Rocket Indhan Me Prayukt Bahulak Ka Naam रॉकेट ईंधन में प्रयुक्त बहुलक का नाम

रॉकेट ईंधन में प्रयुक्त बहुलक का नाम



Pradeep Chawla on 10-10-2018

ठोस ईंधन वाले राकेट इंजन मानव द्वार निर्मित प्रथम इंजन है। ये सैकड़ो वर्ष पूर्व चीन मे बनाये गये थे और तब से उपयोग मे है। युद्ध मे प्रक्षेपास्त्र के रूप मे इनका प्रयोग भारत मे टीपू सुल्तान ने किया था।


ठोस ईंधन वाले राकेट इंजिन की कार्यप्रणाली जटिल नही है। इसे बनाने के लिए आपको कुछ ऐसा करना है कि ईंधन तीव्रता से जले लेकिन उसमे विस्फोट ना हो। बारूद मे विस्फोट होता है, जो कि 75% नाइट्रेट, 15% कार्बन तथा 10% गंधक(सल्फर) से बना होता है। राकेट इंजिन मे विस्फोट नही होना चाहिये इसलिये बारूद मे यदि 72% नाइट्रेट, 24% कार्बन तथा 4% गंधक का प्रयोग हो तो विस्फोट नही होता है बल्कि ऊर्जा सतत रूप से लम्बे समय तक प्राप्त होती है। अब यह मिश्रण बारूद ना होकर राकेट ईंधन के रूप मे प्रयुक्त हो सकता है। यह मिश्रण तिव्रता से जलेगा लेकिन विस्फोट नही होगा।


साथ मे दिये गये चित्र मे आप बायें प्रज्वलन से पहले तथा पश्चात राकेट को देख सकते है। ठोस ईंधन को पीले रंग मे दिखाया गया है। यह ईंधन के मध्य एक सीलेंडर के आकार मे सुरंग बनायी गयी है। जब ईंधन का प्रज्वलन होता है तब वह इस सुरंग की दिवारो के साथ जलता है। जलते हुये ईंधन की दिशा इस सुरंग की ओर से राकेट की बाह्य दिवारो की दिशा ओर होती है। एक छोटे राकेट प्रतिकृति मे ईंधन कुछ सेकंड जलता है लेकिन अंतरिक्ष शटल के सहायक बुस्टर राकेट मे यह लाखों किग्रा ईंधन 2 मिनिट तक जलता है।


नासा के ठोस ईंधन वाले सहायक बुस्टर राकेट मे अमोनियम पेर्क्लोरेट (69.6% आक्सीडाइजर), अलुमिनियम(16% ईंधन), आयरन आक्साईड(0.4% उत्प्रेरक), पालीमर (12.04% मिश्रण बंधक) तथा एपाक्सी क्युरींग एजेंट (1.96%) होता है। राकेट के अग्रभाग के ईंधन के मध्य मे 11 कोणो वाले तारे की आकृती की सुरंग तथा पिछले भाग मे शंक्वाकार रूप की सुरंग बनायी जाती है।ईंधन के इस तरह से भरे जाने पर प्रज्वलन के पश्चात तिव्र प्रणोद तथा लगभग 50 सेकंड बाद प्रणोद कम हो जाता है, इससे राकेट के जमीन से उठकर गति प्राप्त करने मे आसानी होती है तथा राकेट दबाव को झेलने मे समर्थ होता है।

ईंधन के मध्य की 11 कोणो वाली सुरंग

11 कोण वाली ईंधन के मध्य की सुरंग चित्र मे दिखायी गयी है। इस आकार के पिछे ज्यादा पृष्ठ सतह उपलब्ध कराना है, जिससे ईंधन ज्यादा क्षेत्रफल मे प्रज्वलित होगा और ज्यादा प्रणोद उत्पन्न होगा। प्रज्वलित होने के पश्चात ईंधन के ज्वलन से यह सुरंग गोलाकार रूप मे बदल जाती है,जिससे पृष्ठ सतह कम हो जाती है, ईंधन कम क्षेत्रफल मे प्रज्वलित होता है और इससे प्रणोद कम हो जाता है। इस आकार से प्रक्षेपण की प्रारंभ मे ज्यादा प्रणोद तथा बाद मे कम प्रणोद मिलता है।
ठोस ईंधन के राकेट के तीन मुख्य लाभ है:

  • सरलता
  • कम लागत
  • सुरक्षित

लेकिन इन राकेट की कुछ कमीयाँ भी है :

  • प्रणोद को नियंत्रीत नही किया जा सकता।
  • प्रज्वलन के पश्चात इंजिन को रोका या पुनरांभ नही किया जा सकता।

इन कमीयोँ के कारण ठोस ईंधन वाले राकेटो को कम जीवन वाले कार्य जैसे प्रक्षेपास्त्र या बुस्टर राकेटो मे किया जाता है। जब ईंजिन को नियंत्रण मे करना हो तब द्रव ईंधन वाले राकेटो का प्रयोग होता है।


द्रव ईंधन वाले राकेट ईंजिन

द्रव ईंधन वाला राकेट इंजीन

1926 मे राबर्ट गोड्डार्ड ने प्रथम द्रव ईंधन वाले राकेट इंजिन बनाया था। उनके इंजिन मे गैसोलीन तथा द्रव आक्सीजन का प्रयोग हुआ था। उन्होने अपना कार्य जारी रखते हुये राकेट डीजाईन के कई मूलभूत समस्याँ को हल किया था। इन समस्याओं मे द्रव ईंधन को पम्प करना, ईंधन शीतलीकरण तथा प्रवाह नियंत्रण प्रमुख थे। ये समस्यायें द्रव ईधन वाले राकेटो को जटिल बनाती हैं।


द्रव ईंधन वाले राकेट इंजिन का मूलभूत सिद्धांत सरल है। अधिकतर द्रव ईंधन वाले राकेट इंजिनो मे एक ईंधन तथा एक आक्सीडाइजर (उदा. :गैसोलीन तथा द्रव आक्सीजन) को एक ज्वलन कक्ष मे पम्प किया जाता है। वे प्रज्वलन से उच्च दबाव तथा उच्च गति की गैस की एक तेज धारा निर्मित करते है। यह तेज धारा एक नोजल से प्रवाहित होती है, नोजल के संकरे होने से उस और त्वरण मिलता है, इसके पश्चात ये इंजिन से उत्सर्जित होती है। सलंग्न चित्र मे इसका एक सरल चित्र दिया है।


यह चित्र किसी द्रव ईंधन वाले ईंजीन की वास्तविक जटिलताओं को नही दर्शाता है। जैसे सामान्यत: द्रव ईंधन या आक्सीडाइजर शितलीकृत द्रव गैस जैसे द्रव हायड्रोजन या द्रव आक्सीजन होती है। किसी द्रव-ईंधन राकेट इंजीन मे सबसे बड़ी समस्या ईंधन प्रज्वलन कक्ष तथा नोजल को ठंडा रखना है, इसके लिए अतिशितलीकृत (cryogenic)द्रव ईंधन को अत्याधिक गर्म उपकरणो के चारो ओर से घुमा कर उन्हे ठंडा किया जाता है। ईंधन पम्पो को ईंधन कक्ष मे ईंधन दहन से उत्पन्न दबाव को नियंत्रण मे करने लायक दबाव द्वारा ईंधन पम्प करना होता है।


द्रव ईंधन वाले राकेट इंजीनो मे ढेर सारे ईंधन संयोजन का प्रयोग किया जा सकता है। कुछ मुख्य उदाहरण :

  • द्रव हायड्रोजन तथा द्रव आक्सीजन : अंतरिक्ष शटल के मुख्य इंजिनो मे प्रयोग
  • गैसोलीन और द्रव आक्सीजन : गोड्डार्ड के प्रारंभिक राकेटो मे प्रयोग
  • केरोसीन और द्रव आक्सीजन : अपोलो अभियान के सैटर्न V बुस्टर राकेट के प्राथमिक चरण मे प्रयोग
  • अल्कोहल और द्रव आक्सीजन: जर्मन V2 राकेटो मे प्रयोग
  • नाइट्रोजन टेट्रोक्साइड/मोनोमेथील हायड्रेजीन : कैसीनी यान मे प्रयोग

भविष्य के राकेट इंजिन

डीप स्पेस 1 मे प्रयुक्त आयन इंजिन

डीप स्पेस 1 मे प्रयुक्त आयन इंजिन

हम लोगो को रासायनिक राकेट इंजिन देखने की आदत हो गयी है, जो ईंधन को प्रज्वलित कर प्रणोद उत्पन्न करते है। लेकिन प्रणोद उत्पन्न करने के और भी तरिके है। द्रव्यमान उत्सर्जित करने कोई भी उपकरण राकेट इंजिन का कार्य कर सकता है। यदि आप अत्याधिक तेजी से बिना रूके गेंद फेंक का उपकरण बना सकते है, तब आपके पास अपना राकेट इंजिन होगा। लेकिन इन उपायो के साथ एक छोटी सी समस्या है कि इस राकेट से निकली गेंदे सारे अंतरिक्ष मे एक गेंदो की तेज धारा के रूप मे बहती रहेंगी। इसलिए राकेट बनाने वाले गेंदो की जगह गैस का प्रयोग करते है।


कई राकेट इंजिन काफी छोटे होते है। जैसे किसी कृत्रिम उपग्रह के उंचाई नियंत्रित करने वाले राकेट इंजिन, इन्हे ज्यादा प्रणोदन की आवश्यकता नही होती है। कृत्रिम उपग्रहो के राकेटो के एक सामान्य डिजाइन मे किसी ईंधन का प्रयोग नही होता है, इसमे उच्च दबाव की नाइट्रोजन गैसे को नोजल से उत्सर्जित कर प्रणोदन उत्पन्न किया जाता है। इस तरह के प्रणोदको ने स्कायलैब को कक्षा मे रखा था। इन्ही राकेट इंजिन के प्रयोग से कक्षा मे अंतरिक्ष शटल की दिशा निंयत्रित की जाती है।


नये राकेट इंजिन डीजाइनो के मे आयन या परमाण्विक कणो को अत्याधिक तेज गति पर त्वरित कर प्रणोदन उत्पन्न करना भी है। नासा का डीप स्पेस 1 ने इस तरह के राकेट इंजिन का सफल प्रयोग किया था। भविष्य के इन इंजिनो मे प्लाज्मा इंजिन और आयन इंजिन भी है।





Comments jagatguru on 24-08-2021

राकेट





नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें Culture Current affairs International Relations Security and Defence Social Issues English Antonyms English Language English Related Words English Vocabulary Ethics and Values Geography Geography - india Geography -physical Geography-world River Gk GK in Hindi (Samanya Gyan) Hindi language History History - ancient History - medieval History - modern History-world Age Aptitude- Ratio Aptitude-hindi Aptitude-Number System Aptitude-speed and distance Aptitude-Time and works Area Art and Culture Average Decimal Geometry Interest L.C.M.and H.C.F Mixture Number systems Partnership Percentage Pipe and Tanki Profit and loss Ratio Series Simplification Time and distance Train Trigonometry Volume Work and time Biology Chemistry Science Science and Technology Chattishgarh Delhi Gujarat Haryana Jharkhand Jharkhand GK Madhya Pradesh Maharashtra Rajasthan States Uttar Pradesh Uttarakhand Bihar Computer Knowledge Economy Indian culture Physics Polity

Labels: , , , , ,
अपना सवाल पूछेंं या जवाब दें।






Register to Comment