व्यक्ति की वृद्धि और विकास की प्रक्रिया का अध्ययन शिक्षा मनोविज्ञान का एक महत्वपूर्ण विषय है । क्योकि वृद्धि और विकास को जाने बिना एक अध्यापक विद्यार्थियो की सहायता नहीं कर सकता और न ही अपनी शिक्षण व्यवस्था को व्यवस्थित ही कर सकता है । अतः वृद्धि व विकास के विभिन्न पहलुओ पर विचार करना जरूरी है ।
वृद्धि का अर्थ : वृद्धि का अर्थ सामान्य तौर पर मानव के शरीर के विभिन्न अंगो के विकास और अंगो की कार्य करने की क्षमता माना जाता है। अंगो के इस विकास के परिणाम कार्य करने की क्षमता माना जाता है I अंगों के इस विकास के परिणामस्वरूप उसका व्यवहार भी किसी न किसी रूप से प्रभावित होता है I इस प्रकार वृद्धि का अर्थ है – शरीर की वृद्धि
हरबर्ट सोरेन्सन ( Herbert Sorenson ) ने तो शारीरिक वृद्धि को बड़ा भारी होना बताया है।
एच वी . मेरेडिथ ( H.V.Meredith ) : एच . वी . मेरेडिथ ने वृद्धि व विकास के पाँच प्रमाण बताएं हैः
आकार ( Size)
सँख्या ( Number )
प्रकार ( Kind )
स्थिति ( Position )
सापेक्षित आकार ( Relative Size )
फ्रैंक ने वृद्धि को परिभाषित करते हुए कहा है ” शरीर के किसी विशेष पक्ष में जो परिवर्तन होता है, उसे वृद्धि कहते है “
वृद्धि का प्रकृति को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है –
वृद्धि से व्यकित बड़ा और भारी होता है ।
वृद्धि को मात्रात्मक माना जा सकता है ।
वृद्धि की सामान्य पद्धति होती है , अर्थात् अलग अलग व्यकितयों मे अलग -अलग I
वृद्धि निरन्तर नही होती है I
वृद्धि की गति एक समान नहीं रहती है ।
शारीरिक वृद्धि को देखना मानसिक वृद्धि की अपेक्षा सरल होता है ।
वृद्धि हेरीडिटी ( वंशानुक्रम ) और वातावरण से संबधित होता है।
स्त्रियो में वृद्धि पुरूषो की अपेक्षा कम गति से होती है I
शिशुकाल में वृद्धि तीव्र गति से ओर बाद में धीमी होती है।
शारीरिक व मानसिक वृद्धि का आपस में गहरा संबंध होता है ।
विकास का अर्थ : विकास ( Development ) , परिपक्वता ( Maturity ) की ओर अग्रसर करता है , अर्थात विकास परिपक्वता की एक प्रक्रिया है, वास्तव में विकास शब्द का प्रयोग सभी प्रकार के परिवर्तनों के लिए प्रयुक्त होता है जिससे कार्य कुशलता और व्यवहार मे प्रगति हो । इस प्रकार कहा जा सकता है कि वृद्धि की अपेक्षा विकास की संकल्पना व्यापक होती हैं। यानि विकास के अर्थ में ही वृद्धि शामिल हो जाती है । अगर वृद्धि मात्रात्मक परिवर्तनो की ओर इशारा करती है, तो विकास गणत्मक परिर्वतन की ओर सामान्यत: वृद्धि व विकास की प्रक्रिया साथ साथ चलती है I
विकास की प्रकृति : विकास की प्रकृति को निम्न प्रकार से समझ जा सकता है ।
विकास एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है ।
विकास का अर्थ वृद्धि की अपेक्षा अधिक व्यापक है।
विकास गुणात्मक परिर्वतनों की ओर संकेत करते है ।
वृद्धि व विकास की प्रक्रियाए साथ साथ चलती है ।
विकास में सभीं प्रकार के परिर्वतन सम्मिलित हो जाते है |
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