Bharat Me FM Radio भारत में एफएम रेडियो

भारत में एफएम रेडियो



GkExams on 26-12-2018

रेडियो शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द रेडियस से हुई है। रेडियस का अर्थ है एक संकीर्ण किरण या प्रकाश स्तंभ जो आकाश में इलैक्ट्रो मैग्नेटिक तरंगों द्वारा फैलती है। ये विद्युत चुंबकीय तरंगे संकेतों के रूप में सूचनाओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने का काम करती हैं। पहली बार जर्मन भौतिक शास्त्री हेनरिच हर्ट्स ने 1886 में रेडियो तरंगों का सफल प्रदर्शन किया। इसके बाद इटली के गुगलियो मार्कोनी ने रेडियो तरंगों के जरिये सफल संचार करने में सफलता अर्जित की।


रेडियो प्रसारण का माध्यम है। इसलिए इसके जरिये सूचनाएं कुछ ही सैकिंडों में चारों तरफ पहुंचाई जा सकती हैं। इस प्रकार रेडियो को तात्कालिकता का माध्यम कहना उचित होगा। प्रसारण ट्रांसमीटर से किया जाता है। ट्रांसमिटर करने का अर्थ होता है भेजने वाला। ट्रांसमीटर रिकोर्डिड कार्यक्रम को रेडियो तरंगों (विद्युत चुंबकीय तरंगों) में बदलकर चारों दिशाओं में प्रसारित करता है। ट्रांसमीटरों की शक्ति 1, 10, 50, 100, 500 और 1000 किलोवाट तक हो सकती है। ट्रांसमीटर में लगे क्रिस्टल आसिलेटर स्पंदन से निर्धारित फ्रीक्वेंसी पैदा करते हैं। इन विद्युत संकेतों को और अधिक ताकतवर बनाने के लिए इन्हें एक अन्य तरंग, जिसे केरियर वेव कहते हैं, पर आरोपित किया जाता है। प्रसारित तरंगे हमारे रेडियो सेट द्वारा ग्रहण कर ली जाती हैं और फिर रेडियो में लगे यंत्र उन विद्युत चुंबकीय तरंगों को दोबारा आवाज में बदल कर हमें स्पीकर के माध्यम से सुना देता है।


रेडियो प्रसारण तकनीक
हमारे देश में तकनीकी रूप से तीन प्रकार के रेडियो प्रसारण केन्द्र काम कर रहे हैं- मीडियम वेव, शोर्ट वेव और एम.एम. प्रसारण केन्द्र। इन प्रसारणों की तरंगों की फ्रीक्वेंसी अलग-अलग होती है। जैसा कि आप जानते हैं कि प्रत्येक रेडियो सेट पर चैनल टयून करने के लिए विभिन्न प्रकार की फ्रीक्वेंसी का वर्णन दिया जाता है। मीडियम वेव रेडियो स्टेशन निश्चित लेकिन वृहद भूभाग तक ही किया जाता है। उदाहरण स्वरूप विविध भारती मीडियम वेव पर प्रसारित किया जाता है। जबकि शोर्ट वेव के जरिये प्रसारण क्षेत्रीय स्तर पर किया जा सकता है और एफ.एम. प्रसारण की पहुंच केवल 50-70 किलोमीटर तक ही साथ सुथरी रहती है। आकाशवाणी और अन्य एफ.एम. चैनल ऊंचे टावरों की मदद से प्रसारित किये जाते हैं जबकि वल्र्डस्पेस जैसी कंपनियां उपग्रह के जरिये भी पूरी दुनिया में रेडियो चैनल प्रसारित करती हैं। लेकिन इन चैनलों को सुनने के लिए विशेष सैटलाइट एंटिना की आवश्यकता होती है।


किसी भी रेडियो चैनल में सबसे पहले कार्यक्रमों का निर्माण किया जाता है और उसके बाद उनका प्रसारण। लेकिन कुछ कार्यक्रम जैसे रेडियो मे उद्घोषणाएं और समाचार लाइव प्रसारित किये जाते हैं। रेडियो कार्यक्रमों का निर्माण रेडियो स्टूडियो में किया जाता है जिसमें उपलब्ध माइक्रोफोन पर उद्घोषक या कलाकार अपनी प्रस्तुति देता है। स्टूडियो से सटा हुआ एक छोटा कमरा रिकोर्डिंग कक्ष होता है। पारदर्शी शीशे से स्टूडियो और नियंत्रण कक्ष जुडे़ होते हैं। रिकोर्डिंग कक्ष से पूरी गतिविधि का संचालन भी किया जाता है। रेडियो कार्यक्रम निर्माण में माइक्रोफोन, टेप रिकोर्टर, सीडी प्लेयर, ध्वनि संपादन मशीन इत्यादि का उपयोग किया जाता है।


रेडियो की क्षमताएं एवं सीमाएं
रेडियो और टेलीविजन को अक्सर हम इलेक्ट्रोनिक मीडिया के रूप में भी जानते हैं। यहां इलेक्ट्रोनिक एक तकनीक का नाम है और मीडिया का अर्थ है माध्यम। वैसे भी अंग्रेजी शब्द मीडिया मीडियम का बहुवचन ही है। माध्यम का मतलब है जरिया यानी जिस जरिये से हम कोई सूचना, संदेश और समाचार दूसरों तक पहुंचा सकें। जब हम किसी माध्यम को जन माध्यम कहते हैं तो इसका अर्थ होता है कि उस माध्यम के जरिये एक साथ ऐसे बड़े समुदाय तक सूचना पहुंचाना संभव है जिसमें लोग ना केवल अलग-अलग सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि वाले हैं बल्कि वे एक स्थान पर मौजूद ना होकर अलग-अलग छितरे हुए स्थानों पर रहते हैं। जन माध्यमों की एक विशेषता ये भी होती है कि ये आधुनिक तकनीक की मदद से तीव्र गति से एक जैसा संदेश सब लोगों तक पहुंचा देते हैं।


वैसे तो जनमाध्यमों में समाचार पत्र सबसे पहले छपने आरंभ हुए। अखबारों का समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़ा लेकिन रेडियो के आगमन के बाद एक नये युग का सूत्रपात हुआ और इसका कारण था रेडियो का सस्ता, सुलभ, सहज और सुविधाजनक होना। शुरूआती रेडियो थोडे़ महंगे जरूर थे लेकिन ट्रांजिस्टर क्रांति ने रेडियो को इतना सस्ता बना दिया कि आजकल पचास रूपये में भी एक रेडियो बाजार में उपलब्ध है। जबकि समाचार पत्र का मासिक खर्च कम से कम साठ-सत्तर रूपये तो आता ही है। जबकि टेलीविजन के लिए बिजली का होना जरूरी है। लेकिन रेडियो सस्ती बैटरी से भी चल जाता है और वहनीय यानी पोर्टबल होने के कारण इसे कहीं भी आसानी से ले जाया जा सकता है। खेतों में किसानों के पास, सड़क किनारे कामगारों के बगल में, सब्जी बेचते रेहड़ी वाले के पास या फिर साइकिल चलाते हुए एक हाथ में रेडियो पकड़े आम लोगों के दृश्य दरअसल रेडियो और उनके रिश्ते को सही मायने में दर्शाते हैं। असल में, यही लचीलापन रेडियो को ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में लोकप्रिय बनाता है जबकि टेलीविजन आज भी मुख्य रूप से शहरी माध्यम बना हुआ है।


सस्ता होने के साथ-साथ रेडियो की कई ऐसी खूबियां भी हैं जो इसे अन्य जनसंचार माध्यमों की तुलना में अधिक लोकप्रिय एवं सशक्त बनाती हैं। जैसे रेडियो सुनने के लिए पढ़ा लिखा होने की आवश्यकता नहीं है। जबकि अखबार के लिए साक्षरता पहली शर्त है। भारत जैसे देश में जहां आज भी लगभग 35 फीसदी आबादी अनपढ़ है ये तथ्य काफी महत्वपूर्ण है। इसके अलावा दृष्टिहीन लोगों के लिए तो रेडियो एक संगी-साथी और मार्गदर्शक का काम करता है। रेडियो हम काम करते-करते भी सुन सकते हैं। ये टेलीविजन देखने वालों की तरह अपने श्रोताओं को बांधता नहीं है। यही कारण है कि अनेक घरों और दुकानों में दिन भर रेडियो चलता रहता है जबकि टेलीविजन को इतनी देर तक देखते रहना मुश्किल है।


दरअसल, रेडियो मूलतः बोलचाल का माध्यम है। श्रव्य माध्यम होने के नाते रेडियो सुनते समय निरंतर ये अहसास होता है कि जैसे कोई आपसे बातचीत कर रहा है। रेडियो का एंकर बहुत कम समय में ही श्रोताओं का एक दोस्त बन जाता है। इसके अलावा जब कोई आवाज या विषय हम रेडियो पर सुनते हैं तो स्वाभाविक रूप से कल्पना के आधार पर मन में एक तस्वीर बनाने लगते हैं। इसलिए कहा जाता है कि रेडियो न केवल सूचनाएं प्रसारित करता है बल्कि श्रोताओं की कल्पनाशक्ति को भी पंख लगाता है। रेडियो कम खर्चीला और सशक्त जनसंचार माध्यम है जो ना केवल मनोरंजन करता है बल्कि जागरूक भी बनाता है। नब्बे के दशक में टेलीविजन के विस्तार से रेडियो की लोकप्रियता पर कुछ असर जरूर पड़ा था लेकिन पिछले कुछ सालों के दौरान एफ.एम. क्रांति ने देश में रेडियो का पुनर्जन्म कर दिया है। विशेषकर शहरों में एफ.एम. चैनलों पर रोचक संगीत और सूचनामूलक कार्यक्रमों को लोग खूब सुन रहे हैं।


रेडियो कार्यक्रमों का स्वरूप व रूपरेखा
यूं तो रेडियो पर आप अनेक प्रकार के कार्यक्रम सुनते होंगे। क्या आपने कभी इन कार्यक्रमों को वर्गीकृत करने के बारे में सोचा है। मुख्य तौर पर हम लोग रेडियो पर समाचार और गाने सुनने वाले कार्यक्रमों के बारे में अधिक जानते हैं। लेकिन रेडियो पर प्रसारित कार्यक्रमों की अनेक विधाएं होती हैं और उनके अलग-अलग नाम होते हैं। सबसे पहले समाचारों की बात करें। इसमें एक समाचार वाचक या वाचिका विभिन्न समाचारों को सिलसिलेवार ढंग से सुनाती जाती है। बीच में कभी कभार खबर से संबंधी किसी व्यक्ति का कथन या फिर दूर बैठे किसी संवाददाता की फोन पर रिपोर्ट को भी पेश किया जाता है।


रेडियो वार्ता में एंकर किसी विषय पर एक आलेख पढ़ता है। वार्ता अक्सर गंभीर होने के कारण इसकी अवधि पांच से सात मिनट की रखी जाती है। भेंटवार्ता या साक्षात्कार में किसी भी जानी मानी हस्ती या विशेषज्ञ से बातचीत की जाती है और एक विषय पर श्रोताओं को जानकारी उपलब्ध कराई जाती है। रेडियो नाटक में केवल पात्रों द्वारा संवाद और ध्वनि प्रभावों की मदद से कहानी पेश की जाती है। रेडियो फीचर में किसी विषय पर स्थलीय रिकोर्डिंग की मदद से एक रोचक प्रस्तुति की जाती है। इसमें संगीत और ध्वनिप्रभावों की मदद भी ली जाती है। चैट शो में एंकर किसी हल्के फुल्के मुद्दे पर स्टुडियो में विषय विशेषज्ञों को बुलाकर चर्चा विमर्श करता है। खेलों और किसी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों का आंखों देखा हाल रेडियो पर अक्सर सुनाया जाता है। इसमें एंकर घटना स्थल पर स्वयं मौजूद होता है और जैसे जैसे घटना घटती है वो उसको तीव्र गति से प्रभावशाली अंदाज में अपने श्रोताओं को बताता जाता है। ये सीधा प्रसारण होता है।


आजकल फोन-इन कार्यक्रम को काफी पसंद किया जा रहा है। इसमें रेडियो एंकर स्टुडियो में बैठकर किसी विशेषज्ञ से बातचीत करता है और ठीक उसी समय श्रोता फोन करके अपने सवाल भी विशेषज्ञ से पूछ सकते हैं। अनेक फोन-इन कार्यक्रमों में श्रोता अपनी फरमाइश बताते हैं और एंकर उसी समय उन्हें उनकी पसंद के गाने भी सुनाते हैं। ये काफी इंटरएक्टिव कार्यक्रम होता है। इन दिनों एफ.एम. चैनल कार्यक्रम निर्माण में नित नये प्रयोग कर रहे हैं। अनेक परंपरागत कार्यक्रमों को मिलाकर पेश करते हैं। इन चैनलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती कार्यक्रम को रोचक बनाना होती है ताकि श्रोताओं को बांधा रखा जा सके। इसके लिए ये चैनल लगभग हरेक कार्यक्रम में संगीत को मिला रहे हैं। इसके अलावा चुटकले, शेरो-शायरी और तुकबंदी का भी खूब इस्तेमाल किया जाने लगा है।


रेडियो-जनमाध्यम के रूप में उपयोग
रेडियो एक असरदार माध्यम है और समाज पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है इसलिए ये और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है कि श्रोता इनकी प्रकृति और इनके पीछे सक्रिय बाजार की शक्तियों के बारे में भली-भांति जाने। जागरूकता के अभाव में आम नागरिक रेडियो एवं टेलीविजन में प्रसारित सामग्री को निष्क्रियता के साथ ग्रहण करते रहेंगे। जबकि कुछ लोग इन माध्यमों के खिलाफ ये कहकर आधारहीन निंदा में मशगूल रहते हैं- ‘इन चैनलों ने तो सब कुछ का सत्यानाश कर दिया’।


दरअसल, इस प्रकार की आलोचना तब तक बेकार ही साबित होती है जब तक कि हम इन माध्यमों के उचित उपयोग के बारे में लोगों को जागरूक नहीं करते। अधिकांश लोग रेडियो को केवल मनोरंजन का साधन मानते हैं और मनोरंजन भी फालतू किस्म का। यही कारण है कि आज भी रेडियो पर गाने सुनने के लिए युवाओं को बड़ों की डांट सुननी पड़ती है। रेडियो को आसानी से पढ़ाई-लिखाई का विरोधी मान लिया जाता है। लेकिन सच तो ये है कि रेडियो मनोरंजन के साथ-साथ सूचना और शिक्षा का भी बहुत सशक्त माध्यम है। आज रेडियो चैनल अलग-अलग विषयों पर केन्द्रित रोचक व जानकारीप्रद कार्यक्रम पेश कर रहे हैं। शायद हम भूल गये हैं कि भारत में रेडियो की शुरूआत शिक्षा और सूचना के प्रसार के लिए ही की गयी थी।


आकाशवाणी का विकास
माना जाता है कि दुनिया में पहला नियमित रेडियो प्रसारण अमेरिका के पिट्सबर्ग में सन् 1920 में किया गया था। इंग्लैंड में मारकोनी की कंपनी ने 23 फरवरी 1920 में चेम्सफोर्ड में पहली बार सफल प्रसारण किया। ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कंपनी ने नवम्बर 1922 में काम करना शुरू कर दिया। भारत में भी रेडियो प्रसारण इसी काल में आरंभ हो गया। अगस्त 1921 में द टाइम्स ऑफ इंडिया ने डाक एवं टेलीग्राफ विभाग के साथ मिलकर अपने बॉम्बे स्थित कार्यालय से पहला रेडियो प्रसारण किया। गवर्नर ने पहले प्रसारण का आनंद 175 किलोमीटर दूर पूना स्थित अपने कार्यालय में लिया। जल्दी ही इसके बाद कलकत्ता, मद्रास और बॉम्बे में रेडियो क्लब गठित किये गये। आरंभ में ब्रिटिश सरकार रेडियो को लेकर काफी उलझन में रही। उसे आशंका थी कि कहीं रेडियो का उपयोग आजादी आंदोलन के नेता जनता में अपनी बात पहुंचाने के लिए ना करने लगे वहीं सरकार स्वयं भी रेडियो के माध्यम से भारतीयों को अपने प्रभाव में रखना चाहती थी। आरंभ में इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी ने रेडियो प्रसारण किया लेकिन इस कंपनी के घाटे में चले जाने के बाद रेडियो प्रसारण का काम ब्रिटिश सरकार ने अपने हाथों में ले लिया।


आजादी के समय भारत में आकाशवाणी के केवल छह स्टेशन थे। इनके अलावा रजवाड़ों में भी कुल पांच रेडियो स्टेशन काम कर रहे थे। रेडियो सेटों की संख्या सरकारी रिकोर्ड के अनुसार 248000 थी। देश के पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्री सरदार पटेल बने। आजादी के बाद सरकार ने आकाशवाणी के विकास की वृह्द योजना बनायी जिसके तहत देश के सभी हिस्सों में रेडियो स्टेशन एवं स्टूडियो स्थापित करना तय किया गया। इस पायलेट प्रोजेक्ट के तहत जालंधर, जम्मू, पटना, कटक, गुवाहाटी, नागपुर, विजयवाड़ा, श्रीनगर, इलाहाबाद, अहमदाबाद, धारवार और कोझीकोड में स्टेशन खोले गये। अनेक स्टेशनों की प्रसारण क्षमता बढ़ायी गयी। और इस प्रकार मात्र तीन सालों में ही आकाशवाणी केन्द्रों की संख्या बढ़कर 21 हो गयी और अब 21 फीसदी जनसंख्या द्वारा 12 प्रतिशत भूभाग पर रेडियो सुना जाने लगा।


बाद में देश की पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत रेडियो के विकास के लिए अलग से धन राशि मुहैया कराई गयी। भारतीय नेताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती भौगोलिक रूप से देश का विशाल होना तो थी ही इसके अलावा पर्याप्त धन का अभाव भी रेडियो के प्रसार में आड़े आ रहा था। पहली पंचवर्षीय योजना के तहत कुल 3.52 करोड़ की राशि आकाशवाणी के विकास के लिए आबंटित की गयी। नये स्टेशनों का खुलना जारी रहा। इस योजना के दौरान पूना, राजकोट, जयपुर और इंदौर में नये स्टेशन खोले गये। योजना के अंत में आकाशवाणी देश के लगभग 50 फीसदी आबादी और 30 प्रतिशत भूभाग पर सुने जाने लगे।


डॉक्टर केसकर के सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनने के बाद आकाशवाणी पर फिल्म संगीत के प्रसारण पर रोक लगाकर शास्त्रीय संगीत को प्रोत्साहित किया गया। इसी दौरान रेडियो सीलोन पर प्रसारित बिनाका हिट परेड पर लोगों ने भारतीय फिल्म संगीत सुनना आरंभ कर दिया। अमीन सयानी द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम बिनाका गीतमाला भारतीयों में खूब लोकप्रिय हो गया। रेडियो सीलोन से मुकाबला करने के लिए 1957 में आकाशवाणी ने अपनी विविध भारती सेवा आरंभ की। आकाशवाणी ने साठ के दशक में हरित क्रांति समेत सभी विकास योजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आपातकाल में सरकार ने आकाशवाणी को अपने विचारों को जनता में प्रचारित करने का एक माध्यम बना दिया। आपातकाल के बाद जब जनता पार्टी सत्ता में आई तो उसने वर्गीज समिति का गठन करके सरकार माध्यमों को स्वायत्ता देने की पहल की। जनता सरकार अधिक दिनों तक नहीं चल पायी।


अस्सी के दशक में रेडियो पर लाइसेंस फीस समाप्त कर दी गयी। देश के दूरदराज इलाकों में भी आकाशवाणी केन्द्रों का प्रसार हुआ लेकिन टेलीविजन की लोकप्रियता का असर रेडियो पर पड़ने लगा और शहरों में रेडियो श्रोताओं में कुछ कमी आयी। इसका एक कारण आकाशवाणी में नयेपन का अभाव भी था। नब्बे के दशक में उदारीकरण और वैश्वीकरण का तेजी से प्रसार हुआ। सरकार ने निजी निर्माताओं को एफ.एम. चैनलों पर टाइम स्लॉट बेचना आरंभ कर दिया। ये प्रयोग काफी सफल भी रहा। इसी दौरान आकाशवाणी ने स्काई रेडियो और रेडियो पेजिंग सेवा आरंभ की। सन् 2001 में देश का पहला निजी एफ.एम. रेडियो आरंभ हो गया। ये आकाशवाणी के लिए एक नये युग की शुरूआत थी जब उसका मुकाबला प्राइवेट चैनलों से होने वाला था। प्रतिस्पर्धा में आकाशवाणी ने भी एफ.एम. गोल्ड और रेनबो चैनल आरंभ किये।


एफ.एम. रेडियो क्रांति
नब्बे के दशक की शुरूआत में उदारीकरण की आर्थिक नीतियों के बाद से ही देश में निजी रेडियो चैनलों की जमीन तैयार होने लगी थी। सन् 1993 में आकाशवाणी ने निजी निर्माताओं से कार्यक्रम बनवाना आरंभ किया और ये प्रयोग लोकप्रिय भी रहा। दिल्ली और मुंबई में टाइम्स और मिड डे समूह ने आकाशवाणी के लिए कार्यक्रम बनाये। सन् 1995 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले में हवाई तरंगों पर सरकार का एकाधिकार समाप्त कर दिया। मार्च 2000 में सरकार ने देश के 40 बड़े शहरो में 108 रेडियो स्टेशनों के लाइसेंसे देने के लिए खुली बोली लगायी। निजी कंपनियां रेडियो बाजार का सही अनुमान नहीं लगा पायी। अत्यधिक बोली लगा देने के कारण बाद में कंपनियों को अहसास हुआ कि रेडियो चैनल चलाना घाटे का सौदा होगा क्योंकि सरकार को भी मोटी रकम लाइसेंस फीस के रूप में दी जानी थी। सन् 2001 में देश का पहला निजी एफ.एम. चैनल रेडियो सिटी बैंगलौर से आरंभ हुआ। इसके बाद देशभर में एफ.एम. रेडियो चैनलों के खुलने का सिलसिला शुरू हो गया। अनेक कंपनियों ने आरंभिक दौर में घाटा भी उठाया। इस दौर में केवल मैट्रो शहरों में ही चैनल खोले गये थे। नये एफ.एम. चैनलों ने स्थानीय सूचनाओं और स्वाद के मुताबिक कार्यक्रम परोसना आरंभ किया। सड़क पर जाम, बाजार में सेल, स्कूलों में दाखिला और अन्य स्थानीय समस्याओं को उठाने के साथ-साथ लोकप्रिय संगीत के बलबूते जल्दी ही एफ.एम. चैनल आम लोगों की पहली पसंद बन गये।


सन् 2003 में सरकार ने डॉ. अमित मित्रा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। समिति ने सुझाव दिया कि सरकार को लाइसेंस फीस में कमी लाने के साथ-साथ नियमों में थोड़ी ढ़ील देनी चाहिए। दूसरे दौर में सन् 2006 में सरकार ने दूसरी और तीसरी श्रेणी के शहरों में भी एफ.एम. रेडियो स्टेशनों की बोली लगाने का फैसला किया। इस बार सरकार ने देश के 91 शहरों में रेडियो स्टेशनों की बोली से करीब 100 करोड़ की कमाई की। समाचार पत्र समूह-दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, राजस्थान पत्रिका, मलयालम मनोरमा, मातृभूमि, हिन्दुस्तान टाइम्स, डेली थांती इत्यादि- के अलावा जी समूह, रिलायंस जैसी बड़ी कंपनियों ने इस बोली में हिस्सा लिया। सन् 2006 में सरकार ने एक समिति का गठन किया। इस समिति का उद्देश्य रेडियो चैनलों में समाचार एवं समसामयिक कार्यक्रमों को अनुमति देने के बारे में सरकार को सलाह देना था। समिति ने सिफारिश दी कि सरकार को चैबीस घंटे टेलीविजन समाचार चैनलों की तर्ज पर रेडियो समाचार चैनल आरंभ करने की अनुमति भी दे देनी चाहिए।


सामुदायिक रेडियो
सामुदायिक रेडियो के क्षेत्र में भारत में अभी शुरूआत ही हुई है और अपेक्षित विकास आने वाले समय में होगा। सरकार लंबे समय तक सामुदायिक रेडियो चैनलों को अनुमति देने से कतरा रही थी लेकिन अनेक स्वयंसेवी संगठनों के लगातार अभियान चलाने के बाद अंततः सरकार ने सामुदायिक संगठनों को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार रेडियो चैनल चलाने की इजाजत दे दी। सन् 2004 में अन्ना यूनिवर्सिटी, चेन्नई में देश का पहला कैंपस रेडियो स्टेशन खोला गया। इसके अलावा कच्छ महिला विकास संगठन द्वारा चलाया जा रहा सामुदायिक रेडियो कुंजल पंछी कच्छ जी एक उल्लेखनीय प्रयास है। झारखंड के पलामू जिले में नैशनल फाउंडेशन ऑफ इंडिया की मदद से तीस मिनट का चला हो गांव में नामक एक कार्यक्रम दौलतगंज आकाशवाणी केन्द्र पर प्रसारित किया जाता है।


कर्नाटक के कोलर जिले में स्वयंसेवी संगठन वॉयसिस द्वारा नम्म ध्वनि नामक एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है। आंध्रप्रदेश के मेडक जिले के जहीराबाद इलाके में दलित महिला संगठन-संगम द्वारा भी यूनेस्को की मदद से सामुदायिक रेडियो चलाया जा रहा है। उतरांचल में भी यूनेस्को की मदद से हिमालयन ट्रस्ट नामक एक संगठन ने अनेक प्रयोग किये हैं। रेडियो जगत के जानकार मानते हैं कि भारत में अभी रेडियो के विकास की जितनी संभावना है उसका दस प्रतिशत भी नहीं हुआ है। विकसित राष्ट्रों की तुलना में भारत जैसे विशाल देश में चैनलों की वर्तमान संख्या ऊंट के मूंह में जीरा समान है। आने वाले समय में निजी एफ.एम. चैनलों के साथ-साथ सामुदायिक रेडियो चैनलों की संख्या में भी बढौतरी होगी।






सम्बन्धित प्रश्न



Comments Sudhir kumar on 09-07-2023

भारत के kitanne radio station है जो SW Wave me prasharan hoto है उनका nam बता Jay.

.... on 07-09-2022

Radio par samachar kitne hours tak chalte hai

आशुतोष श्रीवास्तव आजमगढ़ on 24-06-2022

भारतवर्ष के उत्तर प्रदेश में रेडियो स्टेशन खोलने के लिए लाइसेंस की क्या प्रक्रिया होती है कृपया मार्गदर्शन दें


Deepak kumar on 26-08-2021

FM radio ki shuruaat Bharat mein kab Hui

Nancy on 18-08-2021

Fm redio ki suruvat kb hui

Manoj tyagi on 09-04-2021

Bharat me f m redio ke prasharan ki shuruvat kab hui ?

1-1990 2-1991 3-1992 4-1993

ABHISHEK SINGH on 09-11-2020

Mujhko sadabhar song. Sunna hai


Raj Sharma on 03-05-2020

सबसे पहले प्राइवेट एफ एम चैनल किस शहर में शुरू किया गया ?





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