Bharat Me Angreji Rajya Ki Sthapanaa भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना

भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना



Pradeep Chawla on 12-05-2019

बंगाल के गवर्नर



क्लाइव1757-1760



हालवेल1760



वेंसितार्ट 1760-1765

क्लाइव (दूसरी बार)1765-67

वेर्लेस्ट 1767-69

कार्टियर1769-72

वारेन हेस्टिंग्स1772

बंगाल के गवर्नर जनरल



वारेन हेस्टिंग्स

लार्ड मेक्फरसन

लार्ड कार्नवालिस

सर जॉन शोर

सर ऐ क्लार्क

लार्ड वेलेजेली

लार्ड कार्नवालिस

सर जाज्र बार्लो

अर्ल ऑफ़ मिन्टो

लार्ड हेस्टिंग्स

जॉन एडम्स

लार्ड एमेर्हस्त

विलियम बतेर्वेर्थ वेळी

लार्ड विलियम बैटिंक

भारत के गवर्नर जनरल



लार्ड विलियम बैंटिक(1828-1835)

सर चार्ल मेटकाफ़ (1835-1836)

आकलैङ(1836-1842)

लार्ड एलनबरो(1842-1844)

विलयम बर्ड

लार्ड हार्डिंग(1844-1848)

डलहौजी(1848-1856)

लार्ड केनिंग(1856-1862)

भारत के गवर्नर जनरल तथा वायसराय



लार्ड कैंनिग

लार्ड एल्गिन १

सर राबर्ट नेपियर

सर विलियम देनिसन

सर जॉन लारेंस

मेयो

सर जॉन स्तेत्च्य

नोथ्ब्रूक

लिटन

रिपन

डफ़रिन

एल्गिन २

लार्ड कर्जन

लार्ड एम्पिरय

लार्ड कर्जन

मिन्टो २

हार्डिंग

चेम्सफोर्ड

रीडिंग

लिटन २

इरविन

वेलिगंटन

सर जॉर्ज स्टेनले

लिनलिथगो

बैरन बेब्रन

लिनलिथगो

लार्ड वेवेल

लार्ड माउण्टबेटन

चक्रवर्ती राजगोपालचारी

भारत पर ब्रिटिश साम्राज्यवाद का आर्थिक प्रभाव



भारत मे प्लासी के युद्ध से आजादी तक का काल एक औपनिवेशिक राज्य का काल था जिसकी स्थापना व काम करने का तरीका ही शोषण करने का था इसने भारत के श्रम, धन सभी का उपयोग अपने लाभ हेतु किया था भारत के इस निरंतर शोषण व धन निकास की प्रक्रिया को उपनिवेशवादी शोषण कहा जाता है इस युग के तीन चरण माने गए है ये विभाजन कार्ल मार्क्स ने किया है 1 व्यापारिक पूँजी का वाणिज्यवाद [1758-1813] इस चरण मे व्यापार वो माध्यम था जिस से भारत का शोषण होता था कम्पनी इस काल में एक ऐकाधिकारवादी संगठन बन गई थी इस ने अपने सारे प्रतिद्वंदी समाप्त कर सत्ता प्राप्त की थी। वो भारत के ही धन से वस्तु खरीद कर निर्यात करने लगी इस से भारत का भुगतान संतुलन बिगड़ गया, धन की निकासी शुरू हुई सो अलग 2 औद्योगिक पूँजी का काल 1813-1858 इस काल में मुक्त व्यापार नीति अपना ली गई 3 वित्तीय साम्राज्यवाद 1858-1947

ब्रिटिश साम्रज्यवाद का भारतीय कृषि पर प्रभाव



ब्रिटिश साम्राज्यवाद का पहला और सबसे बुरा शिकार भारत के कृषक बने थे तथा अर्थव्यवस्था नष्ट हो गई थी और उनके विनाश का कारण बनी ब्रिटिश नीति

एकमेव कारण थे ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू किय गये भूराजस्व बंदोबस्त ब्रिटिश शासन ने तीन प्रकार के बदोबस्त लागू किए थे १ जमींदारी या स्थाई बंदोबस्त- जो 1793 मे लार्ड कार्नवालिस ने की थी ये बंगाल, बिहार, उडीसा, तथा पूर्वी उत्तरप्रदेश मे लागू किए गए थे ये एक नए वर्ग जमींदार के साथ किए गए थे जमींदार कम्पनी को हर वर्ष एक निशित धनराशी दे देते थे इस के बदले में ये लोग अपनी जमीन तथा किसानों के मालिक मान लिए जाते थे यदि धन नहीं चुका पाते तो कम्पनी उनकी जमीन नीलाम करवा देती थी





इसके नतीजे ये निकले

१ कृषक अब जमीन के मालिक नहीं थे वे अब जमींदार की दया पर निर्भर किराये के कृषक थे

२ जमींदार अपनी मर्जी से बेदखल करते थे किराया भी अपनी मर्जी से वसूलते रहे थे

३ वसूली के तरीके अमानवीय थे

४ जमींदारी खरीद- बेच गिरवी विभाजन की वस्तु बन गई थी

५ जमींदार गाँव से शहर आ गए थे उनके स्थान पर कारेंदे काम करते थे जो पूरी तरह से लालची थे और किसानों का अधिकतम शोषण करते थे

६ कृषक की आमदनी तो भूराजस्व चुकाने में चली जाती थी और उसके सिर पर कर्ज रहने लगा गाँवों मे गरीबी बढ़ गई, कृषि उत्पादन भी गिर गये क्योंकि किसान के लिए कुछ प्रेरक कारण था ही नहीं जो उपज होती वो जमींदार की होती सो वो मन से खेती करते ही नहीं थे

२ रैय्यतवाडीं व्यवस्था ब्रिटिश राज द्वारा लागू दूसरा बंदोबस्त था ये तमिलनाडु, महाराष्ट्र्, दक्कन मे 1820 लागू किया गया था

इसके अन्दर सीधे किसानों से सम्पर्क किया गया था ये किसान अपनी जमीन के मालिक थे परन्तु इस बंदोबस्त मे भूराजस्व की दर बहुत ऊँची थी 48-52% कही कही तो ये 55% थी वसूली बेहद निर्मम तरीके से होती थी किसान जो कर नहीं चुका पाते थे जेल मे ड़ाल दिए जाते थे जिसका खर्च भी उन्हें ख़ुद उठाना पड़ता था

इसके परिणाम

१ उच्च भू राजस्व के चलते इन क्षेत्रों मे जमीन की कीमत बहुत कम हो गई थी

२ अधिकतर उत्पादन तो कर चुकाने मे चला जाता था

३ किसान मजबूरी मे साहूकार से कर्ज लेते थे ताकि कर चुका सके जो एक बार इस जाल मे आ जाता था वो निकल नहीं पाता था इस तरह यहाँ भी अनूपस्तिथ भूस्वामी बन गए

४ इस बंदोबस्त में संग्रहकर्ता तथा साहूकार दोनों ने मिल कर शोषण किया था

५ ग्रामीण कर्जेदारी मे सबसे ज्यादा वृद्धि इन्ही क्षेत्रों मे हुई थी

3 महालवाडी व्यवस्था - ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू किया अन्तिम बंदोबस्त था जिसे 1822 मे लागू किया गया था इसके लक्षण थे

१ पूरे गाँव के भूराजस्व का निर्धारण किया जाता था

२ ग्राम के अग्रणी परिवार को महालदार बनाया जाता था ये हर किसान के कर का निर्धारण करते थे तथा वसूली कर के सरकार को जमा करवाते थे कर का निर्धारण भले हे साम्हिक था वसुली तो व्यक्तिगत स्तर पे होती थी

परिणाम १ महालदार एक मध्यस्थ वर्ग बन गया था जो नेता भी थे और सबसे ज्यादा लाभ उठा रहे थे

२ महालदार मनमानी करता था वो अपने, रिश्तेदारों के करो का बोझ भी किसानों पे ड़ाल देते थे

३ ग्रामीण समाज का विघटन शुरू हो गया

भूराजस्व व्यवस्था के परिणाम १ सभी बंदोबस्त अधिकतम शोषण के भावना से किए गए थे किंतु सरकार कृषि तथा किसानों से कोई सरोकार नहीं रखना चाहती थी

२ इस से बिचोलये वर्गों की कडिया बनती चली गई ये सभी किसानों का शोषण कर थे, किंतु इनसे रक्षा का कोई उपाय नहीं था

३ ये बंदोबस्त ग्रामीण समाज के विघटन, सयुक्त परिवार, पंचायत, जजमान, सहकारी सम्बन्ध, ग्रामीण शिल्पकारी सभी का नाश का कारण बने

४ दर बहुत ऊँची होने से किसानो के पास गुजारे के लायक भी कुछ नहीं बचता था वे गरीब होते चले गए, कर्ज के बोझ से दबते चले गए

५ कृषि की दशा ख़राब हो गई, किसान उसकी तरफ़ से उदास से थे, बीचोलिया वर्ग को कोई रूचि नहीं थी, सरकार को वसुली से मतलब था

लगातार अकाल पड़ने के बाद कर्जन ने 1899 मे जाकर कृषि विभाग स्थापित कराया था

वास्तव मे ब्रिटिश सरकार की कोई कृषि नीति नहीं थी

कृषि का वाणिज्यीकरण तथा परिणाम



अधिक से अधिक भूमी को व्यापारिक फ़सलो जूट, कपास, गन्ना, अफीम, नील, चाय, काफ़ी के अधीन लाना था, इन फसलों की खेती जमींदार, ब्रिटिश बागान मालिक, साहूकार, तथा मध्यस्त वर्ग किसानों से जबरन करवाता था इन फसलों की कीमत किसान को बाजार भाव से ना दे कर वे अपनी मर्जी का प्रयोग करते थे इन फसलों की खेती ना करने पर किसानों को कठोर यातनाओ का सामना करना होता था सबसे ख़राब हालत नील के किसानों की थी उनके द्वारा 1859-1860 का प्रसिद्ध नील विद्रोह भी किया गया था।

ब्रिटिश काल मे पड़े अकाल कारण तथा परिणाम





१ ब्रिटिश नीतियों का सबसे घातक परिणाम भारत मे पड़ने वाले बार बार के अकाल थे सन 1770 के बंगाल अकाल से उस प्रान्त की १/३ आबादी मरी थी इस के चलते ही सन्यासी विद्रोह शुरू हुआ था देखे आनंदमठ



अन्तिम अकाल 1943-1944 मे फ़िर बंगाल मे पड़ा था जिसमें कम से कम 40 लाख लोग मरे थे ठीक उस समय जब हिटलर ने यहूदियो का नरसंहार करवाया था तो उस पर तो सारी दुनिया की नजर जाती है उसकी याद मे संग्राहलय बनते है किंतु बंगाल के लोगो की दुर्दशा पर कभी विश्व मंच मे बात भी नहीं उठी यहा तक की ब्रिटिश सरकार ने उन दिनों जमाखोरी रोकने की कोशिश भी नहीं की, उसने जो भोजनालय खुलवाए थे वे ठीक एक वक़्त पे खुलते और बंद होते थे ताकि कोई भूखा व्यक्ति उन मे दो बार ना खा ले

इन बड़े अकालों मे हर बार 10-40 लाख लोग मरते थे इनके ठीक बाद महामारी आती थी जो बची कुची आबादी को भी मार देती थी 19 वी शताब्दी के प्रमुख अकाल थे 1868 उत्तर पशिम प्रांत का अकाल, 1866-70 के बीच मद्रास प्रान्त, राजपूताना, उत्तर पशिम प्रान्त, पंजाब, सेन्ट्रल प्रांत का अकाल, 1865 बंगाल, बिहार, ओडिसा, का अकाल, 1875-76 मे लिटन के काल मे पूरे भारत मे पड़ा अकाल, 1899-1900 के बीच सबसे भयानक अकाल, 1899-1908 के बीच 5 बड़े अकाल इन अकालों की पून्रावर्ती, जनक्षति, अर्थव्यवस्था के पतन को ब्रिटिश राज का सबसे अमानवीय परिणाम मान सकते है

क्या ब्रिटिश सरकार ने कुछ नहीं किया था ?नही किया था उसने ये किया अकाल पे ढेर सारे आयोग बना दिए गए केम्पबेल 1866, स्त्रेची 1880, लायल 1896, मेक्दनल 1900



जिनकी रिपोर्ट पर वो ख़ुद ध्यान नहीं देती थी



आर .सी .दत्त के शब्दों मे ब्रिटिश शासन ने भारत को बार बार पड़ने वाले अकालों का देश बना दिया अकाल जो कि भारत या विश्व के इतिहास मे कभी नहीं पड़े थे

अकालों के कारण

१ सरकारी तौर पे अकाल को प्राकर्तिक आपदा माना गया था जिन से निपटने मे मानव सक्षम नहीं था

२ वास्तव मे कारण भिन्न थे कर्जन ने ख़ुद माना था कि अकाल इश्वर का प्रकोप नहीं थे क्योंकि बिना सुखा पड़े भी अनेक अकाल आए थे यधपि अकालों के गंभीरता तथा आवर्ती के लिए अनेक सामजिक आर्थिक कारण जिमेदार थे यथा उपलब्ध भोजन बन्धार, यातायात की सुविधा, कीमतों मे वृद्धि की मात्रा, भोजन के लिए काम कार्यक्रमों का अभाव, जनता की बहुत दुर्बल खरीद क्षमताथी

३ आर.सी .दत्त ने ऊँचे भूराजस्व को अकाल का कारण माना था

४ अकाल की विभीषिका ये थी कि अनाज था, सस्ता था और निर्यात भी होता था किंतु लाखों लोगो के पास उसे खरीदने के लिए धन ही नहीं होता था वे अनाज की कमी से नहीं बल्कि खरीद क्षमता की कमी के कारण मरे थे

५ कालाबाजारी, जमाखोरी, जनवितरण व्यवस्था के पूर्ण अभाव ने भी अकाल की विभित्सा को बढ़ा दिया था

६ प्रशासनिक कारण भी जिम्मेदार थे सरकार के पास जनसंख्या वितरण की सूचना, कृषित शेत्रफल, खाद्यान उत्पादन मात्रा, विभिन्न शेत्रो मे खाद स्ताको की दशा, लोगो के खाद्ध व्यवहार, जनता की सामान्य आर्थिक व्यवस्था जान सकने के लिए कोई माध्यम नहीं थे

७ अकाल आयोगों ने ग़लत रिपोर्ट भी दी लायल आयोग ने कहा अकाल मात्र कृषक जनता की बेरोजगारी जनित समस्या है

८ ब्रिटिस भू राजस्व बंदोबस्त के चलते कृषि उत्पादन निरंतर गिरता चला गया था विशेषकर अन्न उत्पादन जो जमीन पहले अन्न पैदा करती थी वो बाद मे नील, जूट जेसी फसलें पैदा करने लगी थी जिनको खॉ नहीं सकते थे और उनकी कीमत भी पूरी नहीं मिलती थी

अकालों के परिणाम

१ ये दोहरी त्रासदी थी हर अकाल के पीछे महामारी आती थी जो जनक्षति को और बढ़ा देती थी

२ इनके चलते कई वर्षो तक आबादी की दुबारा बस ही नहीं पाति थी तथा आम क्रियाकलाप भी नहीं हो पातें थे

३ भारी जनक्षति, धनाभाव, पशु-बीज के आभाव के चलते कृषि के उद्धार में कई वर्ष लगते थे जिस दौरान लगातार अन्न्भाव से मौतें होती थी इस प्रकार ये रिश्ते घाव थे

४ पशु मानव की ऊँची मृत्यु दर जन्पल्यान, से जनाभाव हो जाता था अकाल से निम्न जीवन प्रत्याशा, अतिदुर्बल श्रम शक्ति भी अकाल के कारण जन्मे नतीजे थे

आजादी के बाद भी भारत सरकार को इसके नतीजे भोगने पड़े थे जब अन्न्भाव के चलते उसे हाथ फेलाना पड़ा जिसमें अपमानकारी पी.एल 480 योजना भी थी

विद्योगिकरण -कारण तथा परिणाम





ब्रिटिश नीतियो का एक घातक परिणाम भारत का विउधोगीकरण था यह एक दोहरी प्रक्रिया थी



१ भारत के सदियो पुराने हस्त उधोग को नष्ट किया गया जो रोजगार का बड़ा साधन था और हमारी सांस्कृतिक विरासत का भाग था

२ भारत को ओधोगिक क्रांति के फलो से प्रय्तान्पूर्ण ढंग से वंचित रखा गया था तथा यह आधुनिक उधोग लगने ना देना ये प्रक्रिया प्रथम विश्व युद्ध तक चलती रही

डेनिअल थार्नेर जिन्होंने इस सक्ल्पना का आलोच्नतम विश्लेषण किया है के परिणामो का वर्णन करते हुआ कहा है

१ ब्रिटिश सरकार ने सब कुछ सोची समझी चाल से किया ताकि ब्रिटन में ओधोगिक क्रांति सफल हो सके इस हेतु ही भारत को मुक्त व्यापार का सबसे बड़ा क्षेत्र बनाया गया इस प्रक्रिया ने भारत से धन निकासी को तेज कर दिया

२ भारत की पारंपरिक आत्मनिर्भरता समाप्त हो गई

३ कार्यशील श्रम बल खासकर उधिगो मे कम हो गया

४ निर्माण उद्योंग में भी रोजगार की कमी आ गई

५ भारतीय हस्त तथा कुटीर उद्योंग नष्ट हो गए नगर उजाड़ गए पश्चिम मे ओधोगिक क्रांति होने पे कारीगर नए कामो मे लग गए किंतु भारत मे उनको किसान बनना पड़ा क्योंकि यहा नए उधोग विकसित हुए ही नहीं थे

६ भारत का बाजार ब्रिटिश माल से भर गया था वो सिर्फ़ कच्चे माल का निर्यात करता था

७ विश्वयुद्ध काल मे भारत को दिक्कत का सामना करना पड़ा क्योंकि विदेश से माल की आपोरती बंद हो गई थी

धन निकास सिद्घांत





धन निकास सिद्घांत का अर्थ - - ब्रिटिश राज के स्थापना से पूर्व भारत विश्व का सबसे बड़ा ओधोगिक उत्पादक देश था उसके प्रमुख निर्यात थे मसाले, नील, चीनी, रेश्मी कपड़े, दवा, कीमती पथार, हस्तशिल्प, तथा सूती वस्त्र

आयत कम था और निर्यात ज्यादा था जिस से संतुलन भारत के पक्ष मे था देश स्वर्ण तथा रजत भंडारों से परिपूर्ण थे। भारत धन एकत्रीकरण का केन्द्र था, विश्व की मांगो का पूर्तिकर्ता था इस प्रकार भारत वो सागर था जिसमें धन की नदिया गिरती तो थी किंतु निकलता कुछ भी बही था

पलासी तथा बक्सर के युद्ध के बाद दश बदल गई थी

इस के बाद भारत की अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भर ना रह कर ओप्निवेशिक शोसन का शिकार हो गई थी इसका प्रयोग अब ब्रिटेन के हितों के प्रयोग हेतु होने लगा इसका नतीजा ये हुआ की भारत निर्मित वस्तु नोर्यात के स्थान पे काह्हे माल की आपोरती तथा ब्रितिस ओधोगिक माल का आयातक बन गया मुक्त व्यापार नीति जेसे उपायों से भारत के उद्योंग बर्बाद हो गए अंत मे भारत एक शास्त्रीय उपनिवेश बन गया कार्ल मार्क्स के शब्दों मे सूट के घर को सूती वस्त्रों से भर दिया गया इसने भारत की अर्थव्यवस्था के चरित्र को ही बदल दिया था

धन निकासी का प्रश्न -इस शोसन की तरफ़ सबसे पहले दादा भाई नौरोजी ने समझा तथा प्ररदर्षित किया। ऍम. जी. रानाडे, आर.सी. दत्त तथा दुसरे लोगो ने भी इस क्षेत्र में काम किया

उनकी मुख्य सकंल्पना भारत की निर्धनता थी दादा भाई के प्रशिद्द पत्र पॉवरटी एंड अन ब्रिटिश रूल इन इंडिया , के ठीक बाद भारत की निर्धनता प्रकाशित की गई जिसमें वो कहते थे भारत से प्राप्त राजस्व का १/४ भाग तो देश से निकल के ब्रिटेन मे चला जाता है और फ़िर वो ब्रिटन के संसाधनों मे ही वृद्धि करता है

यह निरंतर धन का प्रवाह ही है जो भारत के जीवन रक्त को चूस रहा है नौरोजी ने इस शोषण को सारी बुराइओ की जड़ तथा भारत की निर्धनता का प्रमुख कारण माना था इसके बाद रानाडे ने भी इस बारे में अपने विचार प्रकाशित किए थे

सबसे अच्छा काम आर. सी. दत्त ने किया था उनके ग्रन्थ भारत के आर्थिक इतिहास ने तहलका मचा दिया था

इन सभी रचनाओं भारत की जनता को उनकी गरीबी के कारण बताने का काम किया इन विचारको को पता लग गया की देश की गरीबी का कारण यह है के देश की सकल घरेलु उत्पाद का ज्यदातार भाग ब्रिटेन चला जाता है जिसके बदले देश को कोई भी लाभ नहीं मिल पात यही धन निकास का सिधांत है

ये किसी सीमित सकंल्पना से नहीं जुदा था इसका अर्थ मात्र धन तथा माल का निर्यात ही नहीं था

दत्त के अनुसार लोगों द्वारा दिया गया कर तथा किया गया व्यय उनके बीच ही रहता है तथा उनका विकास ही करता है किंतु जब धन देश से निकल जाता है तो फ़िर उस से देश को कोई लाभ नहीं होता

दत्त के ही अनुसार धन निकासी ने भारत मे पूँजी की कमी पैदा कर दी है जिस से देश का विकास रूक गया है उनके अनुसार भूराजस्व से भी धन निकासी होती है जीससे किसान गरीब हो जाता है

दत्त ने कटुता पूर्ण आलोचना करते हुए कहा की भारत में ब्रिटिश शासन एक निरंतर लूट तथा आक्रमण के समान है जो तैमुर, नादिरशाह, अब्दाली तथा किसी भी आकर्मंणकारी के हमले से ज्यादा बुरा है वे तो आए लूटा और गए किंतु ब्रिटिश राज हर रोज लूट रहा है जिसके चलते भारत अकालो का देश बन गया है अकाल जो बार बार अधिक भीषण रूप से पड़ते है तथा उनकी कोई तुलना भारत या विश्व इतिहास मे नहीं की जा सकती

सिर्फ़ आर्थिक जागरण के साथ सिधांत ने राजनीतिक जागरण भी किया था इसने भारत के लोगों को ब्रिटिश राज की असली नीयत बता दी बता दिया की उसकी प्रकर्ति तथा परिणाम क्या हो सकते है ,

इसने स्वशासन की मांग को जन्म दिया, इसकी अपील ने मध्यम वर्ग को बुद्धिजीवी वर्ग को भी प्रभावित किया था

धन निकास के स्रोत्र - आर.सी .दत्त ने धन निकास की प्रकर्ति का विश्लेषण करते हुए उन रास्तों की बात की जिनसे देश से भार धन जाता है

प्रत्यक्ष स्रोत्र-१ इंग्लैंड को भेजा गया धन जो वेतन, पेंशन ग्रेचुइती जो की सिविल, सेनिक कर्मचारियो को ब्रिटेन मे दी जाती थी

२ ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना तथा बाद में भारत सचिव कार्यालय का खर्च

३ कम्पनी के अंशधारको को लाभांश जो भारत के राजस्व का १०.५% भाग था

४ सबसे बड़ा प्रत्यक्ष मार्ग होम चार्ज थे, भारत के लिए सैनिक साजोसमान की खरीद, भारत कार्यालय पर व्यय, सेन्य व्यय, विशेषकर भारत के कोष से उपनिवेशवाद का प्रसार करना जेसे भारत अफगान युद्ध, बोअर युद्ध, विश्व युद्ध

अप्रत्यक्ष निकास १ सबसे बड़ा मार्ग व्यापार था भारत के धन से यहा का माल खरीद के ब्रिटेन भेज दिया जाता था इस रूप में भारत को अपने माल के बदले कुछ भी नहीं मिलता था कृषि के व्यापारीकरण के साथ ही कच्चे माल की निकासी शुरू हो गई जो धन्निकास का ही रूप थी



२ मुक्त व्यापार नीति से भारत ब्रिटिश माल का सबसे बड़ा खरीददार बन गया ये खरीद अपने आप भारत के धन की निकासी का मार्ग बन गया

३ उनका प्रशासन बहुत खर्चीला था जिसका सारा खर्च भारत को देना पड़ता था गवर्नर का वेतन ही उस ज़माने मे २ लाख चांदी के रुपये सालाना था

४ भारत की सांस्कृतिक विरासत जेसे पांडुलिपि, जवाहरात, चित्रकला, मूर्तिकला के नमूने जिनका मूल्य लगन भी सम्हाव नहीं था भारत से बाहर निकल गए

आर्थिक राष्ट्रवाद

आर्थिक राष्ट्रवाद- आर्थिक राष्ट्रवाद - धन निकास सिधांत ने अत्यन्त सशक्त उपनिवेश विरोधी भावनाओं को जनम दिया जो

आगे चल कर आर्थिक राष्ट्रवाद के जन्म का कारण बनी ये मुख्य रूप से शोसन के विरुद्ध था जिसने भारत की निर्धनता तथा दुर्दशा को बढाया था

इसके चलते कई आर्थिक रास्त्वादी पनपे जेसे की राजगोपाल बोस, गोपाल हरी देशमुख, नव्गोपाल मित्र, रानडे, दत्त, अरविंद घोष, इसने ही भारत मी पहली बार सव्देशी, बायकाट को हथियार के रूप मी प्रयोग किया तथा यही से हमारा रास्ते आन्दोलन शुरू हुआ

इस भावना को ही हम गाँधी के असहयोग, खादी, की आत्मा मान सकते है

आजादी के बाद भी इसने देश को प्रभावित किया।



Comments Priya singh on 16-10-2023

Andaman nikobar ki stapna kab hui subject h Hindi Chapter h Andaman nikobar driph Shambhu

Priya singh on 15-06-2023

Andaman nikobar ki stapna kab hui subject h Hindi Chapter h Andaman nikobar driph Shambhu India ma

Priya singh on 17-12-2022

Andaman nikobar ki stapna kab hui


Kiran on 07-12-2022

History lesson plan daale plz

Muskan on 07-01-2020

Bharat Me Angreji Rajya Ki Sthapanaa





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