मृदा पृथ्वी की ऊपरी परत है जो पौधों की वृद्धि के लिए प्राकृतिक माध्यम प्रदान करता है। पृथ्वी की यह ऊपरी परत खनिज कणों तथा जैवांश का एक संकुल मिश्रण है जो कई लाख वर्षो में निर्मित हुआ है तथा इसके बिना इस पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व असंभव है। भूमि के एक अभिन्न संद्यटक के रूप में मृदा जीवन समर्थक तंत्र का एक संघटक है।
भूमि की उपादेयता उसके मृदा की किस्म पर निर्भर है। इस कारण जनसाधारण भूमि तथा मृदा में कोई अंतर नही मानते किन्तु वैज्ञानिक मानते है। किसी वनस्पति विहीन भूमि पर आप मृदा को प्रथम दृष्टया देख सकते है किन्तु किसी सघन वन में इस प्रकार मृदा नही दिखती क्योंकि वहॉ गिरी हुई पत्तियों से मृदा पृष्ठ आच्छादित रहता है।
पौधों की वृद्धि को समर्थित करने के लिए मृदा एक क्रांतिक संसाधन है। विभिन्न खेतों की मृदाए उनकी उत्पत्ति तथा प्रबंधन के अनुसार दृष्य रूप, लक्षणों तथा उत्पादकता में भिन्न-भिन्न हो सकती है किन्तु वे सभी कृषि तथा खाद्य सुरक्षा, वानिकी, पर्यावरण सुरक्षा तथा जीवन की गुणवत्ता में समान महत्वपूर्ण कार्य संपन्न करती है।
मृदा को कृषि की उपयोगिता के दृष्टिकोण से इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है।
“मृदा एक प्राकृतिक पिन्ड है जो चट्टानों के अपक्षय के परिणाम स्वरूप विकसित होती है, जिसके लाक्षणिक भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुण होते है तथा जो पौधों की वृद्धि एवं विकास के लिए माध्यम प्रदान करती है।”
मृदा एक प्राकृतिक त्रि-आयमी पिन्ड है जिसके गुणधर्म तीनों दिशाओं (लम्बाई, चौड़ाई तथा गहराई) में परिवर्तनीय है। मृदा के इस त्रिआयामी रूप को मृदा परिच्छेदिका कहा जाता है। मृदा-परिच्छेदिका उपरी पृष्ठ से लेकर नीचे पैतृक पदार्थ तक सभी संस्तरो सहित एक उर्द्ध्वाधर कटान है। एक पूर्ण विकसित परिपक्व मृदा परिच्छेदिका में तीन खनिज संस्तर होते है : क, ख तथा ग। किसी स्थान पर मृदा की संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने हेतु वहाँ पर मृदा परिच्छेदिका का विस्तृत अध्ययन आवश्यक होता है। इसके लिए हमे मृदा का पृष्ठ से नीचे तक एक अनुभाग काटना होगा तथा उसमें विभिन्न परतो का निरीक्षण करना होगा, जिन्हे ''संस्तर'' कहा जाता है। प्रत्येक विकसित मृदा की एक भिन्न परिच्छेदिका लक्षण होते है। मृदा परिच्छेदिकाओं के समानता तथा विषमता के आधार पर उन्हें विभिन्न समूहों में वर्गीकृत किया जाता है।
मृदा पृष्ठ अथवा जुताई परत मृदा परिच्छेदिका का ऊपरी परत है जिसमें पर्याप्त मात्रा में जैवांश होता है तथा यह जैवांश के एकत्र होने से काले रंग का होता है। यह ऊपरी परत ''संस्तर क'' कहलाता है। पृष्ठ मृदा के नीचे की परत में ऊपरी परत से कम जैवांश होता है तथा इसमें प्रायः मृतिका, चूना अथवा लौह यौगिको का एकत्रीकरण होता है। इस मध्यवर्ती परत जिसमें ''संस्तर क'' से निक्षालित सामग्री पुनः निक्षेपित हो जाती है को ''संस्तर ख'' कहा जाता है। मृदा परिच्छेदिका में सबसे नीचे पैतृक सामग्री होती है जिसे ''संस्तर ग'' कहा जाता है।
प्रत्येक संस्तर में मृदा एक समान विकसित हुई है तथा समान लक्षण प्रदर्षित करती है। प्रत्येक संस्तर के विशिष्ट दृष्य लक्षण जैसे कणों का परिमाण तथा आकार, उनका विन्यास, रंग इत्यादि होते है जो एक संस्तर को दूसरे से विभेद करते है।
मृदा परिच्छेदिका का अध्ययन महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मृदा के लाक्षणिक गुणों तथा गुणवत्ता को प्रकट करता है।
मृदा की गहराई अत्यधिक ढलान वाले पहाड़ी पर कुछ सेन्टीमीटर होती है तो जलोढ़ निक्षेपों में यह कई मीटर गहरी हो सकती है।
मृदा निर्माण एक सतत लंबी प्राकृतिक प्रक्रिया है। अनुमानतः पृष्ठ मृदा (15 से.मी. गहरी) के निर्माण में प्राकृति को 3600 से 6000 वर्ष लगते है
Mradavinyaskoparibhashitkeejiai
Permanent soil property
भूमि विन्यास की परिभाषा
Mrada vinyas
मृदा विन्यास को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से है
Mrida Vini School nimnalikhit Aadhar mein vibhajit kiya Gaya
Mrida kado ka aakar hota hai
मृदा क्या है
mera
मृदा सुंदर है ।
mrida Bindass kitne Prakar ke Hote Hain
Mirda vinyasa ke prakaro k name likhye
Marda vinyas ki paribhasa
मृदा गठन और मृदा विन्यास में अंतर क्या है
Mrada
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मृदा विन्यास किसके द्वारा बदला जा सकता है?