'साइमन कमीशन' के सभी सदस्य अंग्रेज़ होने के कारण कांग्रेसियों ने इसे 'श्वेत कमीशन' कहा। 8 नवम्बर, 1927 को इस आयोग की स्थापना की घोषणा हुई। इस आयोग का कार्य इस बात की सिफ़ारिश करना था कि, क्या भारत इस योग्य हो गया है कि, यहाँ के लोगों को और संवैधानिक अधिकार दिये जाएँ और यदि दिये जाएँ तो उसका स्वरूप क्या हो? इस आयोग में किसी भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया, जिसके कारण भारत में इस आयोग का तीव्र विरोध हुआ। 'साइमन कमीशन' के विरोध के दूसरे कारण की व्याख्या करते हुए 1927 ई. के मद्रास कांग्रेस के अधिवेशन के अध्यक्ष श्री एम.एन. अंसारी ने कहा कि "भारतीय जनता का यह अधिकार है कि वह सभी सम्बद्ध गुटों का एक गोलमेज सम्मेलन या संसद का सम्मेलन बुला करके अपने संविधान का निर्णय कर सके। साइमन आयोग की नियुक्ति द्वारा निश्चय ही उस दावे को नकार दिया गया है।"
कांग्रेस के 1927 के मद्रास अधिवेशन में 'साइमन आयोग' के पूर्ण बहिष्कार का निर्णय लिया गया। इस कमीशन से भारतीयों का आत्म-सम्मान भी आहत हुआ, जिससे तेज़ बहादुर सप्रू बहुत प्रभावित हुए। 3 फ़रवरी, 1928 ई. को जब आयोग के सदस्य बम्बई (वर्तमान मुम्बई) पहुँचे तो इसके ख़िलाफ़ एक अभूतपूर्व हड़ताल का आयोजन किया गया। काले झण्डे एवं 'साइमन वापस जाओ' के नारे लगाये गए।
आयोग के विरोध के कारण लखनऊ में जवाहर लाल नेहरू, गोविन्द बल्लभ पंत आदि ने लाठियाँ खाईं। लाहौर में लाठी की गहरी चोट के कारण लाला लाजपत राय की 1928 ई. में मृत्यु हो गई। मरने से पहले लाला लाजपत राय का यह कथन ऐतिहासिक सिद्ध हुआ कि "मेरे ऊपर जो लाठियों के प्रहार किये गए हैं, वही एक दिन ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत (शवपेटी) की आख़िरी कील साबित होगा।" भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अतिरिक्त अन्य दलों ने भी 'साइमन कमीशन' का विरोध किया। मद्रास की जस्टिस पार्टी और पंजाब की यूनियनिस्ट पार्टी तथा मुस्लिम लीग के शफ़ी गुट को छोड़कर लगभग सभी प्रतिष्ठित राजनीतिक दलों ने कमीशन का बहिष्कार किया।
'साइमन कमीशन ने 27 मई', 1930 ई. को अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसकी सिफ़ारिशें इस प्रकार हैं-
'साइमन कमीशन की नियुक्ति से' भारतीयों दलों में व्याप्त आपसी फूट एवं मतभेद की स्थिति से उबरने एवं राष्ट्रीय आन्दोलन को उत्साहित करने में सहयोग मिला। यद्यपि इस आयोग की भारत में कड़ी आलोचना की गई, फिर भी उसकी अनेक बातों को 1935 ई. के 'भारत सरकार अधिनियम' में स्वीकार किया गया। सर शिवस्वामी अय्यर ने आयोग की सिफ़ारिशों को 'रद्दी की टोकरी में फैंकने के लायक़ बताया।'
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