Champaran Satyagrah Short Note चम्पारण सत्याग्रह शॉर्ट नोट

चम्पारण सत्याग्रह शॉर्ट नोट



GkExams on 13-07-2022


चम्पारण सत्याग्रह शॉर्ट नोट : इस लेख के जरिए हम आपको चम्पारण सत्याग्रह आन्दोलन (Champaran Satyagraha Movement In Hindi) पर जिक्र करेंगे जैसे यह कब हुआ और क्या इसके परिणाम हुए ये सब...


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सबसे पहले तो आपको बता दे की यह आन्दोलन (Essay on champaran satyagraha) किसानों से जुड़ा हुआ था। वैसे तो हमारे देश में कई अंग्रेजों के खिलाफ ऐसे आन्दोलन हुए है जो हमेशा एक मिशाल पेश करते है लेकिन यह चम्पारण सत्याग्रह आन्दोलन उन्ही में से एक था। जो आगे चलकर मिशाल बना था।


सत्याग्रह आंदोलन कहाँ से शुरू हुआ :




यह आन्दोलन 19 अप्रैल, 1917 को बिहार के चम्पारण जिले से शुरू हुआ था। और इस आन्दोलन के शुरू होने का कारण था जबरदस्ती अंग्रेजों द्वारा नील की खेती करवाना। क्योंकि नील की खेती करने से किसानों की जमीन खराब हो रही थी। इसलिए किसान आगे भविष्य को लेकर चिंतित होने लगे थे।


आपको बता दे की ये सत्याग्रह भारत में गांधी जी का पहला डिसओबेडिएंस मूवमेंट था। इस मूवमेंट के साथ ही अंग्रेजों को गांधी जी की ताकत के बारे में पता चला था। ध्यान रहे की इसी आंदोलन के दौरान ही पहली बार संत राउत ने गांधी जी को “बापू” के नाम से पुकारा था। जिसके बाद से गांधी जी को बापू कहा जाने लगा था।


नील के पौधे के बारें में :




नील का पौधा एक से दो मीटर ऊँचा होता है, जिसमे निकलने वाले फूलो का रंग बैंगनी और गुलाबी होता है। इसके पौधे जलवायु के आधार पर एक से दो वर्ष तक उत्पादन देते है। भारत की बात करें तो यहाँ नील की फसल मुख्य रूप में बिहार और बंगाल जैसे राज्यों में उगाई जाती है।


आपकी बेहतर जानकारी के लिए बता दे की नील की खेती सबसे पहले बंगाल में 1777 में शुरू हुई थी। यूरोप में ब्लू डाई की अच्छी डिमांड होने की वजह से नील की खेती करना आर्थिक रुप से लाभदायक था।


नील की खेती के लाभ :




वर्तमान समय में बिहार के किसान एक एकड़ के खेत में 7 क्विंटल सूखी पत्तियों को प्राप्त कर लेते है। जिसका बाज़ारी भाव 50 से 60 रूपए प्रति किलो के आसपास होता है। जिससे किसान भाई एक एकड़ के खेत में नील की एक बार की फसल से 50 हज़ार रूपए तक की कमाई कर सकते है।


नील की खेती के नुकसान :




इस प्रकार की खेती की समस्या ये है की ये ज़मीन को बंजर कर देती है और इसके अलावा किसी और चीज़ की खेती होना बेहद मुश्किल हो जाता है। शायद यही कारण था कि अंग्रेज़ अपना देश छोड़कर भारत में मनमाने तरीके से इसे उगाया करते थे।




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