आनुपातिक प्रतिनिधान प्रणाली के दो मुख्य रूप हैं, अर्थात् सूचीप्रणाली तथा एकल संक्रमणीय मतप्रणाली। सूचीप्रणाली कुछ हेर फेर के साथ यूरोप के अधिकतर देशों में प्रचलित है। सामान्यत: इस प्रणाली के अंतर्गत विभिन्न राजनीतिक दलों की सूचियों को उनके प्राप्त किए गए मतों के अनुसार सदस्य दिए जाते हैं। इस प्रणाली की व्याख्या सबसे उत्तम रूप से जर्मनी के 1930 के वाइमार विधान के अंतर्गत जर्मन ससंद् के निम्न सदन रीश्टाग की निर्वाचन पद्धति से की जा सकती है जिसे बाडेन आयोजना के नाम से संबोधित किया जाता है। इस आयोजना के अनुसार रीश्टाग की कुल संख्या नियत नहीं थी वरन् निर्वाचन में डाले गए मतों की कुल संख्या के अनुसार घटती-बढ़ती रहती थी। प्रत्येक 60,000 मतों पर, जिसे कोटा कहते थे, एक प्रतिनिधि चुना जाता था। जर्मनी को 35 चुनावक्षेत्रों में बाँट दिया गया था और इनको मिलाकर 17 चुनाव भागों में। प्रत्येक राजनीतिक दल को तीन प्रकार की सूचियाँ प्रस्तुत करने का अधिकार था : स्थानीय सूची, प्रदेशीय सूची तथा राष्ट्रीय सूची। प्रत्येक मतदाता अपना मत प्रतिनिधि को न देकर किसी न किसी राजनीतिक दल को देता था। प्रत्येक निर्वाचन-क्षेत्र में मतगणना के उपरांत प्रत्येक राजनीतिक दल को स्थानीय सूची के ऊपर प्रथम उम्मीदवार से उतने प्रतिनिधि दे दिए जाते थे जितने कुल प्राप्त मतों के अनुसार कोटा के आधार पर मिलें; तदुपरांत प्रत्येक प्रदेश में स्थानीय क्षेत्रों के शेष मतों को जोड़कर फिर प्रत्येक दल को प्रदेशीय सूची से विशेष सदस्य दे दिए जाते है और इसी प्रकार सारे प्रदेशीय क्षेत्रों में शेष मतों को फिर जोड़कर राष्ट्रसूची से कोटा के अनुसार विशेष सदस्य और इसपर भी यदि शेष मत रह जाएँ तो 30,000 मतों से अधिक पर एक विशेष सदस्य उस दल को और मिल जाता था। इस प्रकार बाडेनप्रणाली ने आनुपातिक प्रतिनिधान के इस सिद्धांत को कि "कोई भी मत व्यर्थ न जाना चाहिए" का तार्किक निष्कर्ष तक पालन किया। इस प्रणाली की सबसे बड़ी कमी यह है कि मतदाताओं को प्रतिनिधियों के चुनाव में व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं होती।
एकल संक्रमणीय मत या हेयर प्रणाली के अनुसार प्रतिनिधियों का निर्वाचन सामान्य सूची द्वारा होता है, निर्वाचन के समय प्रत्येक मतदाता, उम्मीदवारों के नाम के आगे अपनी रुचि के अनुसार 1, 2, 3, 4 इत्यादि संख्या लिख देता है। गणना से प्रथम चरण कोटा का निष्कर्ष करना है। कोटा को प्राप्त करने के लिए डाले गए मतों की कुल संख्या को निर्वाचनक्षेत्र के नियत सदस्यों की संख्या में एक जोड़कर, भाग करके, तदुपरांत परिणामफल में एक जोड़ दिया जाता है, अर्थात् :
सबसे पहले उन उम्मीदवारों को निर्वाचित घोषित किया जाता है जो कोटा प्राप्त कर लेते हैं। यदि इससे समस्त स्थानों की पूर्ति नहीं होती तब पूर्वनिर्वाचित सदस्यों के कोटा से अधिक मतों को उनके मतदाताओं में उनकी रुचि के अनुसार बाँट दिया जाता है। यदि इसपर भी स्थानों की पूर्ति नहीं होती, तब कम से कम मत पाए हुए उम्मीदवार के मतों को जब तक बाँटते रहते हैं जब तक कुल स्थानों की पूर्ति नहीं हो जाती। अनुभव से प्रतीत होता है कि एकल संक्रमणीय प्रणाली मतदाताओं को निर्वाचन में स्वतंत्रता तथा प्रत्येक समूह को संख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व प्रदान करती है। इसकी यह भी विशेषता है कि राजनीतिक दल निर्वाचन में अनुचित लाभ नहीं उठा सकते, परंतु आलोचकों का कहना है कि यह निर्वाचन सामान्य मतदाताओं की बुद्धि से परे है।
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