01- महाराणा प्रताप दृढ-प्रतिज्ञ थे ! श्रीराम की प्रतिज्ञा और भीष्म की प्रतिज्ञा के समान उनकी प्रतिज्ञा आंकी जाती है !
02- वे सच्चे राष्ट्र भक्त थे ! उसके लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन, पूरा परिवार, पूरा वैभव, अर्थात सब कुछ दांव पर लगा दिया था !
03- वे अपने उद्देश्य में पूर्ण-रूपेण स्पष्ट थे और कर्तव्य में तत्पर थे ! उसी के अनुरूप उन्होंने अपनी जीवन-चर्या बचपन से ही बनायी थी !
04- स्वदेशी का भाव उनमे कूट-कूट कर भरा हुआ था तो जनता को भी उन्होंने स्वदेश-प्रेम और देश-भक्ति से ओत-प्रोत कर के रखा !
05- वे अत्यन्त साहसी थे ! निराशा उनके पास भी नहीं फटकती थी !
06- वीरता उन्होंने माता की कोख से ही सीखी थी, तो माता की गोद ने भी उन्हें वीरता का प्रसाद दिया था ! माता की इस सीख के कारण ही वे सदैव दो तलवारें रखते थे कि वीर कभी निहत्थे पर वार नहीं करता और यदि शत्रु भी निहत्था मिल जाए तो एक तलवार उसे दे कर बराबरी पर युद्ध किया जा सके !
07- वे शास्त्र और शस्त्र, दोनों में सुशिक्षित थे !
08- उनके शस्त्र-संचालन का लाघव देखते ही बनता था ! बलालोल खाँ के वध का उदाहरण !
09- सभी जातियों के लोगों के लिए उन्होंने सैनिक शिक्षा के केन्द्र गाँव गाँव में खोले !
10- प्रत्येक ग्राम में आत्म-रक्षा के भाव के जनक भी महाराणा प्रताप हैं !
11- वे छापामार युद्ध प्रणाली के जनक थे ! आगे शिवाजी महाराज ने इसी प्रणाली का विशद अनुसरण किया !
12 - वे अनुशासन प्रिय थे ! वे स्वयं कठोरता से अनुशासन का पालन करते थे तो अन्यों से भी कठोर अनुशासन की अपेक्षा रखते थे ! एक-दो उदाहरण के अतिरिक्त कोई उदाहरण नहीं मिलते कि आम जनता ने भी कभी सूचनाओं और निर्देशों का पालन न किया हो !
13- उनकी वाणी में दुर्गा माता, सरस्वती माता और काली माता तीनों एक साथ विराजती थी !
14- उनकी वाणी में दुर्गा माता विराजती थी अर्थात वे अपनी वाणी से मुरझाये हुए लोगों में भी प्राण-संचार कर देते थे !
15- उनकी वाणी में सरस्वती माता विराजती थी अर्थात उनकी बात की कोई काट नहीं कर सकता था, सहयोगी तो क्या शत्रु भी उनकी बात के आगे नत-मस्तक रहता था !
16- उनकी वाणी में काली माता विराजती थी अर्थात उनकी दकाल के आगे शत्रु-दल के प्राण सूख जाते थे - '' राणा थारी दकाल सुणनै अकबर धूज्यो जाय ''!
17- वे कुशल-नेतृत्व-कर्ता थे !
18 - वे युवकों में प्रिय थे, तो प्रौढ़ों व वृद्धों में भी समान रूप से प्रिय थे !
19- वे वन्य जनों, ग्रामीण जनों व नगरीय जनों में समान-रूप से लोकप्रिय थे !
20- उन्हें पद का अभिमान नहीं था ! ऊंच-नीच और छोटे-बड़े का भाव उनमे नहीं था ! वे अपने सब साथियों के साथ एक पंगत में बैठ कर भोजन करते थे ! यह शिक्षा उन्होंने बचपन में ही अपनी माता श्री से पायी थी ! बाद में यह मेवाड़ राज घराने की परम्परा ही बन गयी !
21- उन्होने जनता का विश्वास अर्जित किया था, तो उनके साथी, सहयोगी और सेवक भी विश्वस्त थे ! उनमे से कोई भी लालच दे कर अकबरियों द्वारा खरीदा नहीं जा सका !
22- वे कुशल संघटन-कर्ता थे ! मेवाड़ की जनता तो उनके साथ थी ही ! मेवाड़ के आस-पास के हिन्दू-मुसलमान शासकों को भी उन्होंने अकबर के विरुद्ध अपनी ओर कर रखा था !
23- महाराणा उदयसिंह के कई पुत्र अर्थात महाराणा प्रताप के कई भाई अकबर की सेवा में चले गए, किन्तु प्रताप का कोई भी पुत्र अकबर की सेवा में नहीं गया ! वे अपने पिता एवं वंश की महानता से अपने को गौरवान्वित अनुभव करते थे !
24 - श्री जयवन्ती देवी सोनगरा जैसी माता-श्री उनको प्राप्त थी, यह भी प्रताप की विशेषता है !
25- महाराणा प्रताप कष्ट-सहिष्णु थे तो उनकी रानियाँ और पुत्र भी कष्ट-सहिष्णु थे ! उनकी रानियों में सौतिया-डाह नहीं था तो सन्तानों में भी अधिकार-लिप्सा नहीं थी !
26- उन्हें महारानी अजवां देवी परमार जैसी पटरानी प्राप्त थी जो न केवल उनके दुःख-सुख में सदैव साथ रहती थी, अपितु उन्होंने ठीक प्रताप के ही अनुरूप अमर सिंह जैसा वीर पुत्र प्रदान किया था, जिनको देख कर निकट के लोग भी भ्रमवश समझते थे कि ये प्रताप ही आ रहे हैं, ऐसा उदाहरण केवल श्रीकृष्ण-पुत्र का ही विख्यात है !
27- वे कुशल शिक्षक थे, वे आचार्य अर्थात अपने आचरण से सिखाने वाले थे '' यद् यद् आचरति श्रेष्ठः तत्तदेवेतरो जनः '' का अर्थ उन्हें भली भाँति ज्ञात था !
28- उनकी करनी और कथनी में अन्तर नहीं रहता था !
29- राणा प्रताप सब प्रकार से सच्चरित्र-व्यक्ति थे तो उनके कारण मेवाड़ की जनता भी पूर्णतः सच्चरित्र थी ! सुई की भी चोरी नहीं होती थी ! मेवाड़ के गावों में आज भी चोरी नहीं होती है !
30 - भ्रष्टाचार का तो जन्म भी उनके यहाँ हुआ ही नहीं था !
31 - उनके सब कारिन्दे ही नहीं तो जनता भी '' अर्थ-शुचि '' का पूरा पालन करती थी !
32- महाराणा प्रताप '' मातृवत् परदारेषु '' का पालन करते थे तो जनता भी उसका पालन करती थी ! रहीम की पत्नी का उदाहरण !
33- वे अपने गुणों के कारण शत्रु पक्ष में भी पूजे जाते थे !
34- वे त्याग और तप की प्रतिमूर्ति थे, तो उनकी सन्ताने और जनता भी उनकी ही प्रतिकृति थी !
35- वे कुशल योजक थे ! किस को किस काम में लगाया जाए, इस योजकता के वे कुशल शिल्पी थे !
36- वे सफल राष्ट्र निर्माता थे ! इसके अनेक उदाहरण उनके जीवन काल के भरे पड़े हैं !
37- वे चतुर राज-नीतिज्ञ थे ! अकबर के वार्ताकारों को किस चतुराई से निपटाया और अकबर के दरबार में भी उनके खैर-ख्वाह रहते थे, ये उनकी राजनीतिक कुशलता के प्रमाण हैं !
38- वे सफल रण-नीतिज्ञ थे ! हल्दीघाटी, कुम्भलगढ़, गोगुन्दा, दिवेर के प्रसिद्ध के युद्ध ही नहीं तो पूरा रण-काल इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है !
39- वे प्रबन्धन-कुशल थे ! सरल समय में तो प्रबन्धन करना फिर भी सरल होता है ! वे कठिन काल में सफल प्रबन्धन करते थे ! जनता का जागरण, उनकी और अपनी सुरक्षा, सीमाओं की सुरक्षा, आम जनता को सैन्य-प्रशिक्षण आदि अनेक विषयों का कुशल प्रबन्धन उन्होंने किया !
40- उनका सूचना तन्त्र बहुत सुदृढ़, विश्वस्त एवं सुविकसित था ! 80 किलोमीटर दूर तक की सूचना उनको 24 घण्टों में प्राप्त हो जाती थी ! फतहपुर सीकरी से मेवाड़ के विरुद्ध चली अकबर की सेना की सूचना तो प्रताप को रात-रात में ही प्राप्त हो गयी थी !
41- वे अत्यन्त धार्मिक थे ! उनका अटल विश्वास था कि जो धर्म पर दृढ रहता है, परमात्मा उसकी रक्षा करता है
42 - वे सच्चे हिन्दू थे ! इसलिए अहिन्दू भी उनसे अभिभूत थे और उनकी सहायता के लिए तत्पर रहते थे !
43- वे सब पन्थों का समान आदर करते थे !
44- वे हिन्दू-एकता के प्रतीक थे ! वे जैन, शैव, शाक्त, वैष्णव, नाथ आदि विभिन्न हिन्दू पन्थों और समस्त हिन्दू जातियों, खापों, व पंचायतों के एक-छत्र नायक थे ! इसलिए हिन्दुआ-सूर्य कहलाते थे !
45- वे केवल मेवाड़ ही नहीं तो समस्त हिन्दुस्थान में समान-रूप से आदरणीय-पूजनीय थे ! इसीलिये हिन्दुआ सूर्य कहलाते थे !
46- वे हिन्दुस्थान के वैधानिक सम्राट थे ! ज्ञात हो कि उनके पूर्वज महाराणा लाखा ने गया-तीर्थ को मुसलमानों से मुक्त कराने के लिए समस्त हिन्दुस्थान की सेनाओं का नेतृत्व किया था ! उधर अकबर घुसपैठियों की सन्तान था !
47- वे केवल युद्ध-काल के ही नहीं तो शान्ति-काल के भी राष्ट्र-नायक थे ! शान्तिकाल की राजधानी चावण्ड में रह कर उनके द्वारा किये गए कार्य इस बात के प्रबल उदाहरण हैं !
48- वे दार्शनिकों, कवियों, रचनाकारों, शिल्पियों व सन्तों के विशेष संरक्षक थे !
49- युद्ध काल में उन्होंने गाँव-खेत-खलिहान खाली करवा दिए थे तो शान्तिकाल में खेती को विकसित करने के लिए '' विश्व-वल्लभ '' नामक पुस्तक उन्होंने लिखवायी !
50- जनता में जागरण, उत्साह-निर्माण, स्वदेश-प्रेम और कर्तव्य-पालन के लिए पूर्वजों से प्रेरणा लेने के लिए भामाशाह के माध्यम से जैन मुनि श्री हेमरत्न जी से गोरा-बादल-पद्मिनी चउपई नामक काव्य का निर्माण करवाया !
51- प्रताप खगोल-ज्योतिष और फलित-ज्योतिष के भी अच्छे ज्ञाता थे ! उनके संरक्षण में चावण्ड में लिखी गयी '' मुहूर्त-माला '' नामक पुस्तक इसका उदाहरण है !
52- वे केवल मेवाड़ ही नहीं, तो केवल मित्र-क्षेत्र में ही नहीं, तो अकबर अधिकृत क्षेत्र में भी सफलता पूर्वक आवागमन करते रहते थे ! जब अकबर उनको मेवाड़ में ढूंढ रहा होता था तो वे दिल्ली के निकट मेवात क्षेत्र में घूम रहे होते थे !
53- वे केवल बचाव कार्य में ही नहीं लगे रहते थे तो अकबर अधिकृत क्षेत्रों में भी आक्रमण कर अपने क्षेत्र पर हुए आक्रमण का बदला लेकर जैसे को तैसा का उदाहरण भी प्रस्तुत करते थे, तो आक्रमणकारी की आक्रमण-क्षमता के विनाश के द्वारा भी अपनी सुरक्षा का मार्ग सुरक्षित करते थे !
54- वे किसी भी परिस्थिति में उद्विग्न नहीं होते थे ! धैर्य उनका सहोदर भाई था ! वे भगवान् श्री राम के '' रणरंगधीरं '' विरुद के प्रत्यक्ष उदाहरण थे !
55- उनमे राजा होने का गर्व नहीं था ! राज्य को वे परमात्मा का मानते थे और अपने को प्रभु का कर्मचारी मानते हुए जन-सेवक के नाते अपना कर्तव्य पालन करते थे !
56- वे भाई-भतीजा-वाद से ग्रस्त नहीं थे !
57- वे चापलूसों से नहीं घिरे रहते थे !
58- वे सम्मान प्राप्त करना जानते थे, तो सम्मान प्रदान करना भी जानते थे ! ''पानिप राव'', ''राय धवल'' आदि के उदाहरण !
59- वे बलिदानियों के परिवारों के संरक्षक थे, उनके भरण-पोषण का दायित्व वे कर्तव्य भावना से निभाते थे !
60- वे स्वतन्त्रता के पुजारी थे ! वे आज भी सारे संसार के स्वतन्त्रता, संघर्ष एवं देश-भक्ति के प्रेमियों के लिए प्रकाश-स्तम्भ का कार्य कर रहे हैं !!
61- वे जमाने से नहीं थे अपितु ज़माना उनसे था !
62- वे अपने जीवन-काल में राष्ट्र के लिए आदर्श थे तो आज भी वे सब विषयों में सब के लिए आदर्श हैं !
What is the capital of Maharashtra?