Narhad Peer History नरहड़ पीर हिस्ट्री

नरहड़ पीर हिस्ट्री



Pradeep Chawla on 19-10-2018

राजस्थान में एक दरगाह ऐसी भी है जहां श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर मेला लगता है। झुंझुंनू जिले के नरहड़ कस्बे में स्थित पवित्र हाजीब शक्करबार शाह की दरगाह कौमी एकता की जीवन्त मिसाल है। इस दरगाह की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां सभी धर्मों के लोगों को अपनी-अपनी धार्मिक पद्धति से पूजा अर्चना करने का अधिकार है। कौमी एकता के प्रतीक के रूप में ही यहां प्राचीन काल से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर विशाल मेला लगता है। जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से हिन्दुओं के साथ मुसलमान भी पूरी श्रद्धा से शामिल होते हैं।

जन्माष्टमी पर यहां लगने वाले तीन दिवसीय मेले में राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, दिल्ली, आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र के लाखों जायरीन शरीक होते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर लगने वाले इस मेले में हिंदू धर्मावलंबी भी बड़ी तादाद में शिरकत कर अकीदत के फूल भेंट करते हैं। जायरीन यहां हजरत हाजिब की मजार पर चादर, कपड़े, नारियल, मिठाइयां और नकद रुपया भी भेंट करते हैं।
जन्माष्टमी पर नरहड़ में भरने वाला ऐतिहासिक मेला और अष्टमी की रात होने वाला रतजगा सूफी संत हजरत शकरबार शाह की इस दरगाह को देशभर में कौमी एकता की अनूठी मिसाल का अद्भुत आस्था केंद्र बनाता है। जहां हर धर्म-मजहब के लोग हर प्रकार के भेदभाव को भुलाकर बाबा की बारगाह में सजदा करते हैं। दरगाह के खादिम एवं इंतजामिया कमेटी करीब सात सौ वर्षों से अधिक समय से चली आ रही सांप्रदायिक सद्भाव को प्रदर्शित करने वाली इस अनूठी परम्परा को सालाना उर्स की माफिक ही आज भी पूरी शिद्दत से पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते चले आ रहे हैं। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की छठ से शुरू होने वाले इस तीन दिवसीय धार्मिक आयोजन में दूर-दराज से नरहड़ आने वाले हिंदू जात्री दरगाह में नवविवाहितों के गठजोड़े की जात एवं बच्चों के जड़ूले उतारते हैं। दरगाह के वयोवृद्ध खादिम हाजी अजीज खान पठान बताते हैं कि यह कहना तो मुश्किल है कि नरहड़ में जन्माष्टमी मेले की परम्परा कब और कैसे शुरू हुई? लेकिन इतना जरूर है कि देश विभाजन एवं उसके बाद और कहीं संप्रदाय, धर्म-मजहब के नाम पर भले ही हालात बने-बिगड़े हों पर नरहड़ ने सदैव हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल ही पेश की है। वे बताते हैं कि जन्माष्टमी पर जिस तरह मंदिरों में रात्रि जागरण होते हैं ठीक उसी प्रकार अष्टमी को पूरी रात दरगाह परिसर में चिड़ावा के प्रख्यात दूलजी राणा परिवार के कलाकार ख्याल ((श्रीकृष्ण चरित्र नृत्य नाटिकाओं)) की प्रस्तुति देकर रतजगा कर पुरानी परम्परा को आज भी जीवित रखे हुए हैं। नरहड़ का यह वार्षिक मेला अष्टमी एवं नवमी को पूरे परवान पर रहता है।
मान्यता है कि पहले यहां दरगाह की गुम्बद से शक्कर बरसती थी इसी कारण यह दरगाह शक्करबार बाबा के नाम से भी जानी जाती है। शक्करबार शाह अजमेर के सूफी संत ख्वाजा मोइनुदीन चिश्ती के समकालीन थे तथा उन्हीं की तरह सिद्ध पुरुष थे। शक्करबार शाह ने ख्वाजा साहब के 57 वर्ष बाद देह त्यागी थी। राजस्थान व हरियाणा में तो शक्करबार बाबा को लोक देवता के रूप में पूजा जाता है। शादी, विवाह, जन्म, मरण कोई भी कार्य हो बाबा को अवश्य याद किया जाता है इस क्षेत्र के लोगों की गाय, भैंसों के बछड़ा जनने पर उसके दूध से जमे दही का प्रसाद पहले दरगाह पर चढ़ाया जाता है तभी पशु का दूध घर में इस्तेमाल होता है। हाजिब शक्करबार साहब की दरगाह के परिसर में जाल का एक विशाल पेड़ है जिस पर जायरीन अपनी मन्नत के धागे बांधते हैं। मन्नत पूरी होने पर गाँवों में रात जगा होता है जिसमें महिलाएं बाबा के बखान के लोकगीत जकड़ी गाती हैं।
दरगाह में बने संदल की मिट्टी को खाके शिफा कहा जाता है जिसे लोग श्रद्धा से अपने साथ ले जाते हैं। लोगों की मान्यता है कि इस मिट्टी को शरीर पर मलने से पागलपन दूर हो जाता है। दरगाह में ऐसे दृश्य देखे जा सकते हैं। हजरत के अस्ताने के समीप एक चांदी का दीपक हर वक्त जलता रहता है। इस चिराग का काजल बड़ा ही चमत्कारी माना जाता है। इसे लगाने से आंखों के रोग दूर होने का विश्वास है।
दरगाह के पीछे एक लम्बा चौड़ा तिबारा है जहां लोग सात दिन की चौकी भरकर वहीं रहते हैं। नरहड़ दरगाह में कोई सज्जादानसीन नहीं है। यहाँ के सभी खादिम अपना अपना फर्ज पूरा करते हैं। दरगाह मे बाबा के नाम पर देश-विदेश से प्रतिदिन बड़ी संख्या में खत आते हैं जिनमें लोग अपनी-अपनी समस्याओं का जिक्र कर बाबा से मदद की आस करते हैं। दरगाह कमेटी के पूर्व सदर मास्टर सिराजुल हसन फारुकी ने बताया कि जिस प्रकार ख्वाजा मोइनुदीन चिश्ती को ‘सूफियों का बादशाह' कहा गया है। उसी प्रकार शक्करबार शाह ‘बागड़ के धणी‘ के नाम से प्रसिद्ध हैं।
नरहड़ गांव कभी राजपूत राजाओं की राजधानी हुआ करता था। उस समय यहां 52 बाजार थे। पठानों के जमाने में यहां के लोदी खां गर्वनर थे। राजपूतों के साथ चले युद्ध में उनकी लगातार पराजय हुई। किवंदति यह है कि एक बार हार से थक कर चूर हुए लोदी खां और उनकी सेना मजार के निकट विश्राम कर रही थी, तभी पीर बाबा की दिव्य वाणी हुई कि मेरी मजार तक घोड़े दौड़ाने वाले तुम कैसे विजयी हो सकते हो? यदि मजार से हटकर लड़ोगे तो तुम्हारी जीत होगी। इसके बाद लोदी खां ने फिर से आक्रमण किया, जिसमें उनकी जीत हुई। उसी समय से यहां हजरत शकरबार पीर बाबा का आस्ताना कायम है। उसी समय यहां मजार व दरगाह का निर्माण करवाया गया। जायरीन में प्रवेश करने वाले प्रत्येक जायरीन को यहां तीन दरवाजों से गुजरना पड़ता है। पहला दरवाजा बुलंद दरवाजा है, दूसरा बसंती दरवाजा और तीसरा बगली दरवाजा है। इसके बाद मजार शरीफ और मस्जिद है।
बुलंद दरवाजा 75 फिट ऊंचा और 48 फिट चौड़ा है। मजार का गुंबद चिकनी मिट्टी से बना हुआ है, जिसमें पत्थर नहीं लगाया गया है। कहते हैं कि इस गुंबद से शक्कर बरसती थी, इसलिए बाबा को शकरबार नाम मिला। नरहड़ के इस जोहड़ में दूसरी तरफ पीर बाबा के साथी दफन हैं, जिन्हें घरसों वालों का मजार के नाम से जाना जाता है।
इतना महत्वपूर्ण स्थल होने के उपरान्त भी राजस्थान वक्फ बोर्ड की उदासीनता के चलते यहां का समुचित विकास नहीं हो पाया है इस कारण यहां आने वाले जायरीनों को परेशानी उठानी पड़ती है। झुंझुंनू जिला प्रशासन, राजस्थान वक्फ बोर्ड को इस प्रसिद्ध दरगाह परिसर का योजनाबद्ध ढंग से समुचित विकास करवाना चाहिये ताकि यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं को असुविधाओं का सामना नहीं करना पड़े।





सम्बन्धित प्रश्न



Comments VINOD JANGIR on 23-08-2023

आपकी नरहर पीर हिस्ट्री में

अंदर श्री कृष्ण जी के मंदिर का कहि जिक्र नही है यहाँ पर कृष्ण जी का मंदिर भी है दरगाह से पुराना है ।

ज्ञानवापी


रिहाना on 11-08-2023

हाजिब शकरबार पीर बाबा की history नहीं बताई।

Yogesh on 12-02-2022

Bicmella


Sanjay Kumar on 08-01-2022

Me narhed sarif ka dasa hu mujhe yeh Janna he ki sakar baba Haji pir ji ka Janam kab huaa tha jai Haji badshah ki

Rafiq Chopdar on 11-12-2021

वास्तव में हाजी सकरवार बाबा बहुत बड़ी हस्ती है बहुत बड़े वर्ली हैं हर एक की मुराद और तमन्ना पूरी करते हैं वर्षों से बड़े-बड़े परिवार खानदान इस बाबा के मुरीद हैं मुझे फक्र है कि मैं भी यहां का मुरीद हूं


Munesh Kumar Meena on 15-09-2021

Mai bhi baba ka bhakt hu

Pardhan ji on 25-12-2020

अंदर श्री कृष्ण जी के मंदिर का कहि जिक्र नही है यहाँ पर कृष्ण जी का मंदिर भी है दरगाह से पुराना है ।


Rajat on 11-06-2020

Rajput nhi jat Raja tha...Nehra gotrr ka.... 600 saalo se hmara parivar Manta ara h is dargah ko...Hmare purvaj Bharatpur ke the...uske baad rajasthan Haryana border pe basse fir Punjab...or aajtak bhi hum jaate hai Narhad peer





नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें Culture Current affairs International Relations Security and Defence Social Issues English Antonyms English Language English Related Words English Vocabulary Ethics and Values Geography Geography - india Geography -physical Geography-world River Gk GK in Hindi (Samanya Gyan) Hindi language History History - ancient History - medieval History - modern History-world Age Aptitude- Ratio Aptitude-hindi Aptitude-Number System Aptitude-speed and distance Aptitude-Time and works Area Art and Culture Average Decimal Geometry Interest L.C.M.and H.C.F Mixture Number systems Partnership Percentage Pipe and Tanki Profit and loss Ratio Series Simplification Time and distance Train Trigonometry Volume Work and time Biology Chemistry Science Science and Technology Chattishgarh Delhi Gujarat Haryana Jharkhand Jharkhand GK Madhya Pradesh Maharashtra Rajasthan States Uttar Pradesh Uttarakhand Bihar Computer Knowledge Economy Indian culture Physics Polity

Labels: , , , , ,
अपना सवाल पूछेंं या जवाब दें।






Register to Comment