Bachpan Aur Bada Ho Raha Kha Ed Notes बचपन और बड़ा हो रहा ख एड नोट्स

बचपन और बड़ा हो रहा ख एड नोट्स



Pradeep Chawla on 12-05-2019

बाल विकास की अवधारणा और इसका अधिगम से सम्बन्ध



बाल विकास एक व्यापक अवधारणा है जिसके अंतर्गत मनुष्य में जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत तक होने वाले सभी परिमाणात्मक तथा गुणात्मक परिवर्तनों को सम्मिलित किया जाता है. अर्थात बढ़ती उम्र के साथ मनुष्य की शारीरिक संरचना या आकार, लम्बाई, भार और आतंरिक अंगों में होने वाले परिवर्तनों के साथ-साथ मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक, बौद्धिक आदि पक्षों में परिपक्वता विकास कहलाती है.



विकास एक क्रमिक तथा निरंतर चलने वाली सतत प्रक्रिया है, जो शारीरिक वृद्धि के अवरुद्ध हो जाने के बाद भी चलता रहता है तथा जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत चलता रहता है. यह क्रमबद्ध रूप से होने वाले सुसंगत परिवर्तनों की क्रमिक श्रृंखला है. कहने का तात्पर्य यह है कि ये परिवर्तान एक निश्चित दिशा में होते हैं जो सदैव आगे की ओर उन्मुक्त रहती है.



वृद्धि तथा विकास में अंतर: आमतौर पर वृद्धि तथा विकास का अर्थ एकसमान मान लिया जाता है लेकिन मनोवैज्ञानिक अवधारणा के अनुसार ये परस्पर भिन्न होते हैं. वृद्धि शब्द का प्रयोग, बढ़ती उम्र के साथ व्यक्ति के शारीरिक अंगों के आकार, लम्बाई, और भार में बढ़ोतरी के लिए किया जाता है. मनुष्य जैसे-जैसे बड़ा होता है उसका आकार, लम्बाई, नाक-नक्श आदि में परिवर्तन आने लगता है इसके स्थान पर नए नाक-नक्श आदि प्रकट होने लगता है. अर्थात वृद्धि को मापा जा सकता है किन्तु विकास व्यक्ति की क्रियाओं में निरंतर होने वाले परिवर्तनों में परिलक्षित होता है. अतः मनोवैज्ञानिक अर्थों में विकास केवल शारीरिक आकार, और अंगों में परिवर्तन होना ही नहीं है, यह नई विशेषताओं और क्षमताओं का विकसित होना भी है जो गर्भावस्था से प्रारंभ होकर वृद्धावस्था तक चलता रहता है. विकास के परिणामस्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएं और नवीन योग्यताएं प्रकट होती है.



विकास की अवस्थाएं: मानव विकास विभिन्न अवस्थाओं से होकर गुजरता है इन्हें निम्न अवस्थाओं में विभाजित किया जा सकता है:



गर्भावस्था: यह अवस्था गर्भाधान से जन्म के समय तक, 9 महिना या 280 दिन तक मानी जाती है.



विशेषताएं:



इस अवस्था में विकास की गति तीव्र होती है.

शरीर के समस्त अंगों की रचना और आकृतियों का निर्माण होता है.

इस अवस्था में होने वाले परिवर्तन मुख्यतः शारीरिक होते हैं.

शैशवावस्था: जन्म से पांचवे वर्ष तक की अवस्था को शैशवावस्था कहा जाता है. इस अवस्था को समायोजन की अवस्था भी कहते हैं.



विशेषताएं:



इस अवस्था में बालक अपरिपक्व होता है तथा वह पूर्णतया दूसरों पर निर्भर रहता है.

यह अवस्था संवेग प्रधान होती है तथा बालकों के भीतर लगभग सभी प्रमुख संवेग जैसे- प्रसन्नता, क्रोध, हर्ष, प्रेम, घृणा, आदि विकसित हो जाते हैं.

फ्रायड ने इस अवस्था को बालक का निर्माण काल कहा है. उनका मानना था कि ‘मनुष्य को जो भी बनाना होता है, वह प्रारंभिक पांच वर्षों में ही बन जाता है.

बाल्यावस्था: पांच से बारह वर्ष की अवधि को बाल्यावस्था कहा जाता है. यह अवस्था शारीरिक और मानसिक विकास की दृष्टी से महत्वपूर्ण होती है.



विशेषताएं:



बच्चे बहुत ही जिज्ञाशु प्रवृति का हो जाता उनमें जानने की प्रबल इच्छा होती है.

बच्चों में प्रश्न पूछने की प्रवृति विकसित होती है.

सामाजिकता का अधिकतम विकास होता है

इस अवस्था में बच्चों में मित्र बनाने की प्रबल इच्छा होती है

बालकों में ‘समूह प्रवृति’ (Gregariousness) का विकास होता है

किशोरावस्था: 12-20 वर्ष की अवधि को किशोरावस्था माना जाता है. इस अवस्था को जीवन का संधिकाल कहा गया है.



विशेषताएं:



इस अवस्था में बालकों में समस्या की अधिकता, कल्पना की अधिकता और सामाजिक अस्थिरता होती है जिसमें विरोधी प्रवृतियों का विकास होता है.

किशोरावस्था की अवधि कल्पनात्मक और भावनात्मक होती है.

इस अवस्था में बालकों में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ता है और वे भावी जीवन साथी की तलाश भी करते है.

उत्तर किशोरावस्था में व्यवहार में स्थायित्व आने लगता है

किशोरों में अनुशासन तथा सामाजिक नियंत्रण का भाव विकसित होने लगता है

इस अवस्था में समायोजन की क्षमता कम पायी जाती है.

प्रोढ़ावस्था: 21-60 वर्ष की अवस्था प्रोढ़ावस्था कहलाती है. यह गृहस्थ जीवन की अवस्था है जिसमें व्यक्ति को जीवन की वास्तविकता का बोध होता है और वास्तविक जीवन की अन्तःक्रियाएं होती है.



विशेषताएं:



इस अवस्था में व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्यों को पाने की कोशिश करता है.

व्यक्ति आत्मनिर्भर होता है

व्यक्ति की प्रतिभा उभर कर सामने आती है

वृद्धावस्था: 60 वर्ष से जीवन के अंत समय तक की अवधि को वृद्धावस्था कहा जाता है



विशेषताएं:



यह ह्रास की अवस्था होती है, इस आयु में शारीरिक और मानसिक क्षमता का ह्रास होने लगता है.

स्मरण की कमजोरी, निर्णय की क्षमता में कमी, समायोजन का आभाव आदि इस अवस्था की विशेषताएं है.

इस अवस्था में व्यक्ति में अध्यात्मिक चिंतन की ओर बढ़ता है.

विकास और अधिगम में सम्बन्ध



अधिगम (learning) का विकास से सीधा सम्बन्ध है. जन्म से ही मनुष्य सीखना प्रारंभ कर देता है और जीवन पर्यंत सीखता रहता है. जैसे-जैसे आयु बढ़ती है मनुष्य अपने अनुभवों के साथ-साथ व्यवहारों में भी परिवर्तन और परिमार्जन करता है वस्तुतः यही अधिगम है इसे ही सीखना कहते हैं. मनुष्य अपने विकास की प्रत्येक अवस्था में कुछ न कुछ अवश्य सीखता है लेकिन प्रत्येक अवस्था में सीखने की गति एक सामान नहीं होती. शैशवास्था में बालक माता के स्तन से दूध पीना सीखता है, बोतल द्वारा दूध पिलाये जाने पर निपल मुहं में कैसे ले यह सीखता है, थोडा बड़े होने पर ध्वनी और प्रकश से प्रतिक्रिया करना सीखता है. इस प्रकार मनुष्य जैसे-जैसे बड़ा होता जाता जाता है अपनी जरूरतों और अनुभवों से सीखता चला जाता है.



Comments Lalit kumar on 20-08-2023

Bed 1yers nots

Childhood and growing up on 13-12-2022

Balyavastha and abhivradhdhi

S on 03-05-2021

Bed 1 year notes


Vimala on 29-04-2021

इतिहास का जनक किसे कहा जाता हे

Bachpan badhte huye on 06-10-2020

Bachapan aur badhte huye





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