Parihar(परिहार) rajput history
इस क्षत्रिय वर्ग का वंश अग्नि है, इससे इनका वंश अग्नि वंश है, जैसा कि पहले अग्निवंश की उत्पत्ति के समय लिखा जा चुका है । जब इस वीर पुरुष का पैर फिसल गया था। (परस्खलन) इसी से इनका नाम प्रतिहार रखा गया था। जिसके कि शाखा सूत्र इस प्रकार है
वंश- अग्निवंश।
गोत्र - कश्यप ।
प्रवर- 3 तीन) कश्यप, बत्तसार, ध्रुव ।
वेद- अजुवें द ।
शाखा- बाजसनेयी।
सूत्र- पारस्कर ग्रह्मसूत्र है ।
कुलदेवी-उमा (गजानन माता)
इष्टविष्णु भगवान तथा गुरु वशिष्ठजी हैं । कहीं कहीं गौत्र पुण्डरीक है।
Parihar (परिहार) rajput vanshavali:-
1. प्रतिहार-धम्ब देश (मारवाड़) में बसा (नौ) कोट का राज्य मिला।
2. जोधराज - जोधराज के 50 बेटों में एक देवराज ही राजा हुआ, बाकी सब शिकार खेलते समय मारे गये ।
3. देवराज इनके 7 (सात) बेटे थे। सिंह, करन, सब्लू, सल्ल, निकुम्भ, क्षत्राशव तथा शत्रुध्न । शत्रुध्न बड़ा था।
4. सिंह राजा बना, 5. पड़हर, 6. पृथ्वीन, 7. जबचह्म, 8, समाधि, 9. कुसकर 10. प्रहलाद 11. पराबल, 12.
गुपाल 13. सत्वराज 14मल्लनकर, 15 मरवेन, 16 रंजन 17. महीपराज, 18 ध्वजमहीप 16. त्रिसमहीप, 20. असय- महीष, 21. वेपुमहीप, इनके राज्य ने खूब प्रगति की । इनके चार पुत्र थे। भोरूमहीप, वीरमहीप, मधुपाल, गर्गमहीप या मल्लमहीप 22 स्वर्ष महीप, 23. जसन महीप, 24 संग महीप 25. राम महीप, 26 विश्व महीप, 27 संग्राम महीप, 28 स्वमर्दन 26. नग महीप, 30 रूप महीप 31, नन्दम हीप 32. सैन महोप 33. गजम हीप 34. शुभग महीप, 35. राज महीप, 36. मद्वा महीप, 37. धनु महीप, 38. जय महीप 33. शवर महीप, 40. दान महीप, 41. दया महीप, 42. मही महीप 43. अजीत महीप, 44. प्रभु महीप, 45. ईश्वर महीप, 46 हरी महीप, 47 . रन महीप, 48. मधु महीप, 47. मलमहीप, 50, रतन महीप, 51. प्रथम महीप ।
इनके पांच पुत्र थे- 1. हर महीप, 2. अचल महीम, 3. दल महीष, 4, भगवत महीष, 5. लुहर महीप । लुहर महीप जो लड़ाई में लड़ाई में मारा गया था, उसकी पितरों में पूजा होती है ।
अचलमहीप का पुत्र विनय महीप राजा हुए । 52. विनय महो, 53. सहन महीप, 54. हंस महीप के, 31 पुत्र थे।
उनमें से गोतम महीप के बाद 63 (तिरेसठ वें) पद में यह पदवी महीप की बदलकर रमराज की पदवी धारण की। उसके बाद 101 अल्लराज राजा हुए । उनके 25 पुत्र थे, उनमें से एक पुत्र हंसराज जो बड़ा था लड़ाई में मारा गया। वह भी पित्तर माना जाता है । उसमें से 102. बच्छराज राजा हुए । बच्छराज के दो पुत्र कर्णराज और त्रिलोकचन्द्र थे। उसके बाद 103. कर्णराज राजा हुए । वर्ण राज के पांव पुत्र थे, उनमें से 104 हरिराज राज हुए । हरिराज थे पांच पुत्र थे, उनमें से संजयराज राजा हुए। संजयरण के तीन पुत्र थे, उनमें से अमर राजा थे। उसके बाद 118 नम्बर के राजा रामपाल हुए । जिन्होंने राम राज की पदवी बदलकर 'पाल" को पदवी धारण की। रामपाल के बाद कृष्णपाल शासक बने ।
सम्वत् 350 में इनकी रनियों से सन्तान पैदा न हुई। तब सिद्धियों का सेवन किया, तब उनके ( प्रसाद ) प्रभाव से चन्द्रावती नाम की एक कन्या पैदा हुई जो मथुरा के राजा। अमरचन्द यादव को व्याही गई थी । उनके जो पुत्र पैदा हुए थे, उन्होंने अपने नाना की पदवी "यादव से पाल" ग्रहण कर ली, तब से यादव राज पाल" कहलाने लगे । कन्या पन्द्रावती के बाद "अनुपम पाल " के पुत्र पैदा हुआ, जिसका कि नाम जयसिंह था, वह "राना" कहलाया । जयसिंह से ही परिहारों में राना को पदवी आ गई। 136 जयसिंह के 138 बुद्धसिंह राना राजा हुए । भुध्द सिंह के आठ पुत्र थे, उनमें से 136. दीप्त राना राजा हुए । दीप्त राना के तीन पुत्र थे, उनमें से 140 शम्भू राना राजा हुए। शम्भू राना के चार पुत्र थे, उनमें से 141 अज राजा भये। उसके बाद 143 नगपति राज राजा हुए इनके 18 पुत्र थे। इनमें से 144, सल्ल राना राजा हुए । उसके 145. अभय राना राजा हुए जिनके कि 2 पुत्र थे, उनमें से 146, भाव राना राजा बने । भाब राना के यहाँ 100 रानियां थीं, उनसे 26 पुत्र पैदा हुए उनमें से 147. इन्द्र राज राना राजा हुए । इन्द्रराज राना ने फिर मरुदेश लेकर उसे राजधानी बनाया । इनके तीन पुत्र थे, उनमें से 148, नियम राना राजा भये । इसके बाद 146. पुण्डरीक राजा हुए, इन्होंने कई बार 'गयाजी" की यात्रा करके अपने पितरों का ऋण उतारा था। । उनके तीन बेटे थे, उनमें से 150, केशव राना राजा हुए । इनकी रानी जाडेजा' जाति को यादव थी। उसके बाद 151. नाहरराज राना गद्दी पर बैठे । जिनकी बहन पंगिला (मुला) चित्तौड़ के राना तेजसिह को ब्याहो गई थी। दैवयोग से नाहर राना को कोढ़ हो गया, उस समय कन्नौज पर राठौड़ राजा जयचन्द राज्य करता था । चित्तौड़ पर सिसौदिया समरबाल रावल दिल्ली पर अनंगपाल तोमर, अजमेर पर सोमेश्वर गुजरात पर राना भीम सोलकी राना था, जिसकी उपाधि भोलाराव थी । जस महोप कछवाया नरवर पर सुसइव पंवार आबूगढ़ पर, आनन्द हाड़ा बंबावेद पर नयसैन जादौन रणथम्भौर पर । एक दिन नाहर राज अकेला घोड़े पर चढ़कर शिकार खेलने गया था। । उसने जंगल में एक सूअर के पीछे अपना घोड़ां दोड़ाया था कि वह सूअर घने जंगल में कई कोस दोड़ता हुआ पुष्कर क्षेत्र में पहुँच गया। पुष्कर में वर्षा न होने से अकाल पड़ गया था। वहां जंगल में ऐरा" नाम की एक बड़ी घास थी, उसमें जाकर सूअर छिप गया । नाहर राज को जब प्यास लगी तो एक गाय के खुर के बराबर स्थान पर पानी मिला। उसने थोड़ा सा प्यास बुझाने के लिए पानी पी लिया और कुछ पानी को शरीर पर छिड़क लिया। भाग्यवश कुमार को जो कोढ़ का रोग था, यह ठीक हो गया और आराम से वहीं पेड़ के नीचे थकान मिटाने को सो गया। स्वप्न में पुष्कर महाराज ने कहा कि मैं वही सूअर हैं जो तुझे यहां ले आया है, तुम मेरा जीणधार करा दो । नाहर- राज जागृति होने पर वहाँ से चलकर अपने देश मंणोवर (मनोवर) में आ गये । वहाँ से काफी धन लेकर लाखों रुपया खर्च करके पुष्कर के ताल को गहरा खुदवाकर कनक और धातुओं की चारों तरफ पेड़िया बना दी। उस दिन से सभी परिहारों ने सूर सूरका शिकार व मांस खाना छोड़ दिया। उस समय से नाहर राज की कीति सारे संसार में अमर हो गई । उसने सं0 1100 में मंडोर को फिर से बसाया था। उसके बाद 172. राघवराज राजा हुए, जिनके तीन पुत्र थे । धनराज, राजसिंह तथा सामन्तरण। 173. के धनराज-वनराज के दो पुत्र गंगापाल, एक के नाम का पता नहीं है । 174, के गंगापाल राजा हुए, जिनके दो पुत्र जीवराज व सुदर राज थे। 175. के जीव राज राजा भये उनके भी 2 पुत्र थे, अमाय को व सुहार थे । 176. के राजा अमायक हुए, उनके 12 पुत्र थे। जिनके नाम पर परिहारों में 12 भेद पैदा हुए । जैसे 'सुल्लेर' लुल्लर से, 'लुल्लारा सूर से, 'सुरावत' या भाट, महोबा राम से ‘रामटा, खिखा से बुद्ध खेल'। इन्होंने अपने नाम पर बुद्ध खेलनगर बसाया था । सोधक से ‘सोधक'। सोधक का बड़ा बेटा ईद या इन्दा हुआ। सुकरवर से ‘सोरवर' चन्द-चन्द के तीन बेटे हुए किल्हन, चम्पा और चुहत्र । किल्हन ने कि लाई गाँव बसाया, इससे किलोवा’ परिहार हुए। चन्द से ‘चन्द्रा राना, चुहत्र से ‘चौहत्रा’ यह सब चन्द्राउत हैं । मालदेव के महप, महप के धोरान हुआ, जिसके वंशधर 'धौराना, धार। धार से ‘धधिल, खीर-खीर से सिन्धु नाम का पुत्र पैदा हुआ जो ‘सिन्धु' परिहार है । डूंगर डूंगर से ‘डोराना' हुए । सुवर सुवर से सुवराना' परिहार कहलाये ।
177 न0 के लुलर, लुल्लर के बाद रुद्रपाल । 178 के राजा हुए जिनके चार पुत्र थे. हरपाल, सेनपाल, भोखपाल तथा श्यनापाल । 179 के राजा हरपाल हुए । 180 नं0 के ठकुरपाल, 181 के राजा इन्द्रपाल 182 न0 के बुद्व दयाल हुए, 183 0 के पृथ्वीपाल, 184 के रुपाज, इनके 16 पुत्र थे । 185 नं0 हमीर मंडोवर का राजा हुआ। राठौड़ बीरम के बेटे चुंडा इन्दो के घर विवाह करके बड़ा लड़ाऊ हो गया था। इन्द्रा परिवार अपने स्वामी हमीर को विरुद्ध जानकर अपने जमाई के साथ मिल गया। क्योंकि हमीर की चाल (कर्तव्य) खोटी थी, वह अपने ही गोत्र की बहन का वर बन गया था। इस वजह से उसके सब भाई बहन उससे नाराज थे। एक ब्राह्मण अपनी स्त्री का गौना कराकर साथ ला रहा या। लड़की रूपवती थी, उसको देखकर हमीर ने उसे बल पूर्वक छीन लिया तब वह ब्राह्मण दु:खी होकर अग्नि में जल कर मर गया। दुष्ट राजा ने इस ब्रह्म हत्या को कुछ न समझा । इससे उससे सब भाई बहन उसे मारना चाहते थे। तब चूड़ा राठौड़ इम्दा को साथ लेकर आधी रात के समय मंडोवर को जा घेरा उसने हमीर को लड़ने के लिए ललकारा । वह डर के मारे छिप कर वहां से भाग गया । संवत् 1451 में मड़ोवर का किला राठोड़ों के कब्जे में आ गया। हमीर राठौड़ बेर को भूलकर बेरुरवनपुर में जा बसा । उसके 15 वें भाई दीपसिंह के कुल में सोंधिये हुए जिनके नाम पर उसे सौंधिया बाड़ा कहते हैं । यह रियासत टोंक के परगने पिडाबे और ग्वालियर राज्य के परगने में है । 16 वें भाई गूजरमल ने आग में जलते हुए एक गाय के बच्चे को हिरण समझकर दीपसिंह के बार बार मना करने पर भी उसने उसके दोनों कान खा लिये। इतने में ग्वाले ढूढते - ढूढते वहीं आ गये और बोले इस बच्चे के दोनों कान किसने खा लिये हैं । तब भाइयों ने प्रायश्चित करके पाप मिटाने को कहा । जब हट करके उसने किसी की बात नहीं मानी तो सब बिरादरी (जाति) वालों ने उसे जाति से बाहर घोषित कर दिया । गूजरमल ने एक मीना की लड़की से विवाह कर लिया। "परिहार मीने’ उसकी औलाद है। जो खराड़ देश में रहते हैं। 16 के राजा कुन्तल हमीर का बेटा बीरुटंकर नगर में रहता था । उसने लड़कर रामनगर ले लिया और दुश्मनों की जमीन दबाकर अपनी राजधानी स्थापित कर ली। जिसमें सांवर और सखाऊ परगने शामिल हैं । उसके दो पुत्र बाण और निम्भदेव थे। 187 के बाघदेव ने बुढ़ापे में इहरदेव की कन्या नमवती को ब्याहा था ।
उस समय गोठनपति मौका पाकर बहुत सबल हो गये थे। उनको एक बड़ा खजाना मिल गया था, जिसमें धन की कोई कमी नहीं थी। जयन्ती रानी ने भी वहीं प्रवेश किया । इस बात पर परिहारों और गुजरों में भारी लड़ाई हुई, जिसमें गूजर मारे गये और गोठम गांव लुट गया । 188 के भूद्ध राजा होने पर इस बात पर भोज के पुत्र ऊदल के पिताजी और चाचाओं की आपसी दुश्मनी में लड़ाई हुई, इस कारण साड़ा और रामनगर देश छूट गया। भुद्ध के दो बेटे जसराज और सावलदास थे। सावलदास का पुत्र केशवदास था, जिससे उसके वंशवाले "केसोउत परिहार कहलाने लगे । 186 नं0 पर जसराज राजा हुए। 160 पर नन्द, 161 पर भीम राजा हुए उनके दो पुत्र थे। किशनलाल और सोनपाल । सोनपाल के बेटे पोते ‘सोनपालोत' कहलाये । 192 नं0 के किशनदास, इससे पूर्व की राजधानी में जाकर उचेहरा' गढ़ बसाया । 113 0 के श्यामसिंह, 194 नं0 के मुकुट मोहर, 195 के कृपाल, इनकी 21वीं पीढ़ी में बलभद्र नाम का नागोद का राजा हुआ। जिसकी दूसरी कन्या चन्द्र भानु "बूंदी के राव राजा रामसिंह को ब्याही गई थी। बलभद्र के दो पुत्र--राघवेन्द्रसिंह व छत्रपाल सिंह (जिग महट का इलाका)। घवेन्द्रसिंह के पुत्र यादवेन्द्र, यादवेन्द्र के दो पुत्र नरहरिसिंह, महेन्द्रसिंह (नागौद इलाका)।
परिहारों का वंश-भेद
किससे-कौनसी शाखा किससे-कौनसी शाखा
पैड़हर से पहरा किल्ह - किलोया
लुल्लर - लुल्लर चन्द्र - चन्द नारायण
सूर-सूराउत (मड़ोवरा) चुहल—चोहला
बुद्ध--बुदखेल घोराण—घोराण
इन्द-इन्दा धांधिल—धांधिला
सुखर-सुबखर सिन्धु—सिन्धुवा
चन्द्र-इन्द्रावत डूगर—डोराना
सुवर सुवामा दीपसिंह-सुधिया
गूजरमल परिहार मीना केशोदार-केशवोत
सोनपाल सोनपालोत
Pergha jati ke bare me Jane 8541066132