Hammir Dev Chauhan History In Hindi हम्मीर देव चौहान हिस्ट्री इन हिंदी

हम्मीर देव चौहान हिस्ट्री इन हिंदी



Pradeep Chawla on 12-05-2019

हम्मीर देव चौहान, पृथ्वीराज चौहान के वंशज थे। उन्होने रणथंभोर

पर 1282 से 1301 तक राज्य किया। वे रणथम्भौर के सबसे महान शासकों में

सम्मिलित हैं। हम्मीर देव का कालजयी शासन चौहान काल का अमर वीरगाथा इतिहास

माना जाता है। हम्मीर देव चौहान को चौहान काल का कर्ण भी कहा जाता है। पृथ्वीराज चौहान

के बाद इनका ही नाम भारतीय इतिहास में अपने हठ के कारण अत्यंत महत्व रखता

है। राजस्थान के रणथम्भौर साम्राज्य का सर्वाधिक शक्तिशाली एवं प्रतिभा

सम्पन शासक हम्मीर देव को ही माना जाता है। इस शासक को चौहान वंश का उदित

नक्षत्र कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा।



डॉ॰ हरविलास शारदा के अनुसार हम्मीर देव जैत्रसिंह का प्रथम पुत्र था और इनके दो भाई थे जिनके नाम सूरताना देवबीरमा देव थे। डॉक्टर दशरथ शर्मा के अनुसार हम्मीर देव जैत्रसिंह का तीसरा पुत्र था वहीं गोपीनाथ शर्मा के अनुसार सभी पुत्रों में योग्यतम होने के कारण जैत्रसिंह को हम्मीर देव अत्यंत प्रिय था।



हम्मीर देव के पिता का नाम जैत्रसिंह चौहान एवं माता का नाम हीरा देवी था। यह महाराजा जैत्रसिंह चौहान के लाडले एवं वीर बेटे थे।









अनुक्रम



  • 1परिचय
  • 2राज्यारोहण
  • 3हम्मीरकालीन इतिहास के स्रोत
  • 4हम्मीर महाकाव्य
  • 5हम्मीर रासो
  • 6हम्मीर हठ प्रबंधकाव्य
  • 7हम्मीर देव के प्रमुख उद्देश्य
  • 8हम्मीर देव चौहान की प्रमुख उपलब्धियाँ
  • 9हम्मीर देव चौहान का तिथिवार घटनाक्रम
  • 10हम्मीर देव कविता कोष
  • 11विद्वानों की दृष्टि में हम्मीर देव चौहान
  • 12सन्दर्भ
  • 13इन्हें भी देखें
  • 14बाहरी कड़ियाँ






परिचय

राव

हम्मीर देव चौहाण रणथम्भौर “रणतभँवर के शासक थे। ये पृथ्वीराज चौहाण के

वंशज थे। इनके पिता का नाम जैत्रसिंह था। ये इतिहास में ‘‘हठी हम्मीर के

नाम से प्रसिद्ध हुए हैं। जब हम्मीर वि॰सं॰ 1339 (ई.स. 1282) में रणथम्भौर

(रणतभँवर) के शासक बने तब रणथम्भौर के इतिहास का एक नया अध्याय प्रारम्भ

होता है।हम्मीर देव रणथम्भौर के चौहाण वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली एवं

महत्वपूर्ण शासक थे। इन्होने अपने बाहुबल से विशाल साम्राज्य स्थापित कर

लिया था।



राव हम्मीर देव चौहाण रणथम्भौर “रणतभँवर के शासक थे। ये पृथ्वीराज चौहाण

के वंशज थे। इनके पिता का नाम जैत्रसिंह था। ये इतिहास में ‘‘हठी हम्मीर

के नाम से प्रसिद्ध हुए हैं। जब हम्मीर वि॰सं॰ 1339 (ई.स. 1282) में

रणथम्भौर (रणतभँवर) के शासक बने तब रणथम्भौर के इतिहास का एक नया अध्याय

प्रारम्भ होता है।हम्मीर देव रणथम्भौर के चौहाण वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली

एवं महत्वपूर्ण शासक थे। इन्होने अपने बाहुबल से विशाल साम्राज्य स्थापित

कर लिया था।



जलालुद्दीन खिलजी ने वि॰सं॰ 1347 (ई.स. 1290) में रणथम्भौर पर आक्रमण

किया। सबसे पहले उसने छाणगढ (झाँइन) पर आक्रमण किया। मुस्लिम सेना ने कड़े

प्रतिरोध के बाद इस दुर्ग पर अधिकार किया। तत्पश्चात् मुस्लिम सेना

रणथम्भौर पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ी। उसने दुर्ग पर अधिकार करने के

लिए आक्रमण किया लेकिन हम्मीर देव के नेतृत्व में चौहान वीरों ने सुल्तान

को इतनी हानि पहुँचाई, कि उसे विवश होकर दिल्ली लौट जाना पड़ा। छाणगढ़ पर

भी चौहानों ने दुबारा अधिकार कर लिया। इस आक्रमण के दो वर्ष पश्चात्

मुस्लिम सेना ने रणथम्भौर पर दुबारा आक्रमण किया, लेकिन वे इस बार भी

पराजित होकर दिल्ली वापस आ गए। वि॰सं॰ 1353 (ई.स. 1296) में सुल्तान

जलालुद्दीन खिलजी की हत्या करके अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान बना। वह

सम्पूर्ण भारत को अपने शासन के अन्तर्गत लाने की आकांक्षा रखता था। हम्मीर

के नेतृत्व में रणथम्भौर के चौहानों ने अपनी शक्ति को काफी सुदृढ़ बना

लिया और राजस्थान के विस्तृत भूभाग पर अपना शासन स्थापित कर लिया था।

अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली के निकट चौहानों की बढ़ती हुई शक्ति को नहीं देखना

चाहता था, इसलिए संघर्ष होना अवश्यंभावी था।



ई.स. 1299 में अलाउद्दीन की सेना ने गुजरात पर आक्रमण किया था। वहाँ से

लूट का बहुत सा धन दिल्ली ला रहे थे। मार्ग में लूट के धन के बँटवारे को

लेकर कुछ सेनानायकों ने विद्रोह कर दिया तथा वे विद्रोही सेनानायक राव

हम्मीरदेव की शरण में रणथम्भौर चले गए। ये सेनानायक मीर मुहम्मद शाह और

कामरू थे। सुल्तान अलाउद्दीन ने इन विद्रोहियों को सौंप देने की माँग राव

हम्मीर से की, हम्मीर ने उसकी यह माँग ठुकरा दी। क्षत्रिय धर्म के

सिद्धान्तों का पालन करते हुए राव हम्मीर ने, शरण में आए हुए सैनिकों को

नहीं लौटाया। शरण में आए हुए की रक्षा करना अपना कर्त्तव्य समझा। इस बात पर

अलाउद्दीन क्रोधित होकर रणथम्भौर पर युद्ध के लिए तैयार हुआ।



अलाउद्दीन की सेना ने सर्वप्रथम छाणगढ़ पर आक्रमण किया। उनका यहाँ आसानी

से अधिकार हो गया। छाणगढ़ पर मुसलमानों ने अधिकार कर लिया है, यह समाचार

सुनकर हम्मीर ने रणथम्भौर से सेना भेजी। चौहान सेना ने मुस्लिम सैनिकों को

परास्त कर दिया। मुस्लिम सेना पराजित होकर भाग गई, चौहानों ने उनका लूटा

हुआ धन व अस्त्र-शस्त्र लूट लिए। वि॰सं॰ 1358 (ई.स. 1301) में अलाउद्दीन

खिलजी ने दुबारा चौहानों पर आक्रमण किया। छाणगढ़ में दोनों सेनाओं में

भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में हम्मीर स्वयं युद्ध में नहीं गया था। वीर

चौहानों ने वीरतापूर्वक युद्ध किया लेकिन विशाल मुस्लिम सेना के सामने कब

तक टिकते। अन्त में सुल्तान का छाणगढ़ पर अधिकार हो गया।



तत्पश्चात् मुस्लिम सेना रणथम्भौर की तरफ बढ़ने लगी। तुर्की सेनानायकों

ने हमीर देव के पास सूचना भिजवायी, कि हमें हमारे विद्रोहियों को सौंप दो,

जिनको आपने शरण दे रखी है। हमारी सेना वापिस दिल्ली लौट जाएगी। लेकिन

हम्मीर अपने वचन पर दृढ़ थे। उसने शरणागतों को सौंपने अथवा अपने राज्य से

निर्वासित करने से स्पष्ट मना कर दिया। तुर्की सेना ने रणथम्भौर पर घेरा

डाल दिया। तुर्की सेना ने नुसरत खाँ और उलुग खाँ के नेतृत्व में रणथम्भौर

पर आक्रमण किया। दुर्ग बहुत ऊँचे पहाड़ पर होने के कारण शत्रु का वह पहुचना

बहुत कठिन था। मुस्लिम सेना ने घेरा कडा करते हुए आक्रमण किया लेकिन दुर्ग

रक्षक उन पर पत्थरों, बाणों की बौछार करते, जिससे उनकी सेना का काफी

नुकसान होता था। मुस्लिम सेना का इस तरह घेरा बहुत दिनों तक चलता रहा।

लेकिन उनका रणथम्भौर पर अधिकार नहीं हो सका।



अलाउद्दीन ने राव हम्मीर के पास दुबारा दूत भेजा की हमें विद्रोही

सैनिकों को सौंप दो, हमारी सेना वापस दिल्ली लौट जाएगी। हम्मीर हठ पूर्वक

अपने वचन पर दृढ था। बहुत दिनों तक मुस्लिम सेना का घेरा चलूता रहा और

चौहान सेना मुकाबला करती रही। अलाउद्दीन को रणथम्भीर पर अधिकार करना

मुश्किल लग रहा था। उसने छल-कपट का सहारा लिया। हम्मीर के पास संधि का

प्रस्ताव भेजा जिसको पाकर हम्मीर ने अपने आदमी सुल्तान के पास भेजे। उन

आदमियों में एक सुर्जन कोठ्यारी (रसद आदि की व्यवस्था करने वाला) व कुछ

रोना नायक थे। अलाउद्दीन ने उनको लोभ लालच देकर अपनी तरफ मिलाने का प्रयास

किया। इनमें से गुप्त रूप से कुछ लोग सुल्तान की तरफ हो गए।



दुर्ग का धेरा बहुत दिनों से चल रहा था, जिससे दूर्ग में रसद आदि की कमी

हो गई। दुर्ग वालों ने अब अन्तिम निर्णायक युद्ध का विचार किया। राजपूतों

ने केशरिया वस्त्र धारण करके शाका किया। राजपूत सेना ने दुर्ग के दरवाजे

खोल दिए। भीषण युद्ध करना प्रारम्भ किया। दोनों पक्षों में आमने-सामने का

युद्ध था। एक ओर संख्या बल में बहुत कम राजपूत थे तो दूसरी ओर सुल्तान की

कई गुणा बडी सेना, जिनके पास पर्येति युद्धादि सामग्री एवं रसद थी।

राजपूतों के पराक्रम के सामने मुसलमान सैनिक टिक नहीं सके वे भाग छूटे

भागते हुए मुसलमान सैनिको के झण्डे राजपूतों ने छीन लिए व वापस राजपूत सेना

दुर्ग की ओर लौट पड़ी। दुर्ग पर से रानियों ने मुसलमानों के झण्डो को

दुर्गे की ओर आते देखकर समझा की राजपूत हार गए अतः उन्होंने जोहर कर अपने

आपको अग्नि को समर्पित कर दिया। किले में प्रवेश करने पर जौहर की लपटों को

देखकर हमीर को अपनी भूल का ज्ञान हुआ। उसने प्रायश्चित करने हेतु किले में

स्थित शिव मन्दिर पर अपना मस्तक काट कर शंकर भगवान के शिवलिंग पर चढा दिया।

अलाउद्दीन को जब इस घटना का पता चला तो उसने लौट कर दुर्ग पर कब्जा कर

लिया।



सिंह गमन तत्पुरूष वचन, कदली फले इक बार
त्रिया तेल हम्मीर हठ, चढ़े न दूजी बार


यह पंक्ति हम्मीर महाकाव्य में हम्मीर देव चौहान के बारे में लिखी गई है

इस पंक्ति का तात्पर्य है कि राजस्थान के रणथम्भौर साम्राज्य का महाराजा

हम्मीर देव चौहान सिंह के समान गुजरता था अर्थात उसने कभी छुपकर मुकाबला

नहीं किया वो शेर की भाँति राज करता था। तत्पुरूष वचन का आशय है कि राजा

हम्मीर देव दिया हुआ वचन निभाना अपना पहला कर्तव्य समझता था साथ ही जिस

प्रकार कदली का फल पेड़ को एक बार ही फलता है उसी प्रकार राजा हम्मीर को भी

क्रोध आने पर विजय प्राप्त होने पर ही क्रोध शांत होता था। त्रिया अर्थात

औरत को शादी के वक्त एक बार ही तेल चढ़ाने की रस्म होती है उसी प्रकार

हम्मीर भी किसी कार्य को बार बार दोहराने की बजाए एक ही बार में पूरा करना

महत्व पूर्ण समझता था अर्थात राजा हम्मीर देव चौहान का हठ उसकी निडरता का

प्रतीक रहा है। वो एकमात्र चौहान शासक था जिसने स्वतंत्र शासन को अपना

अभिमान समझा और हम्मीर देव चौहान की यही स्वाभिमानता महाराणा प्रताप को दिल से भा गई और प्रताप ने मुगल शासक अकबर की जीवन पर्यन्त अधिनता स्वीकार नहीं की।



राज्यारोहण

डॉक्टर

दशरथ ने माना है कि हम्मीर देव चौहान के पिता महाराजा जैत्रसिंह ने हम्मीर

का राज्यारोहण सन् 1282 में अपने ही जीवनकाल में कर दिया था। हम्मीर महाकाव्य के अनुसार हम्मीर ज्येष्ठ पुत्र नहीं था तथापि वह रविवार को माघ मास में विक्रम संवत 1339 को राजगद्दी पर बैठा था। वहीं प्रबंधकोष के अनुसार हम्मीर देव चौहान का राज्यारोहण विक्रम संवत् 1343 के करीब बताया गया है।



हम्मीर महाकाव्य एवं प्रबंधकोष दोनों महाकाव्यों की रचना हम्मीर देव के

समकालीन थी, दशरथ शर्मा ने हम्मीर देव का राज्याभिषेक विक्रम संवत् 1339 से

1343 के बीच ही स्वीकारा है और उनके पिता जैत्रसिंह ने हम्मीर देव को

वसीयत के रूप में रणथम्भौर साम्राज्य का विस्तृत साम्राज्य संभलाया था

लेकिन हम्मीर देव चौहान महत्वाकांक्षी शासक इस साम्राज्य से संतुष्ट नहीं

था। भारतवर्ष के ऐतिहासिक शासकों में हम्मीर देव चौहान को हठीराजाहठपतिरणपति एवं रणप्रदेश का चौहान नाम से पहचान बनाई। महाराजा हम्मीर देव चौहान के प्रिय घोड़े का नाम बादल था वही हम्मीर देव चौहान की रानी का नाम रंगदेवी और इनकी पुत्री का नाम पद्मला था जो कि हम्मीर देव को अत्यंत प्रिय थी। हम्मीर देव शैव धर्म का अनुयायी एवं भगवान शिव का परम भक्त था।



हम्मीरकालीन इतिहास के स्रोत

  1. बलबन तथा गाध शिलालेख
  2. न्यायचन्द्र सूरी द्वारा रचित हम्मीर महाकाव्य
  3. जोधराज शारंगधर द्वारा रचित हम्मीर रासो
  4. चन्द्रशेखर वाजपेयी द्वारा रचित हम्मीर हठ प्रबंध महाकाव्य
  5. मुस्लिम लेखक अमीर खुशरों की कृतियाँ
  6. जियाउद्दीन बरनी के ऐतिहासिक ग्रंथ
  7. हम्मीर देव द्वारा रचित श्रृंगारहार
  8. सूरतादेव द्वारा रचित हम्मीर पद्य काव्य
  9. विद्या पति द्वारा रचित रूप परीक्षा
  10. भट्टखेमा द्वारा रचित हम्मीर चौहान री उपलब्धियाँ
  11. बीरमादेव द्वारा रचित रणघाटिनगर काव्य
  12. सूरजन हाडा के समकालीन का सूरजनचरित्र आदि


हम्मीर महाकाव्य

मुख्य लेख : हम्मीर महाकाव्य


हम्मीर महाकाव्य के रचियता नयनचन्द्र सूरी

था, इस महाकाव्य में रणथम्भौर के महान शासक हम्मीर देव चौहान के साम्राज्य

का विस्तार से वर्णन किया गया है। हम्मीर महाकाव्य भारतीय इतिहास की एक

महान कृति है। नयनचन्द्र सूरी ने इस महाकाव्य में जैत्रसिंह व उससे पहले

वाले रणथम्भौर शासकों का भी सारांश रूप में वर्णित किया है। पद्य रूप में

लिखा यह महाकाव्य रणथम्भौर साम्राज्य के विभिन्न पहलुओं की जानकारी का

महत्वपूर्ण स्त्रौत है। यह महाकाव्य हम्मीर की वीरता के गान से ओतप्रोत है।

इस महाकाव्य में बताया गया है कि मालवा (वर्तमान गुजरात) के राजा भोज को

एवं गडमंडलगढ़ के राजा अर्जुन को पराजित करने वाला हम्मीर देव चौहान एक

महान राजपूत था और सही भी है कि महान व्यक्तियों के बारे में ही महाकाव्य

जैसे बड़े ग्रंथ लिखे जाते है। राजस्थान के दो महान शासक थे जिनके महाकाव्य

लिखे गए और वो थे पृथ्वीराज चौहान और हम्मीर देव चौहान।



हम्मीर रासो

इस महान ग्रंथ की रचना जोधाराज ने की थी, जोधाराज गौड़ ब्राह्मण के पुत्र थे। इन्होंने नीवगढ़ वर्तमान नीमराणा अलवर के राजा चन्द्रभान चौहान के अनुरोध पर हम्मीर रासौ

नामक प्रंबधकाव्य संवत 1875 में लिखा। रणथम्भौर के राजा हम्मीर देव चौहान

के विजय अभियानों से चन्द्रभान काफी प्रभावित थे। इस प्रंबधकाव्य में

रणथम्भौर के प्रसिद्ध शासक हम्मीर देव का चरित्र वीरगाथा काल की छप्पय

पद्धति पर वर्णन किया गया है। इस में बताया गया है कि हम्मीर देव चौहान ने

शरणागत की रक्षा के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया। राजा हम्मीर ने कई

बार दिल्ली शासक जलालुद्दीन खिलजी को पराजित किया और अलाउद्दीन खिलजी जैसे

शासक के दाँत खट्टे कर दिए। हम्मीर रासौ हम्मीर की वीरगाथाओं के साथ ओजस्वी

भाषा में बहुत अच्छा महाकाव्य है। इस महाकाव्य में बताया गया है कि

मुहम्मदशाह मंगोल दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी की बेगम से बेहद प्यार

करता था और उसका धन लूटकर के वो वहां से भाग गया था, जिसे अलाउद्दीन खिलजी

पकड़ना चाहता था। हम्मीर रासौ में अलाउद्दीन खिलजी की बेगम का नाम चिमना

बताया गया है। संवत 1902 में चन्द्रशेखर वाजपेयी ने हम्मीर हठ ग्रंथ लिखा

था। इसमें भी इस घटनाक्रम का जिक्र किया गया है। हम्मीर रासौ के अनुसार

रणथम्भौर साम्राज्य उज्जैन से लेकर मथुरा तक एवं मालवा (गुजरात) से लेकर

अर्बुदाचल तक हम्मीर देव बढ़ा दिया था। हम्मीर रासौ से ज्ञात होता है कि

हम्मीर देव उज्जैन को जीतकर महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में शिव की पूजा की

थी एवं अजमेर को जीतकर पुष्कर में शाही स्नान किया था। हम्मीर रासौ के कुछ

पद्य उद्यत है :-








कब हठ करे अलावदी, रणतभँवर गढ़ आहि।


कबै सेख सरनै रहै, बहुरयों महिम साहि।।


सूर सोच मन में करौ, पदवी लहौ न फेरि।


जो हठ छंडो राव तुम, उत न लजै अजमेरि।।


सरन राखि सेख न तजौ, तजौ सीस गढ़ देस।


रानी राव हम्मीर को, यह दीन्हौ उपदेस।।





राव धुँक गिरने लगत, तरू टूट और पाहर।


रण देसा रो केहरी, रणतभँवर रो नाहर।।


हठी बलि बल ना हट्यो, शरणागत को मान।


बादल पीठ लावण चढ़्यो, राव भृकुटि तान।।


गच्च गच्च भई खच्च खच्च, बजहिं राव तलवार।


खिलजी सैना उठत गिरै, सुण राव की ललकार।।







हम्मीर हठ प्रबंधकाव्य

मुख्य लेख : हम्मीर हठ प्रबंधकाव्य


हम्मीर हठ प्रंबधकाव्य के रचियता चन्द्रशेखर कवि थे। इनका जन्म संवत्

1855 में मुअज्जमाबाद जिलफतेहपुरहपुर]] मे हुआ था, इनके पिता मनीराम जी भी

एक अच्छे कवि थे। चन्द्रशेखर कुछ दिनों तक दरभंगा और 6 वर्ष तक जोधपुर नरेश महाराज मानसिंह के यहाँ रहे और अंत में यह पटियाला नरेश कर्मसिंह के यहाँ गए और जीवन भर पटियाला में ही रहे। इनका देहांत संवत् 1932 में हुआ था। इनका हम्मीर हठ प्रंबधकाव्य

हिन्दी के वीरगाथा काल की कालजयी अनमोल रचना मानी जाती है। हम्मीर हठ में

चन्द्रशेखर ने श्रेष्ठ प्रणाली का अनुसरण करते हुए वास्तविकता को दर्शाया

है, कवि ने हम्मीरशरणागतणागत के प्रति निष्ठावान होने का अच्छा खासा प्रभाव

इस ग्रंथ डालाडाला है। कवि ने हम्मीर के लिए लिखा है कि महाकाव्य उनके लिखे जाते हैं जो महान होते है और तिरिया तेल हम्मीर हठ, चढ़े न दूजी बार जैसे वाक्य महान व्यक्तियों की शोभा बढ़ाते हैं। चन्द्रशेखर कवि द्वारा लिखित कुछ पद्य जो हम्मीर हठ प्रंबधकाव्य में अंकित है-





उदै भानु पच्छिम प्रतच्छ, दिन चंद प्रकासै।


उलटि गंग बरू बहै, काम रति प्रीति बिवासै।।


तजै गौरि अरधांग, अचल धारू आसन चलै।


अचल पवन बरू होय, मेरू मंदर गिरि हल्लै।।


सुर तरू सुखाय लौमस मरै, मीर संक सब परिहरौ।


मुख बचन वीर हम्मीर को, बोलि न यह कबहुँ टरौ।।





आलम नेवाज सिरताज पातसाहन के,


गाज ते दराज कोप नजर तिहारी है।


जाके डर डिगत अडोल गढ़धारी डग,


मगत पहार औ डुलति महि सारी है।


रंक जैसो रहत ससंकित सुरेश भयो,


देस देसपति में अतंक अति भारी है।


भारी गढ़ धारी सदा जंग की तयारी,


धाक मानै ना तिहारी या हम्मीर हठ धारी है।





भागै मीरजादे पीरजादे औ अमीरजादे,


भागै खानजादे प्रान मरत बचाय कै।


भागै गज बाजि रथ पथ न संभारै, परेै,


गोलन पै गोल सूर सहिम सकाय कै।


भाग्यो सुलतान जान बचत न जानि बेगि,


बलित बितुंड पै विराजि बिलखाय कै।


जैसे लगे जंहल में ग्रीष्म की आगि,


चलै भागि मृग महिष बराह बिललाय कै।





थोरी थोरी बैसवारी नवल किसौरी सबै,


भोरी भोरी बातन बिहँसि मुख मोरती।


बसन बिभुषन बिराजत बिमल वर,


मदन मरोरनि तरिक तन तोरती।


प्यारै पातसाह के परम अनुराग रंगी,


चाय भरी चायल चपल दृग जोरती।


काम अबला सी कलाधार की कला सी,


चारू चंपक लता सी चपला सी चित चोरती।



हम्मीर देव के प्रमुख उद्देश्य

  1. चौहान साम्राज्य का विस्तार करके रणथम्भौर राज्य को सुदृढ़ बनाना
  2. मुगलो से हिन्दू धर्म की रक्षा करना
  3. साम्राज्य वादी महत्वाकांक्षा
  4. पृथ्वीराज चौहान सा साम्राज्य बनाना
  5. मुगल आक्रांताओं से देश की सुरक्षा करना


हम्मीर देव चौहान की प्रमुख उपलब्धियाँ

हम्मीर महाकाव्य से ज्ञात होता है कि हम्मीर देव ने धार के परमार वंश के शासक महाराजा भोज द्वितीय

को पराजित किया था इस विजय को डॉक्टर दशरथ शर्मा ने 1282 ईस्वी के लगभग

माना है। दशरथ शर्मा के अनुसार हम्मीर चौहान ने मांडलगढ़ उदयपुर के राजा जयसिम्हा

को पराजित करके बंदी बनाकर रणथम्भौर में रखा था, बाद हम्मीर देव ने उसे इस

बात पर छोड़ दिया कि वो रणथम्भौर साम्राज्य को हमेशा कर देता रहेगा और हर

संभव रणथम्भौर साम्राज्य के हित में ही कार्य करेगा। हम्मीर देव ने वर्तमान

माउंट आबू के राजा प्रतापसिंह को परास्त करने के बाद मार दिया था। हम्मीर देव की प्रमुख विजयों में शामिल है :-



  • भीमसर शासक अर्जुन पर विजय
  • मांडलगढ़ उदयपुर पर विजय
  • चितौड़गढ़ सहित प्रताप गढ़ पर विजय
  • मालवा प्रदेश पर विजय
  • आबू सिरोही के शासकों पर विजय
  • काठियावाड़ के साम्राज्य पर विजय
  • पुष्कर राज अजमेर पर विजय एवं पुष्कर झील में शाही स्नान करना
  • चम्पानगरी एवं त्रिभुवनगरी पर विजय
  • ग्वालियर श्योपुर साम्राज्य पर विजय
  • टोंक डिग्गी पर विजय
  • विराटनगर जयपुर एवं मत्स्य प्रदेश पर विजय
  • जलालुद्दीन खिलजी पर तीन बार विजय
  • उलगुखां, अल्पखां एवं नुसरत खां पर विजय
  • उज्जैन साम्राज्य पर विजय एवं महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का पुनर्निर्माण करवाकर क्षिप्रा नदी में महाकालेश्वर की पूजा करना।
  • मथुरा प्रदेश एवं जाट साम्राज्य पर विजय
  • झाइन और बूँदी तारागढ़ सहित सम्पूर्ण हाडौती क्षेत्र पर विजय


इस प्रकार डॉक्टर गोपीनाथ शर्मा ने हम्मीर देव चौहान को सौलह नृप मर्दानी एवं डॉ॰ दशरथ शर्मा ने सौलह विजय का कर्ण

कहकर पुकारा है। हम्मीर देव ने जहाँ पर आक्रमण किया वो ही साम्राज्य

रणथम्भौर साम्राज्य का हिस्सा बन गया और शायद इसी कारण हम्मीर देव चौहान को

भारत का हठी सम्राट कहाँ जाने लगा।



हम्मीर षष्ठा एकादशम् विजया: हठी रणप्रदेश: वसै,चौहान: मुकटा: बिरचिता सूरी सरणागतम् रणदेसा रमै:


हम्मीर देव चौहान का तिथिवार घटनाक्रम











































































































































































































ईस्वीघटनाक्रम
1282हम्मीर देव चौहान का राज्यारोहण
1286हम्मीर द्वारा गढ़मंडल पर विजय एवं बादल महल का निर्माण
1288हम्मीर चौहान द्वारा रणथम्भौर साम्राज्य का विस्तार
1288परमार शासक भीम द्वितीय पर हम्मीर की विजय एवं उज्जैन पर अधिकार,

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का पुनर्निर्माण और क्षिप्रा नदी में शिव की

महापूजा करना
1289टोंक करौली अर्थात त्रिभुवन गोपालपुर पर अधिकार
1290जलालुद्दीन खिलजी पर प्रथम विजय
1291जलालुद्दीन खिलजी पर हम्मीर देव की द्वितीय विजय
1292जलालुद्दीन खिलजी पर हम्मीर की तीसरी विजय, भीमसर शासक अर्जुन पर हम्मीर की विजय एवं उदयपुर मांडलगढ़ पर हम्मीर की विजय
1293चितौड़गढ़ प्रतापगढ़ पर हम्मीर की विजय एवं मालवा काठल प्रदेश के नरेशों पर हम्मीर की विजय
1294रणथम्भौर दुर्ग में हम्मीरदेव द्वारा रूद्राभिषेक करवाना
1295काठियावाड़ शासकों पर हम्मीर की विजय
1296पुष्कर अजमेर पर विजय एवं पुष्कर झील में हम्मीर द्वारा शाही स्नान

करना और ब्रह्माजी की उपासना करना, चम्पानगरी पर हम्मीर की विजय, ग्वालियर

श्योपुर एवं झाइन पर हम्मीर की विजय, कोटा बूँदी तारागढ़ एवं सम्पूर्ण

हाडौती क्षेत्र पर हम्मीर की विजय और विराटनगर अर्थात वर्तमान जयपुर पर

हम्मीर देव की विजय
1297भरतपुर के जाटों पर अधिकार
1298मथुरा पर हम्मीर देव का अधिकार
1299दिल्ली सल्तनत के आसपास हम्मीर देव द्वारा लूटपाट करवाना
1299-1300उलुगुखां एवं नुसरतखां पर हम्मीर देव का आक्रमण
1299-1300अलाउद्दीन खिलजी व हम्मीर देव की सेना में युद्ध और मुगगलों की पराजय
1300रणथम्भौर दुर्ग पर सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी द्वारा 9 माह 16 दिन का विश्व का सबसे बड़ा घेरा डालना
1300रणथम्भौर दुर्ग की कुदरती खाइयों में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा बारूद भरवाना
17 दिसम्बर 1300हम्मीर देव चौहान द्वारा महाकोटियजन यज्ञ का प्रारम्भ और देश विदेश के विद्वानों द्वारा गुप्त रास्तों से रणथम्भौर यज्ञ में आना
17 फरवरी 1301महाकोटियजन यज्ञ की पूर्णावहती
18 फरवरी 1301हम्मीर देव चौहान व अलाउद्दीन खिलजी में रणथम्भौर का भयानक युद्ध प्रारंभ
02 जुलाई 1301रणथम्भौर युद्ध में हम्मीर देव के बड़े भाई बीरमादेव को वीरगति प्राप्त
11 जुलाई 1301महाराजा हम्मीर देव चौहान द्वारा मुगलों पर चढ़ाई करना, हम्मीर देव के

सेनानायकों अर्थात रणमल एवं रतिपाल द्वारा रणथम्भौर दुर्ग के गुप्त रास्तों

से मुगलों को अवगत करवाना, हम्मीर देव चौहान द्वारा भगवान शिव को गर्दन

काटकर चढ़ाना, हम्मीर की राणी रंगदेवी द्वारा सैकड़ों दासियों के साथ आग

में कुदकर शाका करना।


हम्मीर देव कविता कोष




हम्मीर देव चौहान री गाथा





हठी था राजा हम्मीर


रणथम्भौर का


चौहान था बलवान था दृढ़ता में महान था


जैसे होता है बली


कानन घनघौर का


मुगलों का यम था, दुर्बलों का हम था


घाटियों का ताज था, दुश्मनों का बाज था


घड़ियों की चाल सा था साम्राज्य उसका


बस करो अब भोग लो


सीख लो कुछ रोक लो


नहीं सम्राट आने वाला है अब


रणथम्भौर का


हीरा थी माता दुध पिलाई थी चौहान को


रणक्षेत्र के उस साहसी भगवान को


जैत्रसिंह बाँपा रा हाथ था


भ्राता बीरमा रा साथ था


रोज देखा था पिता को लड़ाई में


भुजा फड़कती थी घाटिया धड़कती थी


इसी कारण तो विजय पाया था


हठी हठ मौर का


चौहान रणथम्भौर का


जीते थे प्रदेश अपनी भुजाओं के जौर पर


भीमसर पर चितौड़ पर मांडलगढ़ उदयपुर पर


मालवा आबू पर काठिया विराट पर


पुष्कर अजमेर पर श्यौपर उज्जैन पर


मथुरा जाटव पर झाइन गढ़मंडल पर


महान था


राजपूताना री जुबान था


हीरा का लाल था


रणथम्भौर का


चम्पानगरी टोंक पर तारागढ़ बूँदी पर


कोटा मेवाड़ पर मुगल सेना सबरी पर


जलालुद्दीन पर नुसरत अलाउद्दीन पर


बयाना उलगु पर विजय बनाई थी


उठाई कौर का


सवाई माधोपुर रणथम्भौर का


जानते थे उसके हठ को सभी


वचनी था बात का वो धनी था


भागे हुए मंगोलो को दी थीं शरण उसने


जैसे दी थी चित्रकेतु को मां अंजनी ने


अंत तक अड़ा रहा, हिमालय सा खड़ा रहा


करता था दान पुण्य राजा


रणथम्भौर का


रक्षक भी भक्षक थे रणमल रतिपाल भी


सुरजनशाह और प्रधानमंत्री धर्मपाल भी


मुगलों से घबराकर दिखा दी औकात अपनी दासों ने


क्या करता हठी राजा भेद के आगे


लाखों मुगल सेना थी


ना घबराया जरा भी


चौहान था


रणथम्भौर का


लड़ता रहा तान से, मुगलों पर शान से


ना झुका था ना ही रूका था


राम सा रावण पर खड़ा था


अंतिम में सम्मान से, वीरों सी आन से


मुगलों को बताया था, मुगलों को चखाया था


प्रसाद अपने जौर का


शिव भक्त रणथम्भौर का


प्राणों को छोडा था दुश्मन को मोड़ा था


जैसे तोड़ा था घमंड कृष्ण ने अर्जुन का


ताकत का नाहर था, चौहानों का सार था


अंतिम था चौहान वो


राजपूताना भू-छौर का


सम्राट रणथम्भौर का


कौन कहता है कि राजा हारा था


अजय था वो चौहान तो, सपूत भारत महान तो


सत् सत् नमन् उस वीर को


आदर्श और प्रेरक था प्रताप का, यौद्दो का आपका


भारत का ताप था, हठी धरा का जाप था


महान था हम्मीर राजा रणप्रदेश


रणथम्भौर का


रंगदेवी थी रानी हम्मीर बलवान की


महान शासक सवाई माधोपुर चौहान की


प्रथम था शाका यही इस संसार का


रणथम्भौर नरसंहार का


उस चौहान की याद में, ठाढ़ा है फरियाद में


तान के खड़ा है दुर्ग सीना अपना


आज भी दुर्ग


सवाई माधोपुर रणथम्भौर का








शरणागत रक्षा में उठायो तलवार तू





हठधारी गढ़धारी धाक बलधारी थारी,


मुगला की सेन म मचायौ हाहाकार तू।


शरणागत मंगोला कू शरण तिहारी वीर,


चौहाणा री रीति कू पूजायो सणसार तू।


हठ का हठीर रण घाट्या की लकीर भयो,


शरणागत रक्षा में उठायो तलवार तू


जलाद्दीन अलाद्दीन दैखि घबरावै तौहि,


जय रजपूताना चौहान हठ धार तू।






विद्वानों की दृष्टि में हम्मीर देव चौहान



हम्मीर महाराजा ब्राह्मणों का आदर करता था तथा भारतीय दर्शन, विद्यालयों

तथा जैन संस्थाओं का संरक्षक एवं साहित्यों का महान प्रेमी था।



सिंह गमन तत्पुरूष वचन, कदली फले इक बार
त्रिया तेल हम्मीर हठ, चढ़े न दूजी बार - न्यायचन्द्र सूरी


• महाराजा हम्मीर देव चौहान भारतीय राजपूताना के उन साहसी सपूतो में

से था जो अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता को मुस्लिम आक्रांताओं से बचाने में

मर मिटना अपना कर्तव्य समझता था और चौहान कुल की परम्परा भी। - डॉ॰ किशोरी लाल



• महाराजा हम्मीर ने चौहानों के डूबे हुए सूर्य को रणथम्भौर में खूब चमकीला बना दिया था। - इतिहासकार नयन भट्ट



• चौहानों में ऐसा शासक हम्मीर देव चौहान ही था जिसने महाकोटियजन यज्ञ

का महान आयोजन कर देश विदेश से महान महान राजाओं व विद्वानों को आमंत्रित

किया एवं अपने हठ के कारण इस शासक को भारतीय इतिहास में हठी महाराजा के नाम

से अंकित किया गया। - डॉ॰ गोपीनाथ शर्मा



• हम्मीर देव के बराबर विपदाओं का सामना करना हर किसी के वश में नहीं

था, लेकिन इतनी विकट परिस्थितियों में भी वो अपनी धैर्यता, वीरता के कारण

भारतीय उपमहाद्वीप का सिंह बन बैठा। - डॉ॰ दशरथ शर्मा



• सिंह का शासन खत्म हो गया, इन रण की घाटियों में आज विश्वासघात के कारण अंतत: कुफ्र का गढ़ इस्लाम का सदन हो गया। - अमीर खुसरो




सम्बन्धित प्रश्न



Comments



नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें Culture Current affairs International Relations Security and Defence Social Issues English Antonyms English Language English Related Words English Vocabulary Ethics and Values Geography Geography - india Geography -physical Geography-world River Gk GK in Hindi (Samanya Gyan) Hindi language History History - ancient History - medieval History - modern History-world Age Aptitude- Ratio Aptitude-hindi Aptitude-Number System Aptitude-speed and distance Aptitude-Time and works Area Art and Culture Average Decimal Geometry Interest L.C.M.and H.C.F Mixture Number systems Partnership Percentage Pipe and Tanki Profit and loss Ratio Series Simplification Time and distance Train Trigonometry Volume Work and time Biology Chemistry Science Science and Technology Chattishgarh Delhi Gujarat Haryana Jharkhand Jharkhand GK Madhya Pradesh Maharashtra Rajasthan States Uttar Pradesh Uttarakhand Bihar Computer Knowledge Economy Indian culture Physics Polity

Labels: , , , , ,
अपना सवाल पूछेंं या जवाब दें।






Register to Comment