kastoorba Balika Yojana Ki Samiksha कस्तूरबा बालिका योजना की समीक्षा

कस्तूरबा बालिका योजना की समीक्षा





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Comments Sarita on 22-03-2023

Kasturaba balika yojna

Ravi chauhan on 29-09-2022

Kgbv me krvai jane wali गतिविधियों के नाम

GkExams on 12-05-2019

सामाजिक असमानता: समाज में स्त्री पुरुष को एक नजर से नहीं देखा जाता है प्रकृति में भी स्त्री और पुरुष की क्षमता में अंतर है स्त्री को घर के कामों के लिए तैयार किया जाता है इसी प्रकार किशोरियों को उनकी तरुणाई की अवस्था से ही घर के कामों में ज्यादा रुचि लेने को प्रोत्साहित किया जाता है जाता है।

प्रोफेशन के मामले में जो स्थितियां भारत में है वह महिलाओं के लिए उतनी अनुकूल नहीं है जितनी कि पुरुषों के लिए पुरुष कहीं भी बाहर एक कठोर परिश्रम का कार्य भी आसानी से कर पाते हैं जबकि महिलाओं के लिए एक निश्चित सुरक्षित वातावरण की आवश्यकता होती है और वह उसी के वातावरण में किए जाने वाले प्रोफेशनल रोजगार कर सकती है कार्य कर सकती है किसी सीधे तौर पर समाज के लोगों की आर्थिक स्थिति से जोड़कर देखा जा सकता है क्योंकि परिवार के सभी सदस्यों को रोजगार लगाना और उनका लक्ष्य अपने परिवार की आर्थिक उन्नति करना होता है इसलिए जो परिवार का सदस्य परिवार को आर्थिक सहयोग करने में सक्षम अधिक होगा उसकी पर परिवार अधिक खर्चा करना चाहेगा क्योंकि पितृसत्तात्मक समाज में लड़की का विवाह कर उसे दूसरे घर जाना पड़ता है इसलिए और परिवार की लड़के की अपेक्षा परिवार को कम सहयोग कर पाती है इसलिए हमेशा लड़कों को पढ़ाई एवं अन्य मामलों प्राथमिकता दी जाती है हालांकि संपन्न परिवारों में यह भेद-भाव अफगानी रह गया है क्योंकि वह लड़के और लड़की दोनों को शिक्षा देकर भी अपना काम आसानी से चला सकते हैं और उनसे उससे उसकी आर्थिक स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ता है और समाज की स्थिति बेहतर ही होती है।



सुरक्षा की स्थिति: भारत में महिलाएं नहीं वरन पुरुषों की सुरक्षा की स्थिति भी इतनी सुंदर नहीं है कि कोई भी कहीं भी किसी समय भी आ जा सके एवं मनचाहा कार्य कर सके इसलिए ग्रामीण इलाकों में दूरदराज के स्कूलों में बालिकाओं को भेजने से उनके माता-पिता कतराते हैं एवं युवा स्थान तक उनको स्कूल दूर होने की स्थिति में स्कूल छोड़ने को मजबूर कर दिया जाता है।



सामाजिक स्थिति भारतीय समाज में भी सामाजिक संतुलन बनाए रखने के लिए परंपरागत सोच रही है कि स्त्रियों को भड़काकर का कार्य करना चाहिए पुरुष का बाहर बाहर का कार्य करें ताकि एक सामाजिक संतुलन बनाए बना रहे एवं परिवार के संबंधी सामान्य बने रहें जहां जहां पर यह सामाजिक संतुलन लिखा है वहां परिवार बिखर चुके हैं इसलिए कई हद तक यह भी सही है कि हर स्तर पर शुरू से महिलाओं को एक जैसा कार्य और एक दृश्य मानता नहीं जा सकती क्योंकि यह प्रकृति में भी ऐसा ही पुरुष एवं स्त्री का निर्माण किया है।



लड़कियों की मानसिक स्थिति: नैंसर्गिक रूप से लड़कियां और स्त्रियां की मानसिक स्थिति पुरुषों की अपेक्षा अलग है उन्हें घर कार्य की कार्य में ज्यादा रुचि रहती है एवं के उसके चित्र अलग होते हैं जबकि पुरुषों के रुचि के क्षेत्र बाहरी कार्य में ज्यादा होते हैं इस कारण भी बालिकाओं को शिक्षा में ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता क्योंकि भारतीय परंपराएं हमेशा वैज्ञानिक आधारों पर रही है लेकिन लंबे समय के दौरान यह परंपराएं रूढ़िवाद बन जाती है और कुछ अज्ञान होने के कारण भी स्त्रियों को शिक्षा से वंचित रहना पड़ता है।



नवीन रूढ़िवादी सोच भारत में वर्तमान में एक प्रकार की नई और दकियानूसी सोच पनप रही है जो कि शिक्षा से संबंधित है और यह स्त्री और पुरुष दोनों की शिक्षा से संबंधित सोच आज के समाज में भयंकर रुप ले चुकी है इस सोच के अनुसार लोगों का यह मानना है पढ़ा लिखा व्यक्ति लड़का हो या लड़की हो घर के कार्य, परंपरागत कार्य या कृषि कार्य नहीं करेगा और उसे इस कार्य के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाएगा और घर के बाकी लोग जो कि कम पढ़े लिखे अनपढ़ हैं वह लोग ही घर का कार्य करेंगे। पढ लिख कर लड़का या लड़की परंपरागत कार्य करने में शर्म महसूस करता है। जबकि वास्तव में सभी प्रकार की परंपरागत कार्य भी एक रोजगार ही हैं। इन कार्यों को छोड़ने की वजह से भी भारत में संरचनात्मक बेरोजगारी की दर बढ़ रही है और

परंपरागत कलाएं लुप्त हो रही है जबकि पश्चिमी समाज में ऐसा नहीं है वहां पर जितना खुलापन उनके पहनावे और उनकी सोच में है और इसकी जितनी आजादी दी जाती है उसका कारण यह भी है कि वहां स्त्रियों को भी हर कार्य के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और हर कार्य कार्य करने में तत्पर रहती है जबकि भारत में स्थिति बिल्कुल इसके उलट है। यहाँ पढने के बाद स्त्रियों द्वारा परंपरागत कार्य करने छोड़ दिए जाते हैं परंतु नए कार्य करने में रुचि नाम मात्र की जाती है इस कारण भी समाज की सोच स्त्रियों को बालिकाओं को शिक्षा देने के खिलाफ है।


GkExams on 12-05-2019

सामाजिक असमानता: समाज में स्त्री पुरुष को एक नजर से नहीं देखा जाता है प्रकृति में भी स्त्री और पुरुष की क्षमता में अंतर है स्त्री को घर के कामों के लिए तैयार किया जाता है इसी प्रकार किशोरियों को उनकी तरुणाई की अवस्था से ही घर के कामों में ज्यादा रुचि लेने को प्रोत्साहित किया जाता है जाता है।

प्रोफेशन के मामले में जो स्थितियां भारत में है वह महिलाओं के लिए उतनी अनुकूल नहीं है जितनी कि पुरुषों के लिए पुरुष कहीं भी बाहर एक कठोर परिश्रम का कार्य भी आसानी से कर पाते हैं जबकि महिलाओं के लिए एक निश्चित सुरक्षित वातावरण की आवश्यकता होती है और वह उसी के वातावरण में किए जाने वाले प्रोफेशनल रोजगार कर सकती है कार्य कर सकती है किसी सीधे तौर पर समाज के लोगों की आर्थिक स्थिति से जोड़कर देखा जा सकता है क्योंकि परिवार के सभी सदस्यों को रोजगार लगाना और उनका लक्ष्य अपने परिवार की आर्थिक उन्नति करना होता है इसलिए जो परिवार का सदस्य परिवार को आर्थिक सहयोग करने में सक्षम अधिक होगा उसकी पर परिवार अधिक खर्चा करना चाहेगा क्योंकि पितृसत्तात्मक समाज में लड़की का विवाह कर उसे दूसरे घर जाना पड़ता है इसलिए और परिवार की लड़के की अपेक्षा परिवार को कम सहयोग कर पाती है इसलिए हमेशा लड़कों को पढ़ाई एवं अन्य मामलों प्राथमिकता दी जाती है हालांकि संपन्न परिवारों में यह भेद-भाव अफगानी रह गया है क्योंकि वह लड़के और लड़की दोनों को शिक्षा देकर भी अपना काम आसानी से चला सकते हैं और उनसे उससे उसकी आर्थिक स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ता है और समाज की स्थिति बेहतर ही होती है।



सुरक्षा की स्थिति: भारत में महिलाएं नहीं वरन पुरुषों की सुरक्षा की स्थिति भी इतनी सुंदर नहीं है कि कोई भी कहीं भी किसी समय भी आ जा सके एवं मनचाहा कार्य कर सके इसलिए ग्रामीण इलाकों में दूरदराज के स्कूलों में बालिकाओं को भेजने से उनके माता-पिता कतराते हैं एवं युवा स्थान तक उनको स्कूल दूर होने की स्थिति में स्कूल छोड़ने को मजबूर कर दिया जाता है।



सामाजिक स्थिति भारतीय समाज में भी सामाजिक संतुलन बनाए रखने के लिए परंपरागत सोच रही है कि स्त्रियों को भड़काकर का कार्य करना चाहिए पुरुष का बाहर बाहर का कार्य करें ताकि एक सामाजिक संतुलन बनाए बना रहे एवं परिवार के संबंधी सामान्य बने रहें जहां जहां पर यह सामाजिक संतुलन लिखा है वहां परिवार बिखर चुके हैं इसलिए कई हद तक यह भी सही है कि हर स्तर पर शुरू से महिलाओं को एक जैसा कार्य और एक दृश्य मानता नहीं जा सकती क्योंकि यह प्रकृति में भी ऐसा ही पुरुष एवं स्त्री का निर्माण किया है।



लड़कियों की मानसिक स्थिति: नैंसर्गिक रूप से लड़कियां और स्त्रियां की मानसिक स्थिति पुरुषों की अपेक्षा अलग है उन्हें घर कार्य की कार्य में ज्यादा रुचि रहती है एवं के उसके चित्र अलग होते हैं जबकि पुरुषों के रुचि के क्षेत्र बाहरी कार्य में ज्यादा होते हैं इस कारण भी बालिकाओं को शिक्षा में ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता क्योंकि भारतीय परंपराएं हमेशा वैज्ञानिक आधारों पर रही है लेकिन लंबे समय के दौरान यह परंपराएं रूढ़िवाद बन जाती है और कुछ अज्ञान होने के कारण भी स्त्रियों को शिक्षा से वंचित रहना पड़ता है।



नवीन रूढ़िवादी सोच भारत में वर्तमान में एक प्रकार की नई और दकियानूसी सोच पनप रही है जो कि शिक्षा से संबंधित है और यह स्त्री और पुरुष दोनों की शिक्षा से संबंधित सोच आज के समाज में भयंकर रुप ले चुकी है इस सोच के अनुसार लोगों का यह मानना है पढ़ा लिखा व्यक्ति लड़का हो या लड़की हो घर के कार्य, परंपरागत कार्य या कृषि कार्य नहीं करेगा और उसे इस कार्य के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाएगा और घर के बाकी लोग जो कि कम पढ़े लिखे अनपढ़ हैं वह लोग ही घर का कार्य करेंगे। पढ लिख कर लड़का या लड़की परंपरागत कार्य करने में शर्म महसूस करता है। जबकि वास्तव में सभी प्रकार की परंपरागत कार्य भी एक रोजगार ही हैं। इन कार्यों को छोड़ने की वजह से भी भारत में संरचनात्मक बेरोजगारी की दर बढ़ रही है और

परंपरागत कलाएं लुप्त हो रही है जबकि पश्चिमी समाज में ऐसा नहीं है वहां पर जितना खुलापन उनके पहनावे और उनकी सोच में है और इसकी जितनी आजादी दी जाती है उसका कारण यह भी है कि वहां स्त्रियों को भी हर कार्य के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और हर कार्य कार्य करने में तत्पर रहती है जबकि भारत में स्थिति बिल्कुल इसके उलट है। यहाँ पढने के बाद स्त्रियों द्वारा परंपरागत कार्य करने छोड़ दिए जाते हैं परंतु नए कार्य करने में रुचि नाम मात्र की जाती है इस कारण भी समाज की सोच स्त्रियों को बालिकाओं को शिक्षा देने के खिलाफ है।






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