Sufi Santo Ki Shaili Kaun Si Hai सूफी संतों की शैली कौन सी है

सूफी संतों की शैली कौन सी है



GkExams on 22-12-2018

सूफी काव्य धारा -


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इस काव्य धारा को प्रेममार्गी/प्रेमाश्रयी/प्रेमाख्यानक/रोमांसीक
कथा काव्य आदि नामों से जाना जाता है।


- सूफी काव्य में उपलब्ध प्रेम भावना भारतीय प्रेम से कुछ अलग है।


- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इन रचनाओं पर फारसी मसनवी शैली का प्रभाव बताया है।


- मसनवी शैली के अन्तर्गत सर्वप्रथम ईशवंदना, हजरत मोहम्मद की स्तूति, तात्कालीन शासक की प्रशंसा तथा गुरू की महिमा का निरूपण है।


- इस प्रकार के प्रेम का चित्रण भारतीय संस्कृति में ऊर्वशी, पुरूवा आख्यान, नल-दमयन्ती आख्यान, ऊषा-अनिरूद्ध, राधा-कृष्ण आदि रूपों में मिलता है।


- सूफी शब्द-‘‘सूफ’’ से बना है जिसका अर्थ है ‘‘पवित्र’’। सूफी लोग सफेद ऊन के बने चोगे पहनते थे। उनका आचरण पवित्र एवं शुद्ध होता था।


- सूफियों ने ईश्कमिजाजी (लौकिक प्रेम) के माध्यम से इश्क हकीकी (अलौकिक प्रेम) को प्राप्त करने पर बल दिया।


- भारत में इस मत का आगमन नवीं-दसवीं शताब्दी में हो गया था।


लेकिन इसके प्रचार-प्रसार का श्रेय ‘‘ख्वाजा मोइनुद्दिन चिश्ती" को है।


- सूफी साधान में ईश्वर की कल्पना पत्नी रूप में तथा साधक की कल्पना पति रूप में की गई है।


गणपति चन्द्रगुप्त ने सूफी काव्य को ‘‘रोमांटिक कथा काव्य’’ कहा है।


इस धारा के प्रतिनिधि कवि ‘‘जायसी’’ है।


इनकी प्रमुख रचना ‘‘पदमावत’’ है । (1540 इ. )


सूफी काव्य धारा के अधिंकाशकवि मुसलमान है लेकिन इनमें धार्मिक कट्टरता का अभाव है।


इन कवियों ने सूफी मत के प्रचार-प्रसार के लिए हिन्दू घरों में प्रचलित प्रेम-कहानियों को अपना काव्य विषय बनाया।


हिन्दी के प्रथम सूफी कवि ‘‘मुल्लादाऊद’’ को माना जाता है।


आचार्य शुक्ल ने हिन्दी का प्रथम सूफी कवि ‘‘कुतुबन’’ को माना है।


रामकुमार वर्मा ने मुल्लादाऊद कर ‘‘चन्दायन’’ (लोरकहा) से सूफी काव्य की परम्परा की शुरूआत माना है।


सूफियों में ‘‘राबिया’’ नाम की एक कवियित्री भी हुई।


‘‘अष्टछाप’’ के कवि नन्ददास ने ‘‘रूपमंज्जरी’’ नाम से प्रेमकथा की रचना की। जिसकी भाषा ब्रज है।


सूफी काव्य की प्रमुख प्रवृतियां एवं विषेषताएं -


मुसलमान कवि और मसनवी शैली


प्रेमगाथाओं का नामकरण नायिकाओं के आधार पर


अलौकिक प्रेम की व्यंजना


कथा संगठन एवं कथानक रूढि़यों का काव्य में प्रयोग


नायक-नायिका चरित्र चित्रण में एक जैसी पद्धति


लोक पक्ष एवं हिन्दु संस्कृति का चित्रण


श्रृंगार रस की प्रधानता


किसी सम्प्रदाय के खण्डन-मण्डन का अभाव


अवधी भाषा का प्रयोग तथा क्षेत्रीय बोलियाें का भी प्रभाव


प्रमुख रचनाएं एवं रचनाकार -


1. मुल्लादाऊद -


चन्दायन (लोरकहा) (1372 इ. )


यह अवधि भाषा का प्रथम सम्बन्ध काव्य है।


कडवक शैली का प्रयोग (पांच अर्द्धालियों के बाद एक दोहा)


2. कुतुबन - (मृगावती)


आचार्य शुक्ल ने इसे सूफी काव्य परम्परा का प्रथम ग्रन्थ माना है।


3. मंझन - (मधुमालती)


इसमें नायक के एकानिष्ठ प्रेम का चित्रण किया गया है।


4. जायसी - (पद्मावत) 1540 ई.


चितौड़ के राजा रत्नसेन एवं सिंहलद्विप की राजकुमारी पद्मावती की कथा का चित्रण


यह एक रूपक काव्य है


इसके पात्र प्रतीक है -


चितौड़ - शरीर का


रत्नसेन - मन का


पद्मावती - सात्विक बुद्धि


सिंहलद्विप - हृदय का


हीरामन तोता - गुरू का


राघव चेतन - शैतान का


नागमती - संसार का


अलाउद्दीन - माया रूप आसुरी शक्ति


जायसी की अन्य रचनांए:-


अखरापट - वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर को लेकर सिद्धान्त निरूपण


आखरी कलाम - कयामत का वर्णन


चित्र रेखा, कहरनामा, मसलनामा


5. असाइत -


हंसावली (राजस्थानी भाषा में) मोतीलाल मेनारिया के अनुसार


6. दामोदर कवि - ‘‘लखनसेन पद्मावती कथा’’ (राजस्थानी)


7. ईष्वरदास - ‘‘सत्यवती कथा’’


8. नन्ददास - ‘‘रूपमंजरी’’ (ब्रजभाषा में)


9. उसमान - ‘‘चित्रावली’’


10. शेखनवी - ‘‘ज्ञानदीप’’


11. कासीमषाह - ‘‘हंस जवाहिर’’


12. नुरमोहम्मद - अनुराग बांसुर, इन्द्रावती


अनुराग बांसुरी में दोहे के स्थान पर बरवै का प्रयोग


13. जान कवि - ‘‘कथारूप मंजरी’’


14. पुहकर कवि - ‘‘रसरतन’’


आचार्य शुक्ल ने रतनसेन को आत्मा तथा पद्मावती को परमात्मा का प्रतीक माना है।


जायसी के गुरू का नाम - सैय्यद अशरफ, शेख मोहिदी


‘‘कृष्णकाव्य धारा’’


कृष्णकाव्य धारा के प्रतिनिधि कवि सूरदास माने जाते हैं।


आधुनिक भारतीय भाषाओं (हिन्दी) में सर्वप्रथम ‘‘विद्यापति’’ ने राधा कृष्ण का चित्रण किया।


विद्यापति पदावली के पद इतने मधुर और भावपूर्ण हैं कि चैतन्य महाप्रभु उन्हें गाते-गाते भावविभोर होकर मुर्छित हो जाते थे।


कृष्ण भक्ति काव्य आनन्द और उल्लास का काव्य है। (लोकरंजक)


कृष्ण काव्य के आधार ग्रन्थ ‘‘भागवत पुराण’’ और महाभारत माने जाते हैं।
हिन्दी में कृष्ण काव्य के प्रवर्तन का श्रेय विद्यापति को ही है।


‘‘भ्रमर गीत’’ का मूल स्त्रोत श्रीमतभागवत पुराण के दशम् स्कन्द के 46वें व 47वें अध्याय को माना जाता है।


बृज भाषा में भ्रमरगीत परम्परा सूरदास से प्रारम्भ हुई।


विद्यापति ने ‘‘जयदेव’’ के ‘‘गीतगोविन्द’’ का अनुसरण किया।


पुष्टिमार्ग का सम्बन्ध वल्लभाचार्य से है जिसमे पुष्टि का अर्थ है - पोषण। अर्थात भागवत कृपा या अनुग्रह।


पुष्टिमार्ग के वे कवि जिन पर विठ्ठलनाथ ने अपने आशीर्वाद की छापलगाई ‘‘अष्टसखा’’ या ‘‘अष्टछाप’’ के नाम से जाने गए।


इनमें से चार वल्लभाचार्य एवं चार विठ्ठलनाथ के षिष्य थे।


वल्लभाचार्य के शिष्य -विठ्ठलनाथ के शिष्य


1. सूरदास 1. नन्ददास


2. कूम्भनदास 2. गोविन्द स्वामी


3. परमानन्ददास 3. छीत स्वामी


4. कृष्णदास 4. चतुर्भुजदास


अष्टछाप के कवि गोवर्धन में श्रीनाथ मन्दिर में अष्ट भाग विधि से सेवा करते थे।


अष्टछाप की स्थापना 1565 ई. में विठ्ठलदास द्वारा की गई।


विद्यापति ने ‘जयदेव’ के ‘गीत-गोविन्द’ का अनुसरण किया


‘‘विद्यापति-पदावली’’


नन्ददास अष्टछाप के कवियों में सबसे विद्वान कवि थे।


84 वैष्णव की वार्ता -


उनमें वल्लभाचार्य के शिष्यों का वर्णन है।


वैष्णवन की वार्ता में विठ्ठलदास के शिष्यों का वर्णन है।


भ्रमरगीत का मूल स्त्रोत श्रीमद्भागवत पुराण है।


वल्लभाचार्य कृत अनुभाष्य में पुष्टि मार्ग की व्याख्या है।
पुष्टिमार्गीय भक्ति को रागानुगा भक्ति कहते हैं।
अष्टछाप की स्थापना विठ्ठलदास के द्वारा गोवर्धन पर्वत पर 1519 ई. में श्रीनाथ मन्दिर की स्थापना पूर्णमल खत्री के द्वारा की गई।


कृष्ण भक्ति सम्बन्धी सम्प्रदाय -


1. वल्लभ सम्प्रदाय -


प्रवर्तक वल्लभाचार्य


इनका दार्शनिक सिद्धान्त शुद्धाद्वैत है।


इनके अनुसार श्री कृष्ण पूर्ण पुरूषोतम ब्रह्म है।


विष्णु सम्प्रदाय को पुनर्गठित कर वल्लभाचार्य ने वल्लभ सम्प्रदाय का रूप दिया।


भागवत टीका, सुबोधिनी, अणुभाष्य इनकी प्रमुख रचनाएं है।


2. निम्बार्क सम्प्रदाय -


निम्बकाचार्य ने सम्पादित किया।


राधा-कृष्ण की युगल-मूर्ति की पूजा।


द्वेताद्वैतवाद या (भेद-अभेदवाद) दार्शनिक सिद्धान्त


3. राधावल्लभ सम्प्रदाय -


प्रवर्तक हितहरिवंश
इसमें राधा को ही प्रमुख माना गया है और कृष्ण को ईश्वरों का ईश्वर माना गया है।


4. गोडिय सम्प्रदाय -


चैतन्य सम्प्रदाय (प्रर्वतक-चैतन्य महाप्रभु)
कृष्ण को बृजेष के रूप में माना है।


प्रमुख कवि -


1. सूरदास - अंजन नयन, पुष्टिमार्ग वात्सल्य का सम्राट कहते हैं। ये जन्मान्ध थे।


वार्ताग्रन्थों के अनुसार ये दिल्ली के निकट सही ग्राम के ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए।


वल्लभाचार्य से मिलने के बाद दास्य-विनय भक्ति छोड़कर साख्यभक्ति को अपनाया और उनके साथ पारसौली में रहने लगे।


विठ्ठलदास ने इनके निधन पर कहा ‘‘पुष्टिमार्ग का जहाज जात है, सो जाको कुछ लैनो होय सो लेहु’’


सूर सागर की कथा भागवत पुराण के दषम स्कन्ध से ली गई है।


आचार्य शुक्ल ने तुलसी और सूरदास को हिन्दी काव्य गगन के सूर्य और चन्द्र माना है - (सूर-सूर्य, शषि-तुलसी)
आचार्य शुक्ल ने सूरदास को जीवनोत्सव का कवि माना है।


सूर को वात्सल्य और श्रृंगार रस का सम्राट कहा जाता है।


आचार्य शुक्ल ने कहा कि आगे होने वाले कवियों की श्रृंगार एवं वात्सल्य की उक्तियां सूर की जूठन सी लगती है।


सूर सागर का सर्वाधिक मर्मस्पर्षी अंश भ्रमरगीत है जिसमें उद्धव व कृष्ण को भ्रमर द्वारा उलाहना देना निर्गुण पर सगुण की विजय , सूरसागर की रचना 12 स्कन्धों में की है।


9वां स्कन्ध में रामावतार की कथा है बाकी कृष्ण की


प्रमुख रचनाएं -
सूरसागर, सूर सूरावली, साहित्य लहरी (नायिका भेद)


सूरदास की भक्ति पद्धति का मेरूदण्ड पुष्टिमार्ग है।


सूरसागर-गीतिकाव्य है। इसकी भाषा ब्रज है।


सूरदास की अकबर से मुलाकात हुई थी।


2. नन्ददास -


ये बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न कवि थे।


इनके विषय में जानकारी 252 वैष्णव की वार्ता में मिलती है।
ये विठ्ठलदास के शिष्य थे।


प्रमुख रचनांए -


रासपंचाध्यायी - रोला छंद में लिखित नन्ददास की सर्वश्रेष्ठ कृति है।


इस ग्रंथ की उत्कृष्ट शैली एंव काव्यत्व को देखकर नन्ददास के बारे में यह कहा जाता है - ‘‘और कवि गडि़या नन्ददास जडि़या’’
इस ग्रंथ को हिन्दी का गीतगोविन्द कहा जाता है।


सिद्धान्त पंचाध्यायी - रासलीला की आध्यात्मिक व्याख्या


भंवरगीत -


अनेकार्थ मंजरी


मानमंजरी


रूपमंजरी - प्रेमाख्यानक परम्परा का ग्रंथ


विरह मंजरी -


रूकमणी मंगल


सुदामा चरित


प्रेम बारहखड़ी


गोवर्धनलीला


3. कृष्णदास -


ये अधिकारी के नाम से जाने जाते है।


इनकी रचनाएं निम्न है - प्रेमतत्व निरूपण, जुगलमानचित्र


ये श्रीनाथ मन्दिर में लेखा-जोखा का कार्य करते थे।


4. स्वामी हरिदास -


रचनाएं - केलिमाल


5. कुंभनदास -


‘‘संतन को कहां सिकरी को काम’’ ये पंक्ति इन्होंने अकबर के दरबार से लौटकर कही थी।


स्वछंद काव्यधारा के कवि -


1. रसखान (सैय्यद इब्राहीम) -


इन्हें स्वंछद काव्यधारा का प्रर्वतक माना जाता है।


दौ सो बावन वैष्णवन की वार्ता में इनका उल्लेख मिलता है।


इन्होंने गोस्वामी विठ्ठलनाथ से शिक्षा ली।


तुलसीदास ने अपना ‘‘रामचरितमानस’’ सर्वप्रथम रसखान को ही सुनाया था।


कृष्णभक्ति के लिए कवित सवैया पद्धति को अपनाने वाले प्रथम कवि थे।


प्रमुख रचनाएं -


सुजान रसखान - इस रचना से रसखान की उपाधि


प्रेमवाटिका - इसमें राधा-कृष्ण को मालिक और माली के रूप में


चित्रित किया है।


दानलीला - राधा-कृष्ण का संवाद


अष्टयाम - कृष्ण की दिनचर्या एवं क्रिड़ाओं का वर्णन


2. मीरा -
जन्म 1504 इ. मेडत़ा के समीप गावं कुडक़ी मे ं राठौड वंशी परिवार में।


इनके पिता का नाम रत्नसिंह


पति का नाम - भोजराज (चित्तौड़ का शासक)


राव दूदा के पास मेड़ता में बचपन बीता एंव वैष्णव भक्ति संस्कार प्राप्त किए।


वृंदावन में कृष्णभक्त जीव गोस्वामी से इनकी भेंट हुई
द्वारिका के रणछोड़ जी मंदिर में इनका अंतिम समय बीता


इनके काव्य में राजस्थानी मिश्रित बृजभाषा का प्रयोग है।


इनकी भक्ति माधुर्यभाव की भक्ति मानी जाती है।


3. रहीम -


प्रमुख रचनाएं -


बरवैनायिका भेद


नगरशोभा


श्रृंगार सोरठा


मदनाष्टक - कृष्णलीला


खेल कोतुकम - ज्योतिष संबंधी


भ्रमरगीत परम्परा -


1. सूरदास का ‘भ्रमरगीत’ -


भागवत के दसवें स्कंध पर आधारित


इनकी गोपीयां अधिक भावुक है।


2. नन्ददास का भंवरगीत -


इनकी गोपियां अधिक तार्किक है।


इसमें दार्शनिकता का पुट मिलता है।


भ्रमरदूत -
सत्यनारायण कवि रत्न


युगीन समस्याओं का चित्रण
माता यशोदा का चित्रण भारत माता के रूप में किया


राष्ट्रीयता एवं स्त्री शिक्षा का उल्लेख


प्रिय प्रवास - अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘‘हरिऔध’’


उद्धवशतक - जगन्नाथ दास रत्नाकर


रामभक्ति काव्य -


जैन साहित्य में ‘‘विमलसूरि’’ कृत ‘‘पउम चरिउ’’
सिद्ध साहित्य में स्वयंभू कृत ‘‘पउम चरिउ’’ तथा पुष्पदंत कृत ‘‘महापुराण’’ में रामकथा का वर्णन है।


बांग्लाभाषा में ‘‘कृतिवासी’’ ने ‘‘रामायण’’ लिखी।


तुलसी से पूर्व के रामभक्त कवियों में विष्णुदास ईश्वरदास (भरतमिलाप, अंगदपैज) आदि प्रमुख है।


वाल्मिकी की रामायण ही रामकथा का मूलस्त्रोत है।


रामभक्ति से सम्बन्धित सम्प्रदाय -


1. श्री सम्प्रदाय - (रामानुजाचार्य)


इन्हें शेषनाग अथवा लक्ष्मण का अवतार माना जाता है।


2. ब्रह्म सम्प्रदाय - (मध्वाचार्य)


इनका सिद्धांत द्वैतवाद था


रामभक्ति काव्य के प्रमुख कवि -


रामानन्द -


मूलरूप में रामभक्ति काव्यधारा का प्रारम्भ रामानन्द से माना जाता है।


ये रामावत सम्प्रदाय के प्रवर्तक थे।


इनके गुरू का नाम राघवानन्द था।


इन्होंने रामभक्ति को जनसाधारण के लिए सुगम बनाया।


सगुण और निर्गुण का समन्वय ‘‘रामावत सम्प्रदाय’’ की उदार दृष्टि का परिणाम है।


रचनाएं - रामार्चन पद्धति, वैष्णवमताब्ज भास्कर, हनुमानजी की आरती (आरती कीजे हनुमान लला की), रामरक्षास्त्रोत
रामानन्द सम्प्रदाय की प्रधान पीठ गलताजी जयपुर में ‘‘कृष्णदास पयहारी’’ ने स्थापित की।
इसे ‘‘उद्धार तोताद्री’’ कहा जाता है।


इसी सम्प्रदाय की एक शाखा तपसी शाखा है।


गुरूग्रंथ साहिब में इनके दोहपद मिले हैं।


हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इन्हें ‘‘आकाश धर्मगरू’’ कहा है।


अग्रदास -


ये कृष्ण पयहारी के षिष्य थे ओर नाभादास के गुरू थे।
रामकाव्य परम्परा में रसिक भावना का समावेष इन्होंने ही किया।


ये स्वयं को ‘‘ अग्रकली’’ (जानकी की सखी) मानकर काव्य रचना की


प्रमुख रचनाएं - ध्यान मंजरी, अष्टयाम, रामभजन मंजरी, उपासना बावनी, हितोपदेश भाषा


तुलसीदास -


जन्म 1532 इ.


रामभक्ति धारा के सबसे बड़े एंव प्रतिनिधि कवि।


रामभक्त कवियों की संख्या अपेक्षाकृत कम होने के कारण तुलसीदास का बरगदमयी व्यक्तित्व है।


‘‘तुलसीदास का सम्पूर्ण काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है।’’ -हजारी प्रसाद द्विवेदी।


नाभादास ने इन्हें ‘‘काली काल का वाल्मिकी’’ कहा है।


ग्रिर्यसन ने इन्हें ‘‘लोकनायक’’ कहा।


इन्हें जातिय कवि भी कहा जाता है।


अमृतलाल नागर के उपन्यास ‘‘मानस का हंस’’ में तुलसी का वर्णन है।


आचार्य शुक्ल ने तुलसी का जन्म स्थान राजापुर माना है।


इनकी माता ‘हुलसी’ तथा पिता का नाम ‘आत्माराम’’ था


बचपन का नाम रामभोला था इनकी पत्नी का नाम ‘रतनावलि’


प्रमुख रचनाएं -


आचार्य शुक्ल के अनुसार इनकी 12 रचनाएं है -


रामचरितमानस -
यह महाकाव्य 1574 ई. में अयोध्या में लिखा गया


इसके अन्दर सात काण्ड है


पहला बालकाण्ड तथा अंतिम सुन्दरकांड है


किष्किन्धा कांड काशी में लिखा गया।


इसकी भाषा अवधि व शैली दोहा-चैपाई है।


इसमें तत्कालीन समय की वर्णव्यवस्था की हीनता का वर्णन है।


‘‘भारतीय जनता का प्रतिनिधी कवि यदि किसी को कह सकते हैं तो वह तुलसीदास है।’’ आचार्य शुक्ल


इनके गुरू का नाम ‘‘नरहरिदास’’ है।


बरबैरामायण -
इसकी रचना तुलसी ने रहीम के आग्रह पर की।


कृष्णगीतावली -
सूरदास जी से मिलने के बाद लिखी। (अनुसरण के रूप में) इसकी भाषा ब्रज है।


रामाज्ञा प्रश्नावली - पं. गंगाराम के अनुरोध पर लिखी।


हनुमानबाहुक - (अप्रामाणिक)
बाहु पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए लिखी।


विनय पत्रिका -


कलिकाल से मुक्ति पाने हेतु रामदरबार में अर्जी के रूप में प्रस्तुत किया। भाषा ब्रज है।


कवित रामायण (कवितावलि)


दोहावली


गीतावली


रामलल्ला नहछु


वैराग्य संदीपनी


पार्वती मंगल - पार्वती के विवाह का वर्णन है।


जानकी मंगल - राम-सीता के विरह का वर्णन है।


तुलसी के राम को जानने के लिए रामचरितमानस को पढ़ें तथा तुलसी को जानने के लिए विनय पत्रिका पढ़ें।


विनय पत्रिका में नवधा भक्ति का स्वरूप है।


इनकी भक्ति दैन्य या दास्य भाव की है।


गीतावली की भाषा ब्रज है तथा संस्कृत शब्दों की बहुलता है
कवितावली तथा गीतावली गीतिकाव्य मुक्तक शैली की रचना है।


तुलसी अकबर के समकालीन थे।


नाभादास -
ये तुलसीदास के समकालीन थे इनका असली नाम नारायण दास था।
इनकी प्रमुख रचना ‘‘भक्तमाल’’ जिसमें 200 कवियों का वर्णन है।


(ट) केशवदास -


केशवदास हालांकि रचना की दृष्टि से रीतिकाल में माने जाते हैं लेकिन काल के अनुसार भक्तिकाल के कवि माने जाते हैं।


प्रमुख रचनाएं -


कविप्रिया


रसिकप्रिया


रामचन्द्रिका


वीरसिंह चरित्


विज्ञान गीता


रत्नबावनी


जहांगिरी जसचन्द्रिका


ये हिन्दी कवियों में बहुप्रतिभा सम्पन्न कवि थे। इसलिए ये वीरसिंह और जहांगीर की स्तुति के कारण आदिकालीन ‘रामचन्द्रिका’ के कारण भक्तिकालीन ‘रसिक प्रिया’ और ‘कवि प्रिया’ के कारण रीतिकालीन कवियों में शामिल होते हैं।
रामचन्द्रिका की भाषा बुन्देलखण्डी मिश्रित ब्रज है।


ये ओरछा नरेष इन्द्रजीत सिंह के दरबारी कवि थे।
रामचन्द्रिका को ‘छन्दों का अजायबघर’ कहा जाता है।


आचार्य शुक्ल ने इन्हें ‘कठिन काव्य का प्रेत’ कहा है।


रामकाव्य की प्रमुख विशेषताएं -


1. दास्य भाव की भक्ति


2. समन्वय का व्यापक प्रयास


3. लोक-कल्याण की भावना


4. मर्यादा एवं आदर्श की स्थापना


5. मुख्य काव्य भाषा-अवधी है






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