Ushma Sancharan Ki Vidhi ऊष्मा संचरण की विधि

ऊष्मा संचरण की विधि



GkExams on 18-12-2018


ऊष्मा के स्थान से दूसरे स्थान तक जाने को ऊष्मा का संचरण कहते हैं। इसकी तीन विधियां हैं – चालन, संवहन एवं विकिरण।

चालन - पदार्थ में ऊष्मा पदार्थ के अणुओं में गतिज ऊर्जा के रूप में रहती है। जब किसी पदार्थ में ऊष्मा बढ़ती है तो उसके अणुओं में गतिज ऊर्जा बढ़ने लगती है और पदार्थ के अणु हिलने लगते हैं। ठंडा होने पर, अर्थात ऊष्मा कम होने पर पदार्थ के अणु हिलना बंद कर देते हैं। यदि पदार्थ में ऊष्मा बढ़ जाये तो यह अणु एक दूसरे से टकरा कर अपनी ऊर्जा पास के अन्य अणुओं को देते हैं और पास के अणु भी हिलने लगते हैं। इसे ही ऊष्मा का चालन कहते हैं।

संवहन - यदि ऊष्मा बढ़ती ही जाए तो एक समय आयेगा पदार्थ के अणु बहुत तेजी से हिलेंगे और फिर हिलते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने लगेंगे। ऐसे में यदि वह पदार्थ ठोस था, तो अणुओं की गति के कारण उसकी अवस्था बदल कर द्रव की हो जायेगी और पदार्थ अपने अणुओं की गति के कारण बहने लगेगा। द्रव के अणु गति करते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान तक जायेंगे और अपनी ऊर्जा अन्य अणुओं को देंगे। इससे द्रव के अंदर धाराएं बनने लगेंगी, जिन्हें संवहन धराएं कहा जाता है और ऊष्मा के संचरण की इस विधि को संवहन कहते हैं।

यदि ऊष्मा को और बढ़ाया जाये तो पदार्थ के अणु और तेजी से गति करेंगे और धीरे-धीरे कुछ अणु द्रव की सतह के बाहर जाने लगेंगे। इस समय यह द्रव वाष्पीकृत होकर गैस में परिवर्तित होने लगेगा।

विकिरण – ऊष्मा के संचरण का एक और तरीका भी है। इसमें बिना किसी भी पदार्थ की उपस्थिति के ही ऊष्मा का संचरण होता है। उदाहरण के लिए सूर्य की ऊष्मा अंतरि‍क्ष के निर्वात से भी संचरित होकर धरती तक आती है। ऊष्मा के संचरण की इस विधि में ऊष्मा विद्युत-चुम्बकीय ऊर्जा के रूप में संचरित होती है।

सुचालक और कुचालक – जिन पदार्थों में ऊष्मा का संचरण चालन की विधि से होता है उन्हें ऊष्मा का सुचालक कहते हैं और जिन पदार्थों में इस विधि से ऊष्मा का संचरण नहीं होता उन्हें ऊष्मा का कुचालक कहते हैं। लकड़ी, प्लास्टिक आदि ऊष्मा के कुचालक है और धातुएं सुचालक हैं। इसके लिये एक सरल गतिविधि की जा सकती है। एक बर्तन में गर्म पानी लेकर उसमें स्टील का चम्मच, प्लास्टिक का स्केल, लकड़ी की पेंसिल आदि डाल दें। कुछ देर बाद छूकर देखें। स्टील का चम्मच गर्म हो गया है परंतु प्लास्टिक का स्‍केल और लकड़ी की पेंसिल ठंडी ही हैं –

सुचालक पदार्थ में ऊष्मा का चालन देखने के लिये एक सरल गतिविधि करें। लोहे के एक तार में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर तीन-चार जगह मोम चिपका दें। अब इस तार का एक छोर आग पर गर्म करें। आप देखेंगे कि पहले आग के पास वाला मोम पिघलता है और फिर धीरे-धीरे दूर का मोम भी पिघलने लगता है। यह लोहे के तार में ऊष्मा के चालन के कारण है।

पदार्थों की चालकता भिन्न -भिन्न होती है। इसे देखने के लिये अलग-अलग धातुओं के तार लेकर उनके एक छोर पर मोम से धातु की गेंदें चिपका दें। इसके बाद इन तारों को स्पोक की तरह रखकर बीच में आग पर गर्म करें। आप देखेंगे कि जिस धातु की ऊष्मा चालकता अधिक है उसपर चिपकी हुई धातु की गेंद जल्दी गिर जाती है क्योंकि उसमें ऊष्मा का संचरण जल्दी होकर मोम को जल्दी पिघला देता है। जिस धातु में ऊष्मा चालकता कम है उसकी गेंद देर से गिरती है।

द्रवों में संवहन दिखाने की गतिविधि – एक कांच के बर्तन में पानी भर लें। इस बर्तन में पोटेसियम पर्मेंगनेट के कुछ क्रिस्टल डालें। यह क्रिस्टल तली में बैठ जायेंगे। अब बर्तन को गर्म करें। आपको पोटेसियम परर्मेंगनेट की रंगीन पानी की संवहन धाराएं दिखाई देंगी।

गैसों में संवहन दिखाने की गतिविधि – एक डब्बे की छत में दो छेद करें और उन छेदों पर प्लास्टिक की 2 बोतलें उल्टी करके और बोतलों की तली को काट कर चिपका दें। अब डब्बे में एक मोमबत्ती जलाकर रखें और डब्बा बंद कर दें। अब यदि एक बोतल के ऊपर एक कागज को जलाकर या अगरबत्ती को जलाकर रखेंगे और उस बोतल को इस प्रकार बंद कर देंगे कि धुआं अंदर जाने लगे तो आपको यह धुआं दूसरी बोतल में से निकलता हुआ दिखेगा। यह हवा में संवहन धाराएं बनने के कारण होता है। –

विकिरण – विकिरण में पदार्थ की आवश्यकता नहीं होती है। इसका उदाहरण है कि जब हम सर्दियों के मौसम में आग तापते हैं तो जलती हुई आग से ऊष्मा हमारे शरीर तक विकि‍रण के व्दारा आती है। चमकीली सतह से प्रकाश की तरह ही ऊष्मा का भी परावर्तन हो जाता है क्योंकि यह दोनो ही इलेक्‍ट्रोमेगनेटिक हैं। काले रंग की वस्तुओं से विकिरण अधिक होता है।

थर्मस फ्लास्क – थर्मस फ्लास्क का उपयोग गर्म वस्तुओं को गर्म और ठंडी वस्तुओं को ठंडा रखने के लिये किया जाता है। इसमें से न तो ऊष्मा बाहर जा सकती है और न ही इसके अंदर जा सकती है। इसमें एक बाहर के आवरण के अंदर एक बोतल होती है जो एक कुचालक सपोर्ट पर रखी होती है जिसके कारण चालन से ऊर्जा का संचरण नहीं हो सकता। अंदर की बोतल में 2 दीवालें होती है जिनके बीच निर्वात होता है। अत: इसमें संवहन भी नहीं हो सकता। क्योंकि निर्वात में भी विकिरण हो सकता है इसलिये विकिरण को रोकने के लिये बोतल की दोनो दीवालों की अंदरूनी सतह को दपर्ण की तरह चमकीला पालिश किया जाता है जिससे ऊष्मा का परावर्तन हो जाता है और विकिरण से भी ऊष्मा का संचरण नहीं हो पाता है।




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Comments Vijay chandra on 13-01-2024

Its so easy. Best trick for explain

गोविंद on 08-12-2022

तापमापी में उस में संचरण की किस विधि से पारा पारा नली में ऊपर चढ़ता है

Mukul savita on 24-11-2021

निर्वात में ऊष्मा का संचरण............ द्वारा होता है


Govind on 03-04-2021

तापमापी मे पारा ऊष्मा संचरण की किस विधि से चढ़ता है

Madhu on 30-04-2020

Kya hai 200 mein usma ka sancharan kya hai





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