-2024

Hereditary Factors Inflencimg Personality

Jyggbhh on 27-05-2023

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Mehwish on 13-12-2022

Vyaktitva ko prabhavit karne Wale Karan


Shobha on 08-08-2022

Vyaktitva ke 16 factor ke naam bataiye

Mini kumari on 24-12-2021

External factor affcting personality development

Amit kumar sinha on 10-06-2020

Nadi ko prabhavit karne wale Karak kon kon sa hai

NATWAR Lal Meena on 12-05-2019

Balak ke Vikas ki avathaye






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