Katthak Kahan Ka Nritya Hai कत्थक कहां का नृत्य है

कत्थक कहां का नृत्य है



Pradeep Chawla on 12-05-2019

कथक नृत्य उत्तर प्रदेश का शास्त्रिय नृत्य है। कथक कहे सो कथा कहलाए।

कथक शब्द क अर्थ कथा को थिरकते हुए कहना है। प्राचीन काल मे कथक को कुशिलव

के नाम से जाना जाता था।



कथक और उत्तर भारत की शैली है। यह बहुत प्राचीन शैली है क्योंकि में भी कथक का वर्णन है। मध्य काल में इसका सम्बन्ध कथा और नृत्य से था। मुसलमानों के काल में यह दरबार में भी किया जाने लगा। वर्तमान समय में इसके बड़े व्याख्याता रहे हैं। हिन्दी फिल्मों में अधिकांश नृत्य इसी शैली पर आधारित होते हैं।











कत्थक नृत्य की एक भावपूर्ण मुद्रा










चित्र:Rounds in Kathak.webm






कथक नृत्य














कथक नृत्या भारतीय डाक-टिकट में










अनुक्रम











परिचय

भारत के आठ शास्त्रीय नृत्यों में से सबसे पुराना कथक नृत्य जिसका उत्पत्ति उत्तर भारत में हुआ। कथक एक

शब्द है जिसका अर्थ कहानी से व्युत्पन्न करना है। यह नृत्य कहानियों को

बोलने का साधन है। इस नृत्य के तीन प्रमुख घराने हैं। कछवा के राजपुतों के

राजसभा में जयपुर घराने का, अवध के नवाब के राजसभा में लखनऊ घराने का और

वाराणसी के सभा में वाराणसी घराने का जन्म हुआ। अपने अपनी विशिष्ट रचनाओं

के लिए प्रसिद्ध एक कम प्रसिद्ध रायगढ़ घराना भी है।



इतिहास

  • प्राचीन काल से कथाकास, नृत्य के कुछ तत्वों के साथ महाकाव्यों और

    पौराणिक कथाओं से कहानियां सुनाया करते थे। कथाकास के परंपरा वंशानुगत थे।

    यह नृत्य पीढ़ी दर पीढ़ी उभारने लगा। तीसरी और चौथी सदियों के साहित्यिक

    संदर्भ से हमें इन कथाकास के बारे में पता चलता है। मिथिला के कमलेश्वर के

    पुस्तकालय में ऎसे बहुत साहित्यिक संदर्भ मिले थे।


  • तेरहवी सदी तक इस नृत्य में निश्चित शैली में उभर आया था। स्मरक

    अक्षरों और बोल की भी तकनीकी सुविधाओं का विकास हो गई। भक्ति आंदोलन के समय

    र। सलीला कथक पर एक जबरदस्त प्रभाव पड़ा। इस तरह का नृत्य प्रदर्शन

    कथावछकास मंदिरों में भी करने लगे। कथक राधा कृष्ण की के जीवन के दास्तां

    बयान करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। श्री कृष्ण के वृंदावन की पवित्र

    भूमि में कारनामे और कृष्ण लीला (कृष्ण के बचपन) के किस्से का लोकप्रिय

    प्रदर्शन किया जाता था। इस समय नृत्य आध्यात्मिकता से दुर हटकर लोक तत्वों

    से प्रभावित होने लगा था।


  • मुगलों के युग में फ़ारसी नर्तकियों के सीधे पैर से नृत्य के कारण और

    भी प्रसिद्ध हो गया। पैर पर 150 टखने की घंटी पहने कदमों का उपयोग कर ताल

    के काम को दिखाते थे। इस अवधि के दौरान चक्कर भी शुरु किया गया। इस नृत्य

    में लचीलापन आ गया। तबला और पखवाज इस नृत्य में पुरक है।


इसके बाद समय के साथ इस नृत्य में बहुत सारी महत्वपूर्ण हस्ती के योगदान से बदलाव आए।











Kathak Group Performance






नृत्य प्रदर्शन

  • नृत्त: वंदना, देवताओं के मंगलाचरण के साथ शुरू किया जाता है।
  • ठाट, एक पारंपरिक प्रदर्शन जहां नर्तकी सम पर आकर एक सुंदर मुद्रा लेकर खड़ी होती है।
  • आमद, अर्थात प्रवेश जो तालबद्ध बोल का पहला परिचय होता है।
  • सलामी, मुस्लिम शैली में दर्शकों के लिए एक अभिवादन होता है।
  • कवित्, कविता के अर्थ को नृत्य में प्रदर्शन किया जाता है।
  • पड़न, एक नृत्य जहां केवल तबला का नहीं बल्कि पखवाज का भी उपयोग किया जाता है।
  • परमेलु, एक बोल या रचना जहां प्रकृति का प्रदर्शनी होता है।
  • गत, यहां सुंदर चाल-चलन दिखाया जाता है।
  • लड़ी, बोलों को बाटते हुए तत्कार की रचना।
  • तिहाई, एक रचना जहां तत्कार तीन बार दोहराया जाती है और सम पर नाटकीय रूप से समाप्त हो जाती है।
  • नृत्य: भाव को मौखिक टुकड़े की एक विशेष प्रदर्शन शैली में

    दिखाया जाता है। मुगल दरबार में यह अभिनय शैली की उत्पत्ति हुई। इसकी वजह

    से यह महफिल या दरबार के लिए अधिक अनुकूल है ताकि दर्शकों को कलाकार और

    नर्तकी के चेहरे की अभिव्यक्त की हुई बारीकियों को देख सके। क ठुमरी गाया

    जाता है और उसे चेहरे, अभिनय और हाथ आंदोलनों के साथ व्याख्या की जाति है।




सम्बन्धित प्रश्न



Comments Kathak kaha ka nirity h on 20-12-2023

Kathak kaha ka nirity h

Bheemshing on 12-12-2023

Kathk Rajasthan or utrprdhesh ka shastriy nartye h

Vishvendra singh on 12-10-2023

Kathak kha ka dance hai


Shweta on 25-12-2021

कतथक ka vikas kha hua

Shweta on 03-10-2021

Kthk ka vikas kha hua

Richa on 08-07-2021

Kathak nritya mai lok nritya





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