Bihar Ki Krishi Ki Kya Visheshta Hai बिहार की कृषि की क्या विशेषता है

बिहार की कृषि की क्या विशेषता है



Pradeep Chawla on 12-05-2019

बिहार की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। बिहार का कुल भौगोलिक क्षेत्र लगभग 93.60 लाख हेक्‍टेयर है जिसमें से केवल 56.03 लाख हेक्‍टेयर पर ही खेती होती है। राज्‍य में लगभग 79.46 लाख हेक्‍टेयर भूमि कृषि योग्‍य है। विभिन्‍न साधनों द्वारा कुल 43.86 लाख हेक्‍टेयर भूमि पर ही सिंचाई सुविधाएं उपलब्‍ध हैं जबकि लगभग 33.51 लाख हेक्‍टेयर भूमि की सिंचाई होती है।



बिहार की प्रमुख खाद्य फ़सलें हैं- धान, गेहूँ, मक्‍का और दालें। मुख्‍य नकदी फ़सलें हैं- गन्ना, आलू, तंबाकू, तिलहन, प्‍याज, मिर्च, पटसन। लगभग 6,764.14 वर्ग कि. मी. क्षेत्र में वन फैले हैं जो राज्‍य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 7.1 प्रतिशत हैं।

सिंचाई



बिहार में कुल सिंचाई क्षमता 28.63 लाख हेक्‍टेयर है। यह क्षमता बड़ी तथा मंझोली सिंचाई परियोजनाओं से जुटाई जाती है। यहाँ बड़ी और मध्‍यम सिंचाई परियोजनाओं का सृजन किया गया है और 48.97 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्रफल की सिंचाई प्रमुख सिंचाई योजनाओं के माध्‍यम से की जाती है।


Pradeep Chawla on 12-05-2019

भारत के राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों की स्थापना तिथि अनुसार सूची में भारत के राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश अपनी स्थापना तिथि के साथ दिए गए हैं।

भारत



के राज्य और संघ क्षेत्र

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क्षेत्रफल | वाहन घनत्व | लिंगानुपात

जनसंख्या | राजधानियाँ | राष्ट्रीय महामार्ग

उच्चतम बिन्दु | बाल पोषाहार | बेरोज़गारी दर

जीडीपी | अपराध दर | आर्थिक मुक्ति

कर राजस्व | गृह स्वामित्व | लोकसभा सीटें

संक्षिप्त नाम | संस्थागत प्रसव | मानव तस्करी

प्राकृतिक जन्म दर | जीवन प्रत्याशा | मतदाता संख्या

टीकाकरण | | निर्धनता दर

साक्षरता दर | बलात्कार दर | दंगा दर

बिजली | पेयजल उपलब्धता | विद्यालय नामांकन दर

राजधानियाँ | महिला सुरक्षा | एच॰आई॰वी जागरुकता

मीडिया की पहुँच | नाम की व्युत्पत्ति | परिवार का आकार

अल्पभार जनसंख्या | टीवी स्वामित्व | ऊर्जा उत्पादन क्षमता

इस संदूक को: देखें • संवाद • संपादन

क्रमांक राज्य स्थापना तिथि

१. अरुणाचल प्रदेश २० फ़रवरी १९८७[1]

२. असम वर्ष १९४७[2]

३. आन्ध्र प्रदेश १ अक्टूबर १९५३

४. उत्तराखण्ड १ नवम्बर २०००[3]

५. उत्तर प्रदेश वर्ष १९५०[4]

६. उड़ीसा जनवरी १९४९[5]

७. कर्नाटक वर्ष १९५६ और १९७३[6]

८. केरल १ नवम्बर १९५६[7]

९. गुजरात १ मई १९६०[8]

१०. गोआ ३० मई १९८७[9]

११. छत्तीसगढ़ १ नवम्बर २०००[10]

१२. जम्मू और कश्मीर २६ अक्टूबर १९४७[11]

१३. झारखण्ड १५ नवम्बर २०००[12]

१४. तमिल नाडु १९४७ के बाद[13]

१५. त्रिपुरा वर्ष १९७२[14]

१६. नागालैण्ड १ दिसम्बर १९६३

१७. पंजाब १९४७[15], १९५६[16] और १९६६[17]

१८. पश्चिम बंगाल १९४७[18] और १९५६[19]

१९. बिहार वर्ष १९४७[20]

२०. मणिपुर २१ जनवरी १९७२[21]

२१. मध्य प्रदेश १ नवंबर १९५६[22]

२२. महाराष्ट्र १ मई १९६०[23]

२३. मिज़ोरम फ़रवरी १९८७[24]

२४. मेघालय २१ जनवरी १९७२[25]

२५. राजस्थान वर्ष १९५८[26]

२६. सिक्किम वर्ष १९७५[27]

२७. हरियाणा १ नवम्बर १९६६[28]

२८. हिमाचल प्रदेश वर्ष १९६६[29]

२९. तेलंगाना ०२ जून २०१४

क्रमांक संघक्षेत्र स्थापना तिथि

१. अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह १९४७

२. चण्डीगढ़ १ नवम्बर, १९६६[30]

३. दमन और दीव १९६१ और ३० मई, १९८७[31]

४. दादरा और नागर हवेली ११ अगस्त, १९६१[32]

५. पॉण्डिचेरी १ नवम्बर, १९५४[33]

६. दिल्ली १९११[34], १९५६[35], १९९१[36]

७. लक्षद्वीप १९५६[37]

टिप्पणीसूची



सन १९६२ से पहले इस क्षेत्र को नार्थ-ईस्‍ट फ़्रण्टियर एजेन्सी (नेफा) के नाम से जाना जाता था। संवैधानिक रूप से यह असम का एक भाग था। परन्तु इस क्षेत्र के सामरिक महत्‍व के कारण १९६५ तक यहाँ के प्रशासन की देखभाल विदेश मन्त्रालय करता था। उसके बाद असम के राज्यपाल के माध्‍यम से यहाँ का प्रशासन गृह मन्त्रालय के अधीन आया। सन १९७२ में इसे केन्द्र शासित क्षेत्र बना दिया गया और इसका नया नामकरण अरुणाचल प्रदेश किया गया। इसके पश्‍चात् २० फ़रवरी १९८७ को यह भारतीय संघ का २४वां राज्‍य बना।

१९४७ में असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैण्ड, मिज़ोरम और मेघालय के साथ मिलकर भारतीय संघ का राज्य बना।

वर्तमान उत्तराखण्ड राज्‍य पहले आगरा और अवध के संयुक्‍त प्रान्त का भाग था। यह प्रान्त १९०२ में अस्तित्‍व में आया। सन १९३५ में इसे संक्षेप में केवल संयुक्‍त प्रान्त कहा जाने लगा। जनवरी १९५० में संयुक्‍त प्रान्त का नाम ‘उत्तर प्रदेश’ रखा गया। ९ नंवबर, २००० को भारत का २७वां राज्‍य बनने से पूर्व तक उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश का भाग बना रहा।

अंग्रेजों ने आगरा और अवध नामक दो प्रान्तों को मिलाकर एक प्रान्त बनाया जिसे आगरा और अवध संयुक्‍त प्रान्त के नाम से पुकारा जाने लगा। बाद में १९३५ में इसे संक्षेप में केवल संयुक्‍त प्रान्त कर दिया गया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्‍चात् जनवरी १९५० में संयुक्‍त प्रान्त का नाम ‘उत्तर प्रदेश’ रखा गया।

१ अप्रैल सन १९३६ को उड़ीसा को अलग प्रान्त का दर्जा दे दिया गया। स्वतन्त्रता के पश्‍चात उड़ीसा तथा इसके आसपास की रियासतों ने भारत सरकार को अपनी प्रभुसत्‍ता सौंप दी। रियासतों (गवर्नर के अधीन प्रन्तों) के विलय सम्बन्धी आदेश १९४९ के अंतर्गत जनवरी १९४९ में उड़ीसा की सभी रियासतों का उड़ीसा राज्‍य में पूर्ण विलय कर दिया गया।

स्वतन्त्रता संग्राम के बाद कर्नाटक में एकता लाने का अभियान आरम्भ किया गया। स्वतन्त्रता के बाद १९५३ में मैसूर राज्‍य का निर्माण किया गया, जिसमें कन्‍नड़ बहुल क्षेत्रों को एक साथ लाकर एक बड़े मैसूर राज्‍य का निर्माण १९५६ में किया गया तथा इसे १९७३ में कर्नाटक का नया नाम दिया गया।

जब स्वतन्त्र भारत में छोटी रियासतों का विलय हुआ तब त्रावनकोर तथा कोचीन रियासतों को मिलाकर १ जुलाई १९४९ को त्रावनकोर कोचीन राज्‍य बना दिया गया, किन्तु मालाबार मद्रास प्रान्त के अधीन रहा। राज्‍य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ के अन्तर्गत त्रावनकोर-कोचीन राज्‍य तथा मालाबार को मिलाकर १ नवम्बर १९५६ को केरल राज्‍य बनाया गया

स्वतन्त्रता से पहले गुजरात का वर्तमान क्षेत्र मुख्‍य रूप से दो भागों में बंटा था- एक ब्रिटिश क्षेत्र और दूसरा देसी रियासतें। राज्‍यों के पुनर्गठन के कारण सौराष्‍ट्र के राज्‍यों और कच्‍छ के केन्द्र शासित प्रदेश के साथ पूर्व ब्रिटिश गुजरात को मिलाकर द्विभाषी बम्बई राज्‍य का गठन हुआ। १ मई १९६० को वर्तमान गुजरात राज्‍य अस्तित्‍व में आया।

भारत के स्वतन्त्र होने के बाद भी गोवा पुर्तगालियो के अधिकार में रहा, किन्तु पुर्तगाली शासक गोवावासियों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर पाए और अंतत: १९ दिसम्बर १९६१ को गोवा को मुक्‍त करा लिया गया और इसे दमन तथा दीव के साथ मिलाकर केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया। ३० मई १९८७ को गोवा को पूर्ण राज्‍य को दर्ज दिया गया और दमन तथा दीव को अलग केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया।

अपनी स्थापना से पहले तक यह मध्य प्रदेश का भाग था।

जम्‍मू का उल्‍लेख महाभारत में भी मिलता है। हाल में अखनूर से प्राप्‍त हड़प्‍पा कालीन अवशेषों तथा मौर्य, कुषाण और गुप्‍त काल की कलाकृतियों से जम्‍मू के प्राचीन स्‍वरूप पर नव प्रकाश पड़ा है। जम्‍मू २२ पहाड़ी रियासतों में बंटा हुआ था। डोगरा शासक राजा मालदेव ने कई क्षेत्रों को जीतकर अपने विशाल राज्‍य की स्‍थापना की। सन १७३३ से १७८२ तक राजा रंजीत देव ने जम्‍मू पर शासन किया किन्तु उनके उत्तराधिकारी दुर्बल थे, इसलिए महाराजा रंजीत सिंह ने जम्‍मू को पंजाब में मिला लिया। बाद में उन्‍होंने डोगरा शाही राजवंश के वंशज राजा गुलाब सिंह को जम्‍मू राज्‍य सौंप दिया। गुलाब सिं‍ह, रंजीत सिंह के गवर्नरों में सबसे शक्तिशाली बन गए और लगभग समूचे जम्‍मू क्षेत्र को उन्‍होंने अपने राज्‍य में मिला लिया। सन १९४७ में जम्‍मू पर डोगरा शासकों का शासन रहा। इसके बाद महाराज हरि सिंह ने २६ अक्‍तूबर, १९४७ को भारतीय संघ में विलय के समझौते पर हस्‍ताक्षर किए।

अपनी स्थापना से पहले तक यह बिहार का भाग था।

सन १९०१ में मद्रास प्रेसीडेंसी बनी जिसमें दक्षिण प्रायद्वीप के अधिकतर भाग सम्मिलित थे। बाद में संयुक्‍त मद्रास राज्‍य का पुनर्गठन किया गया और वर्तमान तमिल नाडु राज्‍य अस्तित्‍व में आया।

१९वीं शताब्‍दी में महाराजा वीरचन्द्र किशोर माणिक्‍य बहादुर के शासनकाल में त्रिपुरा में नए युग का सूत्रपात हुआ। उन्‍होंने अपने प्रशासनिक ढांचे को ब्रिटिश भारत के नमूने पर बनाया और कई सुधार लागू किए। उनके उत्‍तराधिकारियों ने १५ अक्टूबर १९४९ तक त्रिपुरा पर शासन किया। इसके बाद त्रिपुरा भारत संघ में सम्मिलित हो गया। आरम्भ में यह भाग-सी के अंतर्गत आने वाला राज्‍य था और १९५६ में राज्‍यों के पुनर्गठन के बाद यह केन्द्र शासित प्रदेश बना। १९७२ में इसने पूर्ण राज्‍य का दर्जा प्राप्‍त किया।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद पंजाब का सिख और हिन्दू बहुल भाग भारत को मिला। पूर्वी पंजाब की आठ रियासतों को मिलाकर नए राज्‍य पेप्‍सू तथा पूर्वी पंजाब राज्‍य संघ-पटियाला का निर्माण किया गया। पटियाला को इसकी राजधानी बनाया गया।

सन १९५६ में पेप्‍सू को पंजाब में मिला दिया गया।

१९६६ में पंजाब से हिन्दी भाषी बहुल क्षेत्रों को निकालकर हरियाणा राज्य बनाया गया।

भारत विभाजन के बाद बंगाल प्रान्त का हिन्दू बहुल भाग भारत को मिला।

१९४७ के बाद देसी रियासतों के विलय का काम आरम्भ हुआ और राज्‍य पुनर्गठन अधिनियम, १९५६ की सिफारिशों के अनुसार पड़ोसी राज्‍यों के कुछ बांग्‍लाभाषी क्षेत्रों को पश्चिम बंगाल में मिला दिया गया

देखें बिहार का इतिहास

१८९१ में मणिपुर ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया और १९४७ में शेष देश के साथ स्वतन्त्र हुआ। २६ जनवरी १९५० को भारतीय संविधान लागू होने पर यह एक मुख्‍य आयुक्‍त के अधीन भारतीय संघ में भाग सी के राज्‍य के रूप में सम्मिलित हुआ। बाद में इसके स्‍थान पर एक प्रादेशिक परिषद गठित की गई जिसमें ३० चयनित त‍था दो मनोनीत सदस्‍य थे। इसके बाद १९६२ में केन्द्र शासित प्रदेश अधिनियम के अंतर्गत ३० चयनित तथा तीन मनोनीत सदस्‍यों की एक विधानसभा स्‍‍थापित की गई। १९ दिसम्बर १९६९ से प्रशासक का दर्जा मुख्‍य आयुक्‍त से बढ़ाकर उप राज्‍यपाल कर दिया गया। २१ जनवरी १९७२ को मणिपुर को पूर्ण राज्‍य का दर्जा मिला और ६० निर्वाचित सदस्‍यों वाली विधानसभा गठित की गईं।

मध्‍य प्रदेश की स्‍थापना १ नवम्बर १९५६ को हुई। नया राज्‍य छत्‍तीसगढ़ बनाने के लिए हुए विभाजन के बाद यह अपने वर्तमान स्‍वरूप में १ नवम्बर २००० को अस्तित्‍व में आया।

देश के राज्‍यों के भाषाई पुनर्गठन के फलस्‍वरूप १ मई १९६० को महाराष्‍ट्र राज्‍य का प्रशासनिक प्रादुर्भाव हुआ। यह राज्‍य आसपास के मराठी भाषी क्षेत्रों को मिलाकर बनाया गया, जोकि पहले चार अलग अलग प्रशासनों के नियन्त्रण में थे। इनमें मूल ब्रिटिश बम्बई प्रान्त में सम्मिलित दमन तथा गोआ के बीच का जिला, हैदराबाद के निजाम की रियासत के पांच जिले, मध्‍य प्रान्त (मध्‍य प्रदेश) के दक्षिण के आठ जिले तथा आसपास की ऐसी अनेक छोटी-छोटी रियासतें सम्मिलित थीं, जो समीपवर्ती जिलों में मिल गई थी।

मिज़ोरम एक पर्वतीय प्रदेश है। फ़रवरी, १९८७ को यह भारत का २३वां राज्‍य बना। १९७२ में केन्द्र शासित प्रदेश बनने से पहले तक यह असम का एक जिला था। १८९१ में ब्रिटिश अधिकार में जाने के बाद कुछ वर्षो तक उत्‍तर का लुशाई पर्वतीय क्षेत्र असम के और आधा दक्षिणी भाग बंगाल के अधीन रहा। १८९८ में दोनों को मिलाकर एक जिला बना दिया गया जिसका नाम पड़ा-लुशाई हिल्‍स जिला और यह असम के मुख्‍य आयुक्‍त के प्रशासन में आ गया। १९७२ में पूर्वोत्‍तर क्षेत्र पुनर्गठन अधिनियम लागू होने पर मिज़ोरम केन्द्र शासित प्रदेश बन गया। भारत सरकार और मिज़ो नेशनल फ़्रण्ट के बीच १९८६ में हुए ऐतिहासिक समझौते के फलस्‍वरूप २० फ़रवरी १९८७ को इसे पूर्ण राज्‍य का दर्जा दिया गया।

मेघालय का गठन असम के अंतर्गत २ अप्रैल १९७० को एक स्‍वायत्तशासी राज्‍य के रूप में किया गया। एक पूर्ण राज्‍य के रूप में मेघालय २१ जनवरी १९७२ को अस्तित्‍व में आया।

सन १९३५ में अंग्रेजी शासन वाले भारत में प्रान्तीय स्‍वायत्‍तता लागू होने के बाद राजस्‍थान में नागरिक स्वतन्त्रता तथा राजनीतिक अधिकारों के लिए आन्दोलन और तेज हो गया। १९४८ में इन बिखरी हुई रियासतों को एक करने की प्रक्रिया आरम्भ हुई, जो १९५६ में राज्‍य में पुनर्गठन कानून लागू होने तक जारी रही। सबसे पहले १९४८ में मत्‍स्‍य संघ बना, जिसमें कुछ ही रियासतें सम्मिलित हुईं। धीरे-धीरे बाकी रियासतें भी इसमें मिलती गई। सन १९४९ तक बीकानेर, जयपुर, जोधपुर और जैसलमेर जैसी मुख्‍य रियासतें इसमें सम्मिलित हो चुकी थीं और इसे बृहत्तर राजस्‍थान संयुक्‍त राज्‍य का नाम दिया गया। सन १९५८ में अजमेर, आबू रोड तालुका और सुनेल टप्‍पा के भी सम्मिलित हो जाने के बाद वर्तमान राजस्‍थान राज्‍य विधिवत अस्तित्‍व में आया।

१९७५ में हुए एक जनमत संग्रह में सिक्किम के लोगों ने भारतीय संघ् में जुड़ने के पक्ष में मतदान किया।

सन १८५७ के विद्रोह को कुचलने के बाद जब ब्रिटिश प्रशासन फिर से स्‍थापित हुआ तो झज्‍जर और बहादुरगढ़ के नवाबों, बल्‍लभगढ़ के राजा त‍था रिवाड़ी के राव तुलाराम की सत्ता छीन ली गई। उनके क्षेत्र या तो ब्रिटिश क्षेत्रों में मिला लिए गए या पटियाला, नाभ और जींद के शासकों को सौंप दिए गए। इस प्रकार हरियाणा पंजाब प्रान्त का भाग बन गया। १ नवम्बर १९६६ को पंजाब के पुनर्गठन के बाद हरियाणा पूर्ण राज्‍य बन गया।

अप्रैल १९४८ में इस क्षेत्र की २७,००० वर्ग कि॰मी॰ में फैली लगभग ३० रियासतों को मिलाकर इस राज्‍य को केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया। १९५४ में जब ‘ग’ श्रेणी की रियासत तबलासपुर को इसमें मिलाया गया, तो इसका क्षेत्रफल बढ़कर २८,२४१ वर्ग कि.मी.हो गया। सन १९६६ में इसमें पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों को मिलाकर इसका पुनर्गठन किया गया तो इसका क्षेत्रफल बढ़कर ५५,६७३ वर्ग कि॰मी॰ हो गया।

चण्डीगढ़ और उसके आसपास के क्षेत्र को १ नवम्बर १९६६ को केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया।

दमन और दीव तथा गोवा देश की स्वतन्त्रता के बाद भी पुर्तगाल के अधीन रहे। सन १९६१ में इन्‍हें भारत का अभिन्‍न अंग बना दिया गया। ३० मई १९८७ को गोवा को राज्‍य का दर्जा दिए जाने के बाद दमन और दीव को अलग केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया।

मराठों और पुर्तगालियों के बीच लम्बे संघर्ष के बाद १७ दिसम्बर १७७९ को मराठा सरकार ने मित्रता सुनिश्चित करने की खातिर इस प्रदेश के कुछ गांवों का १२,००० रूपये का राजस्‍व क्षतिपूर्ति के तौर पर पुर्तगालियों को सौंप दिया। जनता द्वारा २ अगस्‍त, १९५४ को मुक्‍त कराने तक पुर्तगालियों ने इस प्रदेश पर शासन किया। १९५४ से १९६१ तक यह प्रदेश लगभग स्‍वतन्त्र रूप से काम करता रहा जिसे ‘स्‍वतन्त्र दादरा एवँ नगर हवेली प्रशासन’ ने चलाया। लेकिन ११ अगस्‍त, १९६१ को यह प्रदेश भारतीय संघ में सम्मिलित हो गया और तब से भारत सरकार एक केन्द्र शासित प्रदेश के रूप में इसका प्रशासन कर रही है।

यह १३८ वर्षों तक फ़्रांसीसी शासन के अधीन रहा। और १ नवम्बर १९५४ को भारत में इसका विलय हो गया।

१८वीं सदी के उत्तरार्द्ध और १९वीं सदी के पूर्वार्द्ध में दिल्‍ली में अंग्रेज़ी शासन की स्‍थापना हुई। १९११ में कोलकाता से राजधानी दिल्‍ली स्‍थानान्तरित होने पर यह नगर सभी प्रकार की गतिविधियों का केन्द्र बन गया।

१९५६ में दिल्ली को केन्द्र शासित प्रदेश का दर्जा प्राप्‍त हुआ।

दिल्‍ली के इतिहास में ६९वां संविधान संशोधन विधेयक एक महत्‍वपूर्ण घटना है, जिसके फलस्‍वरूप राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम, १९९१ में लागू हो जाने से दिल्‍ली में विधानसभा का गठन हुआ।

१९५६ में इन द्वीपों को मिलाकर केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया और त‍ब इसका शासन केन्द्र सरकार के प्रशासक के माध्‍यम से चल रहा है। सन १९७३ में लक्‍का दीव, मिनीकाय और अमीनदीवी द्वीपसमूहों का नाम लक्षद्वीप कर दिया।




सम्बन्धित प्रश्न



Comments Md Abdullah on 12-06-2023

Bihar ki Krishi ki kya visheshtaen hain

Shivam Sharma on 18-07-2021

Bihar ma कृषि का kay bishesta ha

बिहार की कृषि की कया कया विशेषताएँ है ? on 20-04-2021

बिहार की कृषि की कया कया विशेषता हु






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