Maharanna Kumbha Ka Itihas महाराणा कुम्भा का इतिहास

महाराणा कुम्भा का इतिहास



Pradeep Chawla on 12-05-2019



राणा कुम्भा

































कीर्ति स्तम्भ


राणा कुम्भा मेवाड़

के एक महान् योद्धा व सफल शासक थे। 1418 ई. में लक्खासिंह की मृत्यु के

बाद उसका पुत्र मोकल मेवाड़ का राजा हुआ, किन्तु 1431 ई. में उसकी मृत्यु

हो गई और उसका उत्तराधिकारी राणा कुम्भा हुआ। राणा कुम्भा स्थापत्य का

बहुत अधिक शौकीन था। मेवाड़ में निर्मित 84 क़िलों में से 32 क़िलों का

निर्माण उसने करवाया था। इसके अतिरिक्त और भी बहुत सी इमारतें तथा मन्दिरों

आदि का निर्माण भी उसने करवाया। 1473 ई. में राणा कुम्भा के पुत्र उदयसिंह

ने उसकी हत्या कर दी।









महान शासक



राणा कुम्भा ने अपने प्रबल प्रतिद्वन्द्वी मालवा के शासक हुसंगशाह को परास्त कर 1448 ई. में चित्तौड़ में एक ‘कीर्ति स्तम्भ’

की स्थापना की। स्थापत्य कला के क्षेत्र में उसकी अन्य उपलब्धियों में

मेवाड़ में निर्मित 84 क़िलों में से 32 क़िले हैं, जिसे राणा कुम्भा ने

बनवाया था। मध्यकालीन भारत के शासकों में राणा कुम्भा कि गिनती एक महान् शासक के रूप में होती थी।



साहित्य प्रेमी



वह स्वयं एक अच्छा विद्वान् तथा वेद, स्मृति, मीमांसा, उपनिषद, व्याकरण, राजनीति और साहित्य का ज्ञाता था। कुम्भा ने चार स्थानीय भाषाओं में चार नाटकों की रचना की तथा जयदेव कृत गीत गोविन्द पर रसिक प्रिया नामक टीका भी लिखी।



निर्माण कार्य



राणा कुम्भा ने कुम्भलगढ़

के नवीन नगर एवं क़िलों में अनेक शानदार इमारतें बनवायीं। अत्री और

महेश को कुम्भा ने अपने दरबार में संरक्षण प्रदान किया, जिन्होंने

प्रसिद्ध विजय स्तम्भ की रचना की थी। राणा कुम्भा ने बसन्तपुर नामक स्थान

को पुनः आबाद किया। अचलगढ़, कुम्भलगढ़, सास बहू का मन्दिर तथा सूर्य मन्दिर आदि का भी निर्माण भी उसने करवाया।







मृत्यु तथा उत्तराधिकारी



1473 ई. में उसकी हत्या उसके पुत्र उदयसिंह ने कर दी। राजपूत सरदारों के

विरोध के कारण उदयसिंह अधिक दिनों तक सत्ता-सुख नहीं भोग सका। उसके बाद

उसका छोटा भाई राजमल (शासनकाल 1473 से 1509 ई.) गद्दी पर बैठा। 36 वर्ष के

सफल शासन काल के बाद 1509 ई. में उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र राणा संग्राम सिंह या राणा साँगा (शासनकाल 1509 से 1528 ई.) मेवाड़ की गद्दी पर बैठा। उसने अपने शासन काल में दिल्ली, मालवा, गुजरात के विरुद्ध अभियान किया। 1527 ई. में खानवा के युद्ध में वह मुग़ल बादशाह बाबर द्वारा पराजित कर दिया गया। इसके बाद शक्तिशाली शासन के अभाव में जहाँगीर ने इसे मुग़ल साम्राज्य के अधीन कर लिया।




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