भरणी Nakshatra Chautha Charan भरणी नक्षत्र चौथा चरण

भरणी नक्षत्र चौथा चरण



GkExams on 20-12-2018

BHARNI भरणी नक्षत्र


❝ काल की विलक्षणता वश देशो की अपेक्षानुसार जो तथ्य बहुत प्रासंगिक होते है वे वर्तमान मे महत्वपूर्ण नही रहते और भविष्य मे उनका परिदृष्य ही परिवर्तित हो जाता है। ❞
ब्रम्हाण्ड मे कोई भी पिंड स्थिर नही है। सभी पिंड आकर्षण और विकर्षण के सहारे टिके हुए है। प्राचीन खगोल शास्त्र अनुसार ये पिंड दो प्रकार के है 1- स्थिर तारे, 2- अस्थिर या घुमक्कड़ तारे। इनमे अस्थिर या घुमक्कड़ तारो को ग्रह कहते है। भारत मे स्थिर तारा समूह को नक्षत्र कहते है।
भरणी
देवता - यम, स्वामी - शुक्र, राशि - मेष 13 । 20 से 26 । 40 अंश
भारतीय खगोल मे यह दूसरा नक्षत्र है। इसके तीन तारे है। यह क्रूर, निर्दयी, सक्रीय, कर्मठ, कृतवाच्य नक्षत्र है। मुहूर्त ज्योतिष मे यह क्षति नक्षत्र है। इसमे दूसरो की हानि करना, छल-कपट, धोखा देना, विध्न डालना आदि कर्म सिद्ध होते है।
अश्विनी के पूर्व मे स्थित स्त्री की के आकार मे तीन तारो का समूह भरणी नक्षत्र का प्रतीक है। भरणी चीनी मिट्टी के कलश को भी कहते है। अतः शंका उत्पन्न होती है कि क्या भरणी नक्षत्र जैसे कि ग्रीक मान्यतानुसार "41 एरिटस" अर्थात 41 तारो वाला कलश के आकर का होता है ? भरणी नाशक राजसिक स्त्री नक्षत्र है। इसकी जाति शूद्र, गज, वैर सिंह, गण मनुष्य, नाड़ी मध्य है। यह पश्चिम दिशा का स्वामी है।


यमराज
प्रतीकवाद : यम इसके देवता है। यम या यमराज मृत्यु के देवता है। इन्हे सूर्य और संजना (छाया) का पुत्र माना जाता है। यम का अर्थ है "जुड़वा" पौराणिक कथाओ मे इन्हे यमी (यमुना) का जुड़वा भाई बताया है। यम का अर्थ रोकने वाला भी है अतः ये मानव जाति को रोकने वाले है। इन्हे नरक का स्वामी भी माना जाता है। यम न्याय के देवता व मृतात्मा के न्यायाधीश है। आत्मा काे उसके कर्म अनुसार फल देते है। मान्यता है कि यम विवासत का पुत्र है। यम योग की आठ शाखाओ मे प्रथम शाखा है।

विशेषताऐ : जातक की विशेषताएे जीवन के उत्तरार्ध मे परिलक्षित होती है। जातक अपने विश्वासो मे कट्टर होता है। अत्याचार या उत्पीड़न से स्वयं और दूसरो को बचता है।

भरणी फलादेश : जातक निरोगी, सत्यवक्ता, उत्तम विचार वाला, दृढ़प्रतिज्ञ होता है। यह अपने विचारो का झक्की होता है जिससे जीवन मे उतार चढ़ाव आते है। जातक प्रेम को प्राथमिकता देने वाला, विरोधाभासो से परे, विपरीत लिंग प्रेमी, निंदा सहने वाला, विलासी, स्वास्थ्य के प्रति सतर्क होता है।
पुरुष जातक - पुरुष जातक मध्यम कद, अल्प रोम, उन्नत ललाट, चमकीली आँखे, सुन्दर दन्त, लम्बी गर्दन, लाल-गुलाबी वर्ण वाला होता है। यदि दोपहर मे जन्म हो, तो जातक लम्बा, सिर कनपटी के यहा चौड़ा और ढोड़ी के यहा सकरा, भौंहो पर अधिक बाल वाला होता है।
भरणी जातक सबके द्वारा पसंद नही किया जाता है जबकि यह सहृदयी होता है और किसी को नुकसान नही पहुंचाने वाला होता है। जातक स्पस्टवादी, विरोध सहने वाला, स्वचेतना अनुसार कार्यकारी, खुशामद नापसंद, असफल, प्रतिद्वंदी की गलती को क्षमा करने वाला, अहंकार रहित होता है।
जातक का जीवन एकसा नहीं रहता है। 33 वर्ष की उम्र मे सकारात्मक परिवर्तन होते है। यह प्रसिद्ध शल्य चिकित्सक या न्यायाधीश हो सकता है। जातक का विवाह 27 वे वर्ष मे होता है। पत्नी गृहकार्य मे दक्ष होती है। जातक का जन्म भरणी के प्रथम या द्वितीय चरण मे जन्म हो, तो पिता की मृत्यु होती है। जातक अल्प भोजन करने वाला होता है। "जीवित रहने के लिए भोजन और भोजन के लिए जीवित रहना" वाले नियम का होता है।

स्त्री जातक - स्त्री जातक के अंग-प्रत्यंग सुंदर होते है, दांत सफ़ेद किन्तु पंक्ति बद्ध नही होते है। जातक का चरित्र पवित्र, प्रशंसनीय, अहंकार रहित होता है। वह सबका सम्मान करने वाली, सुनती सबकी है करती मन की है। यह रिसेप्निस्ट, गाइड, सेल्स वुमन होती है।
जातक पति की प्रिय, सुसरो से दुःखी, आक्रामक, घर की मुखिया होती है। यह सुअवसर का इंतजार नही करती है और मौका मिलते ही अपनी इच्छा पूरी करती है। इसका विवाह 23 वर्ष की उम्र मे होता है।

नक्षत्र फलादेश आचार्यो के मत अनुसार
भरणी नक्षत्रोपन्न जातक वचन का पक्का, दृढ निश्चयी, धुनवाला, स्वस्थ, सत्यवादी, काम का बीड़ा उठा ले तो शीध्र पूरा करने वाला होता है। - वरामिहिर
जातक अपने व्यवहार से बदनाम, मनोविनोदी, शीध्र सफलता के लिए लालायित रहता है। ये लोग पानी से भयभीत और सूरा-सुंदरी से परहेज नही करने वाले होते है। भरणी नक्षत्र पर कुप्रभाव हो, तो झूठ बोलने वाला, साध्य पर दृष्टि रखने वाला, पवित्रता पर ध्यान नही देने वाला, दूसरो का धन हडपने वाला, व्यवहार से शत्रु बनाने वाला, पुत्रवान होता है। - पराशर
पराशर मत के उपरोक्त गुणों के अलावा ये लोग कम खाने वाले, प्रेम करने मे प्रबल, विदग्धालापी (वाकपटु) या विदग्ध के सामान वर्ताव करने वाले होते है। - नारद
  • चन्द्र - यदि चंद्र भरणी नक्षत्र मे हो, तो जातक विश्वनीय, उद्योगी, निरोगी, सफल, चिंतारहित, नेता, रहस्यविद्या का अनुसंधानक, लेखक या प्रकाशक होता है। जातक का जीवन संघर्षपूर्ण और रुकावट युक्त होता है। 33 उम्र वर्ष पश्चात भाग्योदय होता है। कार्ल मार्क्स (जर्मन समाजवादी नेता, मार्क्सवाद के जनक) का चंद्र इस नक्षत्र मे था।
  • वराहमिहिर अनुसार चन्द्र प्रभाव साधन सम्पन्नता, खुशहाली, स्वस्थता, ईमानदारी दायक होता है।
  • सूर्य - यदि सूर्य भरणी मे हो, तो विद्वान, उक्तयुक्ति मे निपुण, प्रसिद्ध, आतंकवादी, रचनात्मक, क्रोधी, अहंकारी, सम्पत्तिवान होता है। कोई-कोई जातक सक्रीय, मार्गदर्शक, अन्वेषक होता है। सद्दाम हुसैन (इराकी तानाशाह राष्ट्रपति) का सूर्य इस नक्षत्र मे था।
  • लग्न - यदि लग्न भरणी मे हो, तो जातक अग्रणी, साहसी, विश्वासयुक्त, धमंडी, थर्राने वाला, दोस्त और परिवार का मददगार, अल्प संतति वाला होता है। स्वामी नित्यानंद (नित्यानंद योगपीठ मठाधीश कर्णाटक) का जन्म लग्न इस नक्षत्र मे था।
भरणी नक्षत्र चरण फल
प्रथम चरण - इसका स्वामी सूर्य है। इसमे मंगल, शुक्र सूर्य ♂ ♀ ☉ का प्रभाव है। राशि मेष 13।20 से 16।40 अंश। नवमांश - सिंह। सृजन, स्वकेन्द्रित, संकल्प, दृढ़ निश्चय इसके गुणधर्म है।
जातक सिंह के सामान आँखे, मोटी नाक, छोड़ा ललाट, घनी भोंहे, घने पतले रोम, आगे का फैला शरीर होता है।
इसकी शिक्षा अच्छी होती है, यह ज्योतिषी, न्यायाधीश, आध्यात्म अध्यापक, नर्सरी टीचर आदि हो सकता है। जातक अहंकारी, कठोर प्रकृति वाला, शत्रुओ से रक्षा करने वाला, विशाल, चोरी की प्रवृत्ति वाला होता है।

द्वितीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे मंगल, शुक्र, बुध ♂ ♀ ☿ का प्रभाव है। राशि मेष 16।40 से 20।00 अंश। नवमांश कन्या। सेवा, संगठन कार्य प्रबंध, धैर्य, निस्वार्थता, परोपकार की भावना इसके गुणधर्म है।
जातक श्याम वर्ण, मृग सामान नेत्र, पतली कमर, कठोर पैर के पंजे, मोटा-लटकता पेट, मोटी भुजा व कंधे, डरपोक, बकवादी, सुयोग्य नृत्यक, डांस टीचर होता है।
जातक विपरीत लिंग का आशिक़, चतुर, मूर्तिकला का ज्ञानी, धर्मिक होता है। इस पाद मे प्रेम विवाह की सम्भावना रहती है।

तृतीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे मगल, शुक्र, शुक्र ♂ ♀♀ का प्रभाव है। राशि मेष 20।00 से 23।20 अंश। नवमांश तुला। समय मे सहमत होना या एक ही समय मे अनेक कार्य होना, अवधि विहीन प्रेम और रति, विपरीत लिंग का अत्यधिक आकर्षण, अभिलाषा की पूर्ति इसके गुणधर्म है।
जातक कड़े रोम वाला, चंचल, धवल नेत्र, रति निरत, कुलटा स्त्री का पति, हत्यारा, विशाल शरीर वाला होता है।जातक घमंडी, योगीन्द्र, पंडित, सामान्य स्वभावी, स्वयं का उद्योग करने वाला, अत्यधिक और कामातुर, वाचाल होता है।
✽ इस चरण मे मगल, + शुक्र, + शुक्र का प्रभाव वश यौन आकर्षण, यौनाचार, यौनक्रीड़ा, यौनकर्म, रति इत्यादि की बहुलता होती है।

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे मंगल, शुक्र, मंगल ♂ ♀ ♂ का प्रभाव है। राशि मेष 23।20 से 26।40 अंश। नवमांश वृश्चिक। अत्यधिक ऊर्जा, रूकावट इसके गुणधर्म है।
जातक वानर मुखी, भूरे केश, गुप्तरोग रोगी, हिंसक, असत्यवादी, धातादिक योग, मित्र से सदव्यवहारी होता है। यह विस्फोटक ऊर्जावान होता है, यदि ऊर्जा का प्रवाह ठीक हो, तो जातक अन्वेषक या अविष्कारक, स्त्री रोग विशेषज्ञ, छायाकार, पैथालॉजिस्ट, जासूस होता है।
जातक कुसत्संगी, क्रूर, अहंकारी, दुर्दम, झूठा, स्वेच्छाचारी, वाचाल, कुछ अच्छी आदते वाला होता है।

आचार्यो ने चरण फल सूत्रो मे बताया है परतु फलित मे बहुत अंतर है।
मानसागराचार्य : भरणी केपहले चरण मे चोर, दूसरे चरण मे काल भाषा हीन, तीसरे चरण मे योगीन्द्र, चौथे चरण मे निर्धन होता है।
यवनाचार्य : भरणी के पहले चरण मे त्यागी, दूसरे चरण मे धनी व सुखी, तीसरे चरण मे क्रूर कर्म करने वाला, चौथे चरण मे दरिद्र होता है।

भरणी नक्षत्र चरण मे ग्रह फल
  • भातीय मत से सूर्य, बुध, शुक्र की एक दूसरे पर पूर्ण दृष्टि या पाद दृष्टि नही होती क्योकि सूर्य से बुध 28 अंश और शुक्र 48 अंश से अधिक दूर नही हो सकते है।
सूर्य :
❉ सूर्य पर चन्द्र की दृष्टि हो, तो जातक दयालु, परोपकारी, सेवको से युक्त होता है।
❉ सूर्य पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक क्रूर, युद्ध प्रिय, रक्तिम नेत्र वाला होता है।
❉ सूर्य पर गुरु की दृष्टि हो, तो जातक विपुल सम्पदा का स्वामी, दान-दक्षिणा देने वाला, प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ या शासन मे उच्चपद पर होता है।
❉ सूर्य पर शनि की दृष्टि हो, तो जातक आलसी और ख़राब स्वास्थ्य होता है।

भरणी सूर्य चरण फल
प्रथम चरण : स्वस्थ, आकर्षक, धन-यश कमाने मे भाग्यशाली, विद्वान, पराधीन, ज्योतिष का ज्ञाता, नेत्र रोगी या आंख पर चोट का निशान, अच्छा वर्ताव करनेवाल होता है। वह चिकित्सा, कानून, अथवा पशुपालन क्षेत्र मे विशेषज्ञ होता है।

द्वितीय चरण : जातक सुविधा सम्पन्न, सुखी पारिवारिक जीवन, कठोर, विद्वान, मार्गदर्शक, अण्डाशय या वृषण और गलसूओ के रोग से पीड़ित, व्यवहार से बदनाम, शत्रु बनाने वाला, दृढ निश्चयी होता है। शिपिंग, पेट्रोल रिफायनरी, पानी के उद्योग, केमिकल से आजीविका होती है। प्रायः प्रेम विवाह, लाटरी, पैतृक सम्पदा, या अन्य प्रकार से छिपा धन मिलने के योग होते है।

तृतीय चरण : जातक परिवार का मुखिया या देश अथवा राज्य प्रमुख, विवेकशील, आत्मविश्वास से पूर्ण साहसी, विजेता, यशस्वी, प्रेम करने मे प्रबल, मद-मदिरा मे मसगुल, रोगी होता है। किसी-किसी मे रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी होती है।
❋ मतान्तर - इस चरण मे सूर्य प्रभाव अच्छा नही माना जाता है। जातक के पास अतुल सम्पति होगी लेकिन वह सब गंवा देगा। वह अभिभाषक, न्यायाधीश, चिकित्सक होगा लेकिन सफल नही होगा। वह उत्तेजित, उग्र, जल्दबाज, झगड़ालू होगा।

चतुर्थ चरण : जातक बचपन से ही कष्टमय जीवन जियेगा। पिता का निधन जातक के बचपन मे ही हो सकता है। जातक दरिद्र, दीन, दुःखी, कायर, उपेक्षित, अपमानित होता है। यदि शुभ ग्रह शुभ स्थान मे न हो या उनकी सूर्य पर दृष्टि न हो, तो भिखारी भी हो सकता है परन्तु किसी एक ग्रह की स्थति भी उक्त स्थति को प्रभावित कर सकती है, वह भिखारी न होकर दूसरो पर आश्रित होता है ।

चन्द्र :
❉ चन्द्र पर सूर्य की दृष्टि हो, तो जातक क्रूर लेकिन याचको का सहायक, कानून से दण्डित होगा।
❉ चन्द्र पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक अग्नि, विष, शस्त्र, लकवा से भयभीत, निर्भर होगा।
❉ चन्द्र पर बुध की दृष्टि हो, तो जातक अपने सर्वज्ञान से यशस्वी तथा धनी होगा।
❉ चन्द्र पर गुरु की दृष्टि हो, तो जातक नियोक्ता का प्रिय, विभागाधिकारी, धनी, स्वस्थ होगा।
❉ चन्द्र पर शुक्र की दृष्टि हो, तो जातक अच्छी पत्नी और संतान के साथ सुख ऐश्वर्य भोगेगा।
❉ चन्द्र पर शनि की दृष्टि हो, तो जातक अस्वस्थ, दुष्ट, सत्य से पराङमुख होगा।

भरणी चन्द्र चरण फल
प्रथम पाद* - जातक अतुल धनी, अनेक वाहनो से युक्त, परिवार मे आदरणीय व सम्मानित होगा। किन्तु जल्दबाजी मे निवेश कर सारा धन खो देगा। भविष्य का न सोचकर आज के बारे मे सोचेगा। * पाद = चरण

द्वितीय पाद - जातक प्रसन्नचित्त, सुन्दर, मित्रो मे प्रेम और निष्ठा, गुरुजनो के प्रति श्रद्धा व आदर, प्रेमरस का लेखक, रहस्य खोजी, दार्शनिक, विचारक, व्यवसाय या नौकरी मे तरक्की करने वाला, धर्म प्रेमी, धन लोभी, विद्वान, सपाट नितम्ब वाला होता है।

तृतीय पाद - जातक रूपवान, मोहक, धन-सम्पदा-वैभव युक्त, अल्प अहारी, भोग-विलाश प्रिय, जलभीरु, पत्नी से सुखी, द्विभार्या योग, पुत्रवान, पुण्यात्मा, मदिरा व्यसनी होता है।

चतुर्थ पाद - जातक दुर्बल, कामुक, स्त्रियो मे आसक्त, प्रेम मे असफल या परेशान, सुरा-सुन्दरी मे रत, भाग्यहीन, रोगी होता है। यदि चन्द्रमा द्वितीयेश या सप्तमेश हो, तो अकाल मृत्यु हो सकती है।

मंगल :
❉ मंगल पर सूर्य की दृष्टि हो, तो जातक बुद्धिमान, माता-पिता का आज्ञाकारी, धनवानो मे आदरणीय होगा।
❉ मंगल पर चन्द्र की दृष्टि हो, तो जातक क्रूर, दुष्ट, पर स्त्री गामी, पुलिस मे नौकर होगा।
❉ मंगल पर बुध की दृष्टि हो, तो जातक दिखावेबाज, पर स्त्री गामी, नामी चोर या तस्कर होता है।
❉ मंगल पर गुरु की दृष्टि हो, तो जातक परिवार मे शीर्ष स्थान पर, धनवान लेकिन क्रोधी होता है।
❉ मंगल पर शुक्र की दृष्टि हो, तो जातक अच्छे खान-पान मे अरूचिवान, चरित्रहीन, समाजसेवी होगा।
❉ मंगल पर शनि की दृष्टि हो, तो जातक कृश, परिवार से दूर, माता के स्नेह से वंचित होता है।

भरणी मंगल चरण फल
प्रथम चरण - जातक युवतियो का संग पाने को लालायित, प्रेम करने मे प्रबल, दुष्टो का संग कर मुसीबत मे पड़ने वाला, अविश्वनीय, अल्प अहारी, दूसरो का धन निकलवाने मे माहिर, मिथ्या परिश्रमी होता है।
❉ मतान्तर - आयु केवल 50 वर्ष होती है। विदेश मे अल्प बीमारी से मृत्यु योग। जातक को तेज औजार व वाहन चलाने से बचना चाहिए।

द्वितीय चरण - जातक बलिष्ठ, भारी शरीर, धनवान, विद्वानो का आदर-सत्कार करने वाला, बुद्धिमान, सरल स्वभाव वाला, सौभाग्यशाली, मनोविनोदि, पुस्तक निर्माण यशस्वी होता है।
❉ मतान्तर - कमजोर मुलायम शरीर, सफ़ेद दाग अथवा शरीर पर चकत्ते, यौन रोगी होता है। सफ़ेद वस्तु (चांदी, स्टील) या क्रीड़ा के सामान व्यवसाय से आजीविका करेगा।

तृतीय चरण - जातक रतिक्रीड़ा प्रेमी, प्रेम मे प्रबल, सम्भोग मे पारंगत, परिवार व गुरुजनो का स्नेह भाजन, मृदु भाषी, धार्मिक, सेवक व सहायक युक्त, कार्यपरायण होता है।
❉ मतान्तर - इस चरण मे 50 वर्षो तक विपरीत (भिक्षावृति योग) परिणाम होते है। पश्चात् 84 वर्ष तक सुखी जीवन जिसमे छविगृह या रंगमंच का स्वामी बनना शामिल है।

चतुर्थ चरण - जातक निरोगी, साहसी, दृढ़ निश्चयी, वादे का पक्का, समयबद्ध, निडर, शस्त्र चलने मे निपुण, व्याकुल मन, भव्यजनो का विरोधी, सुखी, जमीन-जायदाद वाला होता है।
❉ मतान्तर - देश मे सर्वोच्च पद पर होगा। विदेश मे मृत्यु योग अतः विदेश यात्रा मे सावधानी बरतना चहिये
जातक यौन रोग विशेषज्ञ सफल चिकित्सक होगा।

बुध :
❉ बुध पर चन्द्र की दृष्टि हो, तो संगीत, ललित कला, अभिनय मे रूचि लेगा और नाम कमायेगा। वह अच्छी महिलाओ के सानिद्य मे आनन्द लेगा तथा वाहन, आवास, वाहन, सेवको का स्वामी होगा।
❉ बुध पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक शासन मे उच्च अधिकारियो का कृपा पात्र होगा। वह धन-सम्पति अर्जित करेगा किन्तु लड़का स्वभाव का होगा।
❉ बुध पर गुरु की दृष्टि हो, तो जातक अच्छी पत्नी व संतान के साथ जीवन व्यापन करेगा।
❉ बुध पर शनि की दृष्टि हो, तो जातक क्रूर, नीच, कलहप्रिय होगा।

भरणी बुध चरण फल
पहला पाद - जातक कृश, नट, विचलित, पापी, हतोत्साही, कलह करने वाला, दुष्चरित्र, चोर, जुआरी, स्त्री सुख हीन, मनोविनोद के काम मे रूचि रखने वाला, अश्लील लेखक, रतिप्रिय होता है।
❉ मतान्तर - जातक की दीर्घायु संदिग्घ होती है। बचपन मे बालारिष्ट के कारण मृत्यु सम्भव है। यदि आयु लम्बी हुई तो लेखन कार्य मे सलग्न रहेगा। वह भवन ठेकेदार या मेकेनिक होगा।

दूसरा पाद - जातक पसन्नचित्त, सुन्दर, ऐश्वर्यशाली, सभी का हित चाहने वाला, दयालु, अतिथि प्रेमी, लेखक, वक्ता, शास्त्रज्ञ, मृदुभाषी, शिल्पज्ञ, मध्यमायु, परोपकारी होता है।

तीसरा पाद - जातक दीर्घायु, भाग्यशाली, धन-वैभव सम्पन्न, उदार, मित्रोवाला, साहित्यिक कार्य से धनी, बुद्धिमान, ठेकेदार होता है। पत्नी चरित्रवान तथा मनोकुल होती है।

चौथा पाद - जातक व्यर्थ बकवादी, कुटिल, मित्रो का अहित करने वाला, विद्वेषपूर्ण, राज्य या न्यायालय से दण्डित, रक्तविकारी, अल्प भोजन करने वाला, कन्या संतति बहुल होता है। कोई-कोई जातक न्याय प्रिय, धनिक, वक्ता, इंजिनियर होता है।
❉ मतान्तर - जातक सरकारी नौकर, 45 वर्ष तक अच्छा जीवन फिर सामान्य जीवन जीनेवाला, जख्म या आपरेशन का निशान, मिर्गी अथवा लकवा होने के संकेत होते है।

गुरु :
❉ गुरु पर सूर्य की दृष्टि हो, तो जातक सत्यप्रिय, सामाजिक कार्यो से यशस्वी होगा।
❉ गुरु पर चन्द्र की दृष्टि हो, तो जातक बुजुर्गो का सम्मान करने वाला, अच्छे लोगो की सलाह मानने वाला, शांतिप्रिय, अच्छे कार्य करके नाम कमाने वाला होता है।
❉ गुरु पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक क्रूर, अनचाहे मदो मे धन गंवाने वाला, धमण्डी का गर्व चूर-चूर करने वाला, शासन पर निर्भर, बहुत से कर्मचारियो को नियंत्रण मे करने वाला होता है।
❉ गुरु पर बुध दृष्टि हो, तो जातक असत्यभाषी, वक्ता, हमेशा झगडे पर आमादा, अनेक स्त्रियो से सम्बन्ध रखने वाला, आडम्बरी होता है।
❉ गुरु पर शुक्र दृष्टि हो, तो जातक जीवन के सभी सुख, आभूषण, वाहन, सेवक का उपभोग करेगा।
❉ गुरु पर शनि दृष्टि हो, तो जातक परिवार का सुख-चैन छीनने वाला, उलटी सीख देने वाला होगा।

भरणी गुरु चरण फल
प्रथम चरण - जातक सत्यवादी, अच्छा वक्ता, पिता का प्रेमी होगा। दूसरे उसका ईश्वर के सामान आदर करेंगे। एक से अधिक पत्निया होगी। बैंक अथवा फैक्ट्री मैनेजर हो सकता है। दिमागी बीमारी का ध्यान रखना होगा। कुछ जातक आस्तिक, ज्ञानवान, राजमान, उपदेशक होते है। अधिकार प्राप्ति, महापुरुषो के दर्शन होते है।

द्वितीय चरण - जातक सुन्दर, सुन्दर वस्त्र धारण करने वाला, शास्त्रार्थ या साहित्यिक वाद-विवाद मे निपुण, दयालु, वचन का पक्का, सभाचतुर पंडित होता है। कोई-कोई जातक दण्ड विधान का विषेशज्ञ होता है।

तृतीय चरण- जातक खूबसूरत, स्वस्थ, बलवान, तेजस्वी, प्रतिष्ठित, धार्मिक आस्थावान, नीतिवान होता है। वह दूर-दूर तक यात्राये अनेक बार करेगा। दुर्घटना से चमत्कारिक रूप से बचेगा। 32 वर्ष की आयु बाद खुशहाल व संपन्न होगा।

चतुर्थ चरण - जातक मुखरोग से पीड़ित, अज्ञातभय से त्रस्त, बदनाम, पापी, मनोविनोदी, निपुण तांत्रिक व मन्त्र साधक, अपनी धूर्तता से दूसरो से अनुचित लाभ लेने वाला होता है।

शुक्र :
❉ शुक्र पर चन्द्र की दृष्टि हो, तो समाज मे उच्च स्थान, लेकिन स्त्रियो से अवैध सम्बन्ध होने के कारण बदनाम होता है।
❉ शुक्र पर मंगल की दृष्टि हो, तो उसकी सब संपत्ति और यश नष्ट हो जाने पर अवनति को प्राप्त होगा।
❉ शुक्र पर गुरु की दृष्टि हो, तो आकर्षक व्यक्तित्व वाला, पत्नी और संतान के साथ सुख भोगेगा।
❉ शुक्र पर शनि की दृष्टि हो, तो अपार काला धन, शांतिप्रिय, दूसरो का सहायक होगा।

भरणी शुक्र चरण फल
प्रथम चरण - जातक निपुण संगीतकार, संगीतवाद्यो का व्यवसायी, उच्चकोटी का वक्ता, सर्वप्रिय, पत्नी चरित्रवान और मनोकुल, प्रसन्नचित, भोजन मे संयमी, लगातार धुम्रपायी अर्थात चैन स्मोकर होगा।

द्वितीय चरण - जातक उत्कृष्ट विद्वान, धार्मिक, स्त्री प्रवृत्ति वाला, पर्यटनप्रेमी होता है। ऐसा जातक धर्मस्थल का सहारा लेने वाला, गुप्तरोगो से पीड़ित, रतिप्रिय होता है। स्त्री जातक स्त्रीरोग विशेषज्ञ हो सकती है।

तृतीय चरण - जातक ठिगना, स्थूल, वस्त्राभूषण शौकीन, स्त्रियो का प्रिय, अंत तक कर्तव्य परायण सुन्दर पत्नी युक्त, शत्रुहंता व शत्रुभय से रहित होता है। यदि शुक्र 12 वे भाव मे हो, तो अचानक धन प्राप्ति, श्रेष्ठ कार्यो मे रत, कल्याण होता है।

चतुर्थ चरण - जातक विदेश वासी, धार्मिक ग्रंथो और स्त्रोतो का अद्ययन मनन करने वाला, पुजारी अथवा पादरी या मौलवी, चढ़ावे से आजीविका करने वाला होता है। दक्षिण भारतीय प्रचलन अनुसार जातक ब्राह्मणो को भोज कराने वाला ब्राह्मण होता है।

शनि :
❉ शनि पर सूर्य की दृष्टि हो, तो जातक पशु पालक या कृषि कार्य से आजीविका करेगा।
❉ शनि पर चन्द्र की दृष्टि हो, तो जातक क्रूर, दरिद्र, दुष्ट लोगो की संगत करेगा।
❉ शनि पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक अपने पर परोपकार करने वाले का अहित करने वाला, रुकावटो का सामना करने वाला, नैतिक रूप से हीन होगा।
❉ शनि पर बुध की दृष्टि हो, तो जातक चरित्रवान, मनोकुल पत्नीवाला, झूठा और चोर तथा स्त्रियो की संगति से वंचित रहेगा।
❉ शनि पर गुरु की दृष्टि हो, तो जातक राजनीति मे उच्च पद पर होगा। धन वाहन भवन स्त्री सेवक सहित सुखमय जीवन व्यतीत करेगा।
❉ शनि पर शुक्र की दृष्टि हो, तो जातक कृष्ण वर्णी, अनाकर्षक होगा। अपने रोजगार के सिलसिले मे विदेश यात्रा करेगा। यौन पिपाशा शांत करने के लिए बाँझ औरतो से संसर्ग करेगा।

भरणी शनि चरण फल
प्रथम चरण - जातक धर्म ग्रंथो या धार्मिक विषयो के शोध मे रुचिवान, बुद्धिमान, धन अर्जित करने वाला, विद्वानो मे सम्मानित होगा। सिर मे चोट या शल्यक्रिया के योग होगे।

द्वितीय चरण - जातक सुन्दर, बुद्धिमान, मगर उत्तरदायित्त्व मे अस्थिर, शासकीय सलहाकार, जीवन मे उन्नति करने वाला, धर्मनिष्ठ होता है। कोई-कोई जातक कवि, वक्ता, सभा पंडित होता है। स्त्री जातक मे अनियमित मासिक धर्म, गर्भपात होता है।

तृतीय चरण - जातक विद्वान, सुखी, जितेन्द्रिय, पर्यटन प्रेमी, कृतज्ञ, धार्मिक होता है।
❉ मतान्तर - जातक दूसरो पर आश्रित, दूसरो द्वारा लालन-पालन किया हुआ, दो माता या पिता का योग (सौतेले माता या पिता अथवा दत्तक पुत्र के रूप मे माता पिता) या माता-पिता त्याग देते है।

चतुर्थ चरण - जातक 35 वर्षो तक दूसरो पर आश्रित रहेगा अर्थात छोटी उम्र मे माता-पिता के देहांत के बाद दूसरो द्वारा पाला जायगा बाद मे सेना या पुलिस मे नौकर होगा। इस चरण मे शनि पर मंगल की दृष्टि हो तो जातक आतंकवादी, चोर या तस्कर हो सकता है।

राहु चरण फल :
प्रथम चरण - जातक प्रसिद्ध, शक्तिशाली, विपुल सम्पत्ति का स्वामी लेकिन अंत समय मे मुकदमेबाजी मे दिवालिया हो जायगा। विषैले जानवर या पागल कुत्ते के काटे जाने का भय होता है।
द्वितीय चरण - सम्मान तथा मान्यता, अर्जित धन खो जाने का डर रहता है। वाहन उद्योग या बूचड़खाने से भी कमायेगा। सफ़ेद दाग या कुष्ठ पीड़ित हो सकता है।
तृतीय चरण - प्रसिद्ध कवि व काव्य प्रतिभा के कारण विद्वान वक्तियो का संग, उच्च शिक्षा से वंचित होता है। पुलिस या सेना मे अधिकारी बनने के योग होगे।
चतुर्थ चरण - शुभ ग्रह से धृष्ट या शुभ स्थान मे हो, तो दुग्ध उत्पादनो का व्यवसाय करेगा। भूमि-मकान लाभ, परदेश गमन, नौकरी मे परिवर्तन होगे। जीवनसाथी से तीव्र मतभेद हो सकते है।

केतु चरण फल :
प्रथम चरण - देहपीड़ा, मन मे व्यथा, आपसी झगडे, रोजकोप, मिथ्याभाषी होता है। व्याघ्र संहिता अनुसार कमल के पत्तो पर भोजन करता है और सात वर्ष जीवित रहता है। यदि केतु शुभ दृष्ट हो, तो 20 वर्ष जीता है।
द्वितीय चरण - अल्प लाभ, शारीरिक कष्ट ( मिर्गी, पक्षाधात अथवा सिर मे चोट) जलीय रोगो से मृत्यु, सेना या पुलिस मे कार्यरत होता है।
तृतीय चरण - महान योगी, रोगहरण शक्तियो के साथ मुख्य पुजारी, जड़ी बूटियो के इलाज से कमायेगा। यदि गुरु अश्लेषा नक्षत्र मे हो, तो भगवान के सामान पूज्यनीय होगा।
चतुर्थ चरण - भूमि या वित्त लाभ, वास्तुकार या स्टेट का स्वामी, संगीत व ललितकला में रुचिवान होगा। ऐसे लोगो को चितकबरापन या उपदंश अथवा कमजोर दृष्टि होती है।




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Comments sachin on 26-06-2022

mere beta bharni nkshetr me 4 the charn me janm liya hai iska jsnm naam lo hai msi iska naam kya rakhu

lokesh shrivas on 29-08-2021

Mai bahut Pareshan Hoon Main Kya Karu samajh nahi aa raha zindagi mein suicide Karne Ki Chori Hai

Vedagi on 17-01-2021

Bharani nakshatr pratham
charan janamasathi kase ahe


Ravinder on 03-07-2020

मेरे बेटे का जन्म भरनी नक्षत्र के चतुर्थ चरण में हुआ है अभी वह 12 साल का है और उसकी महादशा जो है चंद्रमा की चल रही है और चंद्रमा सप्तमेश है मेरा मोबाइल नंबर 97118 28414 है


Vedagi on 19-05-2020

Bharani nakshatra Latham charan janamasathi kase ahe





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