Vyaktigat Bhinnata Ke Prakar व्यक्तिगत भिन्नता के प्रकार

व्यक्तिगत भिन्नता के प्रकार



Pradeep Chawla on 09-09-2018


वैयक्तिक विभिका
प्रकृति का नियम है कि संसार में कोई भी दोव्यक्ति पूर्णतया एक-जैसे नहीं हो सकते, यहाँ तक कि जुड़वाँ बच्चोंमें भी कई समानताओं के बावजूद कई अन्य प्रकार की विभिन्नताएँ दिखाई पड़ती हैं।जुड़वाँ बच्चे शक्ल-सूरत से तो हू-ब-हू एक जैसे दिख सकते हैं, किन्तु उनके स्वभाव, बुद्धि, शारीरिक-मानसिक क्षमता, आदि में अन्तर होता है।भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में इस प्रकार की विभिन्नता को ही वैयक्तिक विभिन्नता कहाजाता है।
स्किनर के अनुसार, ‘वैयक्तिक विभिन्नताओं से हमारा तात्पर्य व्यक्तित्व के उन सभी पहलुओंसे है जिनका मापन व मूल्यांकन किया जा सकता है।'
जेम्स ड्रेवर के अनुसार, ‘‘कोई व्यक्ति अपने समूह केशारीरिक तथा मानसिक गुणों के औसत से जितनी भिन्नता रखता है, उसे वैयक्तिक भिन्नता कहते हैं।‘
टॉयलर के अनुसार,'शरीर के रूप-रंग, आकार, कार्य, गति, बुद्धि, ज्ञान, उपलब्धि, रुचि, अभिरुचि आदि लक्षणों में पाई जाने वाली भिन्नता को वैयक्तिक भिन्नताकहते हैं।”
प्रत्येक शिक्षार्थी स्वयं में विशिष्ट है। इसकाअर्थ है कि कोई भी दो शिक्षार्थी अपनी योग्यताओं,रुचियोंऔर प्रतिभाओं में एकसमान नहीं होते।
वैयक्तिक विभिन्नताओं के प्रकार
वैयक्तिक विभिन्नताओं को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया गया है।
भाषा के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नताएँ
अन्य कौशलों की तरह ही भाषा भी एक कौशल है। प्रत्येक व्यक्ति मेंभाषा के विकास की भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ पाई जाती हैं। यह विकास बालक के जन्म केबाद ही प्रारम्भ हो जाता है। अनुकरण, वातावरण केसाथ अनुक्रिया तथा शारीरिक, सामाजिकएवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति की माँग इसके विकास में महत्वपूर्ण भूमिकानिभाती है। इसका विकास धीरे-धीरे परन्तु एक निश्चित क्रम में होता है।
कोई बालक भाषा के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्त करने में अधिककुशल होता है,जबकि कुछ बालक इस मामले में उतनेकुशल नहीं होते।
लिंग के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता
सामान्यतः स्त्रियाँ कोमलांगी होती हैं, किन्तु अधिगम के क्षेत्रों में बालकों एवं बालिकाओं मेंभिन्नता नहीं होती।
स्त्रियों का शारीरिक गठन पुरुषों से अलग होता है। सामान्यत: पुरुषस्त्रियों से अधिक लम्बे होते हैं।
बुद्धि के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता
(1) परीक्षणों के आधार पर ज्ञात हुआ है कि सभी व्यक्तियों की बुद्धिएकसमान नहीं होती।
(2) बालकों में भी बुद्धि के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता दिखाई पड़तीहै।
(3) कुछ बालक अपनी आयु की अपेक्षा अधिक बुद्धि को प्रदर्शित करते हैं, इसके विपरीत कुछ बच्चों में सामान्य बुद्धि पाई जाती है।
(4) बुद्धि-परीक्षण के आधार पर यह ज्ञात किया जा सकता है कि कोई बालककिसी अन्य बालक से कितना अधिक बुद्धिमान है?
परिवार एवं समुदाय के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता
मानव के व्यक्तित्व के विकास पर उसके परिवार एवं समुदाय का स्पष्टप्रभाव पड़ता है। इसलिए समुदाय के प्रभाव को वैयक्तिक विभिन्नता में भी देखा जासकता है। अच्छे परिवार एवं समुदाय से सम्बन्ध रखने वाले बच्चों का व्यवहारसामान्यतः अच्छा होता है। यदि किसी समुदाय में किसी प्रकार के अपराध करने कीप्रवृत्ति हो,तो इसका कुप्रभाव उस समुदाय केबच्चों पर भी पड़ता है। यद्यपि आर्थिक-सामाजिक स्तर तथा बुद्धि-लब्धि का सम्बन्धतो है, किन्तु यह बहुत उच्च स्तर का नहीं है।इन दोनों में सह-सम्बन्ध अवश्य पाया गया है, किन्तु यहनहीं कहा जा सकता कि निम्न सामाजिक-आर्थिक समूह से आने वाले बच्चे कम बुद्धिमानएवं उच्च सामाजिक-आर्थिक समूह के बच्चे अधिक बुद्धिमान होते हैं। इसके विपरीतनिम्न स्तर के आर्थिक एवं सामाजिक समूह में अनेक उच्च बुद्धि-लब्धि वाले बालक पाएजाते हैं और उच्च स्तर के आर्थिक-सामाजिक समूह में निम्न बुद्धि-लब्धि वाले बालकपाए जाते हैं।
बालकों के पोषण पर परिवार एवं समुदाय का प्रभाव अवश्य पड़ता है एवंइस प्रकार की विभिन्नता में परिवार एवं समुदाय की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
संवेग के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता
संवेगात्मक विकास विभिन्न बालकों में विभिन्नता लिए हुए होता है, जबकि यह भी सत्य है कि मोटे तौर पर संवेगात्मक विशेषताएँबालकों में समान रूप से पाई जाती हैं।
कुछ बालक शान्त स्वभाव के होते हैं, जबकि कुछ बालक चिड़चिड़े स्वभाव के होते हैं।
कुछ बालक सामान्यतः प्रसन्न रहते हैं, जबकि कुछ बालकों में उदास रहने की प्रवृत्ति होती है। शारीरिक विकासके आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता
शारीरिक दृष्टि से व्यक्तियों में अनेक प्रकार की विभिन्नताएँ देखनेको मिलती हैं।
शारीरिक भिन्नता रंग, रूप, आकार, भार, कद, शारीरिकगठन, यौन-भेद, शारीरिक परिपक्वता आदि के कारण होती है।
अभिवृत्ति के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता
सभी बालकों की अभिवृति में भी समानता नहीं होती।
कुछ बालक किसी विशेष प्रकार के कार्य में रुचि लेते हैं, जबकि अन्य बालक किसी और कार्य में रुचि लेते हैं।
कुछ बालकों में पढ़ाई में मन लगाने की प्रवृत्ति होती है, जबकि कुछ अन्य बालक किन्हीं कारणों से इससे दूर भागते हैं।
व्यक्तित्व के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता
प्रत्येक व्यक्ति में व्यक्तित्व के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नतादेखने को मिलती है।
कुछ बालक अन्तर्मुखी होते हैं और कुछ बहिर्मुखी।
एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से मिलने पर उसकी योग्यता से प्रभावित होया न हो परन्तु उसके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता है।
टॉयलर के अनुसार, ‘सम्भवतःव्यक्ति, योग्यता की विभिन्नताओं के बजायव्यक्तित्व की विभिन्नताओं से अधिक प्रभावित होता है।”
गत्यात्मक कौशलों के आधार पर वैयक्तिक विभिन्नता
कुछ व्यक्ति किसी कार्य को अधिक कुशलता से कर पाते हैं, जबकि कुछ अन्य लोगों में पूर्ण कुशलता का अभाव पाया जाता है।
क्रो एवं क्रो ने लिखाहै, ‘शारीरिक क्रियाओं में सफल होने कीयोग्यता में एक समूह के व्यक्तियों में भी बहुत अधिक विभिन्नता होती है।”
शिक्षा के क्षेत्र में वैयक्तिक विभिन्‍नता कामहत्‍व
मनोविज्ञान इस बात पर जोर देता है कि बालकों कीरुचियों, रुझानों, क्षमताओं, योग्यताओं आदि में अन्तरहोता है। अत: सभी बालकों के लिए समान शिक्षा का आयोजन सर्वथा अनुचित होता है। इसीबात को ध्यान में रखकर मन्दबुद्धि, पिछड़े हुए बालक तथाशारीरिक दोष वाले बालकों के लिए अलग-अलग विद्यालयों में अलग-अलग प्रकार की शिक्षाकी व्यवस्था की जाती है।
सह-शैक्षणिक क्षेत्रों में निष्पादन के आधार परशैक्षणिक क्षेत्रों में निष्पादन के स्तर को बढ़ाना इसलिए उचित होता है, क्योंकि यह वैयक्तिक विभिन्नताओं को सन्तुष्ट करता है। वैयक्तिकविभिन्नता को ध्यान में रखते हुए पिछड़े एवं मन्दबुद्धि के बालकों की शिक्षा केलिए भिन्न प्रकार के शिक्षण-प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है।
वैयक्तिक विभिन्नता का ज्ञान शिक्षकों एवंविद्यालय प्रबन्धकों को कक्षा के वर्गीकरण में सहायता प्रदान करता है। शिक्षार्थीवैयक्तिक भिन्नता प्रदर्शित करते हैं। अतः एक शिक्षक को सीखने के विविध अनुभवों कोउपलब्ध कराना चाहिए।
कक्षा का आकार तय करने में भी वैयक्तिक विभिन्नताका ज्ञान विशेष सहायक होता है। यदि कक्षा के अधिकतर बालक अधिगम में कमजोर हों, तो कक्षा का आकार कम होना चाहिए। वैयक्तिक विभिन्नता का सिद्धान्तव्यक्तिगत शिक्षण पर जोर डालता है। इसके अनुसार बालकों की आवश्यकता को व्यवस्था कीजानी चाहिए ताकि उसका सर्वागीण विकास हो सके। वैयक्तिक विभिन्नता के ज्ञान के आधारपर शिक्षक यह तय कर पाते हैं कि लड़कियाँ किसी कार्य को विशेष ढंग से एवं लड़केकिसी कार्य को विशेष ढंग से क्यों कर पाते हैं? पाठ्यक्रम के निर्धारण एवंविकास में भी वैयक्तिक विभिन्नता की प्रमुख भूमिका होती है। बालकों की आयु, कक्षा आदि को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक कक्षा के लिए अलग प्रकारकी पाठ्यचर्या का निर्माण किया जाता है एवं उन्हें अलग प्रकार से लागू भी कियाजाता है। उदाहरणस्वरूप बच्चों की पुस्तकें अधिक चित्रमय एवं रंगीन होती हैं, जबकि जैसे-जैसे कक्षा एवं आयु में वृद्धि होती जाती है, उनकी पुस्तकों के स्वरूप में भी अन्तर दिखाई पड़ता है। इसी प्रकारप्राथमिक कक्षा के बच्चों को खेलकूद के जरिए शिक्षा देने पर जोर दिया जाता है।बच्चों को गृहकार्य देते समय भी उनकी वैयक्तिक विभिन्नता का ध्यान रखा जाता है।बालकों के निर्देशन में भी वैयक्तिक विभिन्नता की विशेष भूमिका होती है।




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