सरकार ने जुलाई 1991 के बाद से औद्योगिक नीति के तहत् जो कदम उठाए,उनका उद्देश्य देश की पिछली औद्योगिक उपलब्धियों को मजबूती प्रदान करना और भारतीय उद्योगों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा बनाने की प्रक्रिया में तेजी लाना था। इस नीति के अंतर्गत उद्योग की शक्ति और परिपक्वता की पहचान की गयी और उसे उच्च गति के विकास के लिए प्रतिस्पर्धात्मक रूप में प्रेरित किया गया। इन कदमों में व्यापार व्यवस्थाओं के व्यापक उपयोग तथा विदेशी निवेशकर्ताओं और तकनीकी के आपूर्तिकर्ता के साथ गतिशील सम्बन्ध बनाने के जरिए घरेलू और विदेशी प्रतिस्पर्धा बढ़ाने पर जोर दिया गया।
वर्ष 1991 में नई औद्योगिक नीति लागू होने के बाद विभिन्न नियंत्रणों को समाप्त करने का एक व्यापक कार्यक्रम शुरू किया गया। ज्यादातर वस्तुओं के लिए औद्योगिक लाइसेंस लेने की अनिवार्यता समाप्त कर दी गयी। वर्तमान में सुरक्षा, सामरिक और पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील निम्नलिखित पांच उद्योग अनिवार्य लाइसेंस के तहत् आते हैं-
जो उद्योग अनिवार्य लाइसेंस के दायरे में नहीं आते हैं, उन्हें औद्योगिक सहायता सचिवालय (एसआईए) के पास औद्योगिक उद्यम ज्ञापन (आईईएम) जमा करना होता है। लघु उद्योग क्षेत्र में खास उत्पादन के लिए उत्पादों के आरक्षण के क्षेत्रों में औद्योगिक लाइसेंस प्रणाली खत्म करने के साथ ही सुधार शुरू किया गया है। आयातों पर मात्रात्मक प्रतिबंधों को हटाने और शुल्क दरों में कमी के साथ लघु उद्यम क्षेत्र के लिए उत्पाद आरक्षण ने एक असामान्य स्थिति पैदा कर दी है। लघु उद्यम क्षेत्र में उत्पादन के लिए एक उत्पाद के आरक्षण के साथ, एक बड़ी उद्यम कपनी के प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई थी। हालांकि इस उत्पाद को अभी भी बाहर से आयात किया जा सकता था। लघु उद्यम क्षेत्र सामग्रियों की सूची की समीक्षा इसी वजह से एक सतत प्रक्रिया रही है और उन संख्याओं को 2009 में 21 तक नीचे लाया गया है। सरकार ने सूक्ष्म (माइक्रो), लघु और मंझोले उद्यम विकास (एसएसएमईडी) अधिनियम, 2006 भी लागू कर दिया है। इस अधिनियम में लघु उद्यमों के लिए निवेश सीमा बढ़ाकर ₹ 5 करोड़ कर दी गई है ताकि अधिकांश औद्योगिक इकाइयों के साथ नियामक अंतर्पृष्ट को कम किया जा सके।
सरकार के लिए लघु उद्योग क्षेत्र को बढ़ावा देना अभी भी एक मुख्य विषय है। लघु उद्योगों के लिए खास तौर पर आरक्षित वस्तुओं के उत्पादन में लगे लघु उद्योग उपक्रमों से अलग औद्योगिक उपक्रमों के लिए औद्योगिक लाइसेंस हासिल करना जरूरी होता है तथा उन्हें अपने सालाना उत्पादन के 50 प्रतिशत का निर्यात दायित्व का पालन करना होता है। हालांकि लाइसेंस प्राप्त करने की ये शर्ते उन औद्योगिक उपक्रमों पर लागू नहीं होती हैं जो शत-प्रतिशत निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र और विशेष आर्थिक क्षेत्र योजनाओं के तहत् संचालित होते हैं। एक प्रकार से यह लघु उद्योगों के संरक्षण और औद्योगिक क्षेत्र की आम प्रतिस्पर्द्धा के दोहरे लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करता है। घरेलू उद्योग के उदारीकरण की नीति को जारी रखते हुए, सार्वजानिक क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों की संख्याएं भी कम कर दी गई हैं। वर्तमान में सिर्फ दी क्षेत्र हैं जो सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित हैं। ये क्षेत्र हैं- परमाणु ऊर्जा और रेल यातायात।
एम.आर.टी.पी. फमें वे फर्म थीं, जिनकी परिसंपत्ति एक निश्चित सीमा से अधिक थीं एवं जिन्हें सरकारी अनुमति के पश्चात् सुनिश्चित क्षेत्रों में प्रवेश का अधिकार था। नई औद्योगिक नीति ने इन सभी अड़चनों को दूर करने एवं फर्मों के विकास को ध्यान में रखकर एम.आर.टी.पी. फर्मों के लिए परिसंपत्ति की उच्च सीमा को हटा दिया। साथ ही एम.आर.टी.पी. अधिनियम में भी परिवर्तन किया गया ताकि इन फर्मो को गैर-लाइसेंस क्षेत्र में निवेश के लिए सरकारी अनुमोदन प्राप्त न करना पड़े।
नई औद्योगिक नीति से पूर्व भारत में विदेशी निवेश या नई (विदेशी) तकनीक को भारत में लाने से पूर्व भारत सरकार की अनुमति अनिवार्य थी। सरकारी हस्तक्षेप एवं अनुमति प्रक्रिया व्यापारिक निर्णयों में अवांछित विलम्ब पैदा कर रही थी। नयी औद्योगिक नीति में उच्च तकनीक एवं उच्च निवेश से संबद्ध प्राथमिकता वाले उद्योगों की सूची बनाई गई, जिसमें 51 प्रतिशत तक के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की स्वतः अनुमति दी गई।
नई औद्योगिक नीति के अंतर्गत 10 लाख से कम जनसंख्या वाले शहरों में उद्योगों की स्थापना से पूर्व केंद्र सरकार की अनुमति प्राप्त करने कीआवश्यकता को समाप्त कर दिया गया, परन्तु यह अनुमति गैर लाइसेंस क्षेत्र के उद्योगों पर ही लागू थी।
नई औद्योगिक नीति में परिवर्तनीयता की शर्त को समाप्त कर दिया गया है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के अनुमोदनों पर तत्काल अमल करने, विदेशी निवेशकों को आवश्यक अनुमोदन प्राप्त करने, परिचालन संबंधी समस्याओं तथा निवेशकों की समस्याओं को हल करने के लिए, विभिन्न सरकारी एजेंसियों से संपर्क करने हेतु वाणिज्य तथा उद्योग मंत्रालय के औद्योगिक नीति तथा संवर्द्धन विभाग में विदेशी निवेश कार्यान्वयन प्राधिकरण की स्थापना की गई। औद्योगिक नीति तथा संवर्द्धन विभाग के अंतर्गत आद्योगिक सहायता सचवालय, प्राधिकरण के सचिवालय के रूप में काम करता है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की योजनाओं के विषय में 1997 में सरकार ने पहली बार दिशा-निर्देश जारी किये। इन दिशा-निर्देशों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए प्राथमिकता क्षेत्र निर्धारित किये गये। इन क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के क्षेत्र अनुसार अधिकतम सीमा निश्चित की गई थी।
प्राथमिकता क्षेत्रों में आधारिक संरचना, निर्यात-संभावना वाले क्षेत्र, उच्च रोजगार संभावना वाले क्षेत्र, सामाजिक उद्देश्यों से जुड़े क्षेत्र, ऐसी योजनाएं जो नई प्रौद्योगिकी एवं पूंजी लाने में सहायक हों और कृषि से संबद्ध क्षेत्र शामिल हैं।
Bharat ki vartaman udyog niti
Bharat me vartman udyogic niti kya hai
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